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जीवन रक्षक लॉक डाउन बनाम जानलेवा भूख
सरकार के सामने अवसर की कमी नहीं है, समर्थन की कमी नहीं है। मोदी जी के एक आवाहन पर पूरा देश एकजुट हो जाता है। जनता करो या मरो के गुणात्मक सुधार के लिए तैयार है।
मदन मोहन शुक्ला
रक्त बीज की तरह बढ़ता यह कोरोना वायरस इंसानी सभ्यता की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। इसकी काट खोजने में पूरी दुनिया रात दिन एक किये हुए है। यह तो तय है आखिर में जीत इंसान की होगी,लेकिन कब,यह यक्ष प्रश्न है? लेकिन इसके एवज में जो खोएंगे उसकी भरपाई करने में कितने साल लगेंगे,यह हमको पता नहीं। पूरा विश्व इस समय लॉकडाउन में है। आर्थिक गतिविधियों पर पूरे दुनिया में ब्रेक लगा हुआ है।
पूरी दुनिया बियाबान जंगल में बदली
ऐसा लगता है पूरी दुनिया एक बियाबान जंगल में बदल गयी है, जहां इंसान दूर दूर तक नज़र नहीं आता,जो नज़र आता है वो है भयावह सन्नाटा। बस सिर्फ यही याद आ रहा है कि "कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे हर एक से,ये नए मिज़ाज़ का शहर है जरा फासले से मिला करो।
फ़िलहाल कोरोना आज नहीं तो कल जाएगा ही।लेकिन असली जंग तो अब आगे शुरू होगी वो होगी आर्थिक मंदी जो 1929 में आई आर्थिक मंदी से भी खतरनाक होगी। ऑक्सफेम ने चेता भी दिया है कि कोविड19 से जो आर्थिक परिदृश्य उभर रहे हैं उसमें अगर गंभीर कदम नहीं उठाए गए तो दुनिया की 8 फीसदी आबादी को गरीबी और भुखमरी की तरफ जाने से कोई नहीं रोक सकता।
भारत की स्थिति बहुत ही चिंताजनक
अमेरिका जैसी महाशक्ति में करीब 60 लाख लोगों ने पिछले दो हफ्ते में बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए अपने को पंजीकृत कराया है और करीब 1.60 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए हैं। बेरोज़गारी पिछले दो हफ्ते में 2.4%से बढ़कर 17.5 फीसदी हो गयी। 97 फीसदी आबादी घरों में कैद है। हालत यह है कि 2 लाख करोड़ डॉलर (करीब 150 लाख करोड़ रु) का राहत पैकेज भी काम नहीं आ रहा है।
अगर भारत की स्थिति देखें तो बहुत ही चिंताजनक है। लॉक डाउन में अर्थ व्यवस्था से जुड़े तक़रीबन तीन चौथाई से भी ज़्यादा सेक्टर पर ताला लगा है। अंतरराष्ट्रीय शोध एजेंसियों का कहना है कि इससे अगले वित्त वर्ष (2020-21) के लिए भारत की आर्थिक विकास दर नीचे रह सकती है।
आमदनी पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर
आईएनजी बैंक की रिसर्च रिपोर्ट ने तो विकास दर का आकलन 0.5% तक किया है। नोमुरा सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में 4.5 फीसदी की गिरावट आ सकती है। देश की 77 फीसदी आर्थिक गतिविधियों के ठप्प हो जाने से असंगठित सेक्टर में काम करने वालों की आमदनी पर सबसे ज़्यादा असर होगा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघटन (आई एल ओ) ने चिंता जाहिर की है कि कुल 45 करोड़ श्रमिकों में से असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को लेकर सरकार ने अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो यह तय है कि इनको गरीबी और भूख मार देगी। इस समय बेरोजगारी की दर 23 फीसदी से ज़्यादा है।जबकि रोज़गार देने की दर महज़ 38.2 फीसदी है।
आरबीआई ने नहीं लगाया कोई अनुमान
गौरतलब है कि रोज़गार देने की दर में पहले से काम कर रहे लोगों का भी प्रतिशत शामिल है। आरबीआई ने यह निश्चित तौर पर कहा है कि कोविड19 की वजह से लॉक डाउन भारत की आर्थिक सेहत पर बहुत ज़्यादा असर डालने वाला है। लेकिन चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर या महंगाई दर का आरबीआई ने कोई अनुमान नहीं लगाया है।
बैंकिंग सेक्टर तो पहले से ही संघर्ष कर रहा है। राजकोषीय घाटा मौजूदा लक्ष्य 3.5 फीसदी से बढ़कर 4.7 फीसदी तक जा सकता है। लॉक डाउन की वजह से खपत पर सबसे ज़्यादा असर होगा। भारतीय जी डी पी की दिशा और दशा खपत से ही तय होती है।
एयरलाईनों के समक्ष नया संकट
लॉक डाउन के चलते देश की तीन लोकास्ट एयर लाईनों इंडिगो ,स्पाइस जेट,तथा गो एयर को 4500 से 5000 करोड़ का झटका लग सकता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुताबिक कोरोना प्रकोप के चलते पहले से दबाब झेल रही एयर लाईनों के समक्ष एक नया संकट है।
इससे निकलना बिना सरकारी मदद के संभव नहीं होगा। और सरकार आज खुद ऐसे मोड़ पर है जहाँ जीवन मरण का सवाल है। इस केवल 21 दिन के लॉक डाउन में जिसमें अर्थ तंत्र पूरी तरह से थम गया है विश्लेषक इससे होने वाला नुकसान करीब 7 से 8 लाख करोड़ आंकते हैं। अब यह बंदी 3 मई तक और बढ़ गई है और इसका आकलन अभी होना है।
1991 से ज्यादा गंभीर है आज का संकट
बहरहाल, आज देश जिस मुहाने पर खड़ा है उससे उबरने की राह कठिन है लेकिन संकट अवसर भी लेकर आते हैं। बस ज़रूरी है कि सरकारें कैसे इनको कैश करती हैं। समय बर्बाद न करते हुए क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे। आज का आर्थिक संकट 2008-09 की मंदी और 1991 का आर्थिक संकट से ज़्यादा गंभीर है।
ऐसे तो 1980-81 में भी आर्थिक संकट था लेकिन उस अर्थव्यवस्था का आकार छोटा था।1991 में भारत के साथ कैश इनफ्लो की कमी थी, आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं थी। उस संकट को एक अवसर के रूप में बदलकर देश की अर्थव्यवस्था में जोआमूल चूल परिवर्तन किए गए उससे स्थिति संभाल ली गई थी।
लंबी छलांग का स्वर्णिम अवसर
आज भारत की अर्थव्यवस्था में 9 गुने से भी ज़्यादा वृद्धि हो गयी है इसीलिए समस्या भी उतनी विकट है। साथ साथ एक स्वर्णिम अवसर भी एक लंबी छलांग लगाने का है। यहां सरकार के पास खोने को कुछ नही है। बस होनी चाहिए नीति कर्ताओं के पास अवसर को भुनाने की कला। अब बड़े कॉर्पोरेट घरानों के कार्टल को तोड़ने का वक़्त आ गया है। इस समय सरकार की प्राथमिकता में असंगठित क्षेत्र की भारी-भरकम श्रम शक्ति के लिए रोजगार के संसाधन जुटाना होना चाहिए।
आज मानव कल्याण, रोज़गार, गरीब उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण आदि करीब 905 योजनाएँ केंद्र सरकार और 2500 राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही हैं। अब इनको संयोजित कर मेगा स्कीमें चलाई जाए। ये इस तरह होनी चाहिए - नियमित कमाई - इसके तहत वर्क फ़ोर्स के लिए नियमित कमाई की नीति बने। सामाजिक सुरक्षा - इस स्कीम के तहत बुढ़ापे में स्वास्थ्य, सामाजिक व आर्थिक तौर पर सुरक्षा प्रदान की गारंटी।
वर्क फोर्स के लिेए कुछ नहीं
आज स्थिति यह है कि 40 करोड़ की वर्क फ़ोर्स के लिए कोई जॉब सिक्योरिटी, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं है। इन लोगों को इन मेगा योजनाओं के तहत लाकर इनके भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। दूसरा बिन्दु है कि यूनिवर्सल इनकम ट्रांसफर का प्रावधान कर हर किस्म की सबसिडी का पैसा बेनिफिशरी के खाते में डायरेक्ट भेजा जाना चाहिए।
अब 1 करोड़ से लेकर 500 करोड़ वाली कंपनियों को लाइसेंस और पंजीकरण से छूट दी जानी चाहिए। इनको पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है इसके लिए इनको पूरी छूट दी जाए कि आप उत्पादन करें, रोज़गार दें तथा मार्केट तलाशें। इनको अधिकार हो सेल्फ असेसमेंट के आधार पर टैक्स साल के शुरू या अंत मे देने की छूट हो। इस क्षेत्र को मजबूत किया जाने से अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ चीन को कड़ी टक्कर दी जा सकेगी।
भारत के पास अवसर
कोरोना संकट से सभी देश चीन से नाराज हैं। जापान, अमेरिका तो अपने कल-कारखाने चीन से हटाने को आतुर हैं। भारत इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है। भारत के पास चीन का विकल्प बनने का सुनहरा अवसर है। सरकार विनिर्माण क्षेत्र को खुली छूट दे कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कब्जा जमा सकता है।
सरकार के सामने अवसर की कमी नहीं है, समर्थन की कमी नहीं है। मोदी जी के एक आवाहन पर पूरा देश एकजुट हो जाता है। जनता करो या मरो के गुणात्मक सुधार के लिए तैयार है।