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Mulayam Singh Yadav: समाजवादी राजनीति के पुरोधा मुलायम सिंह का स्मरण
Mulayam Singh Yadav: एक कुशल वक्ता के रूप में मुलायम सिंह ने विधानसभा और लोकसभा में अपनी प्रबल उपस्थिति दर्ज कराते हुए जनता की समस्याओं की मजबूत लड़ाई लड़ी।
Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पुरोधा नेता जी के नाम से उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय रहे मुलायम सिंह यादव की आज पहली पुण्यतिथि है। पाँच दशकों की समाजवादी धारा की राजनीति करते हुए मुलायम सिंह यादव एक जनाधार वाले नेता के रूप में स्थापित रहे। उनके प्रभावी सार्वजनिक/राजनैतिक जीवन के कारण ही मरणोपरांत उन्हे पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। भारतीय राजनीति के बदलते मूल्यों के दौर में मुलायम सिंह आजीवन खाँटी भारतीय वेश-भूषा कुर्ता-धोती पहनकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में देशी भाषा की लड़ाई का सवाल,भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की वकालत,चीन की सीमा विस्तार नीति की निंदा,देश की अर्थव्यवस्था किसान केन्द्रित बनाये रखे जाने के पक्ष में मजबूत आवाज़ उठाते रहे।
मुलायम सिंह यादव नेताजी के नाम से राजनीति में लोकप्रिय रहे। उन्होंने लोहिया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया।एक कुशल वक्ता के रूप में उन्होंने विधानसभा और लोकसभा में अपनी प्रबल उपस्थिति दर्ज कराते हुए जनता की समस्याओं की मजबूत लड़ाई लड़ी। सक्रिय जनप्रतिनिधि के रूप में सदन में उन्होंने सदैव समाज के सभी वर्गों के हितों के लिए संघर्ष किया। इसी संघर्ष के फलस्वरुप वे तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भारत सरकार में रक्षा मंत्री पद पर सुशोभित हुए। मुख्यमंत्री एवं रक्षामंत्री के रूप में उन्होंने कई ऐसे ऐतिहासिक कार्य किए जिनके निर्णयों की सराहना आज भी होती है। एक छोटे से गांव में जन्म लेकर यूपी जैसे विशाल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सफर विषमताओं से भरा रहा लेकिन चुनौतियों का सामना करते हुए कुशल नेतृत्व के रूप में उन्होंने स्वयं को स्थापित किया।
15 वर्ष की आयु में पहली बार जेल गए मुलायम सिंह यादव
मात्र 15 वर्ष की आयु में समाजवाद के शिखर पुरुष डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर किसानों की समस्याओं को लेकर पहली बार जेल गए मुलायम सिंह यादव 1954 में चर्चा में आए। जिसके बाद 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार में ही उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए और 1974 से 2007 तक 10 बार विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। दो दशकों से अधिक की जमीनी राजनीति करते हुए मुलायम सिंह यादव ने लोहिया के समाजवादी सिद्धांत एवं चौधरी चरण सिंह की किसान हितैषी नीतियों को आधार बनाकर 5 नवंबर 1992 को लखनऊ में समाजवादी पार्टी की स्थापना किया।
पिछड़ों,शोषितों, महिलाओं,अल्पसंख्यकों और वंचितों के उत्थान की दिशा में उनके द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय विभिन्न सरकारों के लिए एक नजीर है। उन्होंने किसानों के विकास के लिए अनेक आंदोलन किए। एक तरफ सदन में बुनियादी प्रश्नों पर समाजवादी दृष्टि के आधार पर बहसों को प्रभावित किया, वहीं दूसरी तरफ जनता की जरूरत पर सजग दृष्टि रखते रहे। अपने दायित्व को पूरा करने में उन्होंने कभी भी दलीय दायरों तथा जाति-धर्म की भाषा को स्वीकार नहीं किया।
धुर राजनैतिक विरोधियों की मदद करने में पूरी उदारता दिखाई
आज जब राजनीति में व्यक्तिगत कटुता, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, सदन में असंसदीय भाषण का चलन जोरों पर है। बड़े-बुजुर्गो की उपेक्षा भी बेहिचक की जा रही है ऐसे में राजनीति से जुड़े लोगों के लिए मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक जीवन उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने दलीय राजनीति से परे जाकर अपने धुर राजनैतिक विरोधियों की मदद करने में पूरी उदारता दिखाई। संघर्ष के दिनों के साथियों का उन्होंने बड़ा ख्याल रखा। राजनैतिक सहयोगी और जीवन के अंतिम समय तक कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले छोटे लोहिया की स्मृति को सँजोने के लिए लखनऊ में निर्मित जैव विविधता से परिपूर्ण जनेश्वर पार्क में उनकी आदमकद मूर्ति बनाने की प्रेरणा मुलायम सिंह की ही है। छोटे लोहिया के नाम से लोकप्रिय रहे जनेश्वर मिश्र को श्रद्धांजलि देने के इस अनूठे तरीके के राजनैतिक विरोधी भी कायल है।
मुलायम सिंह यादव के जीवन पर ग्रामीण भारत की स्पष्ट छाप थी। गांवों की गरीबी,बेकारी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की पीड़ा को उन्होंने करीब से महसूस किया था। यही कारण है कि उन्होंने अपने पैतृक गाँव सैफई को पूरे देश के सामने एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें विकास की आधारभूत सुविधाओं का पूरा प्रबंध करते हुए गाँव के समग्र एवं सम्पूर्ण विकास शामिल है। अनेक सार्वजनिक मंचों से मुलायम सिंह यादव ने जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से अपने गांवों को उन्नत एवं समृद्ध करने का आग्रह किया। जिससे भारत के गांवों की तस्वीर तेजी से बदले।
भारतीय समाजवाद के सर्जक डॉ. राम मनोहर लोहिया के अनुयायी मुलायम सिंह यादव आजीवन समाजवादी विचार परंपरा को गतिशील बनाने में सक्रिय रहे। लोक संस्कृति/लोक भाषा/लोक कला/लोक साहित्य के संवर्धन एवं संरक्षण में मुलायम सिंह यादव ने अनेक ठोस नीतियाँ एवं कार्यक्रम लागू कराया। गंवईं विरासत से गहरे जुड़ाव के कारण जनता उन्हे धरतीपुत्र नाम से संबोधित करती थी। प्राचीनता और नवीनता का समन्वय करने में जो महारत उन्हें हासिल है,उसकी अन्यत्र कल्पना भी कठिन है। बुजुर्ग साथियों के बीच हमेशा युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने वाली उनकी कार्यशैली बेहद आधुनिक थी ,जिसकी वजह से आज देश में सबसे मजबूत और प्रतिबद्ध युवा कैडर समाजवादी पार्टी के पास है। युवा उर्जा को सही समय पर सही स्थान प्रदान करने के साथ ही साथ सपा प्रमुख साहित्यकारों/कलमकारों को भी हमेशा विशेष सम्मान देते रहे हैं। हिंदी/उर्दू संस्थानों एवं राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए विशेष सम्मान एवं पुरस्कार इस पहल के उदाहरण हैं। जिसकी शुरुआत समाजवादी सरकार में हुई थी।
जीवन के अंतिम समय में भी मुलायम सिंह यादव बेहद सक्रिय और राजनैतिक रूप से सचेत रहे। एक सामान्य ग्रामीण परिवार में जन्म लेकर देश के प्रथम पंक्ति के राजनीतिज्ञ बनने की उनकी यात्रा अनेक संघर्षों और जीवटता का प्रतीक है। सुविधाभोगी राजनीति करने वाले लोगों के लिए यह अकल्पनीय यात्रा है। उन्होंने अपनी नैसर्गिक राजनैतिक क्षमता से लाखों लोगों को संस्थागत रूप में जोड़कर उनके सपनों को मजबूत आधार प्रदान किया।
(लेखक: पूर्व अतिथि प्रवक्ता: एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय)