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मोहम्मद बिन-कासिम को बुलौव्वा!

यकीन नहीं आता कि दिल्ली अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इस्लाम खान ने कहा होगा कि “अगर भारतीय मुसलमान अरब मुसलमानों से शिकायत कर दें कि उनपर हिन्दू लोग जुल्म ढा रहे हैं तो भारत में जलजला (सैलाब) आ जायेगा।”

K Vikram Rao
Published on: 4 May 2020 9:17 PM IST
मोहम्मद बिन-कासिम को बुलौव्वा!
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के. विक्रम राव

यकीन नहीं आता कि दिल्ली अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इस्लाम खान ने कहा होगा कि “अगर भारतीय मुसलमान अरब मुसलमानों से शिकायत कर दें कि उनपर हिन्दू लोग जुल्म ढा रहे हैं तो भारत में जलजला (सैलाब) आ जायेगा।” तुलना में देखें| विगत सात दशकों में सिंध के हिन्दुओं ने लगातार भुगता जब पाकिस्तानियों ने उनकी बहू-बेटी से जबरिया कलमा पढ़ाया, धर्मान्तरण कराया, उनकी जमीन हथियाई, उनकी हत्याएं की। मगर कांग्रेसी सरकार और समझदार बहुसंख्यक हिन्दू शांत रहे| मौनी बने रहे। भारतीय मुसलमान तो स्वभावतः चुप ही रहे क्योंकि काफ़िर को दारुल इस्लाम में इन्सान माना ही नहीं जाता है।

अभी तक भारत के मुसलमान जो ऊँचे ओहदों पर मोटी तनख्वाह और भत्ता पाते रहे, तटस्थ ही रहे| आज जब मिल्लत पर आन पड़ी, तो वे सिसके। मसलन पूर्व (सत्रहवें) मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी हैं, जो सौ शक्तिवान हिन्दुस्तानियों में गिने गए थे। उसी तरह वजाहत हबीबुल्ला हैं, जो प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त, केंद्र सरकार के सचिव और राष्ट्रीय अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष जैसे लाभकारी पदों पर रहे। याद है पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद अंसारी ने कहा था कि भारत में मुसलमान न सुरक्षित हैं और न संतुष्ट हैं। तब तक के दस वर्षों तक ठाटबाट से उपराष्ट्रपति बने रहे। राष्ट्रपति भवन भी आवंटित हो जाता, बच गए। अब इन धुरंधर मुसलमानों ने कभी नहीं कहा कि सिन्धी (पाकिस्तानी), बांग्ला, अफगानी हिन्दुओं को भारतीय नागरिकता देनेवाला CAA कानून ऐतिहासिक अन्याय को खत्म करता है। मुल्लाओं द्वारा अमानवीय फतवे तथा हाजी अली दरगाह में (शबरीमला की भांति) महिला को प्रवेश मिलना आदि विषयों पर उनका चुप रहना शोरभरा था। वे अंजान रहे कि इस्लाम के मायने केवल दाढ़ी और बुर्का, हलाला नहीं है। सलाहुद्दीन ओवैसी भारतीय मुसलमान के मात्र ठेकेदार बन गए हैं। ये सब नहीं मानते कि अयोध्या इमामे हिंद का है जिसे उजबेकी लुटेरे बाबर ने जबरन कब्जाया था। उनकी राय अभी बनी नहीं है कि गजवा-ए-हिन्द की पुरानी अवधारणा राष्ट्रद्रोही है। और तब्लीगी मरकज पर ख़ामोशी? मगर इन लोगों ने कभी कुछ नहीं कहा।

अब आयें डॉ. जफरुल इस्लाम खान पर। वे हिन्दुओं के श्रद्धेय मौलाना वहीदुद्दीन खान के आत्मज हैं। उन्होंने मुस्लिम आतंकवादियों की सर्वप्रथम भर्त्सना की थी। जहाज हाइजेक को जघन्य अपराध करार दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें पद्म भूषण से (2000) में नवाजा था। राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार (2009) दिया गया था। उनका नाम विश्व के पांच सौ सर्वाधिक प्रभावकारी मुसलमानों में शुमार है। सोवियत संघ के स्व. राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव-डेमिअर्गस शांति पुरस्कार उन्हें मिला था। हालांकि लालकृष्ण आडवाणी से निकटता के कारण मुस्लिम सियासी काउंसिल के तस्लीम रहमानी ने आरोप लगाया था कि मौलाना ने सांप्रदायिक सौहार्द हेतु समझौते किये।

इसलिए ऐसे हिंदूमित्र मौलाना का पुत्र डॉ. जफरुल खान अरब मुसलमानों द्वारा हस्तक्षेप की चर्चा करे, तनिक बेमेल और विसंगत लगता है। संभवतः उनके परिचितों ने अल्पसंख्यकों का दबाव बनाकर उनसे ऐसा भ्रामक बयान दिलवाया हो! विचारक, पत्रकार और अखिल भारतीय मजलिसे मशवरात के दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे डॉ. जफरुल खान क्या इतना भारत-द्रोही वक्तव्य दे सकते हैं? यह संदिग्ध प्रश्न है। उन्होंने आलोचना में पहली प्रतिक्रिया आते ही अपनी पोस्ट हटा ली थी। आहत भारतीयों से याचना भी कर ली थी।

अंततः डॉ. खान के बयान को सरदार मनमोहन सिंह के मशहूर भाषण के परिप्रेक्ष्य में देखें। इस कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने कहा था कि “भारत के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है।” भूल गये कि यह बात तो संविधान की धारा 14 (समानता का अधिकार) का सरासर उल्लंघन है। पर आदतन बहुसंख्यक हिन्दू मूक रहे थे।



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K Vikram Rao

K Vikram Rao

Senior Writer

लेखक, पत्रकार, 45 वर्षों से मीडिया विश्लेषक, के. विक्रम राव तकरीबन 95 अंग्रेजी, हिंदी, तेलुगु और उर्दू पत्रिकाओं के लिए समसामयिक विषयों के स्तंभकार हैं।

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