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पुरानी और गंभीर बीमारी से ग्रसित है भारतीय अर्थव्यवस्था!
भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से बीमार है। इसकी बीमारी के सारे लक्षण हाल ही में जारी जीडीपी के आंकड़ों से देखा और समझा जा सकता है।
Indian Economy: भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से बीमार है। इसकी बीमारी के सारे लक्षण हाल ही में जारी जीडीपी के आंकड़ों से देखा और समझा जा सकता है। सांख्यिकी एवं योजना क्रियान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग ने स्थिर और वर्तमान मूल्य पर वर्ष 2020-21 के आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों की गणना औद्योगिक उत्पाद सूचकांक, अनाज उत्पादन, मत्स्य उत्पादन, केंद्र एवं राज्य सरकार के खाते, जीएसटी से जुड़े आंकड़े, बैंकों में जमा और कर्ज के आंकड़े, रेलवे का माल भाड़ा, विमानन क्षेत्र का माल भाड़ा, कमर्शियल वाहनों की बिक्री आदि जैसे पैमानों पर किया गया है। हमेशा चर्चा में रहने वाली जीडीपी एक आर्थिक गणना है, जो किसी अर्थव्यवस्था की वृद्धि या गिरावट को मापने का एक बुनियादी मानक होता है। सामान्य भाषा में किसी अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवा के अंतिम मूल्य योग से जब सभी तरह की सब्सिडी घटा दी जाती है तो हमें जीडीपी का आंकड़ा प्राप्त होता है। वर्तमान समय के जीडीपी की परिभाषा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री साइमन कुज्नेट ने 1934 में दिया था। भारत में संबंधित विभाग यह आंकड़े दो आधार पर प्रस्तुत करते हैं। पहला स्थिर मूल्य पर और दूसरा वर्तमान मूल्य पर।
स्थिर मूल्यों के आधार पर वास्तविक जीडीपी 2020-21 में -7.3 फ़ीसदी की दर से घटी है। यहां यह भी जानना जरूरी है कि स्थिर मूल्यों का आधार वर्ष 2011-12 होता है। स्थिर मूल्य पर वास्तविक जीडीपी वर्ष 2020-21 में 135.13 लाख करोड़ रुपए है, जो पिछले वर्ष 2019-20 में 145.69 लाख करोड रुपए थी। वर्ष 2018-19 में यह 140 लाख करोड़ रुपए थी। वर्तमान मूल्य के आधार पर जीडीपी वर्ष 2021-22 में -3 फीसदी की दर से घटी है। 2020 में वर्तमान मूल्य के आधार पर कुल जीडीपी 197.46 लाख करोड़ रुपए है जो कि वर्ष 2019 में 203.51 लाख करोड़ रुपए थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट कोविड-19 की आर्थिक तबाही से पहले की दस्तक दे चुकी थी। वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही से लेकर वर्तमान तक जीडीपी लगातार गिरावट देख रही है। वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8 फ़ीसदी, दूसरी तिमाही में 7 फ़ीसदी, तीसरी तिमाही में 6.6 फ़ीसदी और चौथी तिमाही में 5.8 फीसदी थी। वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में 5.4 फ़ीसदी, दूसरी तिमाही में 4.6 फ़ीसदी, तीसरी तिमाही में 3.3 फ़ीसदी और चौथी तिमाही में 3 फीसदी जीडीपी वृद्धि दर हो गई थी। यहां ध्यान देने वाली बात है कि पिछले 2 वर्षों से लगातार जीडीपी वृद्धि दर घट रही थी। कोविड-19 के पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले 2 वर्षों में 8 फ़ीसदी से 3 फ़ीसदी की दर पर पहुंच चुकी थी। फिर मार्च 2020 में कोविड-19 से रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में ले लिया। 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी अप्रत्याशित रूप से -24.4 फीसदी की दर से गिरी, दूसरी तिमाही में -7.4 फ़ीसदी, तीसरी तिमाही में 0.5 फ़ीसदी और चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 1.6 फ़ीसदी थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था में खपत की घटती दर
जीडीपी के जारी इन आंकड़ों में भारतीय अर्थव्यवस्था में खपत की घटती दर भी बड़ी चिंता के रूप में दिखाई पड़ती है। भारतीय अर्थव्यवस्था एक खपत आधारित अर्थव्यवस्था मानी जाती है। कुल जीडीपी का 50 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा खपत का होता है। लेकिन वर्तमान समय में देश की आबादी का कुल खपत तेजी से घट रहा है। वर्ष 2019-20 में कुल खपत 83,21,701 करोड़ रुपये की थी, जो वर्तमान में वर्ष 2021-22 में घटकर 75,60,985 करोड रुपए हो चुकी है। अर्थात पिछले वर्ष कुल जीडीपी में खपत की दर 57.1 फीसदी थी, जो घटकर इस वर्ष 56 फ़ीसदी हो चुकी है। साथ ही साथ निवेश में भी कमी आई है। पिछले वर्ष कुल जीडीपी में निवेश का हिस्सा 32.5 फीसदी था जो कि वर्तमान आंकड़ों में घटकर 31.2 फीसदी हो चुका है। आयात और निर्यात के आंकड़ों पर भी प्रभाव पड़ा है। वर्ष 2018-19 की तुलना में वर्ष 2020-21 में निर्यात 1 फ़ीसदी और आयात 2 फीसदी की दर से घटा है।
विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के आंकड़ों पर ध्यान दे तो वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के बदहाली की तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है। कृषि एवं संबंधित गतिविधि की वृद्धि दर 2019-20 की तुलना में वर्ष 2020-21 में तक़रीबन 1 फ़ीसदी की दर से घटी है। वर्ष 2019-20 में जहां वृद्धि दर 4.3% थी, वहीं आज 2020-21 में घटकर 3.6 फ़ीसदी हो चुकी है। इसके साथ ही अन्य आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित हुई है। खनन एवं उत्खनन की वृद्धि दर वर्ष 2019-20 में -2.5 थी, तो वही वर्ष 2020-21 में -8.5 हो चुकी है। मैन्युफैक्चरिंग वर्ष 2019 में -2.4 थी, तो वहीं वर्ष 2020 21 में - 7.2 हो चुकी है। सबसे बड़ा नुकसान निर्माण क्षेत्र को हुआ है। निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर वर्ष 2019-20 में 1 फ़ीसदी थी, जो वर्ष 2020-21 में अप्रत्याशित रूप से घटकर -8.6 फीसदी हो चुकी है।
प्रति व्यक्ति आय दर बढ़ने के बजाय एक लाख से कम हो गई
प्रति व्यक्ति आय दर के आंकड़ों पर गौर करें तो हम आते हैं कि एक लंबे समय के बाद भारत की प्रति व्यक्ति आय दर बढ़ने के बजाय घटकर एक लाख से कम हो गई है। वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय ₹1,08,645 थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर ₹99,694 हो गयी है। जहां पर 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय दर की वृद्धि 3 फ़ीसदी की दर से थी, वह आज -8.2 फ़ीसदी की गिरावट में बदल चुकी है। यह आंकड़ा बताता है कि पिछले 1 वर्ष में कोविड-19 की तबाही ने देश के एक बहुत बड़े तबके को गरीबी रेखा के नीचे विस्थापित कर दिया है। हाल ही में इसके संकेत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट नहीं दिया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1 वर्ष में कुल 23 करोड़ की आबादी गरीबी रेखा के नीचे चली गई है। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार पिछले 1 वर्ष में देश की 97 फीसदी आबादी गरीब हो गई है।
इन आंकड़ों के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी में जा चुकी है। पिछले 3 वर्षों से लगातार जीडीपी घट रही है और बेरोजगारी बढ़ रही है। वर्तमान समय में पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य तेलों में आई बेतहासा वृद्धि ने महंगाई की भी स्पष्ट संकेत देने शुरू कर दिए हैं। पिछले 1 वर्ष में खाद्य महंगाई 9.1 फ़ीसदी की दर से बढ़ी है। जनता के पास का बजट भी नहीं है कि वह अर्थव्यवस्था में खर्च कर सके क्योंकि कोविड-19 मारी ने एक बड़ी आबादी का स्वास्थ्य खर्च बढ़ा दिया है। कोविड-19 से पहले लोग औसतन 5 फ़ीसदी स्वास्थ्य पर खर्च करते थे जो कि वर्तमान में बढ़कर 11 फ़ीसदी हो चुका है। जीडीपी में गिरावट, बेरोजगारी और महंगाई का यह गठजोड़ भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद भयावह हो सकता है। यहां निष्कर्ष निकालते समय यह भी ध्यान रखना होगा कि जीस जीडीपी के आंकड़ों के आधार पर यह बात कही जा रही है वह तो एक अर्ध सत्य है, क्योंकि भारत एक असंगठित अर्थव्यवस्था है जिसका 94 फ़ीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है। जीडीपी के वर्तमान आंकड़ों में यह असंगठित हिस्सा शामिल नहीं है। एसबीआई की एक रिपोर्ट जिक्र करती है कि पिछले 1 वर्ष के दौरान असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी और वेतन कटौती की वजह से 16000 करोड रुपए की कमी आई है। वर्तमान जीडीपी की गणना एमसीए-21 तकनीकी पैमाने से की जाती है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के कुछ चुनिंदा कंपनियों के आंकड़े लिए जाते हैं। इसलिए यह आंकड़े बहुत स्पष्ट आर्थिक तस्वीर नहीं दिखाते हैं।
वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था को इस गहरी मंदी से निकालने के लिए सरकार एक बड़ा रोल अदा कर सकती है। महज निजी क्षेत्र के भरोसे अर्थव्यवस्था में रिकवरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है। कोविड-19 की समस्या ने एक बड़े पैमाने पर लोगों को बेरोजगार किया है और इसकी वजह से बाजार में मांग की अप्रत्याशित कमी आई है। यह सरकार ही है जो खर्च बढ़ाकर बाजार में दोबारा मांग पैदा कर सकती है। सरकार को जल्द से जल्द एक बड़े आर्थिक पैकेज के साथ आना चाहिए। एक ऐसा आर्थिक पैकेज जो अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता को सीधा प्रभावित करता हो और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में सक्षम हो। यह वक्त दीर्घकालिक नहीं बल्कि सूक्ष्मकालिक आर्थिक नीतियों को बनाने का है। ऐसी नीतियां जो छोटे समयावधि में बड़ी मांग पैदा करने में मदद करें।
( संस्थापक एवं अध्यक्ष)
(फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल)