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Hindi: मप्र ने जलाई हिंदी की मशाल

Hindi: नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ''हिंदी लाओं'' का नहीं, ''अंग्रेजी हटाओ'' का नारा देना चाहिए, जो काम महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ लोहिया ने शुरु किया था।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 14 Oct 2022 4:38 AM GMT
MP lit the torch of Hindi
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मप्र ने जलाई हिंदी की मशाल: Photo- Social Media

Lucknow: केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु के क्रमशः मुख्यमंत्री, मंत्री और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) से मांग की है कि उनके प्रदेशों पर हिंदी न थोपी जाए। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि संसद की राजभाषा समिति ने केंद्र सरकार की भर्ती-परीक्षाओं में हिंदी अनिवार्य करने और आईआईटी तथा आईआईएम शिक्षा संस्थाओं में भी हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। एक तरफ दक्षिण भारत से हिंदी विरोध की यह आवाज उठ रही है और दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है।

उन्होंने एक गजब का एतिहासिक कार्य करके दिखा दिया है। उनके प्रयत्नों से एमबीबीएस के पहले वर्ष की किताबों के हिंदी संस्करण तैयार हो गए हैं। उनका विमोचन भोपाल में 16 अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। गृहमंत्री के तौर पर राजभाषा को बढ़ाने के लिए अमित शाह के उत्साह को मैं तहे-दिल से दाद देता हूँ।

भारत में मेडिकल, वैज्ञानिक और तकनीकी पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है

अब 56-57 साल पहले जब मैंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएच.डी. थीसिस हिंदी में लिखने की मांग की थी तो देश में इतना हंगामा मचा था कि संसद की कार्रवाई कई बार भंग हो गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित सभी शीर्ष विरोधी नेताओं ने मेरा समर्थन किया और उच्च शोध के लिए हिंदी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं के द्वार खुल गए लेकिन आज तक भारत में मेडिकल, वैज्ञानिक और तकनीकी पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी ही बना हुआ है।

कोई सरकार इस गुलामी से भारत को मुक्त नहीं कर सकी। यह काम मेरे आग्रह पर शिवराज चौहान (Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Chouhan) और उनके स्वास्थ्य-शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने करके दिखा दिया। म.प्र. के उन मेरे मित्र डॉ बंधुओं का भी हार्दिक अभिनंदन, जिन्होंने एमबीबीएस की हिंदी पुस्तकें तैयार करने में दिन-रात एक कर दिए। मुझे विश्वास है कि देश के अन्य प्रदेशों की सरकारें अपनी-अपनी भाषाओं में इन अछूते विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित करने की प्रेरणा भोपाल से ग्रहण करेंगी।

केंद्र सरकार के लिए यह एक चुनौती है। वह हिंदी तथा अन्य भाषाओं में ऐसे ग्रंथ प्रकाशित करने का व्रत क्यों नहीं ले लेती? म.प्र. की चौहान सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों की प्रगति का मार्ग खोल दिया है। जहां तक अ-हिंदीभाषी प्रांतों का प्रश्न है, उन पर हिंदी थोपने की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए। यदि उनके बच्चों को भी उनकी उच्चतम शिक्षा उनकी मातृभाषा के जरिए दी जाने लगे तो वे हिंदी को संपर्क-भाषा के तौर पर सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।

''अंग्रेजी हटाओ'' का नारा देना चाहिए

दूसरे शब्दों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ''हिंदी लाओं'' का नहीं, ''अंग्रेजी हटाओ'' का नारा देना चाहिए, जो काम महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ लोहिया ने शुरु किया था और जिसे गुरु गोलवलकर जैसे महामनाओं ने भी आगे बढ़ाया था। यदि अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई पर देश भर में प्रतिबंध लग जाए तो विभिन्न स्वभाषाओं में पढ़े लोग परस्पर संपर्क के लिए कौनसी भाषा का सहारा लेंगे? हिंदी के अलावा वह कौनसी भाषा होगी? वह और कोई भाषा हो ही नहीं सकती।

इसीलिए मैं कहता रहा हूं कि कोई स्वेच्छा से अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहे तो जरुर पढ़े, जैसे कि मैंने कई विदेशी भाषाएं सीखी हैं लेकिन देश में हिंदी तभी चलेगी जबकि स्वभाषाएँ सर्वत्र अनिवार्य होंगी।

Shashi kant gautam

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