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Modi Cabinet Expansion 2021: गवर्नमेंट फॉर ग्रोथ से देखा विकास का सपना
Modi Cabinet Expansion 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सैन्य विज्ञान के इस सिद्धांत को धता बताते हुए अपनी रणनीति बनाते हैं। जो कि उनके हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में देखी गई।
Modi Cabinet Expansion 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सैन्य विज्ञान के इस सिद्धांत को धता बताते हुए अपनी रणनीति बनाते हैं। जिसमें यह माना जाता है कि एक समय एक से अधिक फ्रंट पर लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। उनकी यह रणनीति उनके हालिया मंत्रिमंडल विस्तार (Modi Cabinet Expansion) में देखी जा सकती है। एक ओर उन्होंने चुनाव वाले राज्यों पर तवज्जो दी तो दूसरी ओर महाराष्ट्र (Maharashtra) व पश्चिम बंगाल (West Bengal) को भी महत्व देना नहीं भूले।
यही नही, कुछ मंत्रियों की कामकाज के आधार पर छंटनी की कुछ को ख़राब प्रदर्शन के बाद भी प्रमोट किया। तीन मंत्री तो कोरोना की भेंट चढ़ गये। सोशल मीडिया (Social Media) विवाद ने दो मंत्रियों की कुर्सी छीनी। आरक्षण (Reservation) का तय फ़ार्मूला टूटता दिखा। कमंडल में मंडल समाता नज़र आया। उत्तर प्रदेश के चुनाव (UP Elections 2022) के लिहाज़ से ग़ैर यादव व गैर जाटव गठबंधन गढ़ते मोदी नज़र आये।
मंत्रिमंडल विस्तार में अकेले मोदी युग की शुरुआत का पाठ पढ़ा जा सकता है। जिसमें बदले स्वरूप व कार्यशैली को संदेश है। तभी तो नये मंत्रियों को बधाई देने के लिए गवर्नमेंट फ़ार ग्रोथ (Government For Growth) हैशटैग का इस्तेमाल किया गया।
मोदी के अब तक के सबसे बड़े 77 सदस्यीय मंत्रीमंडल में 25 राज्यों को प्रतिनिधित्व मिला है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे अधिक संख्या में मंत्री रखे गये हैं। उत्तर प्रदेश देश की राजनीति का गेट वे है। तभी तो बिसात अच्छी बिछाई गयी है। उत्तर प्रदेश व देश लिहाज़ से क्षेत्रीय संतुलन ठीक से साधा गया है।
अमित शाह का भी बढ़ा कद
सोशल इंजीनियरिंग का ख़्याल रखे जाने की बात इसलिए कह सकते हैं क्योंकि अब 27 पिछड़े समाज से, 22 दलित व जनजाति समाज से, 11 महिलाएँ, 13 वकील, 6 डॉक्टर, 5 इंजीनियर, 7 ब्यूरोक्रेट रखे गये हैं। राज्य मंत्रियों का ही नहीं अमित शाह (Amit Shah) का क़द भी बढ़ाया गया है।
हिंदी बेल्ट पर विशेष ध्यान देने के साथ ही पूर्वोत्तर, पश्चिम से लेकर पूर्वी भारत और दक्षिण भारत को भी प्रतिनिधित्व देने का पूरा प्रयास किया गया है। दक्षिणी राज्य कर्नाटक से चार मंत्री बनाए गए हैं जबकि तमिलनाडु से भी एस मुरूगन को मोदी कैबिनेट में मौका मिला है। मुरूगन अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। माना जा रहा है कि उन्हें थावरचंद गहलोत द्वारा खाली की गई सीट पर राज्यसभा भेजा जायेगा। केवल थावरचंद गहलोत की ग्रेसफुल निकासी हुई है। उन्हें पहले ही कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया है।
2014 के बाद सबसे बड़ा फेरबदल
मंत्रिमंडल विस्तार के मार्फ़त नये सिरे से कहानी लिखने की शुरुआत हुई है। 2014 के बाद सबसे बड़ा फेरबदल है। नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने की तैयारी है। हर्षवर्धन को कोविड कुप्रबंधन ले डूबा। तो सदानंद गौडा करोना काल में दवाएँ उपलब्ध न करा पाने की मार से मारे गये। इनको बाहर करके प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना महामारी से निपटने से सम्बंधित दो बड़े सन्देश दिए हैं- पहला तो यह कि सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में अपनी विफलता को स्वीकार किया है। दूसरा सन्देश देश को यह दिया है कि अब हेल्थ मैनेजमेंट की दिशा में सही काम किया जायेगा।
अब मनसुख मंडाविया को नया स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है। कोरोना महामारी का प्रकोप कुछ कम हुआ है। लेकिन तीसरी लहर की आहट भी है। ऐसे में मनसुख मंडाविया के सामने कई चुनौतियाँ हैं । जिनमें सबसे बड़ी है देश के सरकारी हेल्थ सिस्टम में लोगों का भरोसा लौटाने की। सरकार ने पिछले डेढ़ साल में सरकारी हेल्थ सेक्टर के बारे में जितनी भी घोषणाएं की हैं, उनको लागू करना होगा। दूसरी चुनौती है कोरोना वैक्सीनेशन की।
संतोष गंगवार भी कोरोना के शिकार होने वालों में से एक हैं। श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन और उनकी दुश्वारियाँ दूर करने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा को अमल में न लाया जा पाना, उन्हें ले डूबा। हालाँकि उनके लोगों का कहना है कि कोरोना के दौरान मुख्यमंत्री योगी को शिकायती पत्र लिखना उन्हें भारी पड़ा।
शिक्षा मंत्री निशंक को हटाए जाने के पीछे स्वास्थ्य को भी बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसके साथ ही नई शिक्षा नीति को लागू करने में भी वे सही भूमिका नहीं निभा सके। यही नहीं सरकारी अनुदान से सहायता प्राप्त पत्रिकाएं प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ ज़हर उगलती रहीं निशंक रोक नहीं पाये। रतन लाल कटारिया को जल शक्ति मंत्रालय में अच्छा काम न करने का खामियाजा भुगतना पड़ा। जबकि सदानंद गौड़ा भी खराब परफारमेंस और कर्नाटक के बदलते समीकरणों की वजह से अपनी कुर्सी से हाथ धो बैठे। ईमानदार छवि वाले प्रताप चंद्र सारंगी भी छाप नहीं छोड़ सके। यही उनके इस्तीफे का बड़ा कारण बना।
एक दर्जन मंत्रियों पर गिरी गाज
मोदी कैबिनेट के विस्तार में एक दर्जन मंत्रियों पर गाज गिरी है। जिन मंत्रियों से इस्तीफा लिया गया है उनमें रविशंकर प्रसाद का नाम भी शामिल है । जो हाल में टि्वटर और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों से टकराव के चलते काफी चर्चा में थे। उन्होंने अपनी ओर से टि्वटर की नकेल कसने की पूरी कोशिश की। हालांकि उन्हें अपने प्रयासों में पूरी तरह कामयाबी नहीं मिली।
प्रकाश जावड़ेकर भी सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। हालाँकि इन दोनों में वरिष्ठ मंत्रियों के इस्तीफे पर राजनीतिक विश्लेषक भी हैरानी जता रहे हैं।इस्तीफा देने वाले 12 मंत्रियों में से 10 की उम्र 60 साल से ज्यादा है।
बिहार में चिराग़ बुझाने पर आमादा नीतीश कुमार ख़ाली हाथ रह गये। उन्हें केवल अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को ही मंत्री बनवा कर संतोष करना पड़ा। 2019 में नीतीश कुमार को एक जगह मिल ही रही थी। नीतीश लल्लन सिंह को भी मंत्री बनवाना चाहते थे। पर इस बार उनके बिना नीतीश को संतोष करना पड़ा। वह भी तब जबकि पशुपति पारस को लोक जन शक्ति पार्टी (LJP) से तोड़ने में उनकी भूमिका थी।
सुशील मोदी के उम्मीदों पर भी फिरा पानी
नीतीश एनडीए में चिराग़ पासवान को नहीं देखना चाहते थे। चिराग़ खुद को मोदी का हनुमान कहते थे। लोक जन शक्ति पार्टी के बग़ावती चाचा पशुपति कुमार पारस को जगह मिली है। बिहार से भाजपा के किसी नेता को तवज्जो न मिलना वह भी तब जबकि सुशील मोदी उम्मीद लगाये बैठे थे। क्योंकि उन्होंने बिहार में लालू के शिकस्त की कहानी लिखी।
पहली बार एक दिग्गज टेक्नोक्रेट को रेल मंत्री बना कर रेलवे में होने वाले बड़े बदलावों का संकेत दिया गया है। नए रेल मंत्री हैं अश्विनी वैष्णव। जिन्होंने आईआईटी और व्हार्टन बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की है। ओडिशा से राज्यसभा के भाजपा सांसद अश्विनी वैष्णव एक पूर्व आईएएस अधिकारी भी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जब पीएम थे तब अश्विनी वैष्णव प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम कर चुके हैं।
मंत्रिमंडल में पश्चिम बंगाल के चार नेताओं को शामिल कर भाजपा ने इस बात का संकेत दे दिया है कि वह राज्य में 2024 के लोकसभा चुनाव में मजबूती के साथ उतरने की जमीन तैयार कर रही है।
सियासी पंडितों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कैबिनेट विस्तार के दौरान दृढ़ इच्छाशक्ति और साहसिक फैसला लेने की क्षमता दिखाई है। सियासी जानकारों के मुताबिक इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बड़े सियासी और साहसिक फैसले लेने वाले नेता की छवि बनाई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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