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सांच कहै ता... लंकेश अवधेश के झगड़े में कबीर
Jayram Shukla
सोशल मीडिया आंसुओं से तर है। शहर की सडक़ों पर पिघले हुए मोम की परत है। कहा जा रहा है अभिव्यक्ति की आजादी रक्तरंजित है। बच सको तो बचो नहीं तुम भी मारे जाओगे। कुछ कह रहे हैं भागो-भागो भेडिय़ा आया। कुछ कह रहे जागो-जागो दरवाजे पर बंदूक लिए हत्यारा खड़ा है। शोर मति को मार देता है। कई मति के मारे लोग भी सुर में सुर मिलाकर चिल्ला रहे हैं-भागो, भागो-जागो, जागो। इन्हें ये नहीं मालूम कि क्यों भागो, क्यों जागो?
मैंने पत्रकार मित्र से पूछा ये क्या हो रहा है। वे बोले अभी फुर्सत नहीं शोकसभा में जा रहा हूं। शाम को कैंडल मार्च निकालना है, फिर मोर्चे और धरने की तैयारी करनी है। ये सब कर कुरा लूं तो बताऊंगा कि क्या हुआ। आजकल मीडिया से ज्यादा फास्ट मीडियाकर्स हैं। तथ्य के ऊपर कथ्य सवार है। एक दूसरे मित्र भी भागे जा रहे थे। मैं रास्ता रोक के खड़ा हो गया, बताओ तभी जाने देंगे। वे गुस्सा होकर बोले चलो हटो अभिव्यक्ति की आजादी के आड़े मत आओ। लगता है तुम भी दक्षिणपंथी दरिंदों के साथ हो गए हो।
मैंने कहा भाई मुझ पोंगापंथी को चाहे जो समझे रहो पर ये बताते जाओ कि हुआ क्या? ये मित्र भी झटकते हुए भाग खड़े हुए, उन्हें दीवारों पर पोस्टर चिपकाने की जल्दी थी। मैंनें ही इस अफरातफरी और भागमभाग की वजह खोजनी शुरू की। पता चला कि एक कन्नड़ टेबलाइड की संपादिका कोई गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। लंकेश सरनेम पहली बार सुना। कोई अपना नाम रावण और कंस के साथ भी जोड़ सकता है यह तो अपने आप में अभिव्यक्ति की आजादी का चरम है। अपन से दकियानूस तो जर्मनी है। आज भी कोई हिटलर के नामोनिशान के साथ खुद को जोड़ता है तो उसे पुलिस पकडक़र जेल में डाल देती है। यहां खुद को लंकेश के साथ जोडऩे पर भी कुछ नहीं।
बीच में किसी ने टोका उसने अपने नाम के साथ लंकेश जोड़ा था इसीलिए तो मारी गई। टोकने वाले से मैंने उसकी बल्दियत पूछी- पहले ये बताओ कि तुम वामपंथी हो कि दक्षिणपंथी? उसने कहा मैं कबीर दास हूं, प्योर आदमी सौ फीसदी। मैंने कहा अपने देश में जो आदमी हैंं वे खेती किसानी, मजूरी करते हैं या सरहद में फौजी हैं। बाकी सब पंथी हैंं। जैसे मैं पोंगापंथी। कबीरदास ने कहा, ठीक है मुझे आदमपंथी कह सकते हो।
अब सही सही बताओ हुआ क्या? आदमपंथी बोला- चूंकि वह अखबार वाली बाई के नाम गौरी के साथ लंकेश जुडा़ था इसलिए जिन लोगों ने उस पर फायर किया उन्हें अवधेश गैंग का शूटर मान लिया गया। मैंने कहा, कुछ समझा नहीं ये अवधेश कहां से आ गए। आदमपंथी ने समझाया... जैसे लंकेश वैसे ही अवधेश। इन दोनों के बीच तो त्रेता के जमाने से गैंगवार चल रहा है। अच्छा ये बात है, तो इसीलिये ये खरदूषण लोग कूदपड़े बीच में? आदमपंथी बोला, वामपंथियों ने अखबार वाली बाई को वामपंथी मान लिया। क्योंकि कन्हैया, बेमुला को वह अपना बेटा लिखती थी। वो इंशाअल्लाह वालों की आजादी की बात करती थी।
माओवादी उसके लिए स्वतंत्रता संग्रामी थे। वे मानती थी कि आरएसएस इस देश को नर्क की ओर ले जा रहा है। भाजपा काम नहीं करती झूठ बोलती है। मोदी गोएबेल्स की औलाद हैं। वे इदी अमीन की तरह मैन ईटर हैं। अमित शाह तड़ीपार हैं।देश को इन सबसे आजादी चाहिए। जेएनयू वाली, हम क्या मागें आजादी। भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह।
मैंने कहा क्या वाकय वामपंथी ऐसे हैं? आदमपंथी बोला- ये मैंने कब कहा, ऐसा तो दक्षिणपंथी कहते हैं। तो तुम्हारी क्या राय है मैंने आदमपंथी से पूछा..वह बोला- खेल स्पष्ट है कर्नाटक में लंकेश मारी गई। इसी तरह केरल और पश्चिम बंगाल में अवधेश मारे जाते हैं। फिर अवधेश..? वो बोला कि जब ये लंकेश तो वो अवधेश। वो लंका के राजा, तो ये अयोद्धा के। तो जब वे मारे जाते हैं तो ..मोमबत्ती जुलूस, सोशलमीडिया रुदन क्यों नहीं होता?
आदमपंथी बोला - ये अपने अपने समर्थ की बात है। ये नए जमानेे के हाईटेक, वे त्रेतायुगीन पुरातनपंथी। तोडफ़़ोड़, आगजनी, गुंडागर्दी से अपना हिसाब बराबर कर लेते हैं। मैंने पूछा अच्छा ये बताओ..कि अपने देश में लाखों लोग गंदा पानी पी के मर जाते हैं। त्रस्त किसान मेंड पर बैठे सल्फास खाकर मर जाता। गुंडे मवाली रोज किसी न किसी को टपकाते रहते हैं। माओवादी सुरंग लगाकर पुलिसवालों को उड़ा देते हैं।
आतंकवादी जवानों का सिर काट ले जाते हैं। गरीबों की रोज कहीं न कहीं इज्ज़त लुटती है। तब ये सोशलाइट रुदन क्यों नहीं होता? मोमबत्ती जूलूस क्यों नहीं निकालते? नागरिक आजादी क्यों खतरे में नहीं पड़ती? वह बोला- ये सब इसलिए नहीं होता क्योंकि ये लोग पंथी नहीं आदमी होते हैं और अपने यहाँ आदमी की कोई औकात नहीं।