×

RK Sinha: महाराष्ट्र-गुजरात से सीखो, मत बांटों इन्हें

RK Sinha: महाराष्ट्र और गुजरात में परस्पर मैत्री और सहयोग का वातावरण सदैव बना रहा। गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि इन दोनों में अहंकार या ईगों का भाव नहीं है।

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 31 Oct 2022 9:34 PM IST
Article of RK Sinha
X

महाराष्ट्र-गुजरात से सीखो।( Social Media)

RK Sinha: महाराष्ट्र और गुजरात में आजकल निजी क्षेत्र का निवेश आकर्षित करने को लेकर स्वस्थ स्पर्धा चल रही है। यह अपने आप में सुखद है। ये दोनों राज्य 1 मई, 1960 को अलग-अलग प्रदेश के रूप में देश के मानचित्र में आने से पहले "बॉम्बे स्टेट" के ही अंग थे। यानी वे एक ही प्रदेश का हिस्सा थे। यह सब जानते हैं। ये भाषाई आधार पर अलग-अलग होने के बावजूद एक दूसरे के बेहद निकट हैं। हाल के दिनों में ही "टाटा एयरबस परियोजना" (Tata Airbus Project) गुजरात के पाले में गई। यह परियोजना पहले महाराष्ट्र के लिए तय थी, जिसे बाद में गुजरात में स्थापित करने का फैसला किया गया। परियोजना की जगह में बदलाव को लेकर मचे विवाद के बीच महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे (Maharashtra CM Eknath Shinde) ने सफाई दी।

महाराष्ट्र के औद्योगिक क्षेत्र के लिए बड़े निवेश की तैयारी: शिंदे

शिंदे ने कहा कि महाराष्ट्र के औद्योगिक क्षेत्र के लिए बड़े निवेश की तैयारी है। टाटा एयरबस प्लांट के 1.5 लाख करोड़ रुपये की वेदांत-फॉक्सकॉन परियोजना के गुजरात के पाले में जाने के करीब डेढ़ महीने बाद यह मुद्दा उछला है। वडोदरा में एयरबस सी-295 परिवहन विमान के उत्पादन के लिए एक विनिर्माण संयंत्र स्थापित किया जाना है। फ्रांस की कंपनी एयरबस और टाटा समूह की साझेदारी से इन विमानों का निर्माण किया जाएगा। कोई बात तो है कि बडे निवेश इन राज्यों को मिलते हैं। आखिर इन्होंने निवेशकों के अनुकूल अपनी नीतियां जो बनाईं हैं। यूं कोई निवेशक कहीं पैसा नहीं लगाता। यह याद रखना जाना चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि "विपक्ष हमें इस बात को लेकर निशाना बना रहा है कि बड़े निवेश महाराष्ट्र से गुजरात में जा रहे हैं। मैं इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दूंगा। हमारे उद्योग मंत्री उदय सामंत पहले ही इस पर सरकार का रुख स्पष्ट कर चुके हैं। महाराष्ट्र का भविष्य औद्योगिक निवेश को लेकर काफी बड़ा है।"

महाराष्ट्र और गुजरात देश के शेष राज्यों के लिए उदाहरण

दरअसल महाराष्ट्र और गुजरात देश के शेष राज्यों के लिए उदाहरण तो अवश्य ही पेश करते हैं, जिनमें आपस में किच-किच चलती रहती है। इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जैसे सिरफिरे अफसर से बने नेता गति देने की फिराक में रहते हैं। वे कुछ हफ्ते पहले ये कह रहे थे "गुजरात भाजपा का अध्यक्ष मराठी हैं। भाजपा को अपना अध्यक्ष बनाने के लिए एक भी गुजराती नहीं मिला? लोग कहते हैं, ये केवल अध्यक्ष नहीं, गुजरात सरकार यही चलाते हैं। असली मुख्यमंत्री यही हैं। ये तो गुजरात के लोगों का घोर अपमान हैं।" उनका इशारा भारतीय जनता पार्टी की गुजरात इकाई के प्रमुख सी आर पाटिल की तरफ था। अगर अरविंद केजरीवाल को महाराष्ट्र तथा गुजरात के घनिष्ठ संबंधों के बारे में थोड़ा सा भी ज्ञान होता तो वे इस तरह की अनाप-शनाप टिप्पणी करने से बचते। वे भी तो हरियाणवी बनिया हैं । तो क्यों दिल्ली की गद्दी पर आसीन करने के लिये उन्हें कोई "आप पार्टी" का कार्यकर्त्ता नहीं मिला, जो खुद मुख्यमंत्री बने बैठे हैं ?

महाराष्ट्र और गुजरात में परस्पर मैत्री व सहयोग का वातावरण सदैव

यह समझना होगा कि भारत की आर्थिक प्रगति का रास्ता इन दोनों ही राज्यों से ही होकर गुजरता है। महाराष्ट्र और गुजरात में परस्पर मैत्री और सहयोग का वातावरण सदैव बना रहा। गुजराती और मराठी समाज में तालमेल के मूल में बड़ी वजह यह रही कि इन दोनों में अहंकार या ईगों का भाव नहीं है। दोनों ने एक-दूसरे के पर्वों को आत्मसात कर लिया। गुजराती गणेशोत्सव को उसी उत्साह से मनाते हैं, जैसे मराठी नवरात्रि को आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। इसलिए दो राज्यों के बनने के बाद भी इन दोनों समाजों और राज्यों में कभी दूरियां पैदा नहीं हुईं। मुंबई के गुजराती भाषियों ने इस महानगर को अपनी कुशल आंत्रप्योनर क्षमताओं से समृद्ध किया। वे 1960 से पहले की तरह से मुंबई में अपने कारोबार को आगे बढ़ाते रहे। मुंबई के अनाज, कपड़ा,पेपर, और मेटल बाजार में गुजराती छाए हुए हैं। हीरे के 90 फीसद कारोबारी गुजराती भाई ही हैं, और मुंबई स्टॉक एक्सचेंज की आप गुजरातियों के बगैर कल्पना भी नहीं कर सकते।

''दोनों मुंबई की प्राण और आत्मा हैं''

मुंबई में मराठियों और गुजरातियों को आप अलग करके नहीं देख सकते। दोनों मुंबई की प्राण और आत्मा हैं। मुंबई यानी देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में गुजराती मूल के लोगों के दर्जनों कालेज, स्कूल, सांस्कृतिक संस्थाएं वगैरह सक्रिय हैं। मुंबई के गुजराती भावनात्मक रूप से ही गुजराती रह गए हैं। वैसे वे मुम्बई के जीवन में रस-बस गए गए हैं। मुंबई में अब भी उन लोगों को याद है जब एक धीरूभाई अंबानी नाम का नौजवान अंधेरी के एक चाल में रहता था। क्या किसी को बताने की जरूरत है कि धीरूभाई अंबानी कौन थे? ये बातें होंगी पिछली सदी के पांचवे दशक की। तब धीरूभाई बिजनेस की दुनिया में अपनी दस्तक दे रहे थे। मुंबई में लगभग 30 लाख गुजराती रहते हैं। इसी मुंबई में धीरूभाई के बाद गौतम अडानी, अजीम प्रेमजी, रतन टाटा, आदी गोदरेज,समीर सोमाया जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी दुनिया में जगह बनाने वाले अनेक गुजराती आए और आगे बढ़े।

गुजराती और मराठी शुरू से आपसी सांमजस्य और भाईचारे के भाव से इसलिए भी रहते रहे, क्योंकि दोनों एक दूसरे के पर्याय बन कर रहे। जहां गुजराती कारोबारी बनने को बेताब रहा, वहीं मराठी एक अच्छी सी पगार वाली नौकरी करने तक अपने को सीमित रखता था। दोनों ने एक-दूसरे के स्पेस को लाँघा नहीं। मराठी समाज की रूचियों में शामिल रहे कला, संस्कृति, संगीत वगैरह। गुजराती समाज सच्चा और अच्छा कारोबारी है। दोनों में टोलरेंस का भाव भी रहा।

''गुजरात से उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी''

अगर गुजरात की बात करें तो इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5 हज़ार वर्ष पहले हो चुका था। मध्य भारत के सभी मराठी भाषी इलाकों का विलय करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और 1 मई, 1960 को कोंकण, मराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र तथा विदर्भ, सभी संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई।

महाराष्ट्र राज्य आस-पास के मराठी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया था। इनमें मूल रूप से ब्रिटिश मुंबई प्रांत में शामिल दमन तथा गोवा के बीच का ज़िला, हैदराबाद के निज़ाम की रियासत के पांच ज़िले, मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश) के दक्षिण के आठ ज़िले तथा आस-पास की ऐसी अनेक छोटी-छोटी रियासतें शामिल थी, जो समीपवर्ती ज़िलों में मिल गई थी। महाराष्ट्र-गुजरात से अन्य प्रदेशों को सीखना चाहिए कि वे किस तरह से निजी क्षेत्र का निवेश अपने यहां भी ला सकें। फिलहाल तो ये दोनों प्रदेश ही बाकी राज्यों पर भारी पड़ रहे हैं।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story