×

Hriday Narayan Dixit: काल, महाकाल के अधीन सब

Hriday Narayan Dixit: भारतीय ज्ञान परम्परा में काल की प्रतिष्ठा है। काल उपास्य है। माना जाता है कि जीवन काल के अधीन है। वैदिक साहित्य से लेकर रामायण महाभारत तक काल की चर्चा है।

Hriday Narayan Dixit
Published on: 14 Oct 2022 3:35 PM GMT
Hriday Narayan Dixit
X

Hriday Narayan Dixit: काल , महाकाल के अधीन सब

Hriday Narayan Dixit: भारतीय ज्ञान परम्परा में काल की प्रतिष्ठा है। काल उपास्य है। माना जाता है कि जीवन काल के अधीन है। वैदिक साहित्य से लेकर रामायण महाभारत तक काल की चर्चा है। ऋग्वेद(1.64.2) में कहते हैं, ''तीन नाभियों वाला कालचक्र गतिशील, अजर और अविनाशी है। इसके भीतर सभी लोक विद्यमान हैं।'' पृथ्वी, अंतरिक्ष और द्युलोक तीन नाभिया हैं। काल का चक्र इन्ही नाभियों या धुरियों पर गतिशील है। नाभि या धुरी महत्वपूर्ण है। धुरी गतिशील है। गति का परिणाम काल है। संपूर्ण अस्तित्व के भीतर परमाणुओं की गति है। गति सर्वत्र है। काल भी सर्वत्र है। सभी ग्रहों की गति भिन्न - भिन्न है। इसलिए प्रत्येक ग्रह पर काल का अनुभव भी भिन्न है । लेकिन काल सर्वत्र है। अविनाशी है, अमर है, अजर है। यह कभी बूढ़ा नहीं होता।

अथर्ववेद के 19वें काण्ड में ऋषि ने काल की चर्चा

अथर्ववेद के 19वे काण्ड (सूक्त 53 व 54) में ऋषि ने काल की चर्चा की है, ''विश्व रथ है। काल अश्व है। काल अश्व विश्वरथ का वाहक है। यह सात किरणों व सहस्त्रों आंखों वाला है। यह सदा तरुण है। कभी जर्जर नहीं होता। सभी ल¨क इसके चक्र हैं। इस पर कवि ज्ञानी ही आरोहण करते हैं।'' ध्यान देने योग्य बात है कि विद्वान ही इस रथ पर बैठने के पात्र बताए गए हैं। ठीक बात है - काल बोध के लिए ज्ञानी जैसी संवेदनशीलता व प्रतिभा चाहिए। रूद्र देवों के देव महादेव हैं और काल नियंता महाकाल हैं। महाकाल दिक्काल को आवृत करते हैं। अथर्ववेद (11.2.3) में ऋषि कहते हैं, ''रूद्र - शिव भव हैं। उनके सहस्त्रों शरीर और आंखें हैं।''

अथर्ववेद की तरह यजुर्वेद का 16वां अध्याय रूद्र की स्तुति

बताते है कि वे अंतरिक्ष मण्डल के नियंता हैं, उन्हें नमस्कार है। (वही 4) ऋषि अथर्वा रूद्र की स्तुति में भावुक हैं, ''हमारी ओर आती रूद्र शक्ति, हमारी ओर से वापस जाती शिव शक्ति, हमारे निकट उपास्थित शिव शक्ति को नमस्कार है।'' अथर्ववेद की तरह यजुर्वेद का 16वां अध्याय रूद्र की स्तुति है। यहां रूद्र की सर्वत्र उपस्थिति है। रूद्र महाकाल हैं। मध्य प्रदेश में उज्जयनी महाकाल की उपासना का दिव्य केन्द्र है। यहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिव्य भव्य महाकाल लोक का लोकार्पण किया है। सम्प्रति महाकाल की अंतर्राष्ट्रीय चर्चा है। उज्जयनी प्राचीन नगरी है। यह सिप्रा नदी के तट पर बसी हुई है।

कालिदास के मेघदूत में सिप्रा की वायु कमलों की गंध के साथ सारसों की मीठी बोली दूर दूर तक फैला देती है। उज्जयनी में महाकाल का प्रतिष्ठित मंदिर है। कालिदास का यक्ष मेघदूत से महाकाल जाने के लिए कहता है, ''यदि तुम महाकाल के मंदिर में सांझ होने के पूर्व पहुंच जाओ तो वहां तब तक ठहर जाना जब तक सूर्य भली प्रकार आंखों से ओझल न हो जाए जब महादेव की सांझ सुहानी आरती होने लगे तब तुम भी अपने गर्जन का नगाड़ा बजाने लगना।'' यक्ष कहता है, ''सांझ की पूजा हो जाने पर जब महाकाल तांडव नृत्य करने लगें, उस समय तुम सांझ की ललाई लेकर उन वृक्षों पर छा जाना जो उनकी ऊंची बांह के समान खड़े होंगे।''

कमल भारत का सांस्कृतिक प्रतीक

कमल भारत का सांस्कृतिक प्रतीक है। कमल गंध देवों को भी प्रिय है। कालिदास को भी प्रिय है। यक्ष मेघ से कहता है, ''मानसरोवर के जल में सुनहरे कमल खिलते हैं। इसी तरह अलकापुरी के पास बारहमासी कमल हैं।'' कुबेर के भवन से उत्तर की ओर यक्ष का घर है। यक्ष कहता है, ''घर के भीतर बावणी की सीढ़ियों पर नीलम जड़ा हुआ है। इसमें बहुत से सुनहरे कमल खिले हुए होंगे।'' कालिदास का ध्यान कमल के फूल और गंध पर यों ही नहीं जाता। कमल वैदिक कवियों का भी आकर्षण है। कमल जल में उगने वाला फूल है। अथर्ववेद (10.8.43) में कहते हैं, ''नौ द्वारों वाला जीवन कमल - 'पुण्डरीकं नौ द्वारं' तीन गुणों से आच्छादित है। इसके भीतर आत्मतत्व रहता है। यह बात ब्रह्म ज्ञानी जानते हैं।'' ब्रह्म ज्ञान सर्वोच्च है। कमल निर्लिप्त सांसारिक जीवन का प्रतीक भी है। कमल जल में होकर भी जल से निर्लिप्त रहता है। कमल गंध की ओर ऋषियों का ध्यान जाता है। पृथ्वी सगंधा है। पृथ्वी का गुण गंध है। कवि ऋषि अथर्वा ने पृथ्वी सूक्त में कहा है, ''हे माता भूमि ! आपकी गंध कमल में प्रवेश कर गई है।

इसी गंध को सूर्य पुत्री सूर्या के विवाह में वायुदेव ने ग्रहण कर विस्तृत किया था। आप हमको उसी गंध से आपूरित करें।'' रूप आंखों से देखे जाते हैं। लेकिन गंध दिखाई नहीं पड़ती। गंध सूक्ष्म है। सूंघने की इन्द्रिय की क्षमता से अनुभव में आती है। गंध का विवेचन आसान नहीं। कोई गंध तीखी होती है तो कोई भीनी। कोई गंध व्यक्तित्व को आनंद से भर देती है। कमल गंध को किस श्रेणी में रखें? क्या कमल गंध को सांस्कृतिक गंध नहीं कह सकते? हिन्दुत्व भौतिक पदार्थ नहीं है लेकिन हिन्दू होने की गंध समाज या राष्ट्र को गंधमादन बनाए रखती है।

कण और काल के प्रत्येक क्षण क्षण में आत्मभाव की अनुभूति

हिन्दुत्व सृष्टि के कण कण और काल के प्रत्येक क्षण क्षण में आत्मभाव की अनुभूति है। भृगु का काल चिंतन अथर्ववेद में है। उन्होंने मन को भी काल के अधीन बताया है लेकिन कभी कभी मन भी काल पर प्रभाव डालता प्रतीत होता है। भृगु के काल सूक्त में काल असाधारण व्याप्ति हैं। कहते हैं, ''काल ने ही सृष्टि सृजन किया है। सूर्य काल की प्रेरणा से तपते हैं। सभी प्राणी काल आश्रित हैं।'' यहां काल की व्याप्ति असीम कही गई है। ईरानी 'अवेस्ता' में काल की तरह एक देवता जुर्वान हैं पर वे भारतीय चिंतन के काल जैसे सर्वसमुपस्थित नहीं हैं। भृगु कहते हैं, ''काल ने दिव्य लोक उत्पन्न किये।

भूमि को भी उन्होंने उत्पन्न किया। भूत, भविष्य और वर्तमान काल आश्रित हैं।'' आगे कहते हैं, ''काल में तप हैं, काल में ब्रह्म हैं। काल सबका ईश्वर है।'' यहां काल की व्याप्ति अनंत है। वैदिक कवियों की देवों की व्याप्ति को असीम और अनंत बताने की शैली ध्यान देने योग्य है। भृगु कहते हैं, ''काल सभी भुवनों में व्याप्त है। सबका पोषण करता है। वह पहले सबका पिता है। बाद में वही सबका पुत्र है।'' वही भूत है, वही वर्तमान होता है। वही अनुभूत होकर सुख और दुख का अतिक्रमण करता है। भूत और वर्तमान अलग नहीं है। काल अखंड है।

वैदिक मन्त्रों में काल के सरल विभाजन

वैदिक मन्त्रों में काल के सरल विभाजन भी हैं। पहला शाश्वत कहा गया है। यह सदा से है, सदा रहता है। यह नित्य है। दूसरा तात्कालिक है। तात्कालिक काल का एक खण्ड है। तात्कालिक काल विशेष में प्रकट होता है, वर्तमान होता है और भूत हो जाता है। काल का मूल गति है। उपनिषद के ऋषि ब्रह्म को विभु और व्यापक बताते हैं, ''उस परमतत्व से काल, संवतसर और सभी लोक पैदा हुए हैं। वैशेषिक दर्शन में 9 द्रव्य हैं। काल भी एक द्रव्य है। गीता दर्शन ग्रन्थ है।

गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं को 'अविनाशी काल' बताया

गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं को 'अविनाशी काल' बताया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विश्वरूप दिखाया अर्जुन भयग्रस्त हुआ। उसने पुछा, ''हे भगवन आप उग्ररूप कौन हैं? (11.31) श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, ''मैं काल हूँ - कालोऽस्मि। विनाश में संलग्न हूँ।'' (10.32) यहां काल संहारक है। विभाजित काल के अनेक रूप हैं। हम अब, जब, तब शब्द प्रयोग करते है। अब का अर्थ वर्तमान काल है। जब का अर्थ काल विशेष का परिचायक है और तब तात्कालिक का। ऐसे विभाजन अभिव्यक्ति में सुविधाजनक हैं। काल महाकाल हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। उन महाकाल को नमस्कार है।

Deepak Kumar

Deepak Kumar

Next Story