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Lawyer's Conduct: अन्यायी की मदद वकील न करे, सुप्रीम कोर्ट तय करे आचरण !!

Lawyer's Conduct: वकीलों से अपेक्षा है कि मुवाक्किल की सुनते समय ही तय कर लें कि वह मदद के लायक है। जैसे बलात्कारी, हत्यारा, भू-माफिया, गुंडा, पेशेवर अपराधी। इनकी मदद तो किसी को भी कभी भी नहीं करना चाहिए। भले ही मोटी फीस का लालच हो। उदाहरणार्थ रेप के मुकदमों को आत्ममंथन के बाद स्वीकारना चाहिये।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 17 Nov 2023 7:35 PM IST
Lawyers should not help the unjust, Supreme Court should decide the conduct
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 अन्यायी की मदद वकील न करे, सुप्रीम कोर्ट तय करे आचरण: Photo- Social Media

Lawyer's Conduct: बड़ा जटिल और विषम है सहमत होना प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की राय से कि वकील भी डॉक्टर की भांति किसी की मदद करने से मना नहीं कर सकता। (दैनिक दि हिन्दू : 17 नवंबर 2023 : पृष्ठ 12, कालम 5 से 8)। दोनों की कार्यशैली अलग है। चिकित्सक प्राण बचाता है। उसके द्वारा दी गई मदद मानवीय होती है। वकालत का पेशा भी आदर्श था। जन सुरक्षा हेतु। मगर अनुभव भिन्न रहा। डॉक्टर को नैतिकता की शपथ लेनी पड़ती है। विशिष्ट मानकों को संजोने के लिए। अतः नीति संबंधी सिद्धांतों को शामिल किया जाता है। मूल शपथ ईसा पूर्व पाँचवीं और तीसरी शताब्दी के बीच आयनिक ग्रीक में लिखी गई थी। हालांकि पारंपरिक रूप से इसका श्रेय ग्रीक डॉक्टर हिप्पोक्रेट्स को दिया जाता है। इसे आमतौर पर “हिप्पोक्रेटिक कॉर्पस” में शामिल किया जाता है।

ग्रीक में हिप्पोक्रेटिक शपथ: Photo- Social Media

ग्रीक में हिप्पोक्रेटिक शपथ है, जिसके अनुवाद हैं : “मैं अपोलो हीलर की, एस्क्लेपियस की, हाइजीया की, पैनेसिया की, और सभी देवी-देवताओं की शपथ लेता हूं, उन्हें अपना गवाह बनाते हुए, कि मैं अपनी क्षमता और निर्णय के अनुसार, इस शपथ और इस अनुबंध को पूरा करूंगा। मैं उन आहार नियमों का उपयोग करूंगा जो मेरी सबसे बड़ी क्षमता और विवेक के अनुसार मेरे रोगियों को लाभान्वित करेंगे, और मैं उन्हें कोई नुकसान या अन्याय नहीं करूंगा। न तो मैं ऐसा करने के लिए कहे जाने पर किसी को जहर दूंगा और न ही ऐसा कोई उपाय सुझाऊंगा। इसी प्रकार मैं किसी स्त्री को गर्भपात कराने के लिये दवा नहीं दूँगा। लेकिन मैं अपना जीवन और अपनी कला दोनों को शुद्ध और पवित्र रखूंगा।”

क्या बार काउंसिल की भी नियमावली का होता है पालन?

यूं तो विधिवेत्ताओं हेतु बार काउंसिल की भी नियमावली भी है। मगर उसका कितना पालन किया जाता है ? मसलन दिल्ली बार काउंसिल की नियम (संख्या-103) है, जिसके तहत हर वकील को केवल कानूनी-संबंधी काम ही करना है। किसी भी अन्य व्यवसाय, उद्देश्य अथवा पेशे से आय पाना सरासर वर्जित है। क्या सारे वकील इसका अनुपालन करते हैं ? वकीलों से आम आदमी का आग्रह सदैव यही रहा है कि अत्याचारी की सहायता मत कीजिए। पैरवी न करें। जज साहब पर छोड़ दें।

वकीलों से अपेक्षा है कि मुवाक्किल की सुनते समय ही तय कर लें कि वह मदद के लायक है। जैसे बलात्कारी, हत्यारा, भू-माफिया, गुंडा, पेशेवर अपराधी। इनकी मदद तो किसी को भी कभी भी नहीं करना चाहिए। भले ही मोटी फीस का लालच हो। उदाहरणार्थ रेप के मुकदमों को आत्ममंथन के बाद स्वीकारना चाहिये। अमूमन हर वकील को इसी विषयवस्तु पर दक्षिण भारत की एक फिल्म (जख्मी औरत) बनी थी पर गौर करना था कि इसमें अधिवक्ता की भूमिका में अनुपम खेर बलात्कारी युवकों को साफ बचा लेते हैं। मगर वे युवक फिर वकील साहब की बेटी को ही उठा ले जाते हैं। तब अनुपम खेर को परपीड़ा का एहसास होता है।

एक मुद्दा (8 जून 2021 का) सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ का है। न्यायमूर्ति द्वय इन्दिरा बनर्जी तथा मुक्तेश्वरनाथ रसिकलाल शाह की अदालत का है। वकील महोदय दो खाद्य व्यापारियों प्रवर और विनीत गोयल (नीमच, मध्य प्रदेश) के लिये अग्रिम जमानत की पैरवी कर रहे थे। इन दोनों पर आरोप है कि वे मिलावटी खाद्य पदार्थ का विक्रय करते हैं। गेहूं को पोलिश कर बेचते थे। उन पर मुकदमा कायम हुआ और गिरफ्तारी का अंदेशा है। सुनवाई के दौरान खण्डपीठ ने पूछा : ''वकील साहब क्या आप तथा आपके कुटुम्बीजन उस अन्न को खा सकेंगे?'' पीठ ने फिर पूछा भी : ''इतने सरल प्रश्न का उत्तर देना क्यों कठिन है? या फिर जनता मरे, उसकी क्यों फ़िक्र करें?'' तार्किक अंत हुआ, अग्रिम जमानत की याचिका खारिज हो गयी।

Photo- Social Media

अब गौर करें वकीलों द्वारा प्रतिरोध की कार्यवाही पर। हाईकोर्ट के लखनऊ खण्डपीठ ने (जून 2016 में) मेडिकल कालेजों के जूनियर डाक्टरों की हड़ताल के दौरान मरे मरीजों के आश्रितों को मुआवजे के तौर पर पच्चीस-पच्चीस लाख रूपये देने का आदेश दिया था। यह राशि इन हड़ताली डाक्टरों के वेतन-भत्ते से वसूली जायेगी। न्यायालय ने कहा कि चिकित्सकों का काम सेवा करना है, काम बन्द करना नहीं। निरीह मरीज लोग इस निर्णय में दैवी इंसाफ देखेंगे। हाई कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल से अपेक्षा की है कि वह इन हड़ताली डाक्टरों की कारगुजारी पर विचार करे तथा उनके निलम्बन और लाइसेंस निरस्त करने पर भी गौर करें। वकीलों द्वारा हड़ताल पर कानूनन पाबन्दी लगनी चाहिए। देर से दिया गया न्याय भी अन्याय ही कहलाता है। हड़ताल के कारण अदालतें निष्क्रिय हो जाती है और सुनवाई टलती जाती है।

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वकीलों के विरूद्ध भी हो कार्रवाई

आज आम जन हाईकोर्ट से अपेक्षा करेगा कि मेडिकल डाक्टरों की भांति वह उन वकीलों के विरूद्ध भी कदम उठाये जो हड़ताल पर अक्सर उतारू हो जाते हैं। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार वकीलों के बारे में छान बीन शुरू हो गई है | सबसे पेशेवर विवरण मांगा जा रहा है। कई वकील केवल नाममात्र के अधिवक्ता है। उनमे से एक रपट के अनुसार कई लोग अन्य पेशे तथा धंधों में लगे है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है कि वकालत में रहने वाले दूसरे पेशे में नहीं रह सकते। दो घोड़ों पर सवारी निषिद्ध है।



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Shashi kant gautam

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