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विश्वविद्यालयों में खेलों के जरिये राष्ट्र निर्माण

यह वातावरण निर्माण करने में हमें न केवल विश्वविद्यालय स्तर पर विश्वविद्यालयों को प्रयास करना पड़ेगा बल्कि पूरे देश के स्तर पर, गांव से लेकर शहर तक एक ऐसा वातावरण निर्माण करना होगा जिससे युवाओं में खेल को ले करके जो स्पष्टता होनी चाहिए, उस स्पष्टता के साथ-साथ वे इसे अपने कैरियर के रूप में चयन कर सकें। 

राम केवी
Published on: 13 May 2020 8:12 AM GMT
विश्वविद्यालयों में खेलों के जरिये राष्ट्र निर्माण
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प्रोफेसर गिरीश चंद्र तिपाठी

किसी राष्ट्र का निर्माण अचानक नहीं होता है। उस राष्ट्र का निर्माण सामर्थ्यवान, संस्कारवान, चरित्रवान, देशभक्त लोग करते हैं, और ऐसे लोगों के निर्माण की व्यवस्था की प्रक्रिया का नाम शिक्षा है। विश्वविद्यालय तथा शिक्षा के केन्द्र, वहाँ पर मौजूद शिक्षक, विद्यार्थी और प्रशासक सब मिलकर एक ऐसी व्यवस्था और ऐसे वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसके आधार पर वह शिक्षा न केवल लोगों के मस्तिष्क का परिष्कार करती है, बल्कि उनकी बुद्धि और आत्मा का भी परिष्कार करती है।

राष्ट्र निर्माण के तत्व

इसलिए किसी भी राष्ट्र का निर्माण करने में शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक योगदान की आवश्यकता होती है। इसलिए विश्वविद्यालयों का काम वहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का निर्माण करना होता है और उनके व्यक्तित्व का निर्माण समूचा तब होगा जब उनका शारीरिक विकास हो, जब उनका मानसिक विकास हो और जब उनका बौद्धिक विकास हो और इस आधार पर वे जब तैयार होते हैं तो इस तरह के लोग तैयार होते हैं जिनकी आवश्यकता एक राष्ट्र को होती है। क्योंकि राष्ट्र को ऐसी लीडरशिप चाहिए, जिसमें टालरेन्स हो, जिसमें हार्मोनी हो, जिसमें फेयरनेस हो और इसके साथ-साथ अनुशासन हो।

विश्वविद्यालय राष्ट्र के प्रतिनिधि

इन गुणों के आधार पर वे लोग न केवल अपना, अपने परिवार का निर्माण करते हैं, बल्कि अपने देश के निर्माण के साथ-साथ इस समूची सृष्टि में अपना योगदान सुनिश्चित करते हैं। इन विश्वविद्यालयों में एक समूह के रूप में देश के अलग-अलग हिस्सों से आये हुए विद्यार्थी, शिक्षक और प्रशासक एक साथ मिल जाते हैं और इसलिए ये विश्वविद्यालय एक तरह से राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक ओलम्पिक में अलग-अलग राष्ट्र शामिल होते हैं, वैसे ही विश्वविद्यालय में देश के अलग-अलग हिस्सों से आये लोग मिलकर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालयों को यह एक डेवीडेन्ट है कि वह लोगों में व्यक्तित्व के निर्माण के आधार पर एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर सकते हैं, एक ऐसी परंपरा का निर्माण कर सकते हैं, जिसके आधार पर जैसा कि हमने कहा यह शिक्षा प्रोडक्टिव हो, प्रैक्टिकल हो, परफार्मिंग हो, ऐसी शिक्षा ही लोगों का निर्माण करती है, समाज का निर्माण करती है और राष्ट्र का निर्माण करती है।

इंट्रीग्रल कैरीकुलम

इसलिए इस व्यक्तित्व के निर्माण का कार्य जिस कैरीकुलम के आधार पर होना है वह एक इन्टीग्रल कैरीकुलम होना चाहिए और जिसमें स्पोर्ट्स को भी एकेडिमिक कैरीकुलम का इन्टीग्रेटेड पार्ट अर्थात् समेकित हिस्सा बनाना चाहिए। और ऐसा कैरीकुलम ही विद्यार्थियों के समग्र विकास का कारण बनेगा।

विश्वविद्यालय की सबसे पहली पहल यह है कि वह अपने यहाँ एक ऐसे वातावरण का निर्माण करें, जिसमें लोगों में व्यक्तित्व के विकास की चाहत हो, वातावरण हो, व्यवस्था हो अर्थात् वहाँ पर एक ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, जिसमें शैक्षणिक वातावरण के साथ-साथ स्पोर्ट्स का भी एक एफिसिएन्ट वातावरण हो, एक अनुकूल वातावरण हो, फेवरेबल वातावरण हो, जिसमें एक अनुकूल बजट हो।

खेल सुविधाओं का विकास हो

अनुकूल बजट के साथ-साथ इन्डोर और आउटडोर गेम्स के लिए उपयुक्त स्थान सुनिश्चित हो। इनके साथ-साथ इक्यूपमेन्ट्स एवं इन्स्ट्रूमेन्ट्स भी हों और इन इक्यूपमेन्ट्स एवं इन्स्ट्रूमेन्ट्स को हैण्डल करने वाली पूरी एक मैकेनिज्म होनी चाहिए जो ट्रान्सपैरेन्ट्स हो।

इनके साथ-साथ योग्य कोच भी होने चाहिए जोकि एकेडमिक कैरीकुलम को हैण्डल करने में समर्थ हों। क्योंकि जिस तरह से योग्य और कुशल शिक्षक आवश्यक हैं, उसी तरह से विद्यार्थियों में स्पोर्ट्स के प्रति जिज्ञासा पैदा करने के लिए और क्षमता निर्माण करने के लिए योग्य प्रशिक्षक आवश्यक हैं। ऐसे प्रशिक्षकों का विश्वविद्यालय में होना स्पोर्ट्स के उन्नयन के पूर्व की आवश्यकता है।

विश्वविद्यालयों के लिए आवश्यक

जब विश्वविद्यालय के पास अच्छे योग्य प्रशिक्षक कोच होंगे, इनके साथ-साथ उपयुक्त बजट होगा, इक्यूपमेन्ट्स, टूल्स होंगे, इन्स्ट्रूमेन्ट्स होंगे, ग्राउण्ड्स होंगे, इन्डोर और आउटडोर गेम्स की व्यवस्था होगी। उस स्थिति में विश्वविद्यालय अलग-अलग स्पोर्ट्स के प्रति रूचि रखने वाले, क्षमता रखने वाले लोगों के अनुरूप वातावरण बना सकते हैं, जिसमें सम्पूर्ण खेलों के प्रति एक होलीस्टिक एप्रोच हो।

इसके अलावा विश्वविद्यालय अपने शैक्षिक मंडल में उन खिलाड़ियों को भी असोसिएट प्रोफेसर, विजिटिंग प्रोफेसर या ऑनरेरी प्रोफेसर के रूप में स्थान दे सकते हैं, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर हिंदुस्तान को खेल के क्षेत्र में प्रशस्त किया हो।

असन्तुलित विकास

इसमें कोई शक नहीं कि देश में आजादी के बाद खेलों को बढ़ाने के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास किये गये हैं और वर्तमान सरकार भी कर रही है, परन्तु इनका असन्तुलित विकास हुआ है। कुछ खेल तो आगे बढ़े हैं, उनका राष्ट्रीय स्तर पर, विश्वविद्यालय स्तर पर, स्थानीय स्तर पर और समूचे नेशनल लेवल पर भारत ने अच्छा प्रतिनिधित्व किया है। परन्तु वहाँ यह बात भी सत्य है कि कुछ खेलों के विकास के इस वातावरण ने कुछ खेलों को पीछे छोड़ दिया है।

ये वे खेल है जिनमें अलग-अलग विद्यार्थी, युवा, अपनी रूचि के अनुसार, अपनी क्षमता के अनुसार उनमें दक्षता प्राप्त करता है और न केवल उन खेलों को आगे बढ़ाता है बल्कि उन खेलों का विस्तार करता है। इसके अलावा अपने व्यक्तित्व के निर्माण में भी खेल का चयन करने में समर्थ होता है।

इन्सेंटिव डेवलप करें

इससे हमें एक ऐसा वातावरण निर्माण करना चाहिए। जिसमें सभी खेलों का सन्तुलित विकास हो सके। यहाँ यह बात भी समझने योग्य है कि विश्वविद्यालयों को इन खेलों में रूचि रखने वाले, क्षमता रखने वाले, युवाओं को इन्सेटिव भी डेवलप करने चाहिए।

खेलों में वह क्षमता है जो न केवल लोगों के पुरूषार्थ का निर्माण करती है, न केवल उनमें सामर्थ्य पैदा करती है, न केवल उनको शक्ति और ऊर्जा देती है बल्कि उस शक्ति और ऊर्जा के आधार पर उनमें पर्याप्त अर्थोपार्जन की क्षमता भी निर्माण करती है। प्रसिद्धि का आधार भी बनती है।

आज हम किसी युवक के सामने अगर कुछ प्रश्न रखें तो हो सकता है कि वह देश के बड़े कुछ विद्वानों के नाम न बता पाये, कुछ वैज्ञानिकों का नाम न ले पाये, कुछ बड़े चिकित्सकों का नाम न ले पाये, कुछ बड़े ब्यूरोक्रेट्स के बारे में वह न जानता हो, परन्तु इसमें कोई शक नहीं है कि वह पूछने पर तुरन्त एक, दो-चार बड़े खिलाड़ियों का नाम तुरन्त ले ले अर्थात् खेल में क्षमता निर्माण करने वाले युवाओं को अपने व्यक्तित्व के निर्माण के साथ-साथ, अपनी क्षमता के निर्माण के साथ-साथ, अपनी ऊर्जा के निर्माण के साथ-साथ प्रसिद्धि और अर्थोपार्जन का स्रोत खड़ा करने का भी आधार देती है।

विश्वविद्यालयों से खेलों का विकास

इसे हम इन विश्वविद्यालयों को आधार बना सकते हैं, क्योंकि विश्वविद्यालयों में ही इतनी बड़ी संख्या में युवा एक साथ इकठ्ठा होता है, अलग-अलग स्थानों से आता है, अलग-अलग ऊर्जा और अलग-अलग रूचि के अनुसार वह अलग-अलग खेलों में अपनी प्रतिस्पर्धा के माहौल का निर्माण कर सकता है।

ऐसी स्थिति में अगर जैसा कि मैने कहा कि हम योग्य प्रशिक्षकों की एक टीम खड़ी करे, एक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करे, एक ऐसी टीम निर्माण करे जो इन स्पोर्ट्स की मैकेनिज्म का, इन्फ्रास्ट्रक्चर का, परफार्मेन्स का, टाईमली इवैलुएशन भी करती रहे। एण्ड ऑफ द बेसिस ऑफ टाईमली इवैलुएशन वी कैन मेक नेसेसरी अरेन्जमेन्ट्स, इम्प्रुवमेन्ट इन ओवरआल सिस्टम ऑफ स्पोर्ट्स।

रुचि पैदा करने की जरूरत

विश्वविद्यालयों को अलग-अलग रूचि के अनुसार, अलग-अलग खेलों के लिए छात्र और छात्राओं में न केवल रूचि पैदा करनी चाहिए, बल्कि उनकी रूचि के अनुसार आन्तरिक यथासंगत माहौल का निर्माण करना चाहिए। कुछ विश्वविद्यालयों में इस तरह की व्यवस्था का निर्माण हुआ भी है और वहां के विद्यार्थियों ने न केवल देश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित करने में सफलता पायी है।

यहाँ पर यह प्रासंगिक है कि जितना पोटेन्शियल हमारे राष्ट्र में है, जिस तरह की परफार्मेन्स हम नेशनल लेवल पर, इन्टरनेशनल लेवर, यूनीवर्सिटी लेवल पर, इन्टर यूनीवर्सिटी लेवर पर कर सकते थे, उस दिशा में बहुत अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।

विश्वविद्यालय कर सकते हैं व्यक्तित्व निर्माण

विकसित देशों के अलावा कुछ विकासशील देशों में, कुछ बड़े देशों के अलावा कुछ छोटे देशों ने ओलम्पिक में जिस तरह की परफार्मेन्स दी उससे हमें कुछ सीख लेनी चाहिए कि अगर हम इन खेलों को विश्वविद्यालय में एक अनुकूल वातावरण प्रदान करे, कैरीकुलम का हिस्सा बनायें, इनके लिए योग्य प्रशिक्षण का वातावरण तैयार करें, विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिले तो न केवल हम युवाओं में एक व्यक्तित्व के निर्माण का उपयुक्त वातावरण तैयार करेंगे बल्कि उनकी प्रसिद्धि का, उनके नाम का, उनके यश का विस्तार करने के साथ-साथ देश को भी आगे बढ़ाने में हम कामयाब हो सकेंगे। व्यक्तित्व के निर्माण में बौद्धिक विकास एक प्रश्न है। परन्तु कई बार यह देखा जाता है कि हम अपने बौद्धिक विकास का सकारात्मक इस्तेमाल नहीं कर पाते।

खेल सिखाते हैं हार्मोनी, टालरेंस

आज भी खेल में जो व्यक्ति पराजित होता है वह जीतने वाले को अपना शत्रु नहीं मानता है, बल्कि उसको लगता है कि कहीं न कहीं हमसे थोड़ी कमी हुई है, अगली बार मैं इसको ठीक करूंगा, और अधिक मजबूती के साथ इस प्रतिस्पर्धा में शामिल होऊंगा। अर्थात् उसके अन्दर टॉलरेन्स है, उसके अन्दर हार्मोनी है, उसके अन्दर फेयरनेस है, उसके अन्दर ट्रान्सपेरेन्सी है, एक स्वतः अनुशासित उसका अपना व्यक्तित्व है और बहुत बार हम यह देखते है कि राष्ट्र की अनेक समस्याओं के समाधान में इन सारे गुणों की आवश्यकता होती है। इन सब चीजों को प्रभावी ढंग से समझने में सबसे बड़ी भूमिका अनुशासन की होती है।

इन सभी गुणों का विकास समाज में और राष्ट्र में इन स्पोर्ट्स के माध्यम से कर सकते हैं। इससे विश्वविद्यालयों में ऐसी नीति बना सकते हैं जिसके आधार पर युवाओं के व्यक्तित्व निर्माण में हम स्पोर्ट्स को खेलों से जुड़े आयामों का एकेडमिक कैरीकुलम का, एक इन्डीपेन्डेन्ट पार्ट बना सकें। इस दिशा में भी विश्वविद्यालय अपना काम कर सकते हैं।

ऐसी हो सकती है विश्वविद्यालयों की भूमिका

विश्वविद्यालय अपनी भूमिका इस प्रकार कर सकते हैं कि प्रारम्भ से ही विद्यार्थी में स्कूल लेवल पर, माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक और विश्वविद्यालय तक आते-आते उसमें इस प्रकार की क्षमता निर्माण हो जाये वह अपने व्यक्तित्व के विकास में अपनी क्षमता, रूचि और योग्यता के अनुसार गेम का चयन करके उस दिशा में प्रयास करता हुआ अपना व अपने विश्वविद्यालय का और अपने राष्ट्र का नाम ऊँचा करने में सहयोगी हो सके।

आज हम यह देखते हैं कि विश्वविद्यालय स्तर पर प्रतिस्पर्धाएं होती हैं परन्तु उन प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या उस अनुपात में कम है जिस अनुपात में एकेडमिक कैरीकुलम में भाग लेने वाले छात्रों की संख्या है। छात्रों की शिक्षा में भी अभिरूचि बढ़ानी चाहिए।

मीडिया का सहयोग भी मिलेगा

विश्वविद्यालय लोकतंत्र के चौथे पिलर मीडिया को भी अनुकूल वातावरण बनाने में पर्याप्त सामग्री दे सकते हैं, इससे स्पोर्ट्स के महत्व को समाज के सामने, सरकार के सामने, युवाओं के सामने, अभिभावकों के सामने रखने में मीडिया सहायक सिद्ध हो सकेगा। आज एक बड़ी कठिनाई विद्यार्थी के सामने कैरियर को लेकर है।

वह अपने कैरियर के प्रति कान्सेस होने के कारण एकेडमिक एक्टीविटीज में जिस तरह से पार्टीसिपेट करता है, उस तरह वह स्पोर्ट्स एक्टीविटीज में पार्टीसिपेट नहीं करता। अगर हम इस तरह के वातावरण का निर्माण कर सके तो यह भी कैरियर का एक सुन्दर प्लेटफार्म है, एक अवसर है, जिसे हम अपने कैरियर को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।

गांवों में भी बनेगा माहौल

इस तरह से विश्वविद्यालय न केवल अपने इर्द-गिर्द, बल्कि गांवों में भी एक ऐसे वातावरण का निर्माण कर सकते हैं, इससे गांवों से आने वाले विद्यार्थी को जो स्पोर्ट्स में रूचि रखता है, उसे विश्वविद्यालय में उतना ही महत्व मिलेगा, जितना किसी अन्य क्षेत्र में योग्यता रखने वाले विद्यार्थी को मिलता है और इस तरह का वातावरण निर्माण करने में विश्वविद्यालयों की अपनी एक अलग तरह की भूमिका बन सकती है।

आज अपने देश में खेल का वातावरण है। लोगों में रूचि निर्माण करने की आवश्यकता है जिससे सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में हम एक वातावरण तैयार कर सकें। जिसमें न केवल उनके मस्तिष्क का परिमार्जन हो, बल्कि उनके शरीर का भी परिमार्जन हो, उनकी बुद्धि का भी परिमार्जन हो, और कुल मिला करके उनका ऐसा व्यक्तित्व निर्माण हो सके, जिसके आधार पर वह देश को एक मार्ग दिखा सकें, दिशा दे सकें और उसे अच्छे स्तर पर ला करके खड़ा कर सके।

यह वातावरण निर्माण करने में हमें न केवल विश्वविद्यालय स्तर पर विश्वविद्यालयों को प्रयास करना पड़ेगा बल्कि पूरे देश के स्तर पर, गांव से लेकर शहर तक एक ऐसा वातावरण निर्माण करना होगा जिससे युवाओं में खेल को ले करके जो स्पष्टता होनी चाहिए, उस स्पष्टता के साथ-साथ वे इसे अपने कैरियर के रूप में चयन कर सकें।

लेखक उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष हैं

राम केवी

राम केवी

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