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अमा जाने दो: हे भगवान, खुर्राट पुलिस नहीं रहेगी तो क्या होगा!

raghvendra
Published on: 12 Jan 2018 4:36 PM IST
अमा जाने दो: हे भगवान, खुर्राट पुलिस नहीं रहेगी तो क्या होगा!
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नवल कान्त सिन्हा

हे भगवान, ये क्या हो गया। बड़ी मुसीबत हो गयी। पुलिसवालों को कोई तो जाकर समझाए। भला पुलिस भी ऐसा भी करती है क्या। जुलम हो गया साहेब। पुलिस सुधर जाएगी तो बच्चे बिगड़ जाएंगे। अब तक तो ऐसा होता था कि बच्चे ने जरा भी शैतानी की सोची तो बड़ों की धमकी आ जाती थी। सुधर जाओ नहीं तो पुलिस पकड़ लेगी। बाहर न घूमो नहीं तो पुलिस पकड़ लेगी, हल्ला मत मचाओ नहीं तो पुलिस पकड़ लेगी। बड़ी कर्री टाइप की हव्वा हुआ करती थी यूपी पुलिस।

लेकिन ये ओम गुप्ता न... बहुत शैतान निकला और पुलिसवाले उम्मीद से अलग। इटावा पुलिस ने ये क्या कर डाला। ग्यारह साल के बालक ओम गुप्ता की अपने पापा से नाराजगी तो स्वाभाविक थी। वो ओम को मेला कहां दिखा रहे थे। ओम पहुंच गया पापा की शिकायत लेकर इटावा कोतवाली। पुलिस अंकल से कह दिया कि पापा को सोंटा लगा दे। मांग भी जायज थी। यही तो है पुलिस की पहचान। सोचा तो आपने भी यही होगा कि दरोगा जी फोन उठाते, बाप को फोन लगाते, दो गालियां देते और कहते कि अपने बच्चे को कंट्रोल नहीं कर पाते हो। कोतवाली क्या इसीलिए है। पापा भी तुरंत थाने पहुंचते। फिर बच्चे को ठोंकते-पीटते घर ले जाते। लेकिन एसएसआई राकेश भारती को न जाने क्या सूझी। बच्चे को दुलराया और परेशानी सुनी। एक वीडियो बना पोस्ट कर दिया। एसपी एक्टिव हुए। बच्चे को नुमाइश दिखाने का फैसला हुआ। पचास बच्चों को एक मिनी बस में बैठाकर नुमाइश ले जाया गया।

ये सुनकर दूसरे पुलिस अफसरों के भी जज्बात जग गए। डंडा रखकर बन गयी मित्र पुलिस। नवनीत सिकेरा, राहुल श्रीवास्तव और न जाने कितने पुलिस अफसरों के ट्वीट उछलने लगे। सोशल वेबसाइट्स पर चर्चा तो बस ओम गुप्ता की। उसकी तो लॉटरी निकल गयी। झुग्गियों के पचास बच्चों के लिए एक दिन ही सही, खुशियां आ गयीं। बच्चों को झूला झुलवाया गया। चाट, पकौड़ी, इडली, डोसा, गोलगप्पे खिलवाए गए। इसके बाद इन बच्चों को उनके मां-बाप के सिपुर्द कर दिया गया।

बच्चे पुलिस अंकल को धन्यवाद देकर घर चले गए, लेकिन हमें टेंशन हो गया। कन्फ्यू$ज हो गए कि पुलिस शरीफ हो गयी तो वसूली कौन करेगा? अफसर एक वाट्सएप, एक ट्वीट पर सुन लेंगे तो पुलिस की छवि का क्या होगा? एफआईआर सीधे दर्ज होने लगेगी तो दलालों और नेताओं की दुकान का क्या होगा? कौन जाएगा उनके पास। यूपी पुलिस की पहचान खो जायेगी क्या... तो नेताजी कहिन, अमा जाने दो, दिल्ली अभी दूर है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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