×

Narendra Singh Tomar: कृषि क्षेत्र का पुनर्जीवन एवं किसानों का सशक्तिकरण

आजादी के बाद देश में कई क्षेत्रों में सुधार एवं उन्नयन की जरूरत महसूस की जाती रही है। कुछ दिशाओं में सुधार के कदम उठाए गए...

Narendra Singh Tomar
Written By Narendra Singh TomarPublished By Divyanshu Rao
Published on: 29 Sep 2021 2:26 PM GMT
Narendra Singh Tomar
X

भारत के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तस्वीर (डिजाइन फोटो:न्यूज़ट्रैक)

Narendra Singh Tomar: कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हमारे देश का लगभग 44 फीसदी श्रमबल खेती और इससे जुड़े कामधंधों से रोजगार प्राप्त करता है, या यूं भी कहा जा सकता है कि देश की 70 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है। इतनी बड़ी आबादी के कृषि कार्य से जुड़े होने के बावजूद चिंता का विषय यह है कि इस क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान सिर्फ 18 फीसदी ही है। इस क्षेत्र का महत्व इसलिए भी है कि सतत विकास के लक्ष्य-जीरो हंगर को पूर्ण करने एवं पोषण संबंधी जरूरतों की प्रतिपूर्ति को कृषि क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव करके ही हासिल किया जा सकता है।

आजादी के बाद देश में कई क्षेत्रों में सुधार एवं उन्नयन की जरूरत महसूस की जाती रही है। कुछ दिशाओं में सुधार के कदम उठाए गए, किंतु अधिकांश में सात दशक तक पुराने ढर्रे पर ही काम चलता रहा।सरकारों ने अपने राजनीतिक लाभ अथवा पॉलिसी पैरालिसिस की जकड़न में कृषि क्षेत्र को किसानों के भरोसे ही छोड़ दिया। हालात ये हुए कि किसान की आय उसकी लागत से भी कम नजर आने लगी।

कृषि क्षेत्र का पुनर्जीवन कर इसे मुख्यधारा में लाने के कई अहम प्रयास विगत सात वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा किए गए हैं। साहस के साथ कृषि क्षेत्र में किए गए सुधारों के सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं। कृषि उत्पादन में वृद्धि से लेकर किसानों की आर्थिक स्थिति में हुए सुधार यह स्थापित करते हैं कि हमारे ध्येयपूर्ण परिश्रम के परिणाम आने लगे हैं। भारतीय कृषि का आने वाला कल सुखद है।

नरेंद्र सिंह तोमर की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

कृषि सुधार कानूनों के माध्‍यम से भारतीय कृषि के एक सुखद एवं समृद्ध भविष्‍य की नींव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्‍व में रखी गई है। कृषक उपज व्‍यापार तथा वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा ) अधिनियम, 2020 के माध्‍यम से किसानों की मंडी में ही अपनी उपज बेचने की बाध्‍यता से मुक्ति मिली है। देश में हर निर्माता अपना उत्‍पाद कहीं पर भी बेच सकता है। लेकिन किसानों पर यह बंधन था कि वे अपने क्षेत्र की मंडी में ही उपज बेच सकते थे। सरकार का यह कदम कृषि के क्षेत्र में ' एक देश-एक बाजार' की संकल्‍पना को पूर्ण करता है। किसानों के पास मंडी में अपनी उपज बेचने का विकल्‍प पूर्ववत है। हमनें मंडियों के सशक्तिकरण की दिशा में भी कार्य किया है।

किसानों के सामने एक संकट यह भी रहा है कि उन्‍हें यह आश्‍वस्ति नहीं रहती थी कि वे जो खेत में बो रहे हैं उसके उचित दाम मिलेंगे भी या औने-पौने दाम में बिकने के बाद लागत से भी कम पूंजी हाथ में आएगी। बुवाई से पहले ही उचित मूल्‍य की गारंटी दिलाने के उद्देश्‍य से ही कृष ( सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्‍वसन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 का प्रावधान किया गया है। संविदा खेती के माध्‍यम से किसानों को खेती के लिए आधुनिक संसाधन एवं सहयोग भी प्राप्‍त हो सकेगा। यहां मैं फिर से स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि संविदा खेती में करार सिर्फ उपज का होता है, जमीन का नहीं । इसलिए जमीन पर से किसानों का मालिकाना हक कोई नहीं छीन सकता है।

कृषि क्षेत्र के उत्थान के लिए सबसे आवश्यक यह था कि सरकार इसका बजट बढ़ाए, ताकि अधिक से अधिक संसाधनों के माध्यम से खेती किसानी की दशा और दिशा में बदलाव किए जा सकें। कृषि विभाग के बजट में सात साल में साढ़े पांच गुना की वृद्धि हुई है। 2013-14 में भारत सरकार के कृषि विभाग का बजट सिर्फ 21933.50 करोड़ रूपए था, जो कि 2021-22 में बढ़कर 1 लाख 23 हजार करोड़ रूपए हो गया।

कृषि में आवश्यकता थी एक ऐसी रणनीति कि जो किसान को मौजूदा हालात से उबरने में तात्कालिक रूप से तो मदद करे ही भविष्य की जरूरतों को देखते हुए भी कुछ ठोस काम किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इन दोनों पहलुओं को ध्यान में रखकर ही लगातार काम कर रही है। किसानों की आय सुधारने के विषय में सबसे पहला सवाल यही उठता रहा है कि उसे उपज के उचित और लाभकारी दाम नहीं मिलते। सरकार ने रबी, खरीफ तथा अन्य व्यावसायिक फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में ऐतिहासिक बढ़ोत्तरी की है। 2018-19 से उत्पादन लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय की जा रही है। इससे प्रत्यक्ष लाभ तो एमएसपी पर उपज बेचने वाले किसानों को हुआ ही, बाजार में भी तुलनात्मक रूप से दाम बढ़े हैं और किसानों को लाभ पहुंचा है।

वर्ष 2013-14 से 2021-22 की तुलना में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 48 प्रतिशत से ज्‍यादा तो गेहूं के समर्थन मूल्‍य में लगभग 44 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। दलहन-तिलहन का रकबा बढ़ाना हमारा प्राथमिक उद्देश्‍य है। इसीलिए दलहन-तिलहन के समर्थन मूल्‍य पर उपार्जन में रिकार्ड वृद्धि कर किसानों को लाभ पहुंचाया गया है। विगत पांच वर्षों में दलहन की खरीद पर 56,798 करोड़ रुपए का व्‍यय किया गया जो यूपीए शासनकाल से 88 गुना ज्‍यादा है, इसी तरह तिलहन की खरीद पर 25,503 करोड़ रुपए किसानों के खाते में डाले गए जो यूपीए शासनकाल से 18.23 गुना ज्‍यादा है। ' एक राष्‍ट्र, एक एमएसपी, एक डीबीटी' की अवधारणा ने किसानों के सशक्तिकरण की दिशा में अहम भूमिका का निर्वहन किया है।

किसानों को आर्थिक रूप से सशक्‍त करने की दिशा में प्रधानमंत्री किसान सम्‍मान निधि भी एक सराहनीय एवं उल्‍लेखनीय प्रयत्‍न है। प्रतिवर्ष किसानो को तीन समान किश्‍तों में कुल छह हजार रूपए की सम्‍मान निधि देने का उद्देश्‍य यह है कि वे समय पर खाद, बीज, सिंचाई जैसी आवश्‍यकताओं को पूर्ण करने के साथ ही परिवार की जरूरतें भी पूरी कर पाएं। 2019 से प्रारंभ हुए इस अभियान के तहत अब तक 11.36 करोड़ किसान परिवारों को 1,58,527 करोड़ रुपए प्रदान किए जा चुके हैं।

भारत में किसान अमूमन मानसून पर निर्भर रहता है। बेहतर मानसून एक ओर जहां किसानों के अन्‍न भंडार भर देता है , तो कई बार अतिवृष्टि या सूखे के चलते कम उत्‍पादन का संकट भी खड़ा हो जाता है। खेती में इस अनिश्‍चितता के जोखिम को दूर करने के लिए किसानों को एक सुरक्षा कवच के दायरे में लाना अत्‍यधिक आवश्‍यक रहा है। तत्‍कालीन फसल बीमा योजनाओं की विसंग‍तियों को दूर करते हुए ' वन नेशन-वन स्‍कीम' की अवधारणा को मूर्त रूप देते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 13 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के रूप में एक ऐसा अभेद छत्र किसानों को दिया है, जिसने खेती के कई जोखिमों को दूर कर दिया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों ने अब तक 21 हजार 484 करोड़ रुपए का प्रीमियम भरा है, जबकि उन्‍हें दावों के रूप में 99.04 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।

किसान की एक बड़ी समस्‍या कृषि में लगने वाली लागत एवं समय पर धनराशि की व्‍यवस्‍था न हो पाना रही है। ऐसे में किसान बाजार से कर्ज लेकर सूदखोरी के जाल में फंसता रहा है। विगत 7 वर्ष में सरकार ने इस समस्‍या को समाप्‍त करने कार्य किया है। भारत सरकार किसानों को फसल ऋण पर 5 प्रतिशत की ब्‍याज सहायता देती है, किसानों को सिर्फ 4 प्रतिशत ब्‍याज ही देना पड़ता है। वर्ष 2007 से 2014 के मध्‍य कुल कृषि ऋण प्रवाह 32.57 लाख करोड़ रुपए था, जो 2014 से 2021 के दौरान 150 प्रतिशत की वृद्धि के बाद 81. 57 लाख करोड़ रुपए हो गया। वर्ष 2020-21 तक कुल 6.60 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड प्रदान किए जा चुके हैं।

भारत में किसानों की जोत छोटी है। यहां लगभग 86 फीसदी किसान ऐसे हैं जो 2 हेक्टेयर या उससे कम जमीन पर खेती करके अपनी आजीविका चलाते हैं। छोटे किसान संसाधनों की कमी चलते न तो उन्‍नत खेती कर पाते हैं और न ही वे मार्केट लिंक से जुड़कर बेहतर लाभ अर्जित कर पाते हैं। कृषक उत्‍पादक संगठन (एफपीओ) इस दिशा में एक अभिनव एवं ठोस प्रयास है। देश में 10 हजार नए एफपीओ का गठन करके उनके माध्‍यम से छोटे किसानों को जोड़कर उनके सशक्तिकरण का संकल्‍प प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने लिया है, जो किसानों के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य की नींव रख रहा है। सरकार इन एफपीओ के गठन एवं उन्‍हें आगे बढ़ाने के लिए 6865 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। देश भर से ऐसे नवाचार सामने आ रहे हैं? जहां छोटे किसानों ने एफपीओ के माध्‍यम से उन्‍नत कृषि की नई मिसाल कायम की है।

वेयर हाउस, कोल्ड स्‍टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट जैसे जरूरी इंफ्रोस्‍ट्रक्‍चर का किसानों की पहुंच से दूर होना किसानों की उपज मूल्‍य संवर्धन में आड़े आता है। प्रधानमंत्री ने आत्‍मनिर्भर भारत अभियान के तहत एक लाख करोड़ रुपए के कृषि अवसंरचना कोष की स्‍थापना कर इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। इस कोष के माध्‍यम से गांवों में फसलोपरांत प्रबंधन अवसंरचना एवं सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण पर 2 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 3 प्रतिशत ब्‍याज छूट और कृषि गांरटी सहायता प्रदान की जा रही है। कृषि अवसंरचना कोष की स्‍थापना के एक साल के भीतर ही देश में अब तक साढ़े 6 हजार परियोजनाओं के लिए 4500 करोड़ रुपए का ऋण स्‍वीकृत किया जा चुका है। गांवों में बनने वाले एग्री इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर से जहां 'फार्म टू फोर्क' की अवधारणा मूर्त रूप ले रही है, वहीं किसानों को उपज के संवर्धित दाम के साथ-साथ स्‍थानीय स्‍तर पर रोजगार के संसाधन विकसित होने के अवसर भी सृजित हो रहे हैं। यह अभिनव प्रयास भविष्‍य में भारतीय कृषि में एक नया अध्‍याय जोड़ेगा, ऐसा मेरा प्रबल विश्‍वास है।

भारत की कृषि विविधता और किस्‍मों की प्रचुरता भी हमारी एक बड़ी शक्ति है। समदृष्टि रखकर हमने राष्‍ट्र के हर कोने में कृषि संसाधनों को सशक्‍त करने का कार्य किया है। जम्‍मू-कश्‍मीर में सैफरन पार्क की स्‍थापना ने घाटी के किसानों की आय को दोगुना करने का काम किया है । तो पॉम आयल मिशन के माध्‍यम से 11,040 करोड़ रुपए के परिव्‍यय के साथ पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों एवं अंडमान क्षेत्र में किसानों को लाभ पहुंचाने के साथ ही खाद्य तेलों के मामले में आत्‍मनिर्भरता लाने का कदम उठाया गया है। मोटे अनाज की खेती को प्राथमिकता प्रदान करके जनजातीय क्षेत्रो में किसानों की आय का संवर्धन किया जा रहा है। मध्‍यप्रदेश के ग्‍वालियर-चंबल एवं दक्षिण भारतीय राज्‍यों में मधुमक्‍खी पालन के जरिए किसानों की आय संवर्धन का कार्य किया जा रहा है।

अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों का प्रबल मत है कि भारत में कृषि क्षेत्र में सिर्फ 1 प्रतिशत की दर से की गई वृद्धि, गैर कृषि क्षेत्रों के मुकाबले 3 गुना ज्यादा लाभदायक साबित होती है। यह वह समय है जब भारतीय कृषि नव परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। दुनिया में हर नौंवा कृषि तकनीकी आधारित र्स्‍टाटअप भारतीय है। विगत एक दशक में कृषि एवं इससे जुड़े तकनीकी एवं एग्री बिजनेस की ओर देश के युवाओं का तेजी से रूझान बढ़ा है। खेती से एक बार फिर नौजवान जुड़ रहे हैं, क्‍योंकि अब इसमें जोखिम कम और लाभ ज्‍यादा नजर आ रहा है। सात दशकों से जिन कृषि सुधारों की सिर्फ बातें की जाती रहीं थीं, प्रधानमंत्री श्नरेन्‍द्र मोदी की दृढ़ संकल्‍पशक्ति ने उन्‍हें जमीन पर उतारा है। किसान की आय बढ़े, वो बिचौलियों से मुक्ति पाए और भारतीय खेती को वैश्विक स्‍तर पर स्‍थापित हो पाए यही संकल्‍प लेकर हम आगे बढ़े हैं। कृषि और किसान दोनों आत्‍मनिर्भर बनें यही राष्‍ट्र का संकल्‍प है।

( लेखक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्री हैं।)

Divyanshu Rao

Divyanshu Rao

Next Story