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Lok Sabha Election 2024: भाजपा की झोली कितनी भरेगी पूर्वोत्तर से ?
Lok Sabha Election 2024: पूर्वोत्तर की “सेवन सिस्टर्स” या सात बहनें कही जाने वाली राज्य इकाइयों समेत क्षेत्र के सभी आठ राज्यों को मिलाकर कुल 25 लोक सभा की सीटें हैं। असम में सबसे ज्यादा लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 25 में से 21सीटें मिलीं थीं। भाजपा अब की बार पिछला आंकड़ा पार करना चाहती है।
Lok Sabha Election 2024 : जिस पूर्वोत्तर भारत में सूरज की किरणें सबसे पहले पहुँचती हैं वहाँ की जनता तैयार है, एकबार फिर लोकसभा चुनावों में अपना फैसला सुनाने के लिए। बेशक, भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों में 370 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है, तो 25 सीटें पूर्वांचल प्रदेशों की भी उसमें शामिल हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में आगामी 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई को लोक सभा चुनाव के लिए मतदान होना है।
अगर बात पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव की करें तो पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी ने जो झंडे गाड़े थे, उसे इस बार भी थामे रखने का पार्टी को पूरा भरोसा है। इस भरोसे के पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह विश्वास है कि उन्होंने जिस तरह से पूर्वोत्तर की विकास की योजनाएं सिरे चढ़ाई हैं, उसके बाद वहां की जनता उनकी पार्टी और सरकार को कभी नहीं भूलेगी। इसमें एक पक्ष यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की तरह ही गृहमंत्री अमित शाह ने भी पूरे पूर्वोत्तर भारत में विभिन्न शांति समझौते के तहत एक स्थायी शांति का माहौल बनाया है। चुस्त आंतरिक सुरक्षा के कारण ही पूर्वोत्तर के पूरे इलाके में कोई बड़ी हिंसक वारदात सुनाई नहीं पड़ रही है। हां मणिपुर इसका एक अपवाद अवश्य है और वहाँ भी गृह मंत्रालय ठोस समाधान की तरफ बढ़ रहा है।
पूर्वोत्तर की “सेवन सिस्टर्स” या सात बहनें कही जाने वाली राज्य इकाइयों समेत क्षेत्र के सभी आठ राज्यों को मिलाकर कुल 25 लोक सभा की सीटें हैं। असम में सबसे ज्यादा लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 25 में से 21सीटें मिलीं थीं। भाजपा अब की बार पिछला आंकड़ा पार करना चाहती है।
अभी तक इंडिया गठबंधन ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि उनका कोई बहुत बड़ा स्टेक पूर्वोत्तर के राज्यों में लगा है। ममता बनर्जी की टीएमसी और शरद पवार की एनसीपी पिछले चुनावों में यहां कुछ करने की एक अलग कोशिश की भी थी, लेकिन इस बार वह कोशिश भी कहीं दिखाई नहीं दे रही है। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि शरद पवार खुद अपनी पार्टी और अपनी वजूद के लिए अपने भतीजे से लड़ रहे हैं तो ममता बनर्जी अपने घर में ही भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक उपद्रवियों को बचाने के कारण घिरी हुई हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा पर विश्वास की वजह पिछले दस साल में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सक्रिय रूप से विकास पर फोकस और शांति स्थापना की कोशिश है।इसके अतिरिक्त पूर्वांचल प्रदेशों के प्रभारी और सह - प्रभारी डॉ ० संबित पात्रा और राष्ट्रीय सचिव ऋतुराज सिन्हा के लगातार प्रवासों और दिन - प्रतिदिन को मॉनिटरिंग ने पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के संगठन को मज़बूत ही किया है ।
मणिपुर में हालांकि केवल 2 लोक सभा की सीटें है, लेकिन मोदी सरकार के लिए वहाँ के जनजातीय संघर्ष को खत्म करना बहुत जरूरी है। क्योंकि मणिपुर हिंसा इस समय एक राष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है, जो एकतरह से पिछली कांग्रेसी सरकारों की देंन ही मानी जाती है ।इस दशकों पुरानी समस्या के किसी सर्वमान्य निर्णय की लगातार कोशिश गृह मंत्री अमित शाह कर भी रहें हैं। हाल ही में एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में भारत सरकार और मणिपुर सरकार ने मणिपुर के सबसे पुराने सशस्त्र समूह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता सामान्य रूप से उत्तर पूर्व और विशेष रूप से मणिपुर में शांति के एक नए युग की संभावना को जन्म देता है। पहली बार है कि घाटी स्थित एक मणिपुरी सशस्त्र समूह हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने और भारत के संविधान और देश के कानूनों का सम्मान करने पर सहमत हुआ है। यह समझौता न केवल यूएनएलएफ और सुरक्षा बलों के बीच शत्रुता को समाप्त करेगा, जिसने पिछली आधी शताब्दी से अधिक समय से हजारों लोगों की जानें लीं, बल्कि समुदाय की दीर्घकालिक चिंताओं को दूर करने का अवसर भी प्रदान करेगा। यूएनएलएफ 1964 से ही सक्रिय था और यह भारतीय क्षेत्र के भीतर और बाहर दोनों जगह अपना ऑपरेशन चला रहा था।
पूर्वोत्तर में स्थायी शांति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल से ही तत्पर और सक्रिय हैं। गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं कि पूर्व की कांग्रेस सरकारों की नीतियां समस्याओं से ध्यान भटकाने और सत्ता का आनंद लेने की रही थी। जिसके कारण क्षेत्र में हजारों लोगों की मौत हुई। मोदी सरकार ने न केवल इन समस्याओं के स्थायी निदान के लिए पहल की, बल्कि उग्रवादी गुटों को भी हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए ईमानदारी से कोशिश की। असम में पिछले 40 साल में पहली बार सशस्त्र उग्रवादी संगठन उल्फा ने भारत और असम सरकार के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौते पर कायम है। मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में पूर्वोत्तर में हिंसा के काले दौर को समाप्त करने की एक ईमानदार कोशिश हुई।
मोदी सरकार के आने के बाद असम का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन उल्फा हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर पूर्णतः सहमत हुआ। अमित शाह कहते रहे हैं कि उग्रवादी बहकाये हुए अपने ही लोग हैं। इन्हें अगर रोजगार के अवसर और सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए तथा नए भारत की तस्वीर दिखाई जाए तो यह हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे और मुख्य धारा में शामिल होने के लिए आगे आएंगे। उल्फा के कैडरों का आत्मसमर्पण इसी विश्वास का परिणाम है। शाह की नीतियों की यह सफलता ही है कि पूरे नॉर्थ ईस्ट में 9000 से ज्यादा उग्रवाद पर चल रहे कैडरों ने समर्पण किया है।
पूर्वोत्तर के राज्यों में लोगों की समस्याओं का तुरंत निदान नहीं हो पाने की बड़ी वजह संचार की सुविधा की कमी रही। मोदी सरकार ने इस पर एक बहुत बड़ी पहल की। उन्होंने पूरे देश के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के सुदूर कोनों को भी 5G कनेक्टिविटी से जोड़ना शुरू किया। मोबाइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए सैकड़ों टावर गांवों में लगाए गए। पूर्वोत्तर की स्ट्रेटेजिक लोकेशन को देखते हुए मोदी सरकार इस क्षेत्र को आर्थिक संबंधों के लिए पूरब के द्वार के रूप में विकसित कर रही है। भारत के विकास में यहाँ के लोगों की आकांक्षाएं भी जोड़ रही है। इस समय पूर्वोत्तर में इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी में जबर्दस्त काम हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में, पूर्वोत्तर में कई चीजें पहली बार हुई हैं। पूर्वोत्तर के कई हिस्से पहली बार रेल सेवा से जुड़ रहे हैं। आजादी के 75 साल के बाद मेघालय भारत के रेल नेटवर्क पर आया। नागालैंड को 100 साल बाद अब अपना दूसरा रेलवे स्टेशन मिला। पहली मालगाड़ी मणिपुर के रेलवे स्टेशन पहुंची। सिक्किम को पहला हवाई अड्डा मिला।
मणिपुर में जातीय हिंसा पर विपक्ष मोदी सरकार की काफी आलोचना कर रहा है। जबकि केंद्र सरकार हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई कर रही है। जब वहां संघर्ष चरम पर था, तब खुद गृहमंत्री अमित शाह वहां गए थे। तनाव को खत्म करने के लिए उन्होंने विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ तमाम बैठकें कीं । यह उम्मीद भी मोदी और अमित शाह से ही है कि मणिपुर में स्थाई शांति लाने में कामयाब होंगें। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के लोगों के दरवाजे तक गवर्नेंस पहुंचाने का प्रण लिया है। उन्होंने इस धारणा को बदल दिया है कि पूर्वोत्तर बहुत दूर है। मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पूर्वोत्तर को दिल्ली से दिल से बेहद करीब लेकर आई है। यहाँ निवेश पहले से चार गुना अधिक हो रहा है। हाल ही में अरुणाचल में 13,000 फीट की ऊंचाई पर बनाई गई सेला टनल का पीएम मोदी ने उद्घाटन किया और चीन को अपना इरादा बता दिया। देश की पहली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी मणिपुर में स्थापित की गई है। 8 राज्यों में 200 से अधिक ‘खेलो इंडिया सेंटर’ बनाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर लग यही रहा है कि पूर्वोत्तर भारत भाजपा को आगामी चुनाव में दिल खोलकर समर्थन देगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)