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Manufacturing Sector In India: मैन्युफैक्चरिंग संबंधी अंतराल को पाटता भारत
Manufacturing Sector In India: भारत वैसे तो दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग पावर हाउस है, लेकिन वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन में देश की हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से भी कम है।
Manufacturing Growth In India: भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग पावर हाउस है। यहां प्रति वर्ष लगभग 560 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सामान का उत्पादन होता है। लेकिन वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन (Manufacturing Production) में हमारी हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से भी कम है। यही नहीं, भारत के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी सिर्फ 17 प्रतिशत पर ही अटकी हुई है। यह कृषि की हिस्सेदारी की तुलना में बहुत अधिक नहीं है। अक्सर यह कहा जाता है कि भारत प्राथमिक क्षेत्र की प्रधानता वाली अर्थव्यवस्था से सीधे सेवा क्षेत्र के प्रभुत्व वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो रहा है। अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि क्या मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र (Manufacturing Sector) भारत की अक्सर विरोधाभासी और असहज विकास की कहानी में अपनी भूमिका निभा पाएगा।
हालांकि, भारत के औद्योगिक परिदृश्य का एक पहलू बिल्कुल ही निश्चित है। औद्योगिक क्लस्टरों में असंतुलित क्षेत्रीय विकास की अनिवार्यता की संबद्ध अवधारणाओं के साथ फ्रांसीसी अर्थशास्त्री पेरौक्स द्वारा सबसे पहले प्रतिपादित विकास की ध्रुवों की अवधारणा क्षेत्रीय असंतुलन को बढ़ाने वाले एक समूहन प्रभाव के साथ भारत के विकास से जुड़े अनुभवों के काफी करीब जान पड़ती है। पूर्व के दौर में भारत के राउरकेला, बोकारो या यहां तक कि जमशेदपुर जैसे स्थानों में स्थापित की गई नई औद्योगिक नगरियों (टाउनशिप) के करण व्यापक क्षेत्रीय विकास संभव होता नहीं दिखाई देता है और आसपास के अंदरूनी इलाकों के अधिकांश हिस्से अभी भी अविकसित ही बने हुए हैं। भारत में उभरी क्षेत्रीय असमानताओं की व्यापक समस्या से विभिन्न वित्त आयोग द्वारा हस्तांतरण फॉर्मूले के जरिए संस्थागत रूप से निपटने करने की कोशिश की गई है। यह फॉर्मूला प्रति व्यक्ति आय को अत्यधिक महत्व देता है और इसलिए, पिछड़े इलाकों में संसाधनों का उच्च प्रवाह सुनिश्चित करता है।
दूसरी ओर, बाजार ने देश के तेजी से बढ़ते हिस्सों में प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही के जरिए इन असमानताओं के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया दी है। प्रवासी श्रमिक इन विकसित इलाकों में निर्माण और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास के गुमनाम नायक हैं। इसके अलावा, चूंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृखंलाओं की अनिवार्यता के कारण औद्योगिक उत्पादन तेजी से अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़ रहा है, परिणामस्वरूप विकास के ध्रुवों और विकास के केंद्रों की अवधारणाओं को अब पुराने और नए प्रमुख बंदरगाहों के साथ कई देशों में विकास केंद्र के रूप में बंदरगाह-केन्द्रित औद्योगिक विकास की परिघटना द्वारा पूरक बनाया जा रहा है।
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास
राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (एनआईसीडीपी) भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के विकास (Manufacturing Sector Growth) में तेजी लाने, विविध औद्योगिक विकास केन्द्र बनाने और औद्योगीकरण की प्रक्रिया को परिवहन की बुनियादी बातों से जोड़ने की चुनौतियों को स्वीकार करता है। एनआईसीडीपी ने 11 प्रमुख परिवहन गलियारों से सटे औद्योगिक नगरियों (टाउनशिप) के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष तक आठ ऐसे टाउनशिप को मंजूरी दे दी गई थी, जिनमें से चार औद्योगिक भूखंडों के आवंटन के साथ तैयार हैं और चार अन्य टाउनशिप को संबंधित बुनियादी ढांचे की स्थापना के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है।
पिछले 17 वर्षों में कार्यान्वित की जा चुकी या कार्यान्वयन के तहत चल रही आठ परियोजनाओं की तुलना में सरकार ने गति एवं पैमाने पर केन्द्रित प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली की विशेषता के अनुरूप हाल ही में बेहद जोरदार तरीके से 10 राज्यों में एकसाथ बारह ऐसे स्मार्ट औद्योगिक शहरों को मंजूरी दी है। इन सभी स्थलों को मौजूदा बस्तियों और इकोलॉजी के साथ छेड़छाड़ को कम करने के उद्देश्य से पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मंच पर भू-स्थानिक डेटा का उपयोग करके मान्य किया गया है। इसमें राज्य सरकारों के साथ मिलकर भूमि की उपलब्धता को प्राथमिकता दी गई है। इसमें कृषि की दृष्टि से अपेक्षाकृत कम उपयोगी वैसी भूमि को शामिल किया गया है, जहां मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के लिए परिवहन के प्रमुख साधन सुलभ हों और निकटवर्ती क्षेत्रों के साथ बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज की मजबूत संभावनाएं मौजूद हों।
पीएम गतिशक्ति का उपयोग करने के पीछे एक नया पहलू न केवल बेहतर कनेक्टिविटी के लिए परिवहन से संबंधित बुनियादी ढांचे (राजमार्ग, रेल लिंक, हवाई अड्डे के लिंक) में वृद्धि सुनिश्चित करना है, बल्कि परियोजना कार्यान्वयन के साथ-साथ राज्यों से सामाजिक बुनियादी ढांचे के अंतराल (स्कूलों, आंगनबाड़ियों, आईटीआई, आवास) को पाटना शुरू करने के लिए कहकर क्षेत्र नियोजन दृष्टिकोण के साथ ऐसी नेटवर्क योजना को संयोजित करना भी है। परिवहन नेटवर्क नियोजन और क्षेत्र नियोजन के इस संयोजन से इन ग्रीनफील्ड औद्योगिक शहरों (Greenfield Industrial Cities) को भारत की विकास की कहानी में भूमिका निभाने के इच्छुक निजी क्षेत्र और विशेष रूप से विदेशी निवेशकों की मांग से पहले संपूर्ण रूप से तैयार बुनियादी ढांचे और मल्टी-मॉडल परिवहन लिंक मिल जायेंगे।
ईओडीबी के मामले में बढ़ी भारत की रैंकिंग
यहां इस तथ्य को याद रखा जा सकता है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) के मामले में भारत की रैंकिंग 2014 में 143 से बढ़कर 2020 में 63 हो गई थी। पिछले साल विश्व बैंक द्वारा ऐसी रैंकिंग प्रकाशित की गई थी। हालांकि, ईओडीबी के दो प्रमुख पहलुओं- भूमि प्रबंधन और अनुबंध अनुपालन के मामले में भारत की रैंकिंग 100 से ऊपर बनी हुई है। जहां अनुबंध अनुपालन और सुधार के पहलू न्यायिक-सुधार के व्यापक मुद्दे से जुड़े हुए हैं, वहीं एनआईसीडीपी कार्यक्रम इन शहरों में औद्योगिक स्थलों की तलाश करने वाले किसी भी निवेशक के लिए राज्यों द्वारा समानांतर पहल के साथ-साथ भूमि उपलब्धता और इसके पारदर्शी प्रशासन से जुड़ी समस्याओं का काफी हद तक समाधान करेगा।
एनआईसीडीपी कार्यक्रम निवेशक को अनुपालन संबंधी एक प्रमुख बोझ से भी मुक्त करता है। नए निवेशक इसको लेकर काफी चिंतित रहते हैं। पर्यावरण संबंधी मंजूरी का मुद्दा यह सुनिश्चित करके हल किया जायेगा कि पूरी टाउनशिप के लिए पूर्ण पर्यावरण संबंधी मंजूरी पहले से ही उपलब्ध हो और अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और डिजिटलीकृत शिकायत निवारण तंत्र से लैस स्मार्ट शहर बिजली, सीवेज और अपशिष्ट प्रबंधन, सड़क आदि जैसी उपयोगिता सेवाओं की पूरी श्रृंखला द्वारा समर्थित हो।
निवेश और रोजगार की असीन संभावनाएं
इस प्रकार, एनआईसीडीपी कार्यक्रम में भारत के औद्योगिक परिदृश्य को बदलने, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश को जोखिम से मुक्त करने, स्वर्णिम चतुर्भुज की रीढ़ पर आधारित क्षेत्रीय रूप से बिखरे हुए स्थानों में विकास के नए केंद्र बनाने, 1.5 लाख करोड़ रुपये का संभावित निवेश आकर्षित करने और चार मिलियन लोगों के लिए रोजगार सृजित करने की असीम संभावनाएं निहित हैं। और इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत की उभरती भूमिका को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
( लेखक भूतपूर्व सचिव, डीपीआईआईटी और वर्तमान में रक्षा मंत्रालय में ओएसडी हैं।)