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Maharashtra Political News: शिवसेना-संकट के सबक, जानिये क्या हैं राजनीतिक विश्लेषक वेद प्रताप वैदिक के विचार
Maharashtra Political crisis: मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपने बाकी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद देने को भी तैयार हों तो भी यह गठबंधन की सरकार चलनेवाली नहीं है।
Maharashtra Political Crisis: यह मानकर चला जा सकता है कि महाराष्ट्र की गठबंधन-सरकार का सूर्य अस्त हो चुका है। यदि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपने बाकी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद देने को भी तैयार हों तो भी यह गठबंधन की सरकार चलनेवाली नहीं है, क्योंकि शिंदे उस नीति के बिल्कुल खिलाफ हैं, जो कांग्रेस और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रति ठाकरे की रही है। शिवसेना के बागी विधायकों की सबसे बड़ी शिकायत यही है कि ठाकरे ने अपनी कुर्सी के खातिर कांग्रेस और एनसीपी को न सिर्फ महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंप दिए हैं बल्कि शिवसेना के विधायकों की वे ज़रा भी परवाह नहीं करते हैं।
इसके अलावा ठाकरे के खिलाफ लगभग सभी शिवसेना के विधायकों की गंभीर शिकायत यह है कि मुख्यमंत्री अपने विधायकों को भी मिलने का समय नहीं देते हैं। विधायक अपने निर्वाचकों की शिकायतें दूर करने के लिए आखिर किसके पास जाएं? शिवसेना में बरसों से निष्ठापूर्वक सक्रिय नेताओं को इस बात पर भी नाराजी है कि शिवसेना ने हिंदुत्ववादी भाजपा का साथ छोड़ दिया और जिस कांग्रेस के खिलाफ बालासाहब ठाकरे ने शिवसेना बनाई थी, उद्धव ठाकरे उसी की गोद में बैठ गए।
उद्धव ने किसी वैचारिक मतभेद के कारण नहीं, बल्कि व्यक्तिगत राग-द्वेष और आरोपों-प्रत्यारोपों के कारण भाजपा से वर्षों पुराना संबंध तोड़ लिया। शिवसेना को वे एक राजनीतिक पार्टी की तरह नहीं, बल्कि किसी सेना की तरह चलाते हैं। हर शिव सैनिक अपने कमांडर की हां में हां मिलाने के लिए मजबूर है। सेना से भी ज्यादा यह पार्टी एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गईं है। जैसे बालासाहब की कुर्सी पर उद्धव जा जमे हैं, वैसे ही वे अपने बेटे आदित्य को अपनी कुर्सी पर जमाने के लिए उद्यत हैं। शिवसेना के अन्य नेताओं के मन में पल रही ये ही चिंगारियां आज ज्वाला के रूप में प्रकट हो रही हैं। शिंदे के पास 2/3 बहुमत की बात सुनते ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री निवास छोड़ दिया है। वे ऐसे बयान दे रहे हैं, जैसे उन्हें मुख्यमंत्री पद की कोई परवाह ही नहीं है।
वे कह रहे हैं कि सरकार रहे या जाए, शिवसेना के लाखों कार्यकर्त्ता उनके साथ हैं। लेकिन इस सरकार के गिरने के बाद शिवसेना के ये कार्यकर्ता पता नहीं किधर जाएंगे? वे शिंदे को अपना नेता मानेंगे या उद्धव ठाकरे को? जाहिर है कि शिंदे अब कांग्रेस और शरद पवार से हाथ नहीं मिलाएंगे। उनकी गठबंधन सरकार अब भाजपा के साथ ही बनेगी। भाजपा उन्हें खुशी-खुशी उप-मुख्यमंत्री का पद देना चाहेगी। उद्धव ठाकरे को सबक सिखाने के लिए शिंदे को भाजपा मुख्यमंत्री पद भी दे सकती है। यह घटना-क्रम देश के सभी नेताओं के लिए बड़ा सबक सिद्ध हो सकता है। एक तो राजनीतिक पार्टियों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी न बनने दिया जाए और दूसरा पदारुढ़ नेता लोग अहंकारग्रस्त न हों।