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Women Empowerment: भले ही हर दौर में बढ़ती रही महिलाओं की शक्ति, लेकिन अभी बदलाव की जरूरत
Women Empowerment: संविधान में हमने सरकार को महिलाओं के लिए विशेष उपाय करने का अधिकार भी दिया जिसके चलते आज महिलाओं के लिए सबला योजना, किशोरी शक्ति योजना,मातृत्व योजना, लाडो योजना, बालिका समृद्धि योजना, उज्ज्वला योजना, और भी बहुत कुछ किया जा रहा है।
Women Empowerment: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शासन और ब्रिटिश राज के दौरान महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कई कानून बने। 1829 के बंगाल सती रेगुलेशन से लेकर 1856 के हिंदू विधवा पुनर्विवाह कानून और 1870 के कन्या भ्रूणहत्या रोकथाम कानून से लेकर 1891 के सेक्स सहमति की आयु कानून तक कई बड़े कदम उठाए गए। आज़ादी के बाद हमने संविधान में लिख दिया कि लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। संविधान में हमने सरकार को महिलाओं के लिए विशेष उपाय करने का अधिकार भी दिया जिसके चलते आज महिलाओं के लिए सबला योजना, किशोरी शक्ति योजना,मातृत्व योजना, लाडो योजना, बालिका समृद्धि योजना, उज्ज्वला योजना, और भी बहुत कुछ किया जा रहा है। अब तो संविधान संशोधन करके महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण भी हमने दे दिया है।
सन 47 के बाद से सरकारें लगातार महिलाओं को एम्पावर करने के लिए योजनाएं चलाती जा रही हैं। मोदी सरकार ने बीते 9 वर्षों में एक से बढ़ कर एक काम किये हैं जिनमें उज्ज्वला योजना और हाल में पास हुआ महिला आरक्षण बिल सबसे महत्वपूर्ण हैं।
हर क्षेत्र में महिलाओं का बढ़ रहा है दबदबा
महिलाएं एम्पावर भी बहुत हुईं हैं। हर क्षेत्र में महिलाओं की एंट्री है। देश की पहली महिला मुख्यमंत्री सरोजिनी नायडू से लेकर पहली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पहली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक लम्बा सफर महिलाओं ने तय किया है। राजा राममोहन राय से लेकर नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के उत्थान और सम्मान के लिए क्या कुछ नहीं किया है।
ऐसे देश में जहां 80 प्रतिशत से अधिक आबादी विभिन्न प्रकार की देवी-देवताओं की पूजा करती है, महिलाओं की स्थिति और उनका प्रतिनिधित्व प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक बहुत भिन्न रहा है। वैदिक समाज में महिलाओं को जीवन के सभी पहलुओं में पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त था।
2021 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं यानी अब महिलाओं की तादाद पुरुषों से ज्यादा है। अगली जनगणना में तस्वीर और भी साफ हो जाएगी। संसद में अभी 14.5 फीसदी महिलाएं हैं। आने वाले दशक में ये 33 फीसदी होने की उम्मीद है।
महिलाएं हर जगह अपना मुकाम बना रही हैं। आज आप उन्हें ई रिक्शा से लेकर रेलवे इंजन और ट्रक से लेकर हवाई जहाज उड़ाते देखते हैं। सेना, पुलिस, साइंटिस्ट सब में महिलाओं का दखल है। देश में कुल 95.1 करोड़ वोटर हैं जिनमें 46.1 करोड़ महिला मतदाता हैं। 2019 में इनकी संख्या 43.8 करोड़ थी। 2019 के आम चुनावों में 67.2 फीसदी महिला मतदाताओं ने वोट दिया जबकि पुरुषों में 67 फीसदी ही वोट देने गए थे। प्रधानमंत्री सही कहते हैं कि महिलाओं से राजनीतिक दल कांपते हैं।
महिला सशक्तिकरण के लिए नियम, कायदे, कानून योजनाओं की भरमार रही है। बहुत कुछ हो रहा है लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी है। योजनाएं और कानून अपनी जगह हैं लेकिन सामाजिक नजरिये वही पुराने हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर (प्रति 1 लाख जनसंख्या पर घटनाओं की संख्या) 2020 में 56.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 64.5 प्रतिशत हो गई। महिलाओं के खिलाफ अपराध 2021 में पिछले वर्ष की तुलना में 15.3 प्रतिशत बढ़ गया, 2020 में 3,71,503 मामलों के बाद 2021 में 4,28,278 मामले दर्ज किए गए। इनमें से अधिकांश मामले (31.8 प्रतिशत) पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता की श्रेणी में आते हैं। इसके बाद "महिला की शील भंग करने के इरादे से हमला" (20.8 प्रतिशत), अपहरण और अपहरण (17.6 प्रतिशत), और बलात्कार (7.4 प्रतिशत) का स्थान है।
महिलाएं एम्पावर्ड तो हैं। पुलिस सिपाही हैं लेकिन सरयू एक्सप्रेस ट्रेन में दरिंदगी का शिकार भी बनती हैं। निर्भया कांड के बाद सख्त कानून बने लेकिन कांडों की संख्या में कोई कमी नहीं आई। मणिपुर की जातीय हिंसा में क्या क्या नहीं हुआ महिलाओं के साथ।तमाम महिमामंडन के बावजूद आज भी महिलाएं एक ऑब्जेक्ट के रूप में देखी जाती हैं।
स्त्री पुरुष के समानता
हमने जब से स्त्री पुरुष के समानता के दावे शुरू किये हैं, तब से बराबरी तो छोड़ दीजिये, महिलाओं के दर्जे में गिरावट का दौर शुरू हो गया है। वैसे भी दो चीजें एक जैसी होंगी तो निः संदेह एक की उपेक्षा हो ही जायेगी। उसमें भी जो बाद में एक सी होगी या बनाई जायेगी उसकी उपेक्षा होने की गुंजाइश ज़्यादा होगी । अलग अलग तरह की कई चीजें होंगी तो सब की स्वीकृति बनी रहेगी । यही वजह है स्त्री व पुरुष को ईश्वर ने अलग अलग बनाया है। अलग अलग गुण धर्म दिया है। स्त्री को जनने का गुण दिया हैं। ताकि स्त्री की श्रेष्ठता क़ायम रहे। पर एक हम हैं कि बराबरी के लिए ओरांग ऊटांग की तरह अड़े हुए हैं।
जनमानस में महिलाओं के प्रति नज़रिया
बराबरी का दावा, आगे निकल जाने की दौड, श्रेष्ठता- ज्येष्ठता की होड़ का ही नतीजा है कि ब्रिटिश हुक्मरान, बड़े बड़े समाज सुधारक और आज़ाद देश की आज़ाद सरकारें सब कुछ करने के बावजूद जनमानस में महिलाओं के प्रति नज़रिया न बदल सकीं। प्रवचन, भाषण और नारों का फायदा हमने तो होते नहीं देखा। महिलाओं में आज़ाद ख्याल और उन्मुक्तता आई तो विपरीत प्रतिक्रिया ज्यादा तेज हुई है। श्रद्धा कांड से लेकर निष्ठा कांड तक कितने ही उदाहरण हैं।ये सब कैसे बदलेगा। कब बदलेंगी लोगों की नज़रें? परिवारों की, पुरुषों की नजरें बदलनी होंगी। लेकिन कैसे? सोचिये इस बारे में।
( लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार ।)