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कोलकाता रैली:विपक्ष का जनता से मोदी को दोबारा न लाने की अपील का राज क्या है
तकरीबन एक माह बाद आम चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। चुनावी गरमाहट का अहसास हर आम ओ खास को होने लगा है। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी हैं। पिछल पांच साल से मोदी देश से लेकर बाहर तक दहाड़ते नजर आए हैं औऱ विपक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की नाकाम कोशिश में लगा रहा है।
रामकृष्ण वाजपेयी
तकरीबन एक माह बाद आम चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। चुनावी गरमाहट का अहसास हर आम ओ खास को होने लगा है। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी हैं। पिछल पांच साल से मोदी देश से लेकर बाहर तक दहाड़ते नजर आए हैं औऱ विपक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की नाकाम कोशिश में लगा रहा है। अब तक जितने भी सर्वे हुए हैं उनमें एक बात जोरदार तरीके से साफ हुई है कि मोदी लहर का अस्तित्व पांच साल बाद भी बरकरार है। यह बात अपने आप में अनोखी और अजीब सी लगती है। किसी भी व्यक्ति के लिए कोई भी लहर थोड़े समय के लिए बन सकती है लेकिन उस लहर में स्थिरता आ जाना कहीं न कहीं उस व्यक्ति के कामों से जुड़ जाता है। वह भी तब जबकि विपक्ष ने पूरे पांच साल यूं ही गंवा दिये हों।
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हालात इतनी बदतर हो विपक्ष के तमाम नेता एक सुर में चिल्लाने लगें कि मोदी को दोबारा न लाना। ऐसी कौन सी दहशत है। जब आप रीत नीत सिद्धांत योजना सबको तिलांजलि देकर केवल एक व्यक्ति के खिलाफ जनमत जुटाने की कोशिश में जुट जाते हैं। अच्छा बताइए आप की बात मान ली मोदी-शाह नहीं फिर आप के पास क्या है। क्या योजना है देश को मजबूत बनाने की। जातीयता की राजनीति से ऊपर उठने की। अपनी संकीर्ण मनोवृत्तियों को छोड़ने की। आश्चर्य तब और भी होता है जब एक कथित राष्ट्रीय कही जाने वाली पार्टी भी मान न मान मै तेरा मेहमान वाली अदा के साथ उन क्षेत्रीय दलों में घुसपैठ करती नजर आती है। ये वही पार्टी है जो देश की आजादी के आंदोलन से जुड़े होने का लाभ लेकर सालों तक देश की जनता को बेवकूफ बनाती रही। एक समय इस पार्टी के नेताओं का एक तर्क हुआ करता था कि हम नहीं रहेंगे तो देश टूट जाएगा। आखिर लोगों ने हिम्मत दिखायी और देखा देश नहीं टूटा।
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अल्पसंख्यक कहे जाने वाले देश के मुसलमानों में यह खौफ भरने की कोशिश की कि अगर भाजपा आ गई तो तुम्हें पाकिस्तान जाना पड़ेगा। उन लोगों ने भी देख लिया कि किसी को पाकिस्तान नहीं जाना पड़ा। मोदी के सत्ता सम्हालने के बाद पूरे देश में कहीं भी कोई दंगा नहीं हुआ जिस तरह कांग्रेस के शासन में हुआ करता था। कम्युनिस्ट पार्टियां तो पूरे दृश्य से गायब ही हो गई हैं जो धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठाकर चिल्लाया करती थीं कि अगर भाजपा सत्ता में आ गई तो इतिहास बदल डालेगी। ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। दलितों की मसीहा बनी एक नेता को आज अपनी जमीन खिसकती दिख रही। पिछड़ों के नेता बगलें झांक रहे हैं। सभी को अपना अपना वोट बैंक सबका साथ सबका विकास के साथ जाता दिख रहा है। और ऐसा हो भी क्यों न।
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देश में जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के प्रधानमंत्री थे। उनके बाद कांग्रेस से गुलजारी लाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, गुलजारीलाल नंदा, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी ये लोग 1947 से लेकर 1989 तक प्रधानमंत्री रहे। यानी 42 साल तक क्या देश को आगे बढ़ाने या जनता के दिलों पर राज करने के लिए ये समय कम होता है। कांग्रेस ने इतने सालों में क्या किया। यदि कुछ किया होता तो सत्ता से बेदखल ही क्यों होती।
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हां बीच में मोरारजी देसाई और चरण सिंह की सरकारें आईं लेकिन 24 मार्च 1977 से 14 जनवरी 1980 के बीच इनका कार्यकाल रहा लेकिन अंतर कलह या प्रधानमंत्री बनने के झगड़े में चली गईं।
चलो जाने दो 1989 में कांग्रेस से निकले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जो नवंबर 1990 तक चली इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह हट गए। छह महीने के लिए चंद्रशेखर की सरकार रही। लेकिन पर्दे के पीछे से कांग्रेस ने उन्हें कुछ खास करने नहीं दिया।
इसके बाद फिर कांग्रेस की सरकार पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में आयी और पूरे पांच साल रही। लेकिन प्रशासनिक तौर यह सरकार भी विफल रही। कांग्रेस कुछ भी ऐसा नहीं कर पाई कि आगे जनता उसे सत्ता सौंपती।
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यहां तक भाजपा की कोई सक्रिय भूमिका नहीं रही। क्योंकि सारे दल एकजुट होकर भाजपा का हव्वा खड़ा करते रहे। खैर कांग्रेस के कुशासन के खिलाफ अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार जोरदार ढंग से आवाज 1996 में उठी जनता ने अटलजी को मौका दिया लेकिन इसी विपक्ष ने कांग्रेस के साथ मिलकर अटल जी की सरकार को मात्र 13 दिन में गिरा दिया। 1996 से 1999 के बीच एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने ये जनता की पसंद नहीं थे ये इन विपक्षी दलों की पसंद थे जिन्हें येन केन प्रकारेण सत्ता सुख चाहिए था। और ये ऊपर से थोपे गए प्रधानमंत्री थे। जनता को जब मौका मिला तो जनता ने सबक सिखाया अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को फिर बड़ी पार्टी बनाया। लेकिन जनता फिर चूक गई।
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अटलजी स्पष्ट बहुमत से पीछे रहे इस बार उनकी सरकार 13 महीने चली। खैर फिर चुनाव हुए और अटल जी फिर बहुमत में आए और पूरे पांच साल सरकार चलाई। जी हां चलाई इसलिए क्योंकि उनके साथ आज भाजपा विरोध का राग आलाप रहे दलों के तमाम लोग थे जिन्होंने अटलजी को अपनी पार्टी का काम करने ही नहीं दिया। उनके हर काम में अड़ंगा लगाते रहे। जबकि जनता अटलजी को देख रही थी उसे यह लगा कि अटलजी ने उसके मन मुताबिक काम नहीं किया है।
जनता का इससे मनोबल टूटा और उसने कांग्रेस मनमसोस कर कांग्रेस को एक बार फिर मौका दिया कांग्रेस सत्ता में आई मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन अब तक कांग्रेस का चाल और चरित्र पूरी तरह से बदल चुका था पुराने नेता पार्टी से बाहर हो चुके थे जो नई पौध के चाटुकारिता प्रधान या चरण वंदना करने वाले लोग थे वह आगे आ गए। चमक दमक के कारपोरेट कल्चर के आवरण में लिपटी कांग्रेस ने इस बार जमकर घोटाले किये। पहली बार का कार्यकाल चमक दमक में पूरा हुआ जनता कांग्रेस के फैलाए भ्रमजाल में बुरी तरह उलझ गई और कांग्रेस को दूसरा कार्यकाल भी मिल गया इसमें तो पूरी तरह से घोटालों की सरकार हो गई मनमोहन सरकार।
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इस बीच 2014 के चुनाव आ गए भाजपा ने पीएम चेहरे के रूप में नरेंद्र मोदी जैसे युवा सोच को व्यक्ति को आगे कर चुनाव लड़ा। इस बार जनता मोदी के बारे में किये गए कुप्रचार से भ्रमित नहीं हुई। जनता ने परिवर्तन का ऐसा मन बनाया कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी और सहयोगियों के साथ ये आंकड़ा इतनी ऊंचाई तक पहुंच गया कि विपक्ष नाम लेने भर का रह गया।
विपक्ष ने यहां पर भी अपने कर्मो के नाते अपनी पराजय स्वीकार नहीं की। वह लगातार मोदी पर लांछन लगाता रहा। यहां तक कि ईवीएम पर भी सवाल उठाता रहा। और जब देखा देश में दाल नहीं गलेगी तो विदेश में जाकर देश को बदनाम करने की साजिश रच दी।
आज जबकि व्यक्तिगत रूप से दस में आठ व्यक्ति मोदी की तारीफ कर रहे हों ऐसै में मोदी या उनकी भाजपा 2019 में सत्ता से कैसे दूर रह सकती है यह सोचने की बात है।
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Mood of the nation (MOTN) Loksabha Election 2019 में 46 फीसदी लोग Modi को पीएम पद की पसंद मानते हैं तो Rahul Gandhi उनको कड़ी टक्कर देते हुए दिख रहे हैं. देश के 34फीसदी लोग चाहते हैं कि Rahul Gandhiपीएम बनें।
'देश का मिजाज' नाम के इस सर्वे में 53 फीसदी लोगों ने कहा कि अगले पीएम के रूप में उनकी पहली पसंद नरेंद्र मोदी हैं। 22 फीसदी लोगों ने अगले पीएम के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पसंद किया।
फर्स्टपोस्ट नेशनल ट्रस्ट सर्वे (Firstpost National Trust Survey) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा लोगों के जरिए पसंद किया गया है. भरोसे के संदर्भ में ज्यादातर लोगों ने माना कि वो किसी संस्था या प्रशासन से पहले अपने परिवार पर भरोसा करते हैं।अगर आज चुनाव हुए तो 58 फीसदी रेस्पॉन्डेंट्स (जिनपर सर्वे हुआ) ने लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए वोट करने की इच्छा जाहिर की है. जबकि 48 फीसदी लोगों का मानना है कि अगर आज चुनाव हुए तो वे यूपीए के लिए वोट करेंगे।
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आजतक और कार्वी इनसाइट्स ने एक सर्वे किया है। सर्वे में पीएम मोदी लोगों की उम्मीद पर काफी हद तक खरे उतरे हैं।पूरे देश में पीएम मोदी के काम से 54% लोग खुश हैं। यूपी में पीएम मोदी की लोकप्रियता और ज्यादा है। यहां 68% लोग पीएम को पसंद करते हैं। वहीं देश में 24% लोग पीएम मोदी को औसत मानते हैं। यूपी में ये आंकड़ा और गिरकर 15 फीसदी तक रह जाता है।
सरकार किन मोर्चों पर सफल रही है
सिटीजन एंगेंजमेंट प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल ने हाल ही में एक सर्वे किया है। सर्वे में हर 10 में से 6 लोगों का मानना है कि मोदी ने अपने वादे पूरे करने में कामयाब रही। सर्वे में शामिल लोगों में तीन चौथाई ने भारत की पाकिस्तान के खिलाफ नीति का समर्थन किया है। सर्वे के मुताबिक 54% लोग मानते हैं कि टैक्स टेररेज़म घटा है और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना सफल रही है। सर्वे में मोदी सरकार को सबसे बड़ी राहत जीएसटी और नोटबंदी के मोर्चे पर मिली है। 32 प्रतिशत लोगों का कहना है कि जीएसटी के बाद उनका रोजमर्रा का खर्च घटा है।
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कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म द्वारा किए गए सर्वे में प्रत्येक 10 में से 6 लोगों का मानना है कि मोदी सरकार उम्मीदों पर खरी उतरी है या उससे आगे बढ़कर काम किया है। 54 फीसदी से ज्यादा लोगों का कहना है कि टैक्स टेररेज़म घटा है और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना सफल रही है। लोकल सर्कल्स ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में कहा है, '4 साल के कार्यकाल में 56% नागरिकों का मानना है कि चुनाव से पहले घोषणापत्र में किए गए अपने वादों को पूरा करने के लिए सरकार सही ट्रैक पर काम कर रही है जबकि पिछले साल के सर्वे में ऐसे लोगों का आंकड़ा 59% था।'
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है। यह लेखक के निजी विचार हैं)