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Navratri 2024: देवी दुर्गा के नौ रूपों की आध्यात्मिक व्याख्या
Navratri 2024: प्रथम शैलपुत्री देवी का क्रियात्मक रूप है और दूसरा तत्त्वात्मक रूप भू है।
Navratri 2024: देवी दुर्गा के नौ रूपों की आध्यात्मिक व्याख्या।
देवी दुर्गा का प्रथम रूप "शैलपुत्री" का है।
इसमें देवी कन्या स्वरूप में हैं।
किसी स्त्री का ये पहला स्वरूप होता है।
इसके साथ ही देवी के दो स्वरूप अन्य हैं एक क्रियात्मक और दूसरा तत्त्वात्मक।
प्रथम शैलपुत्री देवी का क्रियात्मक रूप है और दूसरा तत्त्वात्मक रूप भू है।
शैलपुत्री पहाड़ की कन्या हैं।
पहाड़ भू तत्त्वात्मक है।
माँ ब्रह्मचारिणी
द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। कन्या रजःस्राव के पश्चात और विवाह के पूर्व ब्रह्मचारिणी होती है। क्रियात्मक रूप में देवी ब्रह्मचारिणी हैं तो तत्त्वात्मक रूप में जल तत्त्व वाली हैं।*
ब्रह्मचारी का अर्थ है जो वीर्य को स्खलित न होने दे।
वीर्य जल का प्रतिनिधित्व करता है।
कहते हैं जिसका स्वाधिष्ठान चक्र शुद्ध हो जाता है वो वीर्य स्तम्भन करने में शक्य हो जाता है।
माँ चन्द्रघण्टा
तृतीय स्वरूप "चन्द्रघण्टा" का है।
कन्या अब युवती हो जाती है और उसका विवाह हो जाता है।
ये स्वरूप क्रिया रूप में पत्नी का तो तत्त्वात्मक रूप अग्नि का होता है।
विवाह में अग्नि के ही फेरे लगते हैं।
दाम्पत्य जीवन में प्रेमाग्नि से ही सम्बन्ध मधुर होते हैं।
चन्द्र में सूर्य से लिया हुआ प्रकाश है।
घण्टा यहाँ सूर्य का नाम है।
सूर्य से जो प्रकाश चन्द्र लेता है उसमें गर्मी नहीं होती।
यहाँ चन्द्र देवी का प्रतीक है तो सूर्य शिव के प्रतीक हैं।
माँ कूष्माण्डा
चौथा स्वरूप "कूष्माण्डा" है,
यानि वायु तत्त्व।
समस्त संसार देवी के गर्भ में है।
कूष्माण्ड यानि गति युक्त अण्ड।
संसार गतिशील अण्डा है।
वायु गति करता है।
स्कन्द माता
पाँचवा स्वरूप "स्कन्द माता" का है।
देवी अब माँ स्वरूप में हैं।
तत्त्वात्मक रूप से ये आकाश स्वरूप है।
नवचंडी में एक ओर चार कन्याएँ हैं और दूसरी ओर चार कन्याएँ हैं, बीच में स्कंदमाता हैं।
उनमें मातृभाव है और ये सम्पूर्ण तत्त्वों का मूलबिन्दु है।
सहस्रार भेदन के पश्चात कुण्डलिनी शक्ति यहीं आकाश तत्त्व यानि हृदय में निवास करती हैं।
एक ओर भू, जल, अग्नि और वायु तत्त्व हैं तो दूसरी ओर मन, बुद्धि, चित और अहंकार।
बीच में आकाश तत्त्व जिसमें जीवात्मा निवास करती है।
सभी तत्त्वों का क्रिया बिन्दु ये आकाश तत्त्व ही है।
पंचमी के दिन गुरु शिष्य को उपदेश भी देते हैं।
माँ कात्यायनी
छठाँ स्वरूप "कात्यायनी*का है।
ये मन तत्त्व है।
कात्यायनी का अर्थ है विश्व संचालिका।
युवती माता बनने के पश्चात अपने सन्तान की रक्षा हेतु कुछ भी कर सकती है।
किसी भी अस्त्र शस्त्र के संचालन से पीछे नहीं हटती।
माँ इस स्वरूप में ही दुष्टों का संहार करती हैं।
विश्व को मन ही संचालित करता है।
जीवन और मृत्यु का कारण मन है।
माँ कालरात्रि
सप्तम "कालरात्रि"।
रात्रि यानि शून्य।
बुद्धि तत्त्व का प्रतीक स्वरूप है।
कालरात्रि देह में समय संचालित करने वाली बुद्धि है।
बुद्धि से व्यक्ति दूसरे का भी संहार करता है और अपना भी।
माँ महागौरी
अष्टम स्वरूप "महागौरी ।
चित तत्त्व है।
विश्व को ज्ञान देने वाला कोश गौर कहा जाता है।
माँ सिद्धिदात्री
नवम स्वरूप "सिद्धिदात्री" का है।
ये तत्त्व रूप से अहंकार का भाव है।
अहं से अपने अस्तित्त्व का भान होता है।
जब ये अहम् शिव में विलीन हो जाता है तो व्यक्ति शिवस्वरूप हो जाता है।
उसका जन्म सिद्ध हो जाता है।
जगदम्बा इसी सिद्धि को प्रदान करती हैं।
(लेखक संस्कृत साहित्य के विद्वान हैं)