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Lord Ram: शास्त्रीय संगीत में राम

Lord Ram: संगीत इसी अर्थ में चिरंजीवी है, पोथियाँ नष्ट हो सकती हैं किन्तु जो कण्ठ में उतारी जा चुकी हैं वह कैसे नष्ट की जा सकती है। अतएव अमरता संगीत में ही विस्तार पाती है।

Dr Archana Chaturvedi
Published on: 20 Jan 2024 12:23 PM IST
Ram
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lord ram (photo: social media )

Lord Ram: जहाँ स्वर है, वहाँ संगीत है, जहाँ लय वहाँ लास्य है और जहाँ नाद है वहाँ ब्रह्म। साधना की यही आराधना संगीत को शाश्वत बनाती है। राग, लय, ताल, मात्रा सब इसके अवयव हैं, जिसमें निबद्ध होकर नीरस भी सरस हो जाता है। शास्त्र और लोक दोनों ही परम्परा के कण्ठ से अविरल प्रवाहित होती यह सरसता ही किसी भी गाथा को अमरता प्रदान कर देती है। संगीत इसी अर्थ में चिरंजीवी है, पोथियाँ नष्ट हो सकती हैं किन्तु जो कण्ठ में उतारी जा चुकी हैं वह कैसे नष्ट की जा सकती है। अतएव अमरता संगीत में ही विस्तार पाती है।

अर्थात् जो बात गायन के माध्यम से कही जाती है वह जीवंत हो जाती है, यही कारण है कि रामायण जिसे महर्षि वाल्मीकि ने रचा अवश्य, परन्तु सर्वप्रथम उसे जन-जन तक पहुँचाया। भगवान राम के दोनों पुत्र लव-कुश ने, वो भी संगीत के माध्यम से। यानी की संगीत के माध्यम से सर्वप्रथम राम कथा का गायन राम के ही दोनों पुत्र के मुख से ही बाल्मीकि ने कराया। कथा गायन की यह परम्परा वर्तमान समय में भी संगीत के माध्यम से लोकप्रियता प्राप्त करती चली आ रही है। संगीत के लिए इससे बड़ी और क्या बात होगी कि राम और राम कथा को जीवंतता प्रदान करने में संगीत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रमन्ते योगिनोऽनन्ते नित्यानन्दे चिदात्मनि।

इति रामपदेनासौ परब्रह्माभिधीयते॥

(रामतापनीयोपनिषद्)

'राम' सर्वभूतों में रमण करने से परब्रह्म का मुख्य नाम है। 'राम' सभी रसों के कोष और अनन्त ज्योतिर्मय रूप, लीला और धाम, सभी तत्वों में विद्यमान हैं। वह कृपा, करुणा, वत्सलता, अनुकम्पा सरीखे अनन्त गुणों की खान है, वह भवरोग से ग्रसित जीवों के लिए आनन्दस्वरूप हैं। वह आत्मस्वरूप, निरवच्छिन्न और निरावरण प्रकाश हैं, जिन्हें शास्त्रों में 'तारक ब्रह्म' भी कहा गया है। वह परम आनन्द की महायात्रा हैं। तर्क, ज्ञान-विज्ञान के इस आधुनिक युग के मनीषी-चिन्तक 'राम' की अवधारणा को सार्वभौम बनाकर प्रस्तुत करते हैं, जो सर्वसुलभ हैं। वह सगुण निर्गुण दोनों रूपों में कभी चरित्र रूप में तो कभी अतिअणिमत्व रूप में विहार करते हैं। व्यक्ति प्रत्यत्न करे तो अपने आचरण में भी झाँककर उन्हें देख सकता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रभु श्री रामचन्द्र का कितना महत्वपूर्ण स्थान है, उसका स्पष्ट वर्णन करना पूर्णतः असम्भव है। इस सन्दर्भ में कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखाने समान ही होगा। शास्त्रीय संगीत में प्रभु श्री रामचन्द्र के महत्व पर प्रकाश डालने से पूर्व प्रभु श्री रामचन्द्र का संक्षिप्त परिचय बताना आवश्यक है, भगवान श्री राम के विषय में प्राचीन शास्त्रों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि ब्रह्मा जी के 5वीं पीढी के राजा इक्ष्वाकु ने इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। उसके बाद इसी वंश के 24वीं पीढ़ी में महाराजा रघु का जन्म हुआ जिन्होंने 'रघुकुल' की स्थापना की एवं इसी वंश के 39वीं पीढी में श्री राम का जन्म हुआ। अध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम, हिन्दू धर्म में विष्णु जी के 10 अवतारों में से 7 वें अवतार हैं।


विभिन्न विद्वानों के अनुसार मानव जीवन का ऐसा कोई पक्ष नहीं, जिसकी झाँकी आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' में न मिलती हो । महाकाव्य काल के प्रसिद्ध महाकाव्य 'रामायण' द्वारा सम्पूर्ण विश्व को इनके जीवन के बारे में विदित होता है। रामायण चौपाइयों, छंदों, दोहों एवं सोरठों आदि का संग्रह है। जिसका गायन एवं वाचन जन कल्याण हेतु समय-समय पर सम्पूर्ण लोकों में किया जाता रहा है।

रामायण काल में संगीत विषयक समुन्नति तथा प्रसार के सर्वत्र दर्शन होते हैं। संगीत के कला पक्ष के साथ ही शास्त्र पक्ष का प्रकर्ष उस समय हुआ। भगवान श्री राम के चरित्र का काव्य रूप में वर्णन सर्वप्रथम आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने किया था, उसके उपरान्त अनेक भक्त कवियों ने श्री राम के चरित्र का एवं उनके रूप का वर्णन अपने काव्य में किया है, जैसे-रामचरितमानस, आध्यात्म रामायण, कृत्तिवास बंगला रामायण, मैथिल रामायण, साकेत इत्यादि। इसी आधार पर इलाहाबाद शहर के प्रकाण्ड संगीतज्ञ, वाग्गेयकार पंडित रामाश्रय झा 'रामरंग' जी ने 'संगीत रामायण' की रचना की। इस ग्रंथ में उन्होंने रामचरितमानस के दोहों और चौपाईयों को विभिन्न रागों पर आधारित ध्रुपद एवं ख्याल गायन शैली में निबद्ध किया है। उदाहरण स्वरूप बालकाण्ड से लेकर उत्तरकाण्ड तक के प्रसंग पर आधारित कुछ बंदिशें प्रस्तुत हैं :

राग भीमपलासी (एकताल) - बालकाण्ड प्रसंग

स्थाई-शुभ दिन शुभ घड़ी प्रगट भए कृपाल कौशल्या के हितकारी। अन्तरा-दोउ कर जोरे जननी निहोरे धरिये बाल रूप हरि भक्तन सुखकारी।।

राग मालकौंस (चौताल) - अयोध्याकाण्ड प्रसंग

स्थाई-आए अवध में सिय ब्याही रामचंद्र जननी सकल निरखि निरखि मोद मन भरे। अन्तरा-जाचक लियो बोलि दियो दान सम्मानि देत असीस चले, जोड़ी जुग जुग जियै।।

राग नायकी कान्हड़ा (झपताल) - अरण्यकाण्ड प्रसंग

स्थाई -गरजि पुकारे खग सुनु दससीस सिख तजि जानकी कुशल घर जाहू रे बावरे।

अन्तरा-मैंनाक मेरु ज्यों दोऊ भिरे तमकि कटेसि पंख परा, धरनी खग धाय रे।।

राग चारुकेसी (एकताल विलम्बित ख्याल)- राम-केवट प्रसंग

स्थाई - हे रघुवर राजा नइया ना चढ़ाऊं तोहे पग धोए बिना।

अन्तरा-पाहन नारी भई राहुर पग धूरि लगी, 'रामरंग' तरनी बने धरनी मुनि पग धोए बिना।।

राग बिहागड़ा (चौताल) - किष्किन्धाकाण्ड प्रसंग

स्थाई-सुग्रीव आवत निहारे लखन राम, दरस पाये भयो धन्य, उपज्यो हिये प्रीत।

अन्तरा-कहत वात वातसुत, सुनिए कपीस ईस रामचन्द्र सो मिताई, कीजिए सहित रीत।।

राग श्री (एकताल) - सुन्दरकाण्ड प्रसंग स्थाई-जबते जारि गयउ लंक पवनपूत हनुमंत, तब ते डरत रहत सकल नगर नर नारी। सोइ प्रभु आए पुर लइहैं को उबारी।।

राग सोहनी (तीनताल) - लंकाकाण्ड प्रसंग

स्थाई-आयो ना अजहूं कपि बीरा,

गई बीति आधी रैना अनुज बिन रघुवर भये अधीरा।

अन्तरा-अनुज बिना कैसे जाऊं अवध फिरि, तिय हिय बंधु गवायो, सुनत विलाप विकल कपि दल तेहि मध्य मारुत सूत आयो।।


कला और संस्कृति में श्रीराम :: 247

राग अभिषेक (चौताल) - उत्तरकाण्ड प्रसंग स्थाई-जानकी सहित राम शोभित सिंहासन, गावही गंधर्व मुनि जय जय सुर साईं ।

अन्तरा-कीन्हें प्रथम तिलक कुल गुरु वशिष्ठ मुनि, पुनि कियो विप्रन तिलक हरसाई।।

इस तरह से हम यह कह सकते हैं कि महर्षि वाल्मीकि से लेकर पं. रामाश्रय झा यानी कि "रामायण" से लेकर "संगीत रामायण" तक की परम्परा का मुख्य आधार संगीत है।

सन्दर्भ :

1. राग व रूप, स्वामी प्रज्ञानन्द (स्वराणां)

2. छायानट, अंक 85, अप्रैल-जून 1998

3. रामभक्ति में रसिक सम्प्रदाय, डॉ. भगवती प्रसाद सिंह

4. संगीत रामायण, भाग 2, पं. रामाश्रय झा 'रामरंग'

(लेखिका जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, प्रयागराज में संगीत की सहायक आचार्य हैं।’ कला व संस्कृति में श्रीराम ‘ पुस्तक से साभार।यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के संरक्षक , संस्कृति व पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मार्ग दर्शन , प्रमुख सचिव पर्यटन व संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम के निर्देशन, संस्कृति निदेशालय के निदेशक शिशिर तथा कार्यकारी संपादक तथा अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ लव कुश द्विवेदी के सहयोग से प्रकाशित हुई है। )

Monika

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Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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