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Mota Anaj Benefits: मोटे अनाज की महीन कहानी, आइये जाने क्यों है ये पीएम मोदी के भोजन का अहम हिस्सा
Mota Anaj Benefits: सदियों से भारत मोटे अनाज का देश रहा है तो फिर अचानक यह फोकस क्यों? दरअसल, दुनिया की अब गेहूं चावल पर निर्भरता कुछ जरूरत से ज्यादा हो गई है।
Mota Anaj Benefits: इन दिनों मोटे अनाज को लेकर खूब बातचीत की जा रही है। इसे खूब प्रमोट किया जा रहा है। संसद में मोटे अनाज के व्यंजन परोसे जा रहे हैं। मोटे अनाज पर प्रदर्शनी लग रही हैं। प्रधानमंत्री अपनी 'मन की बात' में मोटे अनाज पर बोल चुके हैं। प्रधानमंत्री मोटे अनाज को अपने भोजन का हिस्सा बना चुके हैं। जी-20 की बैठकों में शामिल होने वाले मेहमानों को मोटे अनाजों से बने व्यंजन खिलाये जायेंगे। इस साल गणतंत्रदिवस परेड में मोटे अनाज पर एक झांकी भी शामिल थी। कुल मिलाकर मोटा अनाज अब ट्रेंडिंग टॉपिक है।
सवाल उठता है कि सदियों से भारत मोटे अनाज का देश रहा है तो फिर अचानक यह फोकस क्यों? दरअसल, दुनिया की अब गेहूं चावल पर निर्भरता कुछ जरूरत से ज्यादा हो गई है। इसके परिणाम आर्थिक से लेकर सामाजिक तक हैं।आर्थिक परिणाम की बात करें तो रूस-यूक्रेन युद्ध से पता चला कि दुनिया गेहूं के लिए इन दो देशों पर कितनी ज्यादा निर्भर है। इसके अलावा मौसमी चक्र जरा सा बदलने पर ये दो फसलें अगर बर्बाद हुईं तो अरबों-खरबों डॉलर खर्च करके अनाज आयात करना पड़ता है। यूक्रेन से गेहूं न मिले तो यूरोप में रोटी-ब्रेड के लाले पड़ने लगते हैं।आज विश्व भर में सारी बीमारियों की जड़ गेहूं है।गूगल पर सर्च करें। एक पुस्तक 'वीट बेली' यानि 'गेहूं की तोंद' मिलेगी। यह बताती है कि गेहूं में पाया जाने वाला 'ग्लूटेन' नाम का रसायन डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, मानसिक बीमारियों के साथ-साथ मोटापे की भी मुख्य वजह है।
सामाजिक परिणाम में स्वास्थ्य शामिल है। तभी जुबान से ज्यादा अपनी सेहत पर ध्यान देने का सवाल उठा है। जवाब में मोटे अनाज दिखाई देने लगे हैं, जो आदिकाल से इंसानों का स्टेपल फ़ूड थे। आसान फसल और स्वास्थ्यकर होने के नाते अब उन्हीं की तरफ लौटने का विकल्प है। भारत इन मोटे अनाज या मिलेट की भूमि है ।सो भारत की इसमें बड़ी भूमिका है।
मिलेट दरअसल मोटे अनाज के लिए एक सामान्य शब्द है । जिसे अक्सर न्यूट्री-अनाज कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत के प्रस्ताव पर सत्तर देशों के समर्थन के बाद 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया है। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), मक्का, जौ, कोदो, सामा, सांवा, कंगनी, कुटकी चीना आदि आते हैं।छोटे बीज नीले इन अनाजों को लघु धान्य या श्री धान्य भी कहा जाता है ।
मिलेट्स का सबसे बड़ा उत्पादक भारत
भारत दुनिया में मिलेट्स का सबसे बड़ा उत्पादक है। एशिया का लगभग 80 प्रतिशत और विश्व का 20 प्रतिशत मोटा अनाज यहाँ पैदा होता है। इन छोटे बीजों वाली फसलों की खेती कम उपजाऊ भूमि, सूखे इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। इसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना शामिल है। कर्नाटक मोटे अनाजों का प्रमुख उत्पादक है।
2014 की नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की रिपोर्ट के अनुसार, गेहूं, चावल और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के पक्ष में मोटे अनाज की हिस्सेदारी में काफी गिरावट आई है। 1956 से गेहूँ और चावल के उत्पादन के लिए उपयोग की जा रही बढ़ी हुई भूमि के परिणामस्वरूप, मोटे अनाज के लिए खेती के क्षेत्र में 58 फीसदी की कमी आई है। इसमें ज्वार के लिए 64 फीसदी, रागी के लिए 49 फीसदी और बाजरा के लिए 23 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। जबकि मोटे अनाज को ऐसी एकमात्र फसल माना जाता है,जो भविष्य में भोजन, ईंधन, कुपोषण, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करेगी। मोटे अनाज का उपयोग भोजन, चारा, ईंधन आदि में किया जाता है।
लगभग 65 दिनों में बीज से फसल कटने तक का समय लगता है। मिलेट्स की यह अत्यधिक लाभकारी विशेषता अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि ठीक से संग्रहीत किया जाए, तो मिलेट दो साल या उससे अधिक समय तक अच्छी तरह से रखा जा सकता है।इसके अतिरिक्त, मोटा अनाज अपने उच्च प्रोटीन स्तर और अधिक संतुलित अमीनो एसिड प्रोफाइल के कारण पौष्टिक रूप से गेहूं और चावल से बेहतर है। बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी-6,फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि से भरपूर इन अनाजों को सुपरफूड भी कहा जाता है। इनमें मिनरल, विटामिन, एंजाइम और इन सॉल्युबल फाइबर के साथ-साथ मैक्रो और माइक्रो जैसे पोषक तत्व भी भारी मात्रा में मौजूद होते हैं। इसमें विभिन्न फाइटोकेमिकल्स भी होते हैं, जो एंटी ऑक्सीडेटिव गुणों को बढ़ाते हैं।
तीन प्रमुख मोटे अनाज वाली फसलें
वर्तमान में भारत में उगाई जाने वाली तीन प्रमुख मोटे अनाज वाली फसलें ज्वार, बाजरा और रागी हैं। रागी को भारतीय मूल का माना जाता है। भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान के अनुसार, रागी के प्रति 100 ग्राम में 364 मिलिग्राम तक कैल्शियम होता है।रागी या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अन्न है। यह मूल रूप से इथियोपिया के ऊँचे क्षेत्रों का पौधा है जिसे भारत में कुछ चार हज़ार बरस पहले लाया गया था।
बाजरे में आयरन, जिंक, विटामिन बी-3,विटामिन बी-6, और विटामिन बी-9 प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। जो स्किन को हेल्दी रखने में सहायक है। नियमित रूप से बाजरे का सेवन करने से झुर्रियां या त्वचा संबंधी अन्य समस्याओं से बचा जा सकता है। बाजरा प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है। वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो सर्वप्रथम जौ 8000 ई. पू. में निकट पूर्व ,भूमध्य सागर एवं ईरान के मध्य स्थित पश्चिमी एशिया के देश, में मानव द्वारा उगाया गया। कैल्शियम, प्रोटीन, पोटैशियम, आयरन, फाइबर भरपूर रागी की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए इसका सेवन सर्दियों में किया जाता है।
कहा जाता है कि मोटे अनाज का सेवन करने से हड्डियों को मजबूती मिलती है। कैल्शियम की कमी से बचाव होता है। ज्यादा फाइबर होने से पाचन दुरुस्त होता है। वजन कंट्रोल होने लगता है। एनीमिया का खतरा कम होता है। यह डायबिटीज तथा दिल के रोगियों के लिए भी उत्तम माना जाता है। जब इन दोनों रोगों की चपेट में लगातार लोग आ रहे हैं तब मोटे अनाज का सेवन संजीवनी बूटी का काम कर सकता है।
व्यापार के अवसर बढ़ गए
फायदों को देखते हुए मिलेट्स की मांग और बदले में उद्यमियों के लिए व्यापार के अवसर बढ़ गए हैं। 2018 में मिलेट बाजार का आकार 9 बिलियन डॉलर से अधिक था।2018-2025 के दौरान 4.5 फीसदी से अधिक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। इस अवधि में बाजार का अनुमानित मूल्य 12 बिलियन डॉलर से अधिक है।2019-2020 में, भारत ने 28.5 मिलियन डॉलर मूल्य के बाजरा का निर्यात किया। हालाँकि, 2020-2021 में, निर्यात में गिरावट देखी गई, जिसका मूल्य 26.97 मिलियन डॉलर था, जो लगभग 5 फीसदी कम है। लेकिन भारत सरकार के प्रयासों से अगले वर्ष यानी 2021-2022 में 34.32 मिलियन डॉलर मूल्य के बाजरा उत्पादों का निर्यात किया गया।
जब मोटा अनाज की मांग बढेगी तो बाजार में इनका दाम बढ़ेगा ।तभी असंचित भूमि वाले गरीब किसानों की आय भी बढेगी। मोटे अनाज की खेती में कम मेहनत लगती है। पानी की भी कम जरूरत होती है। यह बिना सिंचाई और बिना खाद के पैदा किया जा सकता है। भारत की कुल कृषि भूमि में मात्र 25-30 फीसद ही सिंचित या अर्ध सिंचित है।यानी लगभग 70-80 कृषि भूमि वैसे भी धान या गेहूं नहीं उगा सकते। धान और गेहूं के उगाने के लिये लगभग महीने में एक बार फ्लड इरीगेशन करना पडता है। इतना पानी अब बचा ही नहीं कि पीने के पानी को बोरिंग कर पम्पों से निकाल कर खेतों को भरा जा सके।यही नहीं, इनकी खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करना पडता है। जिससे जमीन बंजर होती जाती है। इंसानों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। लोक भारती लंबे समय से प्राकृतिक खेती के लिए जागरूकता अभियान चला रही है। मोटे अनाजों की खेती को भी उसने अपने एजेंडे में लिया है। किसानों के बीच जाकर उन्हें जानकारी देना और जागृत करने के साथ ही साथ खेती के दौरान किसानों को सहयोग देने में भी लोक भारती के लोग पीछे नहीं रहते हैं।