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नेट न्यूट्रलिटी से इंटरनेट पर भी लोकतंत्र का अगुआ बना भारत 

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 7:07 AM GMT
नेट न्यूट्रलिटी से इंटरनेट पर भी लोकतंत्र का अगुआ बना भारत 
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राहुल लाल

‘ट्राई ने नेट न्यूट्रलिटी से संबंधित महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। इसके क्रियान्वयन से भारत अवश्य ही इंटरनेट क्षेत्र में भी लोकतांत्रिक समानता स्थापित कर सकेगा। ट्राई की सिफारिशें ऐसे समय में आई हैं,जब संपूर्ण दुनिया में नेट न्यूट्रलिटी पर बहस जारी है और अमेरिका में तो वहाँ के दूरसंचार नियामक एफसीसी ने तो नेट न्यूट्रलिटी के विरुद्ध प्रस्ताव ही रख दिया है। इस प्रकार 1776 में आजाद अमेरिका में जहां नेट न्यूट्रलिटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं,वहीं भारत में ट्राई के सिफारिशों ने इंटरनेट क्षेत्र में लोकतांत्रिक समानता हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाया है।’

संघीय संचार आयोग(एफसीसी) द्वारा अमेरिका में नेट निरपेक्षता के मौजूदा नियमन को समाप्त करने के प्रस्ताव के कुछ दिनों के अंदर ही भारतीय दूरसंचार नियामक ट्राई ने मुक्त इंटरनेट के बुनियादी सिद्धांतों को बरकरार रखने की सिफारिश की है। ट्राई ने इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है,जो मुना$फे के लिए इंटरनेट इस्तेमाल में रुकावट या स्पीड में कमी-तेजी कर वेबसाइटों तक आम उपभोक्ताओं की पहुँच सीमित करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।

अंग्रेजी उपन्यासकार जेम्स हिल्टन ने कहा है कि यदि नेट न्यूट्रलिटी खत्म हो गई तो इंटरनेट में कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा। यही कारण है कि भारत सरकार सदैव नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में रही है। ट्राई ने नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में सिफारिश पेश करते हुए कहा कि इंटरनेट सेवा प्रदाता वेब पहुँच उपलब्ध कराते समय ट्रैफिक में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते। वे न तो किसी ऐप, वेबसाइट और सेवाओं को ब्लॉक कर उन पर अंकुश लगा सकते हैं और न ही दूसरों को तीव्र सेवा उपलब्ध करा सकते हैं। ऐसा करने वालों पर सरकार से पूरी तरह प्रतिबंध लगाने को कहा गया है। ट्राई का कहना है कि इंटरनेट सभी के लिए खुला मंच है।इसके उपयोगकर्ताओं के बीच किसी तरह का भेदभाव स्वीकार्य नहीं है।

ट्राई की सिफारिशें ऐसे समय आई हैं जबकि अमेरिकी संघीय संचार आयोग के चेयरमैन अजित पई ने 2015 के उन नियमों को समाप्त करने का प्रस्ताव किया है जिसके तहत आईपीएस को सभी सामग्रियों के साथ समान व्यवहार करना होता है। एफसीसी नेट निरपेक्षता की अवधारणा के नियमों को रद्द करने के लिए 14 दिसंबर को अपना मत देंगे। इस तरह विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में इंटरनेट समानता खतरे की ओर है,जबकि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत अब इंटरनेट पर भी समानता के नए क्षितिज की ओर अग्रसर है।

नेट न्यूट्रिलिटी क्या है?

नेट न्यूट्रलिटी या नेट तटस्थता एक सिद्धांत है,जिसके अनुसार इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों और सरकारों को इंटरनेट के डाटा समान मानना चाहिए और उन्हें चाहिए की वे प्रयोगकर्ता, सामग्री,वेबसाइट, मंच या संचार की तरकीब के आधार पर कोई भेदभावपूर्ण रवैया न हो। सामान्य भाषा में कहे तो नेट न्यूट्रिलिटी वह सिद्वांत है,जिसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सॢवस प्रदान करने वाली कंपनियाँ इंटरनेट पर हर तरह के डेटा को एक जैसा द$र्जा देंगी।

‘नेटवर्क न्यूट्रल रहेगा’ यह अवधारणा काफी पुरानी है, परंतु नेट न्यूट्रलिटी शब्द का प्रयोग वर्ष 2000 के बाद चलन में अधिक आया। 2003 में कॉमकास्ट और एटीएंडटी नामक इंटरनेट कंपनियों पर मुकदमा दायर हुआ, क्योंकि इन्होंने बिट-टोरेंट और फेसटाइम सेवाओं को ब्लॉक कर इंटरनेट ट्रेफिक में बाधा डाली थी। किसी देश की सरकार अपनी नीतियों के अनुसार पूरे देश में इंटरनेट पर कुछ वेबसाइटों और सेवाओं को ब्लॉक कर सकती है, लेकिन कोई भी सेवा प्रदाता कंपनी यह नहीं कर सकती। यही नेट न्यूट्रलिटी का मूल तत्व है।

क्यों आवश्यक है नेट न्यूट्रलिटी

कई टेलीकॉम कंपनियाँ नेट न्यूट्रिलिटी खत्म करने के पक्ष में हैं। इससे यूजर्स सिर्फ उन्हीं वेबसाइट या एप का प्रयोग कर सकेंगे जो उनकी टेलीकॉम कंपनी उन्हें मुहैया कराएगी। बाकी वेबसाइटों और सेवाओं के लिए यूजर्स को अलग से राशि देनी होगी।अलग-अलग वेबसाइट के लिए स्पीड भी अलग-अलग मिलेगी। इससे इंटरनेट का प्लेटफार्म सभी के लिए समान उपलब्ध नहीं रहेगा।

भारत में नेट न्यूट्रलिटी पर बहस

गौरतलब है कि एयरटेल ने 2014 में इंटरनेट के जरिए फोन कॉल करने पर अलग से शुल्क वसूलने का फैसला किया था,जिसे बाद में ट्राई और उपभोक्ताओं के विरोध के कारण टाल दिया गया। इसी तरह कुछ दूसरी कंपनियों ने वाट्सएप, ट्वीटर,स्काइप आदि के लिए अलग से शुल्क लेने की तैयारी कर ली थी। जाहिर है,ऐसी कोई भी योजना उपभोक्ता अधिकारों के उलट है।

शुल्क वसूलने में समानता और पारदॢशता पहली शर्त हैलेकिन नेट सेवा प्रदाता कंपनियों की इस स्वेच्छाचारिता के खिलाफ ट्राई ने आम लोगों से राय जाननी चाही तो उसके सामने लगभग 24 लाख लोगों ने इंटरनेट की आजादी यानी नेट न्यूट्रिलिटी के पक्ष में अपनी राय जाहिर की। तब से देश भर में नेट न्यूट्रलिटी के लिए समर्थन बढ़ता ही गया।

फेसबुक की ‘फ्री बेसिक्स’ सेवा के चलते 2015 में नेट न्यूट्रलिटी का मुद्दा गर्म हुआ था।$ फेसबुक के मुताबिक वह अधिक से अधिक लोगों तक इंटरनेट की सेवाएँ पहुँचाना चाहती थी। कंपनी एशिया,अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के दूर-दराज इलाकों तक मुफ्त बुनियादी इंटरनेट कनेक्टिविटी फ्री बेसिक्स प्लेटफार्म के माध्यम से देना चाहती थी।इसके लिए उसने 19 देशों के एक दर्जन से अधिक मोबाइल ऑपरेटरों से साझेदारी की थी।

इस सेवा पर लोगों ने आपत्ति जताई कि यह इंटरनेट की स्वतंत्रता की राह में रोड़ा है। इसके चलते यूजर का इंटरनेट पर दायरा सिमटकर रह जाएगा। मुद्दे पर विवाद गहराने के बाद दिसंबर में रिलाइंस कम्युनिकेशन ने $फेसबुक की इस सेवा को भारत में कुछ समय के लिए रोक दिया। फरवरी 2016 में ट्राई ने नेट न्यूट्रिलिटी का समर्थन करते हुए इस पर रोक लगा दी।

नेट न्यूट्रलिटी की वैश्विक स्थिति और भारत

चिली दुनिया का पहला देश है जिसने नेटवर्ट न्यूट्रिलिटी को बनाए रखने के लिए देश के दूरसंचार कानून में वर्ष 2010 में बदलाव किए। इन बदलावों के बाद इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियाँ चिली में इस बात पर पहरा नहीं लगा सकती कि यूजर वैध रुप से कौन-सी वेबसाइट देखता है या किस एप का इस्तेमाल करता है।

2012 में नेट न्यूट्रलिटी नियम लागू करने वाला नीदरलैंड यूरोप का पहला और दुनिया का दूसरा देश बना।इसके तहत इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियाँ इंटरनेट पर किसी भी एप या वेबसाइट को ब्लॉक या धीमा नहीं करेंगी।2016 में रुसी दूरसंचार नियंत्रण संस्था ने भी नेट न्यूट्रलिटी को लागू किया। वहाँ सिर्फ उन वेबसाइटों को ब्लॉक किया जाएगा जिन्हें केंद्रीय दूरसंचार,सूचना प्रोद्योगिकी व मीडिया मंत्रालय ने रोक लगाई है।

इस समय अमेरिका में भी नेट न्यूट्रलिटी का मुद्दा काफी गर्म है। 2015 में जब यह बहस छिड़ी तो तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में अपना मत रखते हुए नियम बनाए थे। परंतु कुछ दिन पहले अमेरिकी दूरसंचार संस्था एफसीसी ने इंटरनेट की आजादी छीनते हुए इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों के पक्ष में फैसला सुनाया। ऐसे में ट्राई द्वारा नेट न्यूट्रिलिटी के पक्ष में सिफारिश भारतीय लोकतंत्र के मजबूती को ही प्रतिभबबित करता है।

भारत प्रारंभ से ही मुक्त इंटरनेट की वकालत करता रहा है। ट्राई ने कहा है कि सेवा प्रदाताओं को किसी के साथ ऐसा करार नहीं करना चाहिए जिससे सामग्री के आधार पर भेदभाव हो सकता है। हालांकि ट्राई ने सेवा प्रदाताओं को ट्रैफिट प्रबंध व्यवस्था लागू करने की अनुमति दी है, लेकिन जब ऑपरेटर उसे लगांएगें तो इसके बारे में बताना होगा और यूजर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा उसकी भी जानकारी देनी होगी।

आज के दौर में इंटरनेट सेवा एक बहुपयोगी जरूरत बन गई है। सरकार खुद डिजिटलीकरण के पक्ष में है। ऐसे में अगर इंटरनेट सर्वसुलभ और सस्ती नहीं की जाएगी तो आम उपभोक्ता को ही इसका खामियाजा भुगतना होगा। विचित्र है कि एक तरफ दुनिया में भूमंडलीकरण का जोर है और इंंटरनेट इसका बड़ा उपयोगी उपकरण है, जो सभी को एक साथ जोड़े रख सकता है, लेकिन दूसरी तरफ उसे महंगा और भेदभावकारी बना दिया गया है।

यही कारण है कि भारत में नेट न्यूट्रिलिटी को को प्रभावी बनाने के लिए ट्राई ने दूरसंचार विभाग को दूरसंचार ऑपरेटरों, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं, कंटेंट मुहैया कराने वालों, नागरिक समाज के संगठनों और ग्राहकों के प्रतिनिधियों वाला एक बहुपक्षीय निकाय बनाने का सुझाव दिया है जो इसके उल्लंघन पर नजर रख सके। यह निकाय ट्रैफिक प्रबंधन तंत्र और गैरभेदभावपूर्ण सिद्धांतों के प्रवर्तन के लिए जिम्मेदार होगा। इंटरनेट पर लोकतांत्रिक समानता स्थापित करने हेतु आवश्यक है कि फेसबुक जैसी सॉशल साइट हो या कोई और, सब पर समानता का नियम लागू हो। ट्राई की सिफारिशें तत्परता से लागू कर ही भारत लोकतांत्रिक समानता से परिपूर्ण इंटरनेट क्षेत्र में भी विश्व समुदाय का आधुनिक गुरु बन सकेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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