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East Delhi Fire Incident: याद रखे देश, ईस्ट दिल्ली में शिशुओं के जलने के हादसे को
East Delhi Fire Incident: 25 मई को जिस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हुई थी, उसी दिन ईस्ट दिल्ली के विवेक विहार के एक निजी अस्पताल में भीषण आग लगने के कारण सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी।
East Delhi Fire Incident: अभी एक महीना भी नहीं हुआ और देश की राजधानी में हुए एक दर्दनाक अग्निकांड को भुला दिया गया है। पिछली 25 मई को जिस दिन दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हुई थी, उसी दिन ईस्ट दिल्ली के विवेक विहार के एक निजी अस्पताल में भीषण आग लगने के कारण सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी। जैसा कि हमारे यहां होता आ रहा है- घटना के बाद नेताओं की तरफ से अफसोस जता दिया गया, स्थानीय प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा कर दिया और कुछ गिरफ्तारियां भी हो गईं। यह सब कुछ दिनों तक चला और फिर दुनिया अपनी रफ्तार से चलने लगी और फिर एक तरह से अगले हादसे तक के लिए सब कुछ सामान्य हो गया। हमारी नींद तो किसी हादसे के बाद ही खुलती है और पुन: हम कुंभकर्णी निद्रा में चले जाते हैं ।
प्राइवेट अस्पतालों पर किसी का नियंत्रण नहीं हो रहा
क्या हम इतने भयावह हादसे को लेकर पूरी तरह से संवेदनहीन हो चुके हैं? लगता तो यहीं है। अगर इस तरह की स्थिति न होती तो इतनी जल्दी विवेक विहार में हुई त्रासदी पर अफसोस जताना बंद न हो जाता। यह तो मानना ही होगा कि भारत में स्वास्थ्य सेवाएं तेजी से निजी हाथों में चली जा रही हैं। मतलब प्राइवेट अस्पताल खुलते ही चले जा रहे हैं। तंग गलियों में चलने वाले गंदे क्लीनिकों से लेकर पॉश कोरपोरेट इलाकों में अस्पतालें चल रही हैं। यहीं देश में 70 फीसद तक जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं दे रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार अब 25-30 करोड़ लोगों को ही स्वास्थ्य सेवाएं दे रही है। जब इतने बड़े स्तर पर प्राइवेट क्षेत्र हेल्थ सेक्टर को देखने लगा है, तो क्या इस पर किसी का नियत्रंण है? विवेक विहार की घटना साबित करती है कि इन प्राइवेट अस्पतालों पर किसी का कोई खास नियंत्रण नहीं हो रहा है। जिस दो मंजिला बेबी डे केयर सेंटर में आग लगी वहां नवजात शिशुओं का इलाज और देखरेख एक आयुर्वेदिक डॉक्टर करता था। अब आप समझ सकते हैं कि हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं की हालत कितनी पतली हो चुकी है। आग लगने के कारण सेंटर में भर्ती 12 नवजात में से सात ने दम तोड़ा। इसमें से कुछ झुलस गए थे तो कुछ नवजात ऑक्सीजन सपोर्ट हटने से जीवित नहीं रह पाए। मुझे ईस्ट दिल्ली के सोशल वर्कर जितेन्द्र सिंह शंटी बता रहे थे कि सेंटर में ऑक्सीजन सिलेंडर फटने से आग ने फौरन विकराल रूप ले लिया। सिलेंडर केयर सेंटर से दूर दूर जाकर गिरे। स्थानीय लोगों को लगा कि भूकंप आ गया है। शंटी और उनके साथियों ने आग बुझाने और घायलों को अस्पताल पहुंचाने में दिन-रात एक कर दी थी।
देश में अलग-अलग जगहों पर हुई आग की घटना और उनमें मौतें
हमारे यहां अस्पतालों में आग लगने के कारण लगातार बड़े हादसे होते रहे हैं। 2011 में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में आग लगने से 90 लोगों की मौत हो गई थी। अप्रैल 2021 में, कोविड-19 महामारी के चरम पर, मुंबई के पास विजय वल्लभ अस्पताल में आग लगने से 13 मरीजों की मौत हो गई थी। उसी वर्ष, मुंबई में फिर से सनराइज अस्पताल में आग लगने से 11 मरीजों की मौत हो गई। 2022 में, जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में आग लगने से आठ मरीजों की मौत हो गई और 2016 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 50 मरीजों की मौत हो गई। अपना इलाज कराने आए रोगियों का जलकर मरने के मामलों को सुनकर पत्थर दिल इंसान का भी दिल दहल जाता है। सवाल यह है कि निजी अस्पतालों में होने वाले हादसों पर कब लगाम लगेगी? दिल्ली के अधिकांश निजी अस्पताल गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज और बिस्तर उपलब्ध कराने में भी विफल रहते हैं, जबकि यह उनके निर्माण के समय दी गई जमीन के बदले में गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज कानूनी आवश्यकता है। अगर देश की राजधानी में ऐसा हो सकता है, तो हम छोटे शहरों और कस्बों की स्थिति की केवल कल्पना ही कर सकते हैं। अस्पतालों में आग लगने का सामान्य कारण आम तौर पर खराब इमारत संरचना, जिसमें भागने का कोई रास्ता नहीं होता, आसपास के क्षेत्र में ज्वलनशील तरल पदार्थ और गैसों की उपस्थिति और अनुचित भंडारण और, सबसे महत्वपूर्ण, अग्नि सुरक्षा मानक संचालन प्रोटोकॉल की कमी है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आग लगने पर अग्नि शमन गाड़ियाँ तक इन इमारतों तक पहुँच तक नहीं सकते I
मंडी डबवाली के स्कूल में आग की घटना
अगर बात अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं स हटकर करें तो क्या कोई 3 दिसम्बर,1995 को मंडी डबवाली (हरियाणा) और 13 जून,1997 को राजधानी के उपहार सिनेमाघर में लगी आग की घटनाओं को भूल सकता है? मंडी डबवाली में डीएवी स्कूल में चल रहे सालाना आयोजन में 360 लोग, जिनमें स्कूली बच्चे अधिक थे, जल गए थे। हालांकि, कुछ लोगों का तो यहां तक दावा है कि मृतकों की तादाद साढ़े पांच सौ से भी अधिक थी। उधर उपहार में लगी भयंकर आग के चलते 59 जिंदगियां आग की तेज लपटों की भेंट चढ़ गईं थीं। जैसा कि हमारे देश में होता चला आ रहा है और न जाने कब तक होगा, हादसों के बाद जांच के आदेश दे दिए जाते हैं। हालांकि, जांच रिपोर्ट आने के बाद उसे कोई देखता भी नहीं है। उसकी सिफारिशें धूल चाटती रहती हैं। हादसों में शिकार हुए मृतकों के परिजनों और घायलों को कुछ मुआवजा दे दिया जाता है।
कोर्ट ने उपहार सिनेमा खोलने का दिया आदेश
इस बीच, पिछले लगभग ढाई दशकों से बंद उपहार सिनेमा परिसर को फिर से खोलने का पटियाला हाउस कोर्ट आदेश दिया है। उपहार में जो कुछ हुआ था, उसके बाद बहुत सारे दिल्ली वाले सिनेमा घरों से दूर हो गए थे। उस भयानक हादसे से सारा देश दहल गया था। उस मनहूस शुक्रवार को बॉर्डर फिल्म देखने आए करीब पांच दर्जन लोग दम घुटने या जलने के कारण मारे गए थे। तब से उपहार बंद था। पिछले कुछ समय पहले मुझे उसके अंदर का डरावना नजारा देखने का मौका मिला था। वहां पर जली सीटें, राख के ढेर, चिप्स के पैकेट, पेप्सी की बोतलें यहां-वहां पड़ी थीं। यह सब उस दिन की यादें ताजा करवा रही थे जब इधर मौत के आगे इंसान बेबस था। उस शाम बेसमेट में लगे ट्रांसफार्मर में अचानक से लगी आग की लपटें और धुआं काल बन कर आए थे। इधर हाल के दिनों में देश भर से आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं। इनमें मासूम जान गंवा रहे हैं। क्यों संबंधित सरकारी महकमे देखते नहीं और सख्ती नहीं बरतते ताकि आग लगने के हादसे होने थम जाएं ?