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#metoo कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में सबसे बदरंग है UP का चेहरा

राम केवी
Published on: 16 Oct 2018 5:31 AM GMT
#metoo कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में सबसे बदरंग है UP का चेहरा
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रामकृष्ण वाजपेयी

#metoo के देश में ताजा अभियान और महिलाओं के यौन उत्पीड़न को लेकर मुखर होने के बीच चिंताजनक बात यह है कि देश में पिछले चार सालों में प्रतिदिन दो महिलाओं का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ और 2014 से 2017 के बीच यौन उत्पीड़न की घटनाओं की वृद्धि दर 54 प्रतिशत रही है। 27 जुलाई 2018 तक इन चार सालों में कुल 2535 मामले दर्ज किये गए है। यह जानकारी सरकार के अधिकृत आंकड़ों पर आधारित है जो कि उसने लोकसभा में 27 जुलाई 2018 और 15 दिसंबर 2017 को पेश किये थे।

2018 के पहले सात महीनों में 27 जुलाई तक आंकडों के अनुसार यौन उत्पीड़न के 533 मामले सामने आए हैं। देश में इस समय #metoo अभियान चल रहा है जो कि अमेरिका में हार्वे वेंस्टीन के खिलाफ बलात्कार और शीलभंग के आरोपों से शुरुआत हुआ था, देश में इसकी शुरुआत अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने अभिनेता नाना पाटेकर पर आरोपों से की। जिसने दूसरी महिलाओं को ताकत दी कि वह भी अपने यौन उत्पीड़न पर बोलें और दोषियों को कठघरे में खड़ा करें।

लोकसभी में पेश किये गए आंकड़ों के अनुसार यौन उत्पीड़न के मामलों मे सबसे बुरी स्थिति उत्तर प्रदेश की है। 2014-18 के बीच आई कुछ शिकायतों में 29 फीसदी 726 उत्तर प्रदेश से हैं। इसके बाद 369 दिल्ली, 171 हरयाणा, 154 मध्य प्रदेश और 147 मामले महाराष्ट्र से हैं।

#metoo कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में सबसे बदरंग है UP का चेहरा

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2014 से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाएं कम होने के बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही है। और सबसे अधिक शर्मनाक बात यह है कि कुल प्राप्त शिकायतों में 60 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश से रही हैं।

राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार साल 2017 में देश में प्रतिदिन दो महिलाओं का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ है।

#metoo में महिलाओं के मुखर होकर आगे आने वाली महिलाओं पर सवाल उठाने वालों और तमाम राज्यों की सरकारों के लिए ये आंकड़े किसी तमाचे से कम नहीं हैं क्योंकी ये आंकड़े राज्यों द्वारा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किए इंतजामों पर सवाल खड़ा करते हैं। साथ ही कार्यस्थल पर महिला कितनी सुरक्षित है इस बात की भी पोल खोलते हैं।

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि देश में यौन उत्पीड़न के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 से 2015 के दरम्यान ही कार्यालय परिसर के भीतर यौन उत्पीड़न के मामले दोगुने हो गए थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 57 से 119 हुई है। कार्य से संबंधित अन्य स्थानों पर यौन उत्पीड़न के मामलों में 51 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े वर्ष 2014 में 469 से बढ़ कर वर्ष 2015 में 714 हुए।

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लोकसभा में दिसंबर 2016 में दिए गए एक जवाब के अनुसार, वर्ष 2013 से 2014 के बीच, राष्ट्रीय महिला आयोग की शिकायतों में 35 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। यानी आंकड़े 249 से बढ़ कर 336 हुए हैं।

#metoo कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में सबसे बदरंग है UP का चेहरा

2017 में महिला आयोग को मिली 539 शिकायतों में सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से थीं, जो की कुल शिकायतों का 60 प्रतिशत था इसके बाद हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से शिकायतें हैं। महिला आयोग को 2014 से लेकर 2017 के बीच 1971 शिकायतें मिलीं जो की एक बड़ी संख्या थी।

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इन आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि यौन उत्पीड़न को पुरुष प्रधान समाज ने गंभीरता से लिया ही नहीं। न ही दोषी को सजा देने का जतन हुआ लिहाजा यौन उत्पीड़न की शिकार महिला की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दबती चली गई। और महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु समझने वाले कामी पुरुषों के हौसले बुलंद होते चले गए। ऐसा नहीं है कि अदालत ने इस मामले में कुछ नहीं किया। विशाखा गाइड लाइन महिला को कार्यस्थल पर सबल बनाने और सुरक्षा देने का सशक्त कदम था लेकिन अफसोस न तो सरकारों ने कार्यस्थलों पर इसे लागू करवाना जरूरी समझा न ही नियोक्ताओं ने कभी इसे गंभीरता से लिया।

#metoo के अभियान के चलते यदि अब भी सरकारें और नियोक्ता चेत जाएं। तो गनीमत है वरना महिलाओं में आ रही जागृति आपके पुरुष होने का न सिर्फ अहंकार तोड़ देगी बल्कि आपको अपने पुरुष होने पर भी शर्म आने लगेगी।

राम केवी

राम केवी

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