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हमसे का भूल हुई???

हमाये पूरे एक दर्जन मंत्री आजकल कमरे के अँधेरे कोनों में बैठे यही गाना दिन रात गुनगुना रहे हैं ।

Nitendra Verma
Written By Nitendra VermaPublished By Sushil Shukla
Published on: 9 July 2021 11:58 AM IST
Nitendra Verma
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नितेंन्द्र वर्मा 

हमसे का भूल हुई जो हमका ये सजा मिली...ये गाना सुने हैं ना??? बहुत दर्द है इसमें। लिखने वाले ने कूट कूट के अंदर तक भर दिया है। हमाये पूरे एक दर्जन मंत्री आजकल कमरे के अँधेरे कोनों में बैठे यही गाना दिन रात गुनगुना रहे हैं । कुछ तो इतना दुखी हो गए कि दुनिया को बाकायदा ट्वीट करके बताए भी कि वो दुखी हैं।

बताइये इधर मंत्रिमंडल (Mantri Mandal) में जरा काँट छाँट क्या हुई एकदम भूचाल आ गया। डॉक्टर साहब (Dr. sahab) भी चले गए। इतना अच्छा सब हैंडल किये थे। मतलब टैलेंट की कोई कमी नहीं थी। भरे कोरोना काल में ऐसे लाजवाब नुस्खे बताए कि जनता धन्य हो गई। तमाम तो इनके हमसे का भूल हुई जो हमका ये सजा मिली...ये गाना सुने हैं ना??? बहुत दर्द है इसमें। लिखने वाले ने कूट कूट के अंदर तक भर दिया है। हमाये पूरे एक दर्जन मंत्री आजकल कमरे के अँधेरे कोनों में बैठे यही गाना दिन रात गुनगुना रहे हैं। कुछ तो इतना दुखी हो गए कि दुनिया को बाकायदा ट्वीट करके बताए भी कि वो दुखी हैं।

बताइये इधर मंत्रिमंडल में जरा काँट छाँट क्या हुई एकदम भूचाल आ गया। डॉक्टर साहब भी चले गए। इतना अच्छा सब हैंडल किये थे। मतलब टैलेंट की कोई कमी नहीं थी। भरे कोरोना काल में ऐसे लाजवाब नुस्खे बताए कि जनता धन्य हो गई। तमाम तो इनके चरण ढूँढने में जुट गए। बताए कि डार्क चॉकलेट खाइए और कोरोना दूर भगाइये। इतना कहना था कि जनता टूट पड़ी। कोरोना पीड़ित दवा ववा छोड़ चॉकलेट खरीदने के लिए लाइन लगा दिए। लेकिन सही बताएं तो डॉक्टर साहब मौका चूक गए। और कोई होता तो अब तक उसका नाम बच्चे बच्चे को रट गया होता। लेकिन डॉक्टर साहब चॉकलेट थेरेपी बताते रहे सोशल मीडिया पे ध्यान ही नहीं दे पाए।

इधर प्रसाद देने वाले बाबू जी हैरान हैं। भर भर के गुस्सा दिखाये, आँखे तरेरे फिर भी बाहर कर दिए गए। कुछ लोगों की आँखें बोलती हैं। इनकी आँखें, चेहरा सब बोलता है। हम जैसे तो देख के ही रस्ता बदल लेते हैं। हमें जीवन में दो ही चेहरे डरा पाये। पहले मोगैम्बो और दूसरे ये वाले बाबू जी। ट्वीटर को तो इतना सीरियसली ले लिए कि खुद उन्ही के तमाम मंत्री नाराज हो गए। बोले ट्विटर को कहीं कुछ हो गया तो विकास का ढोल कहाँ से पीटेंगे। इनके उलट एक और मंत्री जी रहे जिनके चेहरे से ही हँसी ख़ुशी का प्रकाश झलकता है। ऐसा लगता है कि किसी ने इनके चेहरे पे हँसी बिठा दी हो। सामने वाले का आधा तनाव इन्हें देख के ही दूर हो जाता है। इनसे भी लिखवा लिए। आखिर चाहते क्या हैं मोई जी। वो तो मान लिया गुस्से वाले थे लेकिन भला इन्होंने क्या बिगाड़ा था।

मेहनतकशों के मंत्री जी भी बहुत मेहनत किये। पूरे कोरोना काल में सबसे ज्यादा हैरान परेशान हुए तो वो हैं हमारे मजदूर भाई। लेकिन मजाल है कि किसी को पता चला हो कि इनका ध्यान रखने वाला भी कोई मंत्री है। संतोषम परमं सुखम में विश्वास रखने वाले थे मंत्री जी । बोले थे कि देश भर के मजदूरों का डाटा जुटा के एक पोर्टल बनवाएंगे। बस पोर्टल बनते ही उनकी सारी समस्याएं उड़न छू हो जाएंगी। कुछ दिन पहले कोरट बाबू नाराज हो गए । बोले अभी तक पोर्टल बना काहे नहीं। अब ये तो इनके साथ ज्यादती हो गई । कहा था कि पोर्टल बनवाएंगे। अब कब बनवाएंगे, कब लॉन्च करेंगे ये थोड़े न बताए थे। लेकिन चलते चलते एक गम्भीर बात बता दें आपको । 81 के मंत्रिमंडल में जो केवल 53 मंत्री रखे जाते हैं उसे सरकार की भाषा में भले ही मिनिमम गवर्मेंट मैक्सिमम गवर्नेंस कहा जाता हो लेकिन शास्त्रों में इसे ही बेरोजगारी कहा गया है। मतलब एक एक मंत्री चार चार मंत्रालय संभाल रहा है। असल में ये हमारे देश में बेरोजगारी और सरकारी कार्यालयों की दशा और दिशा का आईना है। बाकी भैया कितनों का बताएं। सबकी अपनी कहानी है अपने किस्से हैं। अपना काम था चुटकी लेना सो ले लिए हैं और आगे भी लेते रहेंगे।

नोट - यह एक व्यंग्य आधारित लेख है । इस लेख का मकसद किसी भी रूप में किसी व्यक्ति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, स्थान या पद की छवि खराब करना नहीं है । न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है ।



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Sushil Shukla

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