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क्यों पर्वतारोहण को प्रोत्साहन मिलना है जरूरी

देश में पर्वतारोहण को बढ़ावा तब ही मिल सकता है जब इन पर्वतारोहियों की यात्राओं का खर्च सरकार और निजी क्षेत्र भी वहन करे

RK Sinha
Written By RK SinhaPublished By Ashiki
Published on: 6 April 2021 12:29 PM GMT (Updated on: 6 April 2021 12:40 PM GMT)
Mountaineering
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फाइल फोटो 

राजधानी के चाणक्यपुरी क्षेत्र से गुजरते हुए दो सड़कों के नामों को पढ़ते ही मन में सम्मान और श्रद्धा के भाव पैदा होने लगते हैं। इधर दो सड़कों के नाम महान पर्वातरोहियों क्रमश: तेनजिंग नोर्गे और न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी के नामों पर हैं। सारा संसार जानता है कि इन दोनों महामानवों ने 28 मई 1953 को दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर कदम रखा था। उसके बाद वहां पर भारत, नेपाल और न्यूजीलैंड के झंडे भी सम्मानपूर्वक फहराए गए थे।

भारत की राजधानी दिल्ली में इन दोनों महान पर्वतारोहियों के नामों पर सड़कों का होना ही इस बात की पुष्टि करता है कि देश पर्वतारोहण संसार के पुराणपुरुषों का सम्मान करता है। भारत में इनके बाद भी अनेक पर्वातारोहियों ने माउंट एवरेस्ट को फतह किया। महान पर्वातरोही मेजर एच.पी.एस. आहलूवालिया के नेतृत्व में 20 मई 1965 भारतीय सेना के पर्वतारोही दल ने माउंट एवरेस्ट को फतेह किया था। मेजर एच.पी.एस. आहलूवालिया एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। यानी नोर्गे और हिलेरी के छह सालों के बाद पहली बार कोई भारतीय एवरेस्ट पर चढ़ा।

नोर्गे को शुद्ध रूप से भारतीय तो नहीं ही कहा जा सकता है। वे मूलतः नेपाल से थे, पर भारत में बस कर भारतीय नागरिक बन गए थे। मेजर एच.पी.एस. आहलूवालिया ने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में भी सक्रिय रूप से भाग भी लिया था। इस महान उपलब्धि के लगभग 19 सालों के बाद बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनी। उन्होंने सन 1984 में माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था। हिमालय की गोद में समाया माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊंचा शिखर है। सफेद बर्फ की चादर ओढ़े सदियों से खड़े इस विशालकाय शिखर की ऊंचाई 29,029 फीट है। इसे फतेह करना ही हरेक पर्वतारोही का सपना होता है।

बछेन्द्री पाल से अनीता कुंडू तक

बछेन्द्री पाल एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही हैं। वर्तमान में वे इस्पात कंपनी टाटा स्टील में कार्यरत हैं, जहां वह युवा पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देती हैं। इस बीच, नोर्गे, हिलेरी , आहलूवालिया और बछेन्द्री पाल से प्रेरणा लेकर हरियाणा की एक सुदूर गाँव की गरीब बेटी अनीता कुंडू ने भी माउंट एवरेस्ट को फतह कर लिया है। इस वक्त वह देश की सबसे खास पर्वतारोही हैं। तिरंगे को तीन बार एवरेस्ट की चोटी पर और सातों महाद्वीपों के सबसे ऊंचे शिखरों पर भी लहरा चुकी अनीता कुंडू इसी महीने एक और शिखर फतह करने निकल रही हैं।

अनीता कुंडू ने आने वाले सप्ताह में माउंट लहोत्से की चढ़ाई के लिए काठमांडू रवाना होंगी। इस शिखर की उंचाई 8516 मीटर यानि माउंट एवरेस्ट से कुछ ही मीटर कम है। लेकिन, यह एक दुर्गम और तकनीकी शिखर है जिसपर चढ़ाई एक खतरनाक और जोखिम भरा प्रयास है I अनीता कुंडू ने कहा कि माउंट लहोत्से दुनियां के चौथी नम्बर का सबसे ऊंचा शिखर है। यहां वो भारत के तिरंगे से साथ-साथ सिक्योरिटी कंपनी एस.आई.एस का भी झंडा लहराएंगी जिसकी वे ब्रांड एम्बेसडर हैं ।

देश में पर्वतारोहण को गति और बढ़ावा तब ही मिल सकता है जब इन पर्वतारोहियों की यात्राओं का खर्च सरकार, सार्वजानिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र भी वहन करे। यह सच है कि पर्वातरोहण में बहुत पैसे खर्च होते हैं। अनीता कुंडू एक पर्वातारोही के तौर पर भारत का मान बढ़ा रही है। इसलिए एसआईएस लिमिटेड उसकी हर संभव मदद करते हैं। अनीता कुंडू भारत की पहली बेटी है जिन्होंने एवरेस्ट पर तीन बार सफलता पूर्वक चढ़ाई कर तिरंगा फहराया है। अनीता कुंडू अब विश्व भर की आठ हजार मीटर से ऊपर की चोटियों को फतेह कर रही है। उसने 2019 में अमेरिका की खतरनाक चोटी माउंट मानस्लु को भी फतेह किया था, जिसकी ऊंचाई 8163 मीटर थी।

अनीता कुंडू का ताजा मिशन लगभग 50 दिन के आस-पास रहेगा। ये यात्रा पूरी तरह मुश्किलों से भरी रहती है लेकिन उनका संकल्प है कि वे हर मुश्किलों को पछाड़ माउंट लहोत्से पर तिरंगा फहराएंगी। अनीता को भारत सरकार ने देश का सबसे बड़ा ऐडवेंचर का अवॉर्ड 'तेनजिंग नोर्गे नेशनल अवॉर्ड' से सम्मानित भी किया है।

उनका क्यों सम्मान करते थे प्रशंसक

बहरहाल, भारत में पर्वतारोहण और पर्वतारोहियों को लेकर बहुत उत्सुकता रहती है आम जनों में। तेनसिंह नोर्गे का 1990 के दशक तक राजधानी दिल्ली में पर्वतारोहण से जुड़े कार्यक्रमों में आना-जाना लगा रहता था। उन्हें यहां पर सैकड़ों प्रशंसक घेर लेते थे। साल 2009 में माउंट एवरेस्ट को फतेह करने की 50 वीं जयंती के अवसर पर विज्ञान भवन में एक भव्य कार्यक्रम हुआ था। उसमें एडमंड हिलेरी को उनके चाहने वाले कंधों पर लेकर मंच तक आए थे। बेशक,एवरेस्ट को फतेह करने के बाद सर एडमंड हिलेरी और तेनसिंह नोर्गे तो विश्व विख्यात हो ही गए थे।

ये सारी दुनिया के नायक थे। हिलेरी को उनके देश न्यूजीलैंड ने 1985-1989 के दौरान उन्हें अपना भारत में हाई कमिश्नर नियुक्त कर दिया था। उस दौरान एडमंड हिलेरी का दिल्ली के खेल जगत में उठना-बैठना लगा रहता था। यहां हिलेरी के उच्चायुक्त दफ्तर के दरवाजे पर्वतारोहियों, खिलाड़ियों, लेखकों वगैरह के लिए हमेशा खुले रहते थे। वे बेहद लोकप्रिय डिप्लोमेट थे। हिलेरी और मशहूर खेल कमेंटेटर जसदेव सिंह जी घनिष्ठ मित्र हुआ करते थे।

उनका जसदेव सिंह के साउथ दिल्ली स्थित आवास में लगातार आना-जाना लगा रहता था। वहां पर बहुत से खेल और पर्वतारोहण के प्रेमी उनसे माउंट एवरेस्ट को फतेह करने के संस्मरण सुना करते थे। हिलेरी इस बात को लेकर चिंतित भी रहा करते थे बड़े पैमाने पर पर्वतारोहियों के जमावड़े का ही असर है कि माउंट एवरेस्ट पर भी कचरे का भी एक बड़ा ढेर इकट्ठा हो गया है। वहां पर कुछ समय एक पहले मानव शव के साथ ही 11,000 किलो कचरा मिला है।

माउंट एवरेस्ट पर बड़े पैमाने पर मानव मल, ऑक्सिजन की बोतलें, टेंट, रोप, टूटी हुई सीढ़ियां, कैन्स और प्लास्टिक के तमाम रैपर भी मिले। माउंट एवरेस्ट से लौटने वाले पर्वतारोही बताते हैं कि माउंट एवरेस्ट पर बड़े पैमाने पर कचरा इकठ्ठा हो गया है।

खैर, भारत में पर्वतारोहण और एडवेंचर स्पोर्ट्स को लेकर हर स्तर पर प्रोत्साहन देने की जरूरत है। भारत में हिमालय पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना 4 नवंबर, 1954 में पर्वतारोहण को क्रीड़ा के रूप में बढ़ावा देने के लिए की गई थी। यह तेनसिंह नोर्गे और एडमंड हिलेरी की माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के अदम्य उत्साह का परिणाम था। भारत के दार्जिलिंग में लगभग 21 हजार फुट की ऊंचाई पर बनाया गया था हिमालय पर्वतारोहण संस्थान । तेनज़िंग नोर्गे इसके पहले अध्यक्ष बने। अभी देश को नोर्गे, आहलूवालिया, बछेन्द्री पाल और अनीता कुंडू जैसे सैकड़ो-हजारों पर्वतारोहियों की जरूरत है ताकि एडवेंचर स्पोर्ट्स के साथ ही पर्वतारोहण से जुड़े पर्यटन का भी विकास हो सके ।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं।)

Ashiki

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