×

Prayagraj News: प्रयागराज कुंभ बारूदी धुएं में कराह रही मानवता के कल्याण के लिए उदघोष

Mahakumbh 2025: ऐसे माहौल में भारत की सनातन संस्कृति अपने सृष्टि पर्व के माध्यम से विश्व के कल्याण का उदघोष कर रही है। गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी तट पर प्रयाग राज में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगा चुके हैं।यह अद्भुत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वगुरु भारत का सपना साकार हो रहा है।

Sanjay Tiwari
Published on: 22 Jan 2025 10:11 PM IST (Updated on: 22 Jan 2025 10:13 PM IST)
Pic- Newstrack
X

 Pic- Newstrack

Prayagraj Mahakumbh 2025: विश्व संत्रस्त है। अनेक देश युद्ध की विभीषिका में हैं। मानवता कराह रही है। स्त्रियों, वृद्धों, मासूम बच्चों की लाशें गिनती से बाहर हैं। पश्चिम में बारूद ही बारूद है। भारत के पास पड़ोस में भी बारूदी धुएं से वातावरण दूषित है। मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बनकर रक्त पिपासु हो गया है। किसी देश का नाम लें यह जरूरी नहीं किंतु दृश्य भयावह हैं। कई वर्षों से असमान में तोप, रॉकेट और सुपरसोनिक युद्ध विमान कोहराम मचाए हुए हैं। ऐसे माहौल में भारत की सनातन संस्कृति अपने सृष्टि पर्व के माध्यम से विश्व के कल्याण का उदघोष कर रही है। गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी तट पर प्रयाग राज में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगा चुके हैं।यह अद्भुत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वगुरु भारत का सपना साकार हो रहा है। प्रयाग की धरती से भारत विश्व को मानवता और लोक कल्याण का संदेश दे रहा है। भारत की संस्कृति, अध्यात्म और आस्था के आगे विश्व नतमस्तक है। धरती का हर कोना प्रयागराज से आकर्षित है। सभी यहां आना चाहते हैं। सभी पवित्र त्रिवेणी में डुबकी भी लगाना चाहते हैं।यह वास्तव में विश्व के अन्वेषकों और चिंतनशील शोधार्थियों के लिए कौतुक जैसा है।

ऐसा क्यों है, यह विचारणीय है। अभी कुछ ही दिन हुए, 26 दिसंबर 2024 को द हिंदू ने हिंसाग्रस्त विश्व के हालातों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2024 में कई ऐसे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष हुए, जिन्होंने भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक स्थिरता को चुनौती दी। यूक्रेन में चल रहे युद्ध से लेकर मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव तक , इस वर्ष गठबंधनों में बदलाव और विनाशकारी सैन्य अभियान देखने को मिले। इन संकटों का प्रभाव उनके तत्काल क्षेत्रों से कहीं आगे तक फैला, जिसने दुनिया भर में राजनयिक संबंधों और रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्रभावित किया। रिपोर्ट में कहा गया कि

बीते वर्ष की शुरुआत रूस द्वारा यूक्रेन के विरुद्ध 2022 के युद्ध को जारी रखने के साथ हुई , जिसका उद्देश्य उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को अपनी सीमाओं की ओर बढ़ने से रोकना था। तीन महीने पहले, अक्टूबर 2023 में, उग्रवादी समूह हमास ने गाजा में हमला किया, जिसमें 1,000 से अधिक लोग मारे गए और फिलिस्तीन के विरुद्ध इजरायल की ओर से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की गई । जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, इजरायल की लड़ाई ईरानी प्रॉक्सी के खिलाफ अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई, जिनमें हमास भी शामिल है। यमन में हूथी विद्रोहियों ने जहाजों और अन्य जहाजों को रोका और उन पर हमला किया जिन्हें उन्होंने इजरायल की सहायता करने वाला बताया। लेबनान में हिजबुल्लाह के आतंकवादियों ने सीमा पर इजरायल के साथ गोलीबारी की।


सितंबर में, इज़राइल ने हिज़्बुल्लाह के पेजिंग उपकरणों को निशाना बनाया, जिससे दर्जनों लोग मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए। नवंबर में एक युद्धविराम समझौते ने क्षेत्रीय तनाव को कम कर दिया। हालाँकि, सीरियाई विद्रोहियों ने ईरान समर्थित असद सरकार के खिलाफ़ तेज़ हमले शुरू कर दिए और उनकी सरकार को गिरा दिया, जिससे हिंसा का एक नया दौर शुरू हो गया।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ ही यूक्रेन को अमेरिका से मिलने वाले समर्थन में बदलाव आने की संभावना बनी। इस बीच, क्षेत्र में ईरानी प्रॉक्सी कमजोर हो गए हैं, जिससे इजरायल को अपनी क्षेत्रीय स्थिति को और मजबूत करने का मौका मिल गया है।सशस्त्र संघर्ष स्थान और घटना डेटा (ACLED) डेटाबेस हर संघर्ष घटना और उससे जुड़ी मौतों को रिकॉर्ड करता है। इस डेटा के आधार पर, संघर्ष सूचकांक तैयार किया जाता है। सूचकांक प्रत्येक देश को चार मापदंडों के आधार पर रैंक करता है - घातकता (मृत्यु की संख्या), खतरा (नागरिकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं की संख्या), प्रसार (हिंसा कितनी व्यापक है) और विखंडन (गैर-राज्य सशस्त्र, संगठित समूहों की संख्या)। इन मापदंडों के आधार पर प्रत्येक देश को संघर्ष श्रेणी और रैंकिंग दी जाती है।

12 दिसंबर 2024 से पहले के 12 महीनों के लिए 10 देशों को चरम संघर्ष वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। ये हैं - फिलिस्तीन, म्यांमार, सीरिया, मैक्सिको, नाइजीरिया, ब्राज़ील, लेबनान, सूडान, कैमरून और कोलंबिया। जैसे-जैसे 2024 खत्म होने को आ रहा था , नए और चल रहे युद्धों के कारण संघर्ष क्षेत्रों में मौतों में वृद्धि हो रही थी जो 2025 के आरम्भ में अभी बढ़ ही रही है। 2024 में साल एक जनवरी से 13 दिसंबर तक, युद्धों, विस्फोटों, दूरस्थ हिंसा और नागरिकों के खिलाफ हिंसा में 200,000 से अधिक लोग मारे गए। इस मृत्यु दर का लगभग आधा हिस्सा मुख्य रूप से तीन देशों से आता है: यूक्रेन, फिलिस्तीन और म्यांमार। हालांकि वास्तविक मौतों का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है।

पिछले वर्षों में, अफ़गानिस्तान में संघर्ष से संबंधित मौतों का एक बड़ा हिस्सा रहा है, खासकर तालिबान द्वारा सरकार पर कब्ज़ा करने से पहले । हालाँकि, पिछले वर्षों में, यूक्रेन और फिलिस्तीन में होने वाली मौतों ने मरने वालों की संख्या में एक बड़ा हिस्सा बना लिया है। इस बीच, म्यांमार में सरकार को उखाड़ फेंकने वाले एक सैन्य तख्तापलट के बाद, देश ने भी हाल के वर्षों में बढ़ती मृत्यु दर में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह कितना अमानवीय है कि विश्व केवल मौतों के सामान जुटाने और आंकड़े इकट्ठा करने में ही लगा है।2024 में, इस तरह की हिंसा के कारण हर महीने औसतन लगभग 5,500 मौतें हुईं, जो 2023 में लगभग 5,300 प्रति माह और 2020 में लगभग 3,100 प्रति माह थी। जैसे-जैसे साल 2024 खत्म हो रहा था , ये संकट अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, संघर्ष समाधान और मानवीय हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता की कड़ी याद दिलाते रहे।इस रिपोर्ट में सबकुछ सत्य नहीं है किंतु सत्य के काफी निकट अवश्य है।वैश्विक परिदृश्य में सनातन भारत की यह खगोलीय महाविज्ञानिक घटना अपने 46 दिनों की इस अवधि में बहुत कुछ स्थापित करने वाली है। यह सनातन भारत की आत्मिक शक्ति है जिसके आगे दुनिया नतमस्तक है। यही है कुंभ और यही है भारत की वह भारतीय सनातनी परंपरा जो भारत को विश्वगुरु बना देती है।




Shalini Rai

Shalini Rai

Next Story