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ब्लू इकोनॉमी के चमत्कार, युवाओं को रोजगार

raghvendra
Published on: 6 July 2019 8:56 AM GMT
ब्लू इकोनॉमी के चमत्कार, युवाओं को रोजगार
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बजट 2019

रतिभान त्रिपाठी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर कदम बहुत सोचा-समझा होता है। अपने किसी भी कदम में वह कुछ नया करते दिखते हैं या फिर नया करने की कोशिश करते हैं। संभवत: यही वजह है कि अपने समकालीन नेताओं में वह खुद को सबसे आगे रखे हुए हैं। उनके नए प्रयोगों की झलक उनकी 2.0 सरकार के ताजा बजट में देखी जा सकती है। जब पक्ष-विपक्ष इस बहस में उलझा है कि बजट अच्छा है, अग्रगामी है, गांव-गरीब-किसान के लिए है, मध्यम वर्ग के पक्ष में है, पूंजीपतियों का पोषक नहीं है या फिर देशवासियों के लिए झुनझुना या सब्जबाग है, तब वह ब्लू इकोनॉमी की बात कर जाते हैं। रेलवे को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की ओर ले जा चुके होते हैं। बजट पेश होने के फौरन बाद टीवी पर दिए गए अपने बयान में मोदी जब यह कहते हैं कि इस बजट से गरीबों को बल मिलेगा और युवाओं का कल बेहतर होगा, तो उनके वक्तव्य के दोनों तथ्य निहित दिखते हैं।

मोदी सरकार 2.0 के बजट में किसान, व्यापारी, मजदूर, महिलाएं, युवा सब शामिल दिख रहे हैं और कुछ न कुछ लाभ पाते नजर आते हैं। नतीजे तो चार-छह महीने बाद देखने को मिलेंगे कि जो योजनाएं हैं, वह किस हद तक फलीभूत हो रही हैं। जमीन पर उतरते-उतरते किस शक्ल में होंगी लेकिन फिलहाल विपक्ष के पास बजट के विरोध में बोलने को शब्द मिल नहीं रहे हैं। जब किसानों की बात आती है तो बजट में 87 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान बताता है कि किसान यह रकम अपने खाते में सीधे पाएंगे। शुरुआत तो मोदी ने अपनी पहली सरकार में ही कर दी थी। लेकिन दूसरी सरकार के पहले ही बजट में इसका फलक विस्तृत कर दिया गया है। किसानों को सीधे लाभ का इससे बेहतर विकल्प फिलहाल कोई और पेश नहीं कर पाया। चुनाव में कोशिश तो कांग्रेस ने भी की थी लेकिन 72 हजार रुपए सालाना के जिस फायदे की बात उसके घोषणा पत्र में शामिल थी, वह किसानों के ही गले नहीं उतर सकी, वरना परिणाम कुछ और होते। जाहिर है दिवा स्वप्न का दौर अब विदा हो चुका है। देश का अनपढ़-अधपढ़ तबका भी सच और झूठ में फर्क करना जान चुका है।

बहरहाल, बात जब नए बजट में ब्लू इकोनॉमी के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की हो रही है तो यह जानना जरूरी है कि आखिर यह ब्लू इकोनॉमी है क्या? इसका इस्तेमाल जरूरी क्यों हो चला है? देश हित में यह जरूरी क्यों है? दरअसल वर्ष 2010 में गुंटर पॉली की एक किताब आई थी। उसका नाम है ‘दि ब्लू इकोनॉमी 10 इयर्स, 100 इन्नोवेशंस, 100 मिलियन जॉब्स।’ इसी किताब से ब्लू इकोनॉमी वाले कॉन्सेप्ट की चर्चा शुरू हुई थी और दुनिया के अनेक देश इसके पक्ष में खड़े दिख रहे हैं।

ब्लू इकोनॉमी के तहत अर्थव्यवस्था समुद्री क्षेत्र पर आधारित है जिसमें पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गतिशील बिजनेस मॉडल तैयार किए जाते हैं। ‘ब्लू ग्रोथ’ के जरिये संसाधनों की कमी और कचरे के निपटारे की समस्या का समाधान किए जाने की कोशिश होती है। इसमें टिकाऊ विकास भी सुनिश्चित किया जाता है, जिससे बड़े पैमाने पर मानव कल्याण की ओर ध्यान दिया जाए। ब्लू इकोनॉमी के जरिए समुद्र और समुद्री क्षेत्र भी साफ-सुथरा रखा जाएगा ताकि बड़े पैमाने पर समुद्र से उत्पादन हो।

इन दिनों ब्लू इकोनॉमी के तहत मुख्य फोकस खनिज पदार्थों समेत समुद्री उत्पादों पर है।

ब्लू इकोनॉमी वाला कॉन्सेप्ट बहुत व्यापक है। इसमें समुद्री गतिविधियां भी शामिल हैं। ब्लू इकोनॉमी का जो ढांचा है, वह पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि बड़े-बड़े कार्गो सामान समुद्री क्षेत्र में एक जगह से दूसरी जगह बिना ट्रकों या रेलवे की मदद के, ले जाए जा सकते हैं। इस एजेंडे को ध्यान में रखकर समुद्र में पर्यावरण के अनुकूल इंफ्रास्टक्चर तैयार करना होगा। कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर को समुद्र की ओर शिफ्ट करना अच्छी आर्थिक और राजनीतिक रणनीति के रूप में माना जाता है। नीति आयोग ने देश की इकोनॉमी को नई दिशा दी है। नरेंद्र मोदी इस बाबत चुपचाप काम करवा रहे हैं। इस योजना से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और लंबी समुद्री सीमाओं का भरपूर इस्तेमाल करते हुए देश को ‘ब्लू इकोनॉमी’ के तौर पर खड़ा करना होगा। वैसे भी हमारे देश के कुल व्यापार का 90 प्रतिशत समुद्री रास्ते से ही होता है। ऐसे में ब्लू इकोनॉमी का कॉन्सेप्ट भारत के लिए हर हाल में फायदेमंद साबित होगा। चाहे मसला व्यापार का हो या सामरिक रणनीति का, आगे इस दिशा में व्यापक काम होना है। ब्लू इकोनॉमी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए नया विषय है।

अपने वक्तव्य में मोदी ने बजट से युवाओं का कल संवरने की बात भी कही है। नए बजट में रेलवे को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की ओर ले जाने की बात कही गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना बजट भाषण पढ़ते हुए जब इस बात का एलान कर रही थीं तो नौकरियों के इंतजार में बैठे काबिल युवाओं का दिमाग कुलबुला रहा था कि अच्छा है कुछ काम तो मिलेगा। बदलते दौर में जब वैश्विक स्तर पर पक्की सरकारी नौकरियों के अवसरों के बजाए निजी नौकरियों का चलन बढ़ा है तब भारत के प्रतिभाशाली युवा भी यह चाहते हैं कि उन्हें काम मिले। उनकी क्षमता और योग्यता को महत्व मिले। आरक्षण के पचड़े में फंसी नौकरियों के मकडज़ाल में उलझने से बेहतर है कि बेरोजगारी से मुक्ति मिले। रेलवे को पीपीपी मॉडल पर ले जाने से यह सेक्टर उस बदनामी से मुक्ति भी पा सकेगा जिसमें कहा जाता है कि असुविधाओं और ट्रेनों की लेटलतीफी के सिवा जनता के हिस्से में आता ही क्या है। साथ ही पीपीपी मॉडल रेलवे की यात्रा को सुगम और सुविधाजनक बनाने में सफल होगा।

मोदी सरकार के इस बजट से आम आदमी को कई बड़े फायदे होने वाले हैं। वित्त मंत्री ने सभी सेक्टरों को खुश करने की कोशिश की है। सोना पर शुल्क बढ़ाकर 10 फीसदी टैक्स से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। तंबाकू पर भी अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है। पेट्रोल-डीजल पर 1-1 रुपए का अतिरिक्त सेस लगाने से बेवजह गाडिय़ों का बेड़ा खड़ा करने वालों को कुछ तो धक्का लगेगा ही। यह साधारण बात नहीं है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अगले दो साल 1.95 करोड़ घर बनाए जाएंगे। आधार और पैन को लिंक करना जनसुविधा के प्रति संवेदनशीलता दिखाना ही है। वित्त मंत्री महिला हो और महिलाओं का ख्याल न रखे, यह कैसे हो सकता है। जनधन खाताधारक महिलाओं को 5000 रुपए ओवरड्राफ्ट की सुविधा देना और महिलाओं के लिए अलग से एक लाख रुपये के मुद्रा लोन की व्यवस्था करना उसी भावना का हिस्सा माना जा सकता है।

हमारे देश में प्राय: हर योजना सरकारी मशीनरी ही फेल करती दिखती है। यह जनधारणा है। छोटे दुकानदारों को मात्र 59 मिनट में लोन देने की योजना सरकारी मशीनरी के उसी शिकंजे को ढीला करने की कोशिश है। साथ ही जनकल्याण की भावना से 3 करोड़ से अधिक छोटे दुकानदारों को पेंशन देने का एलान भी किया गया है। 2022 तक देश के हर घर को बिजली और हर घर को गैस देने का भी लक्ष्य है। 400 करोड़ वाले कारोबारी पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाना यह जाहिर करता है कि सरकार अमीरों को बेवजह सुविधा नहीं देने वाली। उन्हें देश हित में ज्यादा टैक्स देना होगा। बैंक से एक करोड़ रुपए निकालने वालों पर 2 प्रतिशत का टैक्स भी इसी दायरे में है। 1.94 करोड़ नेशनल ट्रांसपोर्ट कार्ड जारी करने की घोषणा यह बताती है कि मोदी सरकार जनसाधारण की रेलवे और बस यात्रा भी सुगम बनाना चाहती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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