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Modi 3.0: मोदी की तीसरी पारी लेकिन परिणामों में भाजपा के लिए क्या नसीहतें?

Modi 3.0: राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बीजेपी 400 का आंकड़ा पार कर जाएगी, लेकिन चुनाव परिणामों ने एक अलग ही कहानी कह दी।

Vikrant Nirmala Singh
Published on: 7 Jun 2024 12:33 PM GMT
Modis third term but what are the lessons for BJP in the results?
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मोदी की तीसरी पारी लेकिन परिणामों में भाजपा के लिए क्या नसीहतें?: Photo- Social Media

Modi 3.0: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास विकास का एक व्यापक एजेंडा था। सड़क से लेकर हवाई यात्रा तक, महिलाओं से लेकर किसानों तक, सभी के लिए कुछ न कुछ ऐसा था जिसे पिछले दस वर्षों में किए गए काम के रूप में बताया जा सकता था। ऐसा भी नहीं था कि हिंदुत्व को लेकर पार्टी कहीं भी कमजोर पड़ी। पीएम मोदी ने राम मंदिर के निर्माण के साथ ही विश्वनाथ कॉरिडोर आदि जैसे अनेक हिंदू हित के कार्य किए थे। इसके बावजूद भी भाजपा बहुमत से दूर रह गई। वास्तव में, भाजपा का बहुमत से दूर रहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जनादेश नहीं है। जनता ने प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को ही पसंद किया, लेकिन अपने बूथ पर भाजपा उम्मीदवार से नाराजगी दिखाई। यही कारण रहा कि भाजपा बहुमत से 32 सीट दूर रह गई। फिर भी, भाजपा अकेले इंडी गठबंधन से ज्यादा सीटें लाने में कामयाब रही। अपने सहयोगी दलों के साथ, भाजपा बहुमत के आंकड़े से 20 सीट अधिक रही।

दूसरी तरफ, विपक्ष चुनाव तो हार गया लेकिन नैतिक विजय घोषित करने से नहीं चूका। कहीं भी इस बात की चर्चा नहीं हो रही है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस तीसरी बार लोकसभा चुनाव हारी है। एक बार फिर पार्टी दो अंकों में सिमट कर रह गई। चर्चा केवल इस बात की है कि भाजपा खुद से बहुमत हासिल नहीं कर सकी।

Photo- Social Media

भाजपा के विस्तार का चुनाव था 2024

तमाम राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के यूपी में खराब प्रदर्शन और बहुमत से दूर रह जाने पर राय व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन यहां ध्यान देना होगा कि भारतीय जनता पार्टी ने इन्हीं चुनाव परिणामों में चार राज्यों में खुद या सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाई है। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है, जबकि सिक्किम में एनडीए की सरकार बनी है। उड़ीसा में भाजपा पहली बार बड़े बहुमत के साथ सरकार बना रही है, तो दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश में एनडीए की सरकार बन रही है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि यह भाजपा का दक्षिण और पूर्व विस्तार का चुनाव है। भाजपा ने तमिलनाडु में 11.24 प्रतिशत वोट हासिल किया है। इसका सीधा मतलब है कि आने वाले समय में भाजपा वहां बड़ा राजनीतिक दल बनने जा रही है। दूसरी तरफ केरल में 16.68% वोट के साथ भाजपा ने अपना खाता भी खोल लिया है।

केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत 15% से ऊपर जाना और लोकसभा में खाता खोलना बताता है कि आने वाले समय में भाजपा अब लेफ्ट और कांग्रेस के बीच विकल्प बन सकती है। तेलंगाना में भाजपा ने रिकॉर्ड 35.08 प्रतिशत वोटों के साथ आठ लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की है, जो हाल ही में राज्य में जीतने वाली कांग्रेस के बराबर है। पश्चिम बंगाल में भाजपा की सीटें जरूर कम हो गई हैं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 38.73% रहा। जबकि उड़ीसा में पार्टी ने 45.34% वोटों के साथ 20 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की है। आंध्र प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने 11.28 प्रतिशत वोट के साथ तीन लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की है, जबकि यहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली और वोट प्रतिशत मात्र 2.66% रहा। अगर यहां विधानसभा की बात करें तो भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 8 सीटों पर विजय प्राप्त की है, जबकि कांग्रेस का आंकड़ा इसमें भी शून्य रहा।

राम मंदिर : Photo- Social Media

बीजेपी बहुमत से दूर क्यों रह गई?

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बीजेपी 400 का आंकड़ा पार कर जाएगी, लेकिन चुनाव परिणामों ने एक अलग ही कहानी कह दी। जब भाजपा अपने बहुमत से पिछड़ने का मंथन करेगी, तो सबसे बड़ा कारण स्थानिक प्रत्याशियों से नाराजगी ही निकलकर सामने आएगा। विशेषकर उत्तर प्रदेश में यह एक प्रमुख कारण रहा। लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन अपने स्थानीय सांसद प्रत्याशी को नहीं चुनना चाहते थे। बीजेपी के टिकट वितरण के बाद ही कई सीटों पर प्रत्याशियों का विरोध शुरू हो गया था। जमीनी स्तर पर इस नाराजगी को नजरअंदाज करने का नतीजा बीजेपी को बहुमत न मिल पाने के रूप में भुगतना पड़ा।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि बीजेपी का कोर वोटर बूथ तक नहीं पहुंच पाया। बीजेपी ने चुनाव में इतना आत्मविश्वास दिखाया कि अधिकांश मतदाताओं को लगा सरकार तो बन ही रही है। इसके चलते इस बार मतदान में कमी आई। उदाहरण के लिए, वाराणसी लोकसभा सीट पर मात्र 11 लाख मतदाता ही मतदान करने पहुंचे। दूसरी ओर, विपक्ष ने अपने मतदाताओं को भीषण गर्मी में भी बूथों तक पहुंचाने का प्रबंध किया। उत्तर प्रदेश में विशेषकर यादव और मुस्लिम समुदाय को मिशन मोड में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने बूथों तक पहुंचाया। तीसरा कारण कई मुद्दों पर जनता की नाराजगी रही। विशेषकर नौकरियों का संकट, अग्निवीर जैसी योजनाएँ, जाट नाराजगी आदि ने बीजेपी को नुकसान पहुँचाया।

अखिलेश यादव, राहुल गांधी: Photo- Social Media



अखिलेश की मजबूती और कांग्रेस की वापसी के क्या मायने? लोकसभा 2024 के चुनाव परिणामों पर गौर करने से कुछ महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट होती हैं।

पहला, भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बना रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास के दूसरे नेता हैं जो तीसरी बार पूर्ण सरकार के साथ पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं। यह उनके नेतृत्व की दृढ़ता और जनता के बीच उनके प्रति विश्वास को दर्शाता है।

दूसरा, महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा का कमजोर प्रदर्शन संकेत देता है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए संकट के बादल मंडरा सकते हैं। इन राज्यों में भाजपा को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

तीसरा, इस चुनाव ने कांग्रेस को नया आत्मविश्वास दिया है, जिसके आधार पर वह वापसी की पूरी कोशिश करेगी। विशेष रूप से महाराष्ट्र में कांग्रेस का सबसे बड़ा दल बनना उसके लिए नई संजीवनी का काम करेगा। यह पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

चौथा, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने एक लंबे समय के बाद राज्य की राजनीति में खुद को साबित किया है। 2027 के आगामी विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव राज्य की योगी सरकार के लिए बड़ी और कठिन चुनौती साबित हो सकते हैं। उनके नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने पुनः राज्य की राजनीति में मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। लोकसभा 2024 के चुनाव परिणाम न केवल वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि आने वाले समय में भी देश की राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं।

(लेखक: विक्रांत निर्मला सिंह, एनआईटी राउरकेला में शोधार्थी हैं।)

Shashi kant gautam

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