NCERT की स्कूली किताबों से हटे शर्मसार करने वाले तथ्य

मोदी सरकार ने अपने आठवें साल में पाठ्यक्रम में कई छोटे बड़े दलाई किये हैं।मसलन, NCERT की बारहवीं की पॉलिटिकल साइंस की किताब से Gujarat Riots के चैप्टर को बाहर कर दिया गया है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 28 Jun 2022 4:27 AM GMT (Updated on: 28 Jun 2022 5:01 AM GMT)
Change in NCERT Syllabus
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पॉलिटिकल साइंस की किताब से गुजरात दंगे के चैप्टर हटाए (फोटो: सोशल मीडिया )

NCERT Syllabus Change: किसी भी देश का इतिहास घटनाओं का कालक्रम होता है। होना चाहिए । उसमें केवल सत्य व तथ्य होने चाहिए । समीक्षा या संपादकीय नहीं होना चाहिए । पर भारत के इतिहास के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। किसी ने भी नहीं किया। इतिहास को कालक्रम, तथ्य व सत्य की जगह अपने अपने नज़रिये से न केवल देखा गया बल्कि देखने को विवश भी किया गया। इसके लिए तथ्य व सत्य को न केवल स्वहितपोषी ढंग से परोसा गया बल्कि तमाम मिथक भी गढ़ कर जोड़ दिये गये। ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक़ इतिहास -"महत्वपूर्ण या सार्वजनिक घटनाओं के समय के क्रम में एक निरंतर व्यवस्थित रिकॉर्ड बनाने वाली एक लिखित कथा, जो किसी विशेष देश, लोगों, व्यक्ति आदि से जुड़े होते हैं।"

यह देश का दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दलों द्वारा ये शरारतें लगातार की जाती रही हैं। इसके चलते सबके अपने अपने नायक और अपने अपने सत्य व तथ्य बन गये। जो समय समय पर सियासी उपलब्धि के आधार पर बदलते रहते हैं। यह बदलाव ही हमारी पीढ़ियों की परेशानी की वजह है। यही पाठ्यक्रम में किसी भी बदलाव को खेमेबाज़ी की नैतिकता में बांध देता है। जब भाजपा आती है तो कहा जाने लगता है कि शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है। जब कांग्रेस सत्ता में होती है तो कहा जाने लगता है कि शिक्षा का वामपंथीकरण हो रहा है। इस विरोधाभास को ऐसे समझना आसान हो जाता है कि अकबर व अशोक दोनों महान बताये जाते हैं? मोदी सरकार ने भी अपने आठवें साल में पाठ्यक्रम में कई छोटे बड़े बदलाव किये हैं। मसलन, एनसीआरटी की बारहवीं की पॉलिटिकल साइंस की किताब से गुजरात दंगे के चैप्टर को बाहर कर दिया गया है। हो हल्ला इस पर मचाया जा रहा है। पर सवाल यह उठाया जाना चाहिए कि किसी ऐसी घटना को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए था क्या? जिसने भी इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनवाया वह समाज को कितना और किस तरह कितनी पीढ़ियों तक बाँट कर रखना चाह रहा था। इस तरह के फ़ैसले लेने वालों को दंगाईयों से भी ज़्यादा बड़ा अपराधी क्यों नहीं माना जाना चाहिए । नरेंद्र मोदी सरकार के आठवें साल में यह हट रहा है, यह भी कम हैरत की बात नहीं है? इसे तो सत्तासीन होते ही हटा दिया जाना चाहिए था ।

छह से बारहवीं तक की किताबों से 1110 मुद्दे हटाये गये हैं। इसमें दिल्ली सल्तनत-तुग़लक़, ख़िलजी, लोधी, मुग़ल से संबधित कई पेज शामिल हैं। दिल्ली सल्तनत के दक्षिण में विस्तार और मुग़ल साम्राज्य वाले पाठ से मुग़लों की उपलब्धियों का हिस्सा हटाया गया है। इसी तरह हम बच्चों को नाहक यह पढ़ा रहे थे कि मस्जिद किसे कहते हैं, जामा मस्जिद बनाने का मतलब क्या होता है। इसे भी बाहर कर दिया गया है। बारहवीं के इतिहास की किताब से "किंग्स एंड क्रानिकल्स: द मुग़ल कोर्ट" नामक पाठ भी ग़ायब कर दिया गया है। इसमें मुग़लों के युद्ध , उनकी शिकार गाथा , राज दरबार और भवन निर्माण के बारे में पढ़ाया जाता था। आक्रांता महमूद गजनी के नाम के आगे से सुल्तान हटा दिया गया है।अरबी विद्वान अल बरूनी की पुस्तक किताब-उल- हिंद से संबंधित एक पैरा डिलीट कर दिया गया है। एनसीईआरटी की एक किताब से यह वाक्य हटाया गया है -" दलित लोग खेतिहर मज़दूरी,मैला ढोने और चमड़े का काम करने के अपने पारंपरिक पेशे को अपनाने के लिए अभिशप्त थे।"

सीबीएसई से तय प्रारूप के अनुसार, दसवीं कक्षा के राजनीति विज्ञान की किताब से अध्याय चार में जाति, धर्म और लैंगिक मामले में उदाहरण के तौर पर दी गई फैज अहमद फैज की शायरी हटा दी गई है। ग्यारहवीं कक्षा की विश्व इतिहास के कुछ विषय नामक किताब से 'सेंट्रल इस्लामिक लैंड' अध्याय को हटाया गया है। इस अध्याय में विद्यार्थियों को इस्लाम का उदय और विकास, सातवीं से बारहवीं सदी के बीच इस्लाम के विस्तार के बारे में जानकारी दी गई थी।

राजनीति की भूमिका समझाने के लिए तीन कार्टून दिए गए

कक्षा 10वीं की 'लोकतांत्रिक राजनीति' नामक पुस्तक में चौथा अध्याय 'जाति, धर्म और लैंगिक मसले' है। इसके तहत एक उप-शीर्षक 'धर्म, संप्रदाय और राजनीति' है जिसमें सांप्रदायिकता के बारे में बताया गया है। बच्चों को सांप्रदायिकता में राजनीति की भूमिका समझाने के लिए तीन कार्टून दिए गए हैं। पहले दो कार्टून में फैज की एक-एक शायरी भी लिखी है। वहीं, तीसरा कार्टून अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया है। इनमें फैज की शायरी वाले पहले दोनों कार्टून हटा दिए गए हैं।

वहीं कक्षा 11वीं की इतिहास की पुस्तक से मध्य इस्लामी भूमि का चैप्टर हटा दिया गया है। इस अध्याय में अफ्रीकी-एशियाई क्षेत्रों में इस्लामी साम्राज्य के उदय और वहां की अर्थव्यवस्था और समाज पर इसके प्रभाव के बारे में बताया गया था। इसके साथ ही, कक्षा 10वीं की खाद्य सुरक्षा नामक अध्याय से कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव के हिस्से को हटा दिया गया है। इसी तरह, 12वीं की राजनीति शास्त्र पुस्तक से शीत युद्ध काल और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का चैप्टर हटा दिया गया है।

साहित्यिक वेबसाइट रेख्ता के अनुसार, पहले पोस्टर की शायरी जिस उर्दू की कविता से ली गई थी, उसकी रचना फैज ने उस समय की थी जब उन्हें लाहौर की एक जेल से जंजीरों में एक दंत चिकित्सक के कार्यालय ले जाया जा रहा था। दूसरे पोस्टर की शायरी उन्होंने ढाका के दौरे के बाद 1974 में लिखी थी। फ़ैज़ के छंदों के साथ दो पोस्टरों में से एक पोस्टर एनजीओ अनहद द्वारा जारी किया गया था, जिसके सह-संस्थापकों में सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी और हर्ष मंदर शामिल हैं। वहीं दूसरे पोस्टर में फैज़ की अन्य कविताओं के अंशों के साथ Voluntary Health Association of India द्वारा जारी किया गया था, जो खुद को 27 राज्य संघों के एक संघ के रूप में वर्णित करता है। वहीं, तीसरे में अजीत निनन का कार्टून है जिसमें धार्मिक प्रतीकों से सजी हुई एक खाली कुर्सी दर्शायी गई है।

12वीं के हिंदी विषय से 'नमक' पाठ हटाया

इसी क्रम में सीबीएसई ने 12वीं के हिंदी विषय से 'नमक' पाठ को हटाया है। इस अध्याय में भारत-पाक विभाजन (Indo-Pak Partition) के बाद सीमा के दोनों तरफ के विस्थापितों के पुनर्वास के कारण लोगों के दिलों को टटोलती मार्मिक कहानी पेश की गई है। इसके अलावा, 'एन फ्रैंक की डायरी के पन्ने' को भी सिलेबस से बाहर कर दिया गया है। इसी तरह में, 10वीं से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena) का 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक', 'जॉर्ज पंचम की नाक', 'ऋतुराज का कन्यादान' पाठ को भी सिलेबस से हटाया गया है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने पर एक अध्याय जोड़ा गया है।

पर किताबों से इमरजेंसी से जुड़े विवरण भी हटाये गये हैं। इससे यह तो समझने में किसी को देर नहीं लगनी चाहिए कि किताबी अंश हटाने जाने के पीछे मंशा क्या है? यह सिर्फ़ भगवाकरण करने की कोशिश मात्र नहीं है। यदि मोदी सरकार की मंशा ख़राब होती तो इमरजेंसी के अंश क्यों हटाती? जस का तस बरकरार रखती। पर उसने ऐसा नहीं किया । हटाये और जोड़े गये अंश बताते हैं कि वह विश्वास करती है कि सच्चा इतिहास हमें हमारे अतीत, देश और उस समय के प्रेरणा व प्रतीक पुरुषों को समझने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि देता है। इतिहास इसलिए नहीं पढ़ना चाहिए कि हम अपराध बोध में जीते रहें। बल्कि अतीत से सबक़ लें। हमारे इतिहास को बनाने व गढ़ने में जिन लोगों ने जो भी रोल किया , हम उसके प्रति उसी तरह की कृतज्ञता या कृतघ्नता के भाव से उसे समय पड़ने पर देखें। इतिहास को हमारी पीढ़ियों को अतीत व भविष्य की ग्रंथियों से मुक्त रखने के लिए रचा जाना चाहिए । हम शायद दुनिया के इकलौते देश होंगे जो आक्रमणकारियों की श्लाघा करते हैं। उसे अपने इतिहास का हिस्सा बनातें हैं। ये हमारे अतीत का हिस्सा तो हो सकते हैं पर इतिहास का नहीं। अब इतिहास देखने की नज़र व नज़रिया दोनों को बदल दिये जाने का समय है। लगता है यह मोदी सरकार को समझ में आ गया है। बाक़ी सबको भी समझ में आना चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया पर इतना झूठ परोसा जा रहा है कि हम अपने इतिहास को सत्य व तथ्य से अलग रखेंगे तो आने वाली पीढ़ियाँ हम सबको माफ़ नहीं करेंगी।

( लेखक पत्रकार हैं ।)

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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