TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: बदलाव की बुनियाद

शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

Sanjay Dwivedi
Written By Sanjay DwivediPublished By Dharmendra Singh
Published on: 4 Aug 2021 12:06 AM IST
national education policy 2020
X

बच्चों को पढ़ाती शिक्षिका (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

ऐसा कहा जाता है कि, "जो आपने सीखा है, उसे भूल जाने के बाद जो रह जाता है, वो शिक्षा है।" शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे आप दुनिया बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। जब देश में बड़ा बदलाव करना हो, तो सबसे पहले शिक्षा नीति को बदला जाता है। एक वर्ष पहले 29 जुलाई, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी थी। शिक्षा नीति किसी भी देश के भविष्य को तैयार करने का सबसे अहम पड़ाव होती है। यह किस राजनीतिक और आर्थिक माहौल में तैयार की गई है, इस पर विचार करना भी काफी अहम होता है। किसी भी शिक्षा नीति को चाहिए कि उसमें न केवल देश के संवैधानिक मूल्य शामिल रहें, बल्कि वह एक जागरुक और आधुनिक पीढ़ी तैयार करने के साथ ही सामाजिक कुरीतियों को भी दूर करे। शिक्षा ऐसा विषय है, जिसमें रातों-रात परिवर्तन होना मुश्किल है। लेकिन, अगर लागू करने वाले प्राधिकारियों में इच्छाशक्ति हो, तो बदलाव बहुत कठिन भी नहीं होता। बीते बारह महीनों में नई शिक्षा नीति के हिसाब से कई परिवर्तनों की आधारशिला रखी गई है। बदलाव की यह बयार आने वाले दिनों में उस सोच को रूपायित करेगी, जिसकी कल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति में की गई है। पिछले एक वर्ष में शिक्षकों और नीतिकारों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को धरातल पर उतारने में बहुत मेहनत की है। कोरोना के इस काल में भी लाखों नागरिकों से, शिक्षकों, राज्यों, ऑटोनॉमस बॉडीज से सुझाव लेकर, टास्क फोर्स बनाकर नई शिक्षा नीति को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है। बीते एक वर्ष में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आधार बनाकर अनेक बड़े फैसले लिए गए हैं।

आज से कुछ दिन बाद 15 अगस्त को हम आजादी के 75वें साल में प्रवेश करने जा रहे हैं। एक तरह से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कार्यान्वयन, आजादी के अमृत महोत्सव का प्रमुख हिस्सा है। 29 जुलाई, 2021 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की पहली वर्षगांठ के अवसर पर भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिन योजनाओं की शुरुआत की है, वे नए भारत के निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाएंगी। भारत के जिस सुनहरे भविष्य के संकल्प के साथ हम आजादी का अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं, उस भविष्य की ओर हमें आज की नई पीढ़ी ही ले जाएगी। भविष्य में हम कितना आगे जाएंगे, कितनी ऊंचाई प्राप्त करेंगे, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपने युवाओं को वर्तमान में कैसी शिक्षा दे रहे हैं, कैसी दिशा दे रहे हैं। भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।
कोरोना काल में हमारी शिक्षा व्यवस्था के सामने बहुत बड़ी चुनौती थी। इस दौरान विद्यार्थियों की पढ़ाई का, जीवन का ढंग बदल गया। लेकिन विद्यार्थियों ने तेजी से इस बदलाव को स्वीकार किया। ऑनलाइन एजुकेशन अब एक सहज चलन बनती जा रही है। शिक्षा मंत्रालय ने भी इसके लिए अनेक प्रयास किए हैं। मंत्रालय ने 'दीक्षा' प्लेटफॉर्म शुरु किया, 'स्वयं' पोर्टल पर पाठ्यक्रम शुरू किए और देशभर से विद्यार्थी इनका हिस्सा बन गए। दीक्षा पोर्टल पर पिछले एक वर्ष में 2300 करोड़ से ज्यादा हिट्स होना यह बताता है कि सरकार का यह कितना उपयोगी प्रयास रहा है। आज भी इसमें हर दिन करीब 5 करोड़ हिट्स हो रहे हैं। 21वीं सदी का युवा अपनी व्यवस्थाएं, अपनी दुनिया खुद अपने हिसाब से बनाना चाहता है। आज छोटे-छोटे गांवों से, कस्बों से निकलने वाले युवा कैसे-कैसे कमाल कर रहे हैं। इन्हीं दूर-दराज इलाकों और सामान्य परिवारों से आने वाले युवा आज टोक्यो ओलंपिक में देश का झंडा बुलंद कर रहे हैं, भारत को नई पहचान दे रहे हैं। ऐसे ही करोड़ों युवा आज अलग अलग क्षेत्रों में असाधारण काम कर रहे हैं, असाधारण लक्ष्यों की नींव रख रहे हैं। कोई कला और संस्कृति के क्षेत्र में पुरातन और आधुनिकता के संगम से नई विधाओं को जन्म दे रहा है, कोई रोबोटिक्स के क्षेत्र में कभी साई-फाई मानी जाने वाली कल्पनाओं को हकीकत में बदल रहा है, तो कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में मानवीय क्षमताओं को नई ऊंचाई दे रहा है। हर क्षेत्र में भारत के युवा अपना परचम लहराने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। यही युवा भारत के स्टार्टअप ईको सिस्टम में क्रांतिकारी बदलाव कर रहे हैं, इंडस्ट्री में भारत के नेतृत्व को तैयार कर रहे हैं और डिजिटल इंडिया को नई गति दे रहे हैं। इस युवा पीढ़ी को जब इनके सपनों के अनुरुप वातावरण मिलेगा, तो इनकी शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ जाएगी। इसीलिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति युवाओं को ये विश्वास दिलाती है कि देश अब पूरी तरह से उनके हौसलों के साथ है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि शिक्षा में हुए डिजिटल बदलाव पूरे देश में एक साथ हों और गांव-शहर सब समान रूप से डिजिटल लर्निंग से जुड़ें। 'नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर' और 'नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम' इस दिशा में पूरे देश में डिजिटल और टेक्नोलॉजिकल फ्रेमवर्क उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाएंगे। युवा मन जिस दिशा में भी सोचना चाहे, खुले आकाश में जैसे उड़ना चाहे, देश की नई शिक्षा व्यवस्था उसे वैसे ही अवसर उपलब्ध कराएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक नए तरह का खुलापन लिए हुए है। इसे हर तरह के दबाव से मुक्त रखा गया है। इसमें जो खुलापन पॉलिसी के स्तर पर है, वही खुलापन विद्यार्थियों को मिल रहे विकल्पों में भी है। अब विद्यार्थी कितना पढ़ें, कितने समय तक पढ़ें, ये सिर्फ बोर्ड्स और विश्वविद्यालय नहीं तय करेंगे। इस फैसले में विद्यार्थियों की भी सहभागिता होगी। मल्टीपल एंट्री और एग्जिट की जो व्यवस्था शुरू हुई है, इसने विद्यार्थियों को एक ही क्लास और एक ही कोर्स में जकड़े रहने की मजबूरी से मुक्त कर दिया है। आधुनिक टेक्नॉलोजी पर आधारित 'अकैडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट' सिस्टम से इस दिशा में विद्यार्थियों के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन आने वाला है। अब हर युवा अपनी रुचि से, अपनी सुविधा से कभी भी एक स्ट्रीम का चयन कर सकता है और उसे छोड़ भी सकता है। अब कोई कोर्स चुनते समय ये डर भी नहीं रहेगा कि अगर हमारा निर्णय गलत हो गया तो क्या होगा? इसी तरह Structured Assessment for Analyzing Learning levels यानी 'सफल' के जरिए विद्यार्थियों के आंकलन की भी वैज्ञानिक व्यवस्था शुरू हुई है। ये व्यवस्था आने वाले समय में विद्यार्थियों को परीक्षा के डर से भी मुक्ति दिलाएगी। ये डर जब युवा मन से निकलेगा, तो नए-नए स्किल लेने का साहस और नए नए नवाचारों का दौर शुरू होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत जो नए कार्यक्रम शुरू हुए हैं, उनमें भारत का भाग्य बदलने का सामर्थ्य है। वर्तमान में बन रही संभावनाओं को साकार करने के लिए हमारे युवाओं को दुनिया से एक कदम आगे होना पड़ेगा। एक कदम आगे का सोचना होगा। स्वास्थ्य, रक्षा, आधारभूत संरचना या तकनीक, भारत को हर दिशा में समर्थ और आत्मनिर्भर होना होगा। 'आत्मनिर्भर भारत' का ये रास्ता स्किल डेवलपमेंट और तकनीक से होकर जाता है, जिस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेष ध्यान दिया गया है। पिछले एक साल में 1200 से ज्यादा उच्च शिक्षा संस्थानों में स्किल डेवलपमेंट से जुड़े सैकड़ों नए कोर्सेस को मंजूरी दी गई है।
बचपन की देखभाल और शिक्षा, ये दो ऐसे तत्व हैं, जो हर बच्चे के लिए पूरे जीवन भर सीखने और अच्छे भविष्य की नींव स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह एक अत्यंत रुचिकर और प्रेरक पहलू है कि इस नई शिक्षा नीति ने, कम उम्र में ही वैज्ञानिक कौशल विकसित करने के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया है। वैदिक गणित, दर्शन और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े विषयों को महत्त्व देने की कवायद भी नई शिक्षा नीति में की गई है। नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों को अपनी परंपरा, संस्कृति और ज्ञान के आधार पर 'ग्लोबल सिटीजन' बनाते हुये उन्हें भारतीयता की जड़ों से जोड़े रखने पर आधारित है। यह नीति सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारपरक ज्ञान पर बल देती है, जिससे बच्चों के कंधे से बैग के बोझ को हल्का करते हुये उनको भावी जीवन के लिये तैयार किया जा सके। विश्व के प्रसिद्ध शिक्षाविद् जैक्स डेलर्स की अध्यक्षता में एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग की रिपोर्ट को वर्ष 1996 में यूनेस्को द्वारा प्रकाशित किया गया। इस रिपोर्ट में 21वीं सदी मे शिक्षा के चार आधार स्तंभ बताए गए थे। ये आधार स्तंभ हैं, ज्ञान के लिए सीखना, करने के लिए सीखना, होने के लिए सीखना और साथ रहने के लिए सीखना। भारत की नई शिक्षा नीति इन सभी बातों पर जोर देती है।
शिक्षा के विषय में महात्मा गांधी कहा करते थे, "राष्ट्रीय शिक्षा को सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय होने के लिए राष्ट्रीय परिस्थितियों को दर्शाना चाहिए"। गांधी जी के इसी दूरदर्शी विचार को पूरा करने के लिए स्थानीय भाषाओं में शिक्षा का विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में रखा गया है। अब हायर एजुकेशन में 'मीडियम ऑफ इन्सट्रक्शन' के लिए स्थानीय भाषा भी एक विकल्प होगी। 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज, 5 भारतीय भाषाएं-हिंदी, तमिल, तेलुगू, मराठी और बांग्ला में इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं। इंजीनिरिंग के कोर्स का 11 भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिए एक टूल भी बनाया जा चुका है। इसका सबसे बड़ा लाभ देश के गरीब वर्ग को, गांव-कस्बों में रहने वाले मध्यम वर्ग के विद्यार्थियों को, दलित-पिछड़े और आदिवासी भाई-बहनों को होगा। इन्हीं परिवारों से आने वाले बच्चों को सबसे ज्यादा 'लैंग्वेज डिवाइड' यानी 'भाषा विभाजन' का सामना करना पड़ता था। सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं परिवार के होनहार बच्चों को उठाना पड़ता था। मातृभाषा में पढ़ाई से गरीब बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा, उनके सामर्थ्य और प्रतिभा के साथ न्याय होगा। ब्रिटिश काउंसिल ने वर्ष 2017 की अपनी एक रिपोर्ट में ये माना था कि अच्छी अंग्रेजी सीखने के लिए पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। वर्ष 1991 की जनगणना के भाषा खंड की भूमिका में भी कहा गया है, 'भाषा आत्मा का वह रक्त है, जिसमें विचार प्रवाहित होते और पनपते हैं।' शिक्षा में मूल्यबोध, व्यापक दृष्टिकोण और सृजनात्मक कल्पना का साधन भी भाषा को ही माना गया है। प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा को प्रोत्साहित करने का काम शुरू हो चुका है। 'विद्या प्रवेश' कार्यक्रम की इसमें बहुत बड़ी भूमिका है। प्ले स्कूल का जो कॉन्सेप्ट अभी तक बड़े शहरों तक ही सीमित है, 'विद्या प्रवेश' के जरिए वो अब दूर-दराज के स्कूलों तक जाएगा। ये कार्यक्रम आने वाले समय में वैश्विक कार्यक्रम के तौर पर लागू होगा और राज्य भी अपनी-अपनी जरुरत के हिसाब से इसे लागू करेंगे।
दिव्यांगों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले नोल हेल्म का कहना था, "Being disabled does not mean Un-abled, just Different Abled." यानी दिव्यांग होने का मतलब यह नहीं है कि आप किसी कार्य को कर नहीं सकते, बल्कि आप उस कार्य को एक अलग और विशेष प्रकार से कर सकते हैं। और भारत की नई शिक्षा नीति दिव्यांगों के लिए इसी सोच पर जोर देती है। नई शिक्षा नीति में दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम के तहत सभी दिव्यांग बच्चों के लिए अवरोध मुक्त शिक्षा मुहैया कराने की पहल की गई है। विशिष्ट दिव्यांगता वाले बच्चों को कैसे शिक्षित किया जाए, यह नई शिक्षा नीति के तहत सभी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का एक अभिन्न अंग है। इसके अलावा दिव्यांग बच्चों के लिए सहायक उपकरण, उपयुक्त तकनीक आधारित उपकरण और भाषा शिक्षण संबंधी व्यवस्था करने की बात भी शिक्षा नीति में कही गई है। आज देश में 3 लाख से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिनको शिक्षा के लिए सांकेतिक भाषा की आवश्यकता पड़ती है। इसे समझते हुए भारतीय साइन लैंग्वेज को पहली बार एक भाषा विषय यानि एक सब्जेक्ट का दर्जा प्रदान किया गया है। अब छात्र इसे एक भाषा के तौर पर भी पढ़ पाएंगे। इससे भारतीय साइन लैंग्वेज को बहुत बढ़ावा मिलेगा और दिव्यांग साथियों को बहुत मदद मिलेगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नियमन से लेकर कार्यान्वयन तक शिक्षक सक्रिय रूप से इस अभियान का हिस्सा रहे हैं। 'निष्ठा' 2.0 प्रोग्राम भी इस दिशा में एक अहम भूमिका निभाएगा। इस प्रोग्राम के जरिए देश के शिक्षकों को आधुनिक जरुरतों के हिसाब से ट्रेनिंग मिलेगी और वो अपने सुझाव भी विभाग को दे पाएंगे। शिक्षकों के जीवन में ये स्वर्णिम अवसर आया है कि वे देश के भविष्य का निर्माण करेंगे, भविष्य की रूपरेखा अपने हाथों से खींचेगे। आने वाले समय में जैसे-जैसे नई 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' के अलग-अलग तत्व हकीकत में बदलेंगे, हमारा देश एक नए युग का साक्षात्कार करेगा। जैसे-जैसे हम अपनी युवा पीढ़ी को एक आधुनिक और राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था से जोड़ते जाएंगे, देश आजादी के अमृत संकल्पों को हासिल करता जाएगा। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है। यह सीखने और अनुसंधान की सदी है। इस संदर्भ में भारत की नई शिक्षा नीति अपनी शिक्षा प्रणाली को छात्रों के लिए सबसे आधुनिक और बेहतर बनाने का काम कर रही है। इस शिक्षा नीति के माध्यम से हम सीखने की उस प्रक्रिया की तरफ बढ़ेंगे, जो जीवन में मददगार हो और सिर्फ रटने की जगह तर्कपूर्ण तरीके से सोचना सिखाए। नई शिक्षा नीति का लक्ष्य भारत के स्कूलों और उच्च शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सुधार करना है, कि दुनिया में भारत ज्ञान का 'सुपर पावर' कहलाए। मुझे यह पूरी उम्मीद है कि अपनी सामाजिक संपदा, देशज ज्ञान और लोक भावनात्मकता को आधुनिकता से जोड़कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत में 'पूर्ण नागरिक' के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी। भारत को अगर आत्मनिर्भर बनना है, तो ऐसे ही शिक्षित मनुष्य उसकी आधारशिला बनेंगे।

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)




\
Dharmendra Singh

Dharmendra Singh

Next Story