TRENDING TAGS :
Narendra Modi: तो ऐसे कैसे मोदी को हरा पायेगा विपक्ष!
Narendra Modi: हम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर गौर करें तो यह कह सकते हैं, कि नरेंद्र मोदी को हराने का कोई फ़ार्मूला अभी देश की विपक्षी पार्टियों के पास नहीं है।
Narendra Modi: वैसे तो किसी एक चुनाव से दूसरे चुनाव के बीच कोई साम्य नहीं होता है। दो चुनाव के बीच के नतीजों की न तो तुलना की जानी चाहिए न आगे के किसी चुनाव में बीते चुनावों के फ़ार्मूले को फिट किया जाना चाहिए। पर कोई भी चुनाव अपने आगे आने वाले चुनाव की पृष्ठभूमि तय ज़रूर करता है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि चुनाव उन्हीं दोनों पार्टियों के बीच हो। दोनों पार्टियों के नेतृत्व वाले चेहरे न बदले हों। अगर हम राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावों पर गौर करें तो यह कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी को हराने का कोई फ़ार्मूला अभी देश की सियासी पार्टियों के पास नहीं है। यानी 2024 में मोदी हैट-ट्रिक लगायेंगे। क्योंकि मोदी को पराजित करने के लिए जिन तत्वों व कारकों की ज़रूरत है, उसके लिए कोई नेता या राजनीतिक दल तैयार नहीं है।
इसकी वजहें भी कई हैं -
पहला, मोदी को हराने के लिए सबसे ज़रूरी है कि मोदी के सामने जो चेहरा पेश किया जाये वह पूरी तरह से ईमानदार हो। दूसरा, मोदी से लड़ने के लिए अल्पसंख्यक वोटों का मोह त्यागना पड़ेगा। इसके लिए कोई नेता या पार्टी तैयार नहीं है। तीसरा, राजनेता का स्वप्न दृष्टा होना चाहिए और यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि नेहरू के बाद मोदी भारत के सबसे बड़े स्वप्नदृष्टा हैं। नरेंद्र मोदी के सपनों पर जनता का यक़ीन हो उठा है। अब नया इसे शुरू करेगा तो भरोसा जीतने में इतना समय लगेगा। तब तक लोकतंत्र के चौसर पर नरेंद्र मोदी 2024 की बाज़ी मार लेंगे।
ये सारे नतीजे, तथ्य व सत्य राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनावी नतीजों से हाथ लगते हैं। आप भी यदि इन दोनों चुनावों का अध्ययन करेंगे तो निश्चित ही इसी नतीजे पर पहुँचेंगे। भाजपा नेताओं ने द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में 65 फ़ीसदी वोट पड़ने का दावा चुनाव के काफ़ी पहले किया था। उन्हें 64 फ़ीसदी वोट मिले। जबकि उन्हें केवल 61.1 फ़ीसदी वोट मिलने चाहिए थे। मुर्मू के लिए 2.9 फ़ीसदी क्रास वोटिंग हुई। 17 सांसद व 110 विधायकों ने क्रास वोटिंग की। लोकसभा की 47 और विधानसभा की 604 सीटों पर भाजपा मुर्मू की जीत के बाद अपने प्रभाव में इज़ाफ़ा करने में कामयाब होती हुई दिख रही है।
उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी भाजपा ने जो चालें चलीं उसने न केवल धनखड़ की जीत को सुनिश्चित किया बल्कि 2024 के लिए भी मज़बूती प्रदान की। धनखड़ जाट हैं। उनकी जीत से भाजपा को दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में सियासी फायदा होने की उम्मीद बढ़ जाती है। यदि लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखा जाए तो पांच राज्यों में करीब 40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं , जहां जाट मतदाता प्रभावी हैं।
किसान परिवार से आने वाले धनखड़ के जरिए भाजपा ने किसानों को भी बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। पीएम मोदी ने उन्हें एक किसान पुत्र बताया। पिछले दिनों हुए किसान आंदोलन के मद्देनजर भाजपा ने धनखड़ के जरिए किसानों का समीकरण साधने में सफलता पाई है। तभी तो कृषि कानूनों के खिलाफ जिस शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए से बाहर जाने का फैसला किया था। उपराष्ट्रपति चुनाव में उसी अकाली दल ने धनखड़ का समर्थन किया है।
इन दो चुनावों से साफ है कि 2024 की बड़ी सियासी जंग में भी विपक्षी दलों के बीच एकजुटता दिवास्वप्न सरीखी ही है। भाजपा के मुकाबले विपक्ष का कोई चेहरा तय कर पाना भी किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं होगा। उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष की हालत इतनी पतली रही कि मारग्रेट अल्वा को सिर्फ 24.64 फ़ीसदी मिले। जबकि धनखड़ ने 74.36 फ़ीसदी मत हासिल किए। हार के बाद अल्वा ने कहा,"यह चुनाव विपक्षी दलों के लिए एकता का एक शानदार मौका था। हम पुरानी बातों को दरकिनार करके एक-दूसरे के अंदर भरोसा पैदा कर सकते थे ।मगर हमने यह शानदार मौका गंवा दिया।"
2024 की सियासी जंग में सबसे बड़ा सवाल विपक्ष के चेहरे को लेकर बना हुआ है। अभी तक इस मुद्दे पर कोई रजामंदी बनती हुई नहीं दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी को विपक्ष का चेहरा बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस को राहुल गांधी के सिवा कोई और नेता मंजूर नहीं है। एनडीए में शामिल न होने वाले मजबूत क्षेत्रीय दल भी अपना अलग-अलग राग अलाप रहे हैं। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनावों ने एनडीए के दलों की संख्या के बढ़ने के संदेश दिये हैं, जिस तरह अकाली दल, टीडीपी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, वाईएसआर कांग्रेस की उदारता देखी गयी, वह कुछ यही कहानी कहती है।
यही नहीं, यदि 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर जायें तो अकेले भाजपा क्रमशः 17,1660, 230 व 22,907, 6869 वोट पार कर गई थी।मोदी ने पाँच करोड़ नये लोग जोड़े। इस बार भी जो "लाभार्थी क्लास" बना है, वह मोदी के वोटों की संख्या बढ़ायेगा। जबकि कांग्रेस पार्टी को इन सालों में क्रमश: 10,69,35,942 व 11,94,95,214 वोट मिले। जो 19.52 व 19.67 फ़ीसदी थे। जबकि भाजपा को 2014 में 31.34 व 2019 में 37.7 फ़ीसदी वोट मिले।
क्या यह संभव है कि ग्यारह करोड़ वोट पाने वाली पार्टी सिर्फ दो तीन करोड़ वोट पाने वाले क्षेत्रीय क्षत्रप का चेहरा आगे करने को तैयार होगी? नहीं। फिर तो बंट कर मोदी को हराना संभव नहीं है। क्योंकि हिंदू अस्मिता के आधार पर वोट देने की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। भाजपा ने जाति की राजनीति को कमजोर किया है। लंबे समय से चले आ रहे गंगा जमुनी संस्कृति के पाखंड को उजागर करने में मोदी कामयाब हुए हैं।
इसी के साथ जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं हैं, वहाँ भी यदि लोकसभा चुनाव होते हैं तो मोदी उसी राज्य में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले दस से पंद्रह फ़ीसदी वोट अधिक पाते हुए दिखते हैं। मोदी का वोट व सीटें पाने का जो क्रम दिख रहा है, तथा राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में जो पृष्ठभूमि तैयार हुई है, वह उन्हें लोकसभा में तीन सौ तेरह तक ले जा सकती है। पाँच फ़ीसदी बढ़ोतरी का वह रिकार्ड क़ायम रखते दिख सकते हैं।2024 के आम चुनाव मात्र 14 - 15 महीनों में होने हैं। मोदी के लिए इतने दिनों का समय अपना प्रभाव और भी बढ़ाने के लिए काफी है, क्योंकि वह भविष्य को सुनहरे सपने जगाने वाले अद्वितीय जादूगर हैं। बाकी सब तो अभी जमूरे ही लग रहे हैं।