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Mahakumbh Bhagdad: भीड़ के खतरों की जागरूकता की जगह मोनालिसा
Mahakumbh Bhagdad Update: भगदड़ से बचाव के सिवा महाकुंभ में हर रंग। भगदड़ के खतरों से बचने की जागरूकता का प्रचार हो।
Mahakumbh Bhagdad Update: महाकुंभ का इतिहास देखिए तो करीब प्रत्येक आयोजन में भीड़ में भगदड़ के हादसे हुए है। महाकुंभ में सैकड़ों करोड़ का प्रचार हुआ। पर आम भक्त या श्रद्धालुओं को भीड़ में भगदड़ के खतरों से बचने के लिए जागरूक करने की जहमत नहीं की गई। अब तक के कुंभ-महाकुंभ में इतने लोग कभी नहीं आए जितने की इस महाकुंभ में लोगों के आने की संभावना रही। संभावित चालीस करोड़ लोगों के आने का दावा किया गया। यानी इस बार भीड़ की भगदड़ का सार्वाधिक खतरा था। सुरक्षा और व्यवस्था जितनी भी चुस्त-दुरुस्त हो, यदि आम जनता भीड़ में खुद को सुरक्षित रखने का विवेक नहीं होगा तो व्यवस्था और सुरक्षा धरी की धरी रह जाएगी। जैसा कि प्रयागराज में मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के दौरान भगदड़ के हादसे में दर्जनों श्रद्धालुओं को अपना जीवन गवाना पड़ा।
बेहतर होता कि विज्ञापन के माध्यम से आमजन तक भीड़ में भगदड़ के खतरों से बचने की जागरूकता फैलाई जाती। गाइडलाइंस जारी होती। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के पास प्रचार के तमाम माध्यमों में नुक्कड़ नाटक भी एक जमीनी प्रचार का माध्यम है। जिसके जरिए पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों की वो आम जनता जो पढ़ी लिखी नहीं है, या टीवी, अखबार, डिजिटल प्रचार माध्यमों से नहीं जुड़ी है या कम जुड़ी है, ऐसे आवाम तक नुक्कड़ नाटकों के जरिए जनहित में जागरुकता फैलाने का काम होता है। नुक्कड़ नाटक टोलियों के जरिए भी महाकुंभ में भगदड़ से बचने की जागरुकता फैलाई जा सकती थी। किस तरह हम महाकुंभ या किसी भी भीड़ भरे आयोजन में भगदड़ से बचें,इस थीम पर नाटक और गीत तैयार किए जा सकते थे। हमारी कोई भी भूल भगदड़ का माहौल पैदा कर सकती है। ये बातें आमजन, भक्तगण या श्रद्धालुओं तक पंहुचाई जा सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दुर्भाग्यवश महाकुंभ डिजिटल और सोशल मीडिया पर एक मसाला फिल्म की सूरत में नजर आने लगा।
माला बेचने वाली लड़की मोनालिसा की खूबसूरत भूरी आंखे... आईआईटी वाले बाबा का गांजा.. हर्षा की सुंदरता.. चिमटे से सूत देने वाले बाबा के वीडियो,....
महाकुंभ का ये सब इतना वायरल हुआ कि लगने लगा महाकुंभ का मतलब ये सब।
यानी बड़े बजट की एक मसाला फिल्म जैसा।
मीडिया के प्राथमिक सिद्धांतों से अनभिज्ञ कुछ यूट्यूबर्स को एक स्मार्ट मोबाइल मिल गया है उनका खालीपन है दिनभर वीडियो बनाना। वो सोशल मीडिया पर किसी भी महत्वपूर्ण चीज की महत्वहीन तस्वीर पेश करते रहते है,वो अर्थ का अनर्थ करेंगे ही। कथित सोशल मीडिया एक्टिविस्ट,यूट्यूबर या अपने को सोशल मीडिया का पत्रकार बताने वालों की बड़ी फौज समाज या किसी आयोजन के लिए घातक बनती जा रही है। देश भर में फैल रही ये फौज बेरोजगारों की है। युवक खाली हैं, बेरोजगार है इसलिए इन्होंने मोबाइल से वीडियो बनाने या ऐसे वीडियोज को सोशल मीडिया में वायरल करना अपना शगल बना लिया है। इनकी दिनचर्या ही यही बन गई है। इन्हीं लोगों ने महाकुंभ के मर्म को सोशल मीडिया पर बिगाड़े की कोशिश की।
लेकिन जिम्मेदार लोग, जिम्मेदार मेन स्ट्रीम मीडिया और सरकार क्या कर रही थी ? इनका तो ये सबसे बड़ा फर्ज था कि फिजूल चीजों के बजाय इतनी विशाल भीड़ के इस समागम को भगदड़ के खतरों से बचाने की जागरूकता पर काम किया जाता।
सब जानते हैं कि महाकुंभ की भीड़ में भगदड़ से हादसे हुए हैं।
एक तरफ सरकार द्वारा सैकड़ों करोड़ खर्च से महाकुंभ पर विज्ञापन का बोलबाला था दूसरी तरफ बेरोजगार युवकों की फौज सोशल मीडिया/यूट्यूब पर महाकुंभ को मसाला फिल्म की सूरत में दिखा रही थी। महाकुंभ में भीड़ की भगदड़ की प्रबल संभावना के बाद भी किसी ने भी भीड़ में भगदड़ पैदा होने के खतरे से बचने की गाइड लाइन जारी नहीं की। भगदड़ का शिकार ना हों, भगदड़ से कैसे बचें ! ऐसे मचती है भगदड़ और लोग जान गवा देते हैं, इसलिए आप अमृत स्नान में किसी अफवाह पर यकीन कर भगदड़ का शिकार मत हो जाइएगा ! अनुशासनहीनता, जल्दीबाजी आपकी जान ले सकती है...
ऐसी गाइड लाइन के भी सरकारी विज्ञापन जन-जन तक पंहुचना चाहिए था। या इस थीम पर गीत और नुक्कड़ नाटक प्रचारित किए जाते।
जिम्मेदार सरकार को और जिम्मेदार मीडिया को महाकुंभ को भगदड़ मुक्त करने की गाइड लाइन जन-जन तक चलाना चाहिए थी। लेकिन ना सोशल मीडिया पर और ना महाकुंभ के सरकारी विज्ञापनों से जनता को जागरूक करने वाली कोई गाइडलाइन पब्लिक तक पंहुचाई गई।
हर कोई महाकुंभ को भुनाने की कोशिश करता रहा।
(लेखक पत्रकार हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)