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मोदी सरकार का बजट: चुनावी बयार में लोक लुभावन वायदे 

raghvendra
Published on: 8 Feb 2019 4:01 PM IST
मोदी सरकार का बजट: चुनावी बयार में लोक लुभावन वायदे 
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मदन मोहन शुक्ला

मोदी सरकार पूरी तरह से इलेक्शन मोड पर है जिसकी शुरुआत गरीब सवर्णों को आरक्षण दे कर हो चुकी है। इसके बाद यह सिलसिला बजट के साथ आगे बढ़ा है। देखा जाए तो बजट ने नाउम्मीद किया है। यह बात समझ में नहीं आ रही है कि दो हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों को सालाना 6 हजार रुपए की मदद से कैसे फायदा होगा और वह वर्तमान संकट से कैसे बाहर आ पाएंगे। बहरहाल, इसकी घोषणा भी काफी देर से की गई। इसके लिए सरकार को बहुत पहले ही कदम उठाने चाहिए थे।

अभी जो कुछ किया गया वह पर्याप्त नहीं है। जितनी रकम की मदद देने की घोषण की गई है उसे दुगना तो किया जा सकता था। ऐसा होता तो किसानों की आय बढ़ाने का सार्थक प्रयास होता। साल 2008-09 में वैश्विक आर्थिक मंदी के समय से उद्योग जगत को दिए जा रहे 1.86 लाख करोड़ के सालाना पैकेज को खत्म कर यह काम किया जा सकता था। इस पैकेज का अब कोई आर्थिक आधार नहीं है। 2008-09 से उद्योग जगत को 18.60 लाख करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं। इस पैकेज को अब खत्म कर देना चाहिए और इस राशि को किसानों के खातों में स्थानांतरित कर देना चाहिए। बजट भाषण में वित्त मंत्री पूरी तरह चुनावी मोड में दिखे। उन्होंने मोदी सरकार के विजन 2030 की घोषणा कर डाली। दरअसल विजन 2030 के जरिए नए सिरे से ‘अच्छे दिन’ का नुस्खा आजमाया गया है।

बहरहाल, चुनाव करीब है। वादों की बारिश से जनता को सरोबार किया जा रहा है मानों कोई जादुई छड़ी कांग्रेस व भाजपा के हाथ लग गई हो। लगता है जनता के दुख दर्द खत्म ही होने वाले हैं। पर्टियों और नेताओं को क्या कहें, लगता है कि लोकतंत्र नेताओं के लिए नहीं बल्कि जनता के लिए महापर्व समान है । अफसोस यह क्षणिक ही होता है। जनता प्यासी ही रह जाती है। यह खोखले वादे पिछले 70 वर्षों से जनता को ठग रहे हैं और राजनीतिक पार्टियों के लिए सिर्फ जीत का महत्व है। वादों से कुछ भी लेना देना नहीं सिर्फ यह जनता को भरमाने का चुनावी जुमला होते हैं। कुछ सवाल अनुत्तरित हैं। क्या भाजपा की चार साल की अधूरी रह गई योजनाओं पर सवाल नहीं उठेगा? क्या उसकी अब तक की सोच और उपलब्धियों पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगेगा? यही सवाल कांग्रेस से भी होगा। एक महीने में राहुल गांधी तीन बड़ी घोषणाएं कर चुके हंै। किसान कर्ज माफी, न्यूनतम आमदनी की गारंटी और महिला आरक्षण बिल। क्या वह यह बताएंगे कि इसमें ऐसा क्या है कि जो कांग्रेस की ओर से पहली बार कहा जा रहा है? क्या यह सच नहीं है कि 50 वर्ष पहले कांग्रेस ने गरीबी हटाने का नारा दिया था?

कांग्रेस के आखिरी कार्यकाल यानी संप्रग सरकार-2 के वक्त तक भारत में गरीबी का आंकड़ा लगभग 30 फीसदी था अगर न्यूनतम आमदनी गरीबी खत्म करने की गारंटी है तो इतने वर्षों तक उसे लागू क्यों नहीं किया गया? किसान कर्ज माफी तो 2009 में भी आयी थी लेकिन वह सफल न हो सकी। राहुल गांधी को इसका जवाब देना होगा कि जब कांग्रेस केन्द्र में सत्ता में रही तो महिला आरक्षण बिल के बारे में राज्यसभा से विधेयक पारित कराने के बाद वह इस पर आगे क्यों नहीं बढ़ सकी। किसानों का कर्ज लगभग चार लाख करोड़ रुपए है अगर न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना लागू की जाए तो क्या भारत फिलहाल इस स्थिति में है कि बाकी जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ इतनी बड़ी योजना शुरू की जा सके? शायद नहीं। और कर्ज माफी तो किसी समस्या का समाधान भी नहीं है। कांग्रेसी शासन के तहत देश सर्वाधिक समय रहा है। उसके शासन काल में भी हर चुनाव पर बड़े बड़े वादे किए जाते रहे लेकिन अंजाम क्या हुआ, यह सबके सामने है।

विपक्ष में रहकर कुछ भी घोषणाएं और वादे तमाम पार्टियां कर सकती हैं लेकिन जब वह सत्ता में रहती हैं तो धरातल पर योजनाएं साकार नहीं हो पाती हैं क्योंकि सरकार के हाथ बंधे होते है संसाधन सीमित होते हैं। इसीलिए विपक्षी नेताओं को वादे और घोषणाएं करने से पहले उसके क्रियान्वयन पर मनन करना चाहिए। नेताओं और पार्टियों को वादे करने के साथ साथ यह भी बताना चाहिए कि उस वादे को किस तरह और क्रियान्वित किया जाएगा। सिर्फ चांद सितारे ले आने की बात कह देना जनता को निरा मूर्ख बनाना है। जनता को भी अब यह भी बहुत भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि हवाई वादे और हकीकत में तब्दील होने योग्य वादे क्या होते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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