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मीडिया: बाजार सूबेदार है और हम ताबेदार ...ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं
हर्ष सिन्हा
इस कलिकाल में जबकि जन्मदिन से लेकर त्योहारों तक की खबर या अधिसूचनाएं सेलफोन संदेशों से ही मिलने लगी है। इस साल की आमद के एक हफ्ते पहले ही राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक कविता से सजा एक संदेश प्रचंड तीव्रता के साथ ‘वायरल’ हो गया था, जिसकी पंक्तियां कुछ इस प्रकार से थीं- ‘ये नववर्ष हमें स्वीकार नहीं/ है अपना यह त्योहार नहीं/ ... ये धुंध कुहासा हटने दो/ रातों का राग सिमटने दो/ प्रकृति का रूप बिखरने दो/... तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि/नववर्ष मनाया जाएगा।’
इस कविता को पढक़र उसके भावबोध से स्पंदित लोगों ने इसे आगे फारवर्ड किया। ट्वीट्स को रीट्वीट किया गया। कविता का संदेश आगे बढ़ता गया। इस बीच कुछ ऐसे संदेश भी आए जिसमें नये वर्ष की बधाई कुछ अलग तरीके से दी गई थी। मसलन- ‘आपको अंग्रेजी नववर्ष की बधाई’ या ‘ईसाई नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं’... आदि। इस किस्म के संदेशों की प्रतिक्रिया में कुछ अन्य संदेशों के जरिए यह कहने की कोशिश भी की गई कि यह सब भी एक खास किस्म की असहिष्णुता है जिसमें त्योहार मनाने की आजादी पर भी कथित हमले की चर्चा थी।
एक जनवरी तक प्याले में जबर्दस्त तूफान रहा। उसके बाद बधाई संदेशों की बयार बह निकली। अब तक बह रही थी। इन हवाओं पर वे भी सवार थे जो हफ्ता भर पहले तक दिनकर जी की कविता भेज रहे थे। बयार बहती रही। बाजार मुस्कुराता रहा। बाजार सूबेदार और हम ताबेदार की तरह दिखे। उसकी मुस्कुराहट उसकी जीत की मुनादी थी। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ था जब अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक नये वर्ष की जगह भारतीय परंपराओं के मुताबिक नववर्ष मनाने का आह्वान किया गया। ऐसा आह्वान दशकों से होता रहा है और इसने साल दर साल अपनी समर्थक संख्या में इजाफा भी किया है। लेकिन बीते दो-तीन वर्ष में यह आह्वान ज्यादा मुखर होता दिख रहा है।
इसके साथ ही कुछ और प्रवृत्तियां भी दिखी हैं। अंग्रेजी नववर्ष की तरह ही वर्ष प्रतिपदा यानी चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि पर भी नववर्ष बधाई संदेशों की बाढ़ आने लगी है। यही नहीं अनेक अन्य समुदायों के नववर्ष और त्योहारों पर भी इस प्रकार के संदेशों की आमदरफ्त बढ़ी है।
अब मार्च/अप्रैल में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगाडी, महाराष्ट्र, गोवा और कोंकर्ण में गुढ़ी पड़वा, कश्मीर में नवरेह, उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में चैत्र रामनवमी और सिंघा बाहुल क्षेत्र में चेटीचंद की बधाइयों के संदेश दौडऩे लगते हैं। बाजार मुस्कुराने लगता है। मध्य अप्रैल के आसपास असोम में बिहू, तमिलनाडु में पुथांडू, केरल में विशू, बंगाल में पोलिया बैशाख के बधाई संदेशों की संख्या बढ़ जाती है। बाजार की मुस्कुराहट में कुछ और इजाफा हो जाता है।
अक्टूबर-नवंबर में जब बहुत सारे लोग साल का लेखा-जोखा तैयार करने की तैयारी कर रहे होते हैं तब भी बाजार उसी तरह मुस्कुराता नजर आता है। क्योंकि गुजरात के आसपास के इलाकों में बेस्टू की बधाइयां दौड़ रही हैं। हां, इस बीच इस्लामिक कैलेंडर, पारसी कैलेंडर और और जोरोस्ट्रीयन कैलेंडर की अहम तारीखें भी उसे खुश करती रहती हैं। अब हर दिन त्योहार है क्योंकि बाजार की यही मर्जी है। पहले यह ग्रीटिंग कार्ड के जरिए अपनी हुकूमत चलाता था। एक जमाना था जब दिसंबर का अंतिम पखवाड़ा ग्रीटिंग कार्ड बाजार से सजा नजर आता था। इस बीच टेक्नोलॉजी खासकर मोबाइल टेलीफोनी और इंटरनेट ने इस बाजार में सेंध लगा दी। बाजार चिंतित हो गया।
इस गिरावट ने उसे चौकन्ना कर दिया है। अमेरिका में ग्रीटिंग कार्ड की सबसे बड़ी निर्माता कंपनी हॉलमार्क ने अपने कारोबार में बीते कुछ सालों में 6 से 8 फीसद गिरावट देखने के बाद कुछ ताबड़तोड़ अध्ययन कराए और बीस डॉलर की कीमत वाला एक स्पेशल न्यू कार्ड पिछले साल उतारा जिसमें एलसीडी स्क्रीन लगी थी और 50 से ज्यादा फोटो स्टोर किए जा सकते थे। जो स्लाइड शो में नजर आते थे। बाजार के उखड़ते पांव किसी तरह टिके। इस बीच प्राय: सभी ग्रीटिंग कार्ड कंपनियों ने अपनी वेबसाइटें शुरू कीं और ई-कार्ड की सुविधाएं मुहैया करा दीं। एक अन्य रिपोर्ट के नतीजों पर अमल करते हुए प्रेम, गुस्से, शुक्रिया सरीखी भावनाएं अभिव्यक्त करने वाले काड्र्स पेश किए गए।
इन सबने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई मगर फेसबुक और व्हाट्सएप ने एक बार फिर करारी चोट दी है। एक जमाने में याहू के दो पूर्व कर्मचारियों जेन कॉम और ब्रॉयन एक्टन ने फेसबुक में नौकरी के लिए कोशिश की थी। फेसबुक ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया तो निराश होकर उन्होंने एक साधारण मैसेंजर के बतौर व्हाट्सएप डेवलप किया। किस्मत का खेल देखिए कि जिस फेसबुक ने उन्हें नौकरी नहीं दी थी उसी ने उन दोनों से व्हाट्सएप को 2014 में 19 बिलियन डॉलर देकर खरीदा।
आज दुनिया भर में इसके 1.3 बिलियन यूजर्स हैं, जिसमें से 300 मिलियन एक्टिव यूजर्स हैं। भारत में भी इसके यूजर्स की तादाद 200 मिलियन तक जा पहुंची है। पिछले साल जनवरी में भारतीयों ने नववर्ष पर 14 बिलियन मिलियन बधाई संदेश भेजे थे। यह सिलसिला केवल नये साल तक ही सीमित नहीं रहा। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 30 अक्टूबर को अकेले दिवाली के दिन 8 बिलियन बधाई संदेश भेजे गए।
बाजार ने खुद का वजूद कायम रखने का मंत्र सीख लिया है। उसे हर दिन को त्योहार में बदलना ही है। इसीलिए वह परंपरागत नववर्ष के संदेशों के बीच पचास साल पहले लिखी गई एक कविता का पुर्नपाठ भी प्रस्तुत करा देता है ताकि आप अगले नववर्ष की बधाई के लिए खुद को मानसिक तौर पर तैयार कर सकें। बाजार को गुलजार बनाए रखने के लिए आपका तैयार रहना जरूरी जो है।