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मी लार्ड, आप देश का भविष्य और युवाओं के आदर्श हैं

Judiciary Controversy: जिस देश की न्यायपालिका भ्रष्ट होती है, उस देश की अवनति निश्चित है। ऐसी परिस्थिति में न केवल वहाँ की जनता प्रताड़ित होती है अपितु वह देश शनैः-शनैः गरीबी रेखा से नीचे पहुँच जाता है।

Yogesh Mohan
Published on: 29 March 2025 8:31 PM IST
Judiciary Controversy News
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Judiciary Controversy News (Image From Social Media)

Judiciary Controversy: किसी भी देश की सुख, शांति व समृद्धि की पहचान वहाँ की श्रेष्ठ न्याय प्रणाली होती है। न्याय प्रणाली के अन्तर्गत उस देश के न्यायधीश की भूमिका सर्वोपरि होती है।जिस देश का न्यायधीश नीर-क्षीर-विवेक के साथ निर्णय लेता है, वह देश निश्चित रूप से उन्नति की ओर अग्रसर होता है। इसके विपरीत जिस देश की न्यायपालिका भ्रष्ट होती है, उस देश की अवनति निश्चित है। ऐसी परिस्थिति में न केवल वहाँ की जनता प्रताड़ित होती है अपितु वह देश शनैः-शनैः गरीबी रेखा से नीचे पहुँच जाता है।

मुगल शासन से पूर्व भारत देश सोने की चिड़िया कहलाता था, इसका मुख्य कारण यह था कि उस समय की न्यायपालिका पूर्णतया निष्पक्ष होती थी और राजा अपने परिवार के सदस्यों को भी कठोर दंड देने में नहीं झिझकते थे। विक्रमादित्य, कृष्ण देवराय, हर्षवर्धन, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक आदि राजा अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। इनकी विशेषता यह थी कि इन्होंने अपने शासनकाल में दंड के बजाय सुधार पर जोर दिया था। समय परिवर्तन के साथ-साथ मुगलों तथा अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात, न्यायपालिका का राजनीतिकरण होने के कारण भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पीड़न प्रारंभ हो गया।

वर्ष 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो, जनता को यह आश्वासन दिया गया कि अब राम राज्य पुनः स्थापित होगा। देश में पुनः दूध की नदियाँ प्रवाहित होंगी। निर्धन जनता को त्वरित न्याय प्राप्त होगा। न्यायपालिका की छवि पुनः गौरवशाली होगी। परंतु यह जनता के लिए मात्र एक दुःस्वप्न ही रहा। आज भारत को स्वतंत्र हुए 78 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। न्यायपालिका में 5 करोड़ से अधिक वाद लंबित हैं। वादी अपनी युवावस्था से वृद्धावस्था तक न्याय की प्रतीक्षा करते-करते प्राण त्याग देते है। वादी की अगली पीढ़ी उस न्याय के लिए प्रयासरत हो जाती है। 40-50 वर्षो से लंबित वाद न्याय हेतु प्रतीक्षारत होते हैं। माननीय न्यायाधीशों के समक्ष ही पेशकार हर तारीख पर अग्रिम तारीख देने हेतु निर्धन जनता को बाध्य करते हैं। गरीब जनता 20-25 किलोमीटर की दूरी से न्याय की आशा में आती है। दिनभर की आशा संध्या तक हताशा में परिवर्तित हो जाती है। वो नई तारीख पर पेशकार की सेवा कर घर वापिस लौट जाते हैं।

भारत में अब केवल लंबित वादों की ही विकट समस्या नहीं रही । इससे भी इतर, अब न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार एवं दुश्चरित्र के प्रकरण भी अधिकाधिक मात्रा में प्रकट होने लगे हैं। पूर्व में भारत अंग्रेजो का गुलाम था, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भ्रष्ट राजनीति का गुलाम है। न्यायधीश के यहाँ अत्यधिक मात्रा में धनराशि का प्राप्त होना, यह प्रदर्शित करता है कि अवश्य ही दाल में कुछ काला है। इस सत्य को कोई नहीं नकार सकता है कि न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार बहुत कम ही प्रमाणित होते हैं। उनके द्वारा मुकदमों को लम्बित करने एवं उनके द्वारा दिए गए निर्णय अनेक बार भ्रष्टाचार से लिप्त अर्थात् संदेहास्पद होते हैं। चूँकि भ्रष्ट न्यायधीशों के विरूद्ध कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य न होने के कारण उनपर किसी तरह का आक्षेप नहीं लगाया जाता, परन्तु मौन असंतोष अवश्य ही अभिव्यक्त किया जाता है। न्यायपालिका के अन्तर्गत व्याप्त भ्रष्टाचार को यदि अभिव्यक्त किया जाए तो उसके अर्न्तगत विभिन्न प्रकार से धन का आदान-प्रदान होता है, जिसका माध्यम परिवार के सदस्यों, वकीलों और दलालों को बनाया जाता है, इसलिए इसको प्रमाणित करना नामुमकिन है। पूर्व में भ्रष्टाचार नीचे की अदालत में होता था । अब यह ऊपर तक पहुँच गया है। आज की न्यायपालिकाओं का विहंगम दृश्य भारत के लिए अत्यधिक दुखद है। इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव सम्पूर्ण विश्व में भारत की सम्मानजनक छवि को धूमिल कर रहा है। भारत विश्व के भ्रष्टतम देश के सूची में सर्वोच्च स्थान पर पहुँच चुका है। जब न्यायपालिका ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएगी तो भ्रष्टाचारियों का अनियंत्रित हो जाना स्वाभाविक है।

यदि भारत देश की न्यायपालिका के अन्तर्गत होने वाले भ्रष्टाचार को समूल नष्ट करना है तो निम्न सुझावों को वैधानिक स्वरूप दिया जाना नितान्त आवश्यक है, यथा - भ्रष्ट न्यायाधीशों का अपराध सिद्ध होने पर उनको तीन माह के अन्तराल में कठोरतम् सजा का प्रावधान हो। न्यायधीशों को सेवानिवृत्ति के पश्चात आगामी पांच वर्ष तक कोई भी सरकारी पद अथवा सरकारी सुविधा से वंचित किया जाना चाहिए।भ्रष्ट न्यायाधीशों की खोज करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के समान एक स्वतंत्र एजेंसी को स्थापित किया जाना चाहिए। जो भ्रष्ट न्यायाधीशों पर अंकुश लगाने हेतु स्वतंत्र रूप से कार्य करें। उस एजेन्सी पर किसी भी प्रकार का राजनीतिक दवाब नहीं होना चाहिए। यदि ऐसी व्यवस्था सम्भव हो जाती है तब निश्चितः भारत देश को वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

( ये लेखक के निजी विचार हैं। लेखक शिक्षाविद हैं।)

Ramkrishna Vajpei

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