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बड़ा झूठ बेनकाब हो गया है!
जब-तक सच घर से बाहर निकलता है, तब-तक झूठ आधी दुनिया घूम लेता है।
''जब-तक सच घर से बाहर निकलता है, तब-तक झूठ आधी दुनिया घूम लेता है'' लोगों में चिंता और भय उत्पन्न करने के लिए किस तरह से झूठ, अर्धसत्य एवं भ्रामक सूचनाओं का इस्तेमाल किया जाता है, उसे यह प्रसिद्ध उद्धरण अक्षरश: बयां करता है। हमारे प्रमुख विपक्षी दल अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को बनाए रखने की अपनी हताशा में अक्सर इन गलत तौर-तरीकों का सहारा लेते रहते हैं।
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का कहना है, 'बड़ा झूठ बेनकाब हो गया है।' वाकई, ऐसा हो गया है। लेकिन स्वयं उनका ही झूठ बेनकाब हुआ है। यही नहीं, इससे उनकी अपनी पार्टी का यह पाखंड भी उजागर हो गया है– ऐसा आखिरकार कैसे हो सकता है कि जब कांग्रेस की सरकार थी तो जो देश के लिए अच्छा था, वही देश के लिए एकदम से बुरा कैसे हो गया है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के नेतृत्व में सरकार है। उनका संपूर्ण कथन पूरी तरह से झूठे दावों और अर्धसत्य से भरा पड़ा है। यह बड़े अफसोस की बात है कि एक वरिष्ठ सांसद और एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को अपना राजनीतिक हित साधने के लिए ऐसा करना पड़ता है। हालांकि, इसमें वे पूरी तरह से विफल रहे हैं।
मोदी सरकार ने महज एक हस्ताक्षर करके भारत की सार्वजनिक परिसंपत्तियों को शून्य या बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है, चिदंबरम के इस दावे से यही प्रतीत होता है कि वह या तो यह समझ ही नहीं पाए हैं कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के तहत आखिरकार क्या किया जाना है या वह सब कुछ समझ तो रहे हैं, लेकिन पूरी सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर पेश करना चाहते हैं। वह जानबूझकर रणनीतिक विनिवेश को परिसंपत्ति मुद्रीकरण के साथ आपस में मिलाकर भ्रमित कर रहे हैं। कटु सच्चाई यही है कि एनएमपी की कोई भी परिसंपत्ति बेची नहीं जाएगी। इन परिसंपत्तियों को उन शर्तों पर एक खुली और पारदर्शी बोली प्रक्रिया के जरिए निजी भागीदारों को पट्टे या लीज पर दिया जाएगा, जिनसे जनता के हितों की रक्षा करने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ हासिल होगा। इसकी पूरी प्रक्रिया देश के कानून और अदालतों की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी। निजी भागीदार संबंधित परिसंपत्तियों का संचालन एवं रखरखाव करेगा और पट्टे या लीज की अवधि पूरी हो जाने पर उन्हें सरकार को वापस कर देगा।
पूर्व वित्त मंत्री उन अभिनव तरीकों के उपयोग के बारे में स्वयं को अनभिज्ञ दिखा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल सरकार अपनी परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण में करेगी। इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (इनविट) और रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (रीट) का उपयोग किया जाएगा, जो म्यूचुअल फंड की तरह विभिन्न निवेश का संयोजन (पूलिंग) करेंगे जिसे अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) और रियल एस्टेट में लगाया जाएगा। इससे भारत के लोग और प्रमुख वित्तीय निवेशक हमारी राष्ट्रीय परिसंपत्तियों में निवेश कर सकेंगे। कुछ इनविट और रीट पहले से ही शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं।
पूर्व वित्त मंत्री ने मखौल उड़ाने के अंदाज में परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण से हर साल प्राप्त होने वाले जिस 1.5 लाख करोड़ रुपये को 'किराया' कहा है उसकी बदौलत देश में नई अवसंरचना के निर्माण में नए सिरे से कहीं ज्यादा सरकारी निवेश करने का मार्ग प्रशस्त होगा। परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण का असली उद्देश्य यही है। दुर्भाग्यवश, 2जी, कोलगेट, सीडब्ल्यूजी और आदर्श जैसे घोटालों के कारण संप्रग सरकार एक अलग तरह के मुद्रीकरण पर फोकस करती रही थी।
इस देश के ईमानदार करदाताओं पर और अधिक बोझ डाले बिना ही भारत की अवसंरचना को विश्वस्तरीय बनाने के लिए सरकार को वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है। पिछले सात वर्षों में देश भर में बनाए गए राजमार्गों की कुल लंबाई विगत 70 वर्षों में बनाए गए राजमार्गों की समग्र लंबाई से डेढ़ गुना अधिक है। इसी तरह पिछले सात वर्षों में शहरी क्षेत्र में किया गया कुल निवेश 2004-2014 के बीच के 10 वर्षों में किए गए कुल निवेश से सात गुना अधिक है।
विडंबना यह है कि श्री चिदंबरम ने इसे गलत साबित करने के क्रम में संप्रग सरकार द्वारा उठाए गए उन छोटे-छोटे प्रगतिशील कदमों को भी नकार दिया है जो सार्वजनिक परिसंपत्ति के मुद्रीकरण के लिए उठाए गए थे। दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों का निजीकरण संप्रग सरकार के कार्यकाल में हुआ। उस दौरान चिदंबरम वित्त मंत्री थे। इतना ही नहीं वह इस मामले में निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार मंत्री समूह के अध्यक्ष भी थे। श्री चिदंबरम लिखते हैं कि रेलवे एक रणनीतिक क्षेत्र है और इसे निजी भागीदारी के लिए खुला नहीं होना चाहिए।
जब 2008 में संप्रग सरकार ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास के लिए रिक्वेस्ट फॉर क्वालिफिकेशन यानी पात्रता आवेदन आमंत्रित किया था तो उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया था? संप्रग के बाद भी कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार ने सार्वजनिक परिसंपत्ति के मुद्रीकरण के लिए नीतिगत निर्णय लिए हैं। फरवरी, 2020 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का मुद्रीकरण 8,262 करोड़ रुपये में किया गया। उस दौरान श्री चिदंबरम और उनकी पार्टी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ऐसा करने से रोक सकते थे।
इसके बाद पूर्व वित्त मंत्री ने कुछ क्षेत्रों में एकाधिकार पैदा होने की आशंका जताते हुए एक हौवा खड़ा किया है। उन्होंने गैर-प्रतिस्पर्धी प्रथाओं के लिए अमेरिका द्वारा कुछ टेक कंपनियों पर नकेल कसने, दक्षिण कोरिया द्वारा चाएबोल्स यानी बड़े कारोबारी घरानों पर सख्ती और चीन द्वारा अपने कुछ इंटरनेट दिग्गजों के परिशोधन का हवाला दिया है। भारत में भी ऐसे संस्थान हैं जो गैर-प्रतिस्पर्धी प्रथाओं से संबंधित मुद्दों को निपटाते हैं। यहां क्षेत्र विशेष के लिए नियामक हैं। यहां भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग है। उपभोक्ता न्यायालय हैं। ये सभी भारत सरकार से बिल्कुल स्वतंत्र संस्थान हैं और इनके पास किसी भी गैर-प्रतिस्पर्धी प्रथा को रोकने के लिए पर्याप्त अधिकार हैं। सरकार बाजार में प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए भी प्रतिबद्ध है और वह प्रक्रियाओं को इस तरह से तैयार करेगी जिससे कि बाजार की ताकतों के एकजुट होने की संभावना कम से कम रहे। रेलवे ट्रैक जैसे कुछ क्षेत्रों में स्वाभाविक एकाधिकार है और इसलिए वहां किसी भी परिसंपत्ति का मुद्रीकरण नहीं होगा।
पूर्व वित्त मंत्री ने रोजगार जैसे मामलों में भी हौवा खड़ा किया है। निजीकरण के मामलों का वाजपेयी सरकार द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि परिचालन का प्रबंधन कहीं अधिक कुशलता से किए जाने पर वास्तव में रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं। सरकार जब प्राप्त राजस्व का नए सिरे से निवेश करेगी तो मुद्रीकरण वाली परिसंपत्तियों में नौकरियां बढ़ने के अलावा कई नए रोजगार भी सृजित होंगे। इसका एक सकारात्मक मल्टीप्लायर इफेक्ट होगा यानी प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा। वित्त मंत्री रह चुके किसी व्यक्ति को इसकी सराहना करनी चाहिए।
अंत में, श्री चिदंबरम ने सरकार पर एनएमपी के बारे में गोपनीयता का आरोप लगाया है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है। परिसंपत्ति मुद्रीकरण की घोषणा कई महीने पहले फरवरी, 2021 में केंद्रीय बजट में की गई थी। उसके लिए वेबिनार और राष्ट्रीय स्तर के विचार-विमर्श के कई दौर आयोजित किए गए। पिछले सप्ताह जो घोषणा की गई वह उसकी एक रूपरेखा थी। इससे पहले सरकार ने 2016 में एक रणनीतिक विनिवेश नीति की घोषणा की थी।
हमारी सरकार दूरदर्शी एवं जन-समर्थक सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। हम दृढ़ विश्वास के साथ काम कर रहे हैं। छल और गोपनीयता कांग्रेस शैली के दांव-पेंच रहे हैं। यह सरकार पारदर्शिता और राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं करती है।
(लेखक केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)