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नेतन्याहू की भारत यात्रा: इजरायल से रिश्तों को नया आयाम
अंशुमान तिवारी
इजरायल के प्रधानमंत्री बेजामिन नेतन्याहू ने जब भारत की धरती पर कदम रखा तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रोटोकॉल तोड़ते हुए हवाई अड्डे पर उनके स्वागत के लिए मौजूद थे। मोदी ने जिस गर्मजोशी से नेतन्याहू का स्वागत किया वह यह बताने के लिए काफी है कि निश्चित रूप से दोनों देशों के रिश्तों की नई इबारत लिखी जा रही है। हाल में संयुक्त राष्ट्र में जेरुसलम को राजधानी बनाने के मामले में भारत का इजरायल के खिलाफ मतदान भी दोनों देशों के मजबूत होते रिश्तों की दीवार को कमजोर नहीं कर सका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले का समर्थन उसके कई मित्र माने जाने वाले राष्ट्रों ने भी नहीं किया है और शायद इजरायल भी इस मामले में भारत से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकता। इजरायल समझता है कि वह भारत से तत्काल किसी ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं कर सकता जो सरकार को मुसीबत में डालने वाली हो।
नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान मोदी के साथ उनकी जबर्दस्त केमेस्ट्री देखने को मिली। मोदी की इजरायल यात्रा के दौरान भी ऐसी ही केमेस्ट्री देखने को मिली थी। भारत के इजरायल को महत्व देने का एक प्रमुख कारण अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की घेरेबंदी को तोडऩा है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार मजबूत होते चीन ने भारत के पड़ोसी देशों को अपनी गिरफ्त में लेकर भारत की तगड़ी घेरेबंदी कर ली है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव आदि में चीन का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है और यह मुद्दा भारत के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है। भारत के रूस से अब पहले जैसे मजबूत रिश्ते नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि भारत और इजरायल की मजबूत होती दोस्ती का एक बड़ा कारण यह है कि भारत को इजरायल से रक्षा और तकनीक के मामले में बड़ी मदद मिल सकती है। दूसरी ओर इजरायल को भी इस महाद्वीप में भारत जैसे दोस्त की दरकार है। इसी कारण मोदी व नेतन्याहू दोनों देशों की इस दोस्ती को काफी महत्व दे रहे हैं।
मोदी ने गत जुलाई में ही इजरायल की यात्रा की थी और उस यात्रा के दौरान नेतन्याहू ने मोदी का जोरदार स्वागत किया था। मोदी इजरायल की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। मोदी ने इजरायल यात्रा के दौरान भी आतंकवाद का मुद्दा उठाया था। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद से लडऩे और अपने सामरिक हितों की सुरक्षा करने पर सहमति जताई थी। मोदी ने नेतन्याहू को भारत यात्रा का न्योता दिया था जिसे नेतन्याहू ने तुरंत स्वीकार कर लिया। यही कारण है कि अब नेतन्याहू के भारत आने पर मोदी ने भी दिल खोलकर नेतन्याहू का स्वागत किया और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इजरायल की ताकत को रेखांकित किया। सामरिक खरीद-फरोख्त के मामले में आज भारत के लिए इजरायल रूस, अमेरिका या किसी अन्य यूरोपीय देश की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत यह संकेत देना चाहता है कि इजरायल से हमारी दोस्ती दुश्मनों की नाक में नकेल कसने के लिए नहीं बल्कि दोनों देशों में बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय के लिए है।
इजरायल से भारत की मजबूत होती दोस्ती का एक आयाम प्रौद्योगिकी से जुड़ा हुआ है। आज सारी दुनिया इस बात को मानती है कि इजरायल के वैज्ञानिक और इंजीनियर काफी आगे निकल चुके हैं। भारत इजरायल की विकसित प्रौद्योगिकी का फायदा उठा सकता है और इजरायल इसे देने के लिए तैयार भी है। आर्थिक तरक्की के मामले में भी दोनों देश एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं। भारत कृषि और रक्षा क्षेत्र में इजरायल की तकनीक का फायदा उठा सकता है तो इजरायल की नजर भारत के बड़े बाजार पर है। इजरायल की कई कंपनियां लंबे अरसे से भारत में कारोबार कर रही हैं जिसमें और तरक्की की संभावनाएं हैं।
यह सर्वविदित है कि देश की चुनावी राजनीति में अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए भारत सरकार फिलीस्तीनियों के साथ अपने विशेष रिश्तों को काफी प्रचारित करती रही है। देश के कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों के साथ यासिर अराफात की गले मिलती तस्वीरें पुराने सभी लोगों को आज भी याद हैं मगर बदले संदभों में आज भारत को इसकी कोई जरुरत नहीं महसूस हो रही है। भारत अमेरिका को अपना सामरिक साझेदार स्वीकार करता है तो उसके साथी इजरायल के साथ रिश्ते सुधारने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। नेतन्याहू की इस यात्रा के दौरान भी फिलीस्तीन का मुद्दा उठा मगर दोनों देशों की ओर से जारी साझा बयान में फिलीस्तीन या जेरुसलम के मुद्दे का कहीं कोई जिक्र नहीं था। इससे दोनों देशों में बढ़ते आपसी सामंजस्य को समझा जा सकता है। भारत ने इजरायल से अपना रुख स्पष्ट कर दिया है और इसके बाद दोनों देश इस बात पर रजामंद हो गए हैं कि आपसी रिश्तों पर इसका कोई असर नहीं पडऩे वाला है।
विदेश मंत्रालय और ओआरएफ की ओर से दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान नेतन्याहू ने कहा कि हमसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि इतना छोटा देश होने के बावजूद आप इतना आगे कैसे हैं? इसके जवाब में मैं कहता हूं कि हम विशेष लोग हैं जो लगातार अपनी सांस्कृतिक जड़ों को तलाशते रहते हैं और उससे जुड़े रहते हैं। उन्होंने कहा कि एक मजबूत राष्ट्र बनने के लिए आर्थिक, सैन्य, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकत हासिल करने की जरुरत है। उन्होंने स्पष्ट इशारा करते हुए कहा कि मजबूत देशों से ही गठजोड़ बनाया जाता है। कमजोर देश कभी सुरक्षित नहीं हो सकता। मजबूत पावर हमेशा बेहतर होता है। नेतन्याहू जिस समय यह बात कह रहे थे उस समय मोदी व भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दोनों कार्यक्रम में मौजूद थे। उन्होंने कारोबारी सुगमता की रैकिंग में भारत की छलांग की प्रशंसा करते हुए मोदी सरकार के कदमों की भी सराहना की।
दोनों देश रिश्तों में मजबूती लाकर एक-दूसरे के लिए दरवाजे खोल रहे हैं। नेतन्याहू के भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नौ समझौतों पर दस्तखत किए गए। मोदी ने इस मौके पर उम्मीद जताई कि दोनों देश मिलकर एक-दूसरे की तरक्की में बड़ा योगदान करेंगे और दोनों देशों की जनता के लिए मिलकर काम करेंगे। इस बार तेल और गैस क्षेत्र में निवेश को लेकर पहली बार महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में इजरायल भारतीय कंपनियों को उन्नत तकनीक देगा। उड्डयन के क्षेत्र में समझौते से दोनों देशों के रिश्तों में और मजबूती आने की उम्मीद है। अंतरिक्ष और औद्योगिक अनुसंधान के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच नया समझौता हुआ है। दोनों देश एक-दूसरे के निवेशकों को प्रोत्साहन और सुरक्षा देने पर सहमत हुए हैं। इसके साथ ही दोनों देश फिल्मों की शूटिंग को प्रोत्साहन देने को भी तैयार हैं। इन समझौतों से स्पष्ट है कि दोनों देशों के रिश्तों में दिन-प्रतिदिन मजबूती आ रही है। इधर बीच अरब देशों से इजरायल के रिश्तों में तल्खी कम हुई है।
इसका मतलब साफ है कि अगर भारत इजरायल के साथ रिश्तों को मजबूत बनाए तो भी अरब देशों के साथ देश के रिश्ते खराब होने की कोई आशंका नहीं है। भारत अरब देशों से मधुर रिश्तों की अनदेखी नहीं कर सकता। अरब देशों से भारत तेल लेता है और खाड़ी के देशों में काफी संख्या में भारतीय रोजगार करते हैं। इसलिए भारत ने बेहतर सामंजस्य के साथ इजरायल के साथ मधुर रिश्तों की दास्तान लिखी है।
नेतन्याहू के दौरे के बाद मोदी 10 फरवरी को फिलीस्तीन के दौरे पर रामल्ला पहुंचेंगे। यह किसी भारतीय पीएम का फिलीस्तीन का पहला दौरा होगा। इजरायल और फिलीस्तीन के आपसी रिश्ते ठीक नहीं हैं। ऐसे में मोदी का फिलीस्तीन का दौरा बेहद खास होने वाला है। भारत ने यूएन में जेरुसलम के खिलाफ वोट दिया था और अब मोदी की विजिट से फिलीस्तीन को लग रहा है कि भारत-फिलीस्तीन के सूख गए रिश्ते को नई संभावनाएं मिल सकती हैं। हाफिज सईद के साथ रैली करने पर फिलीस्तीन ने पाकिस्तान से अपने राजदूत को तुरंत वापस बुला लिया था। भारत की आपत्ति पर उसने यह कदम तुरंत उठाया। इससे समझा जा सकता है कि फिलीस्तीन भी भारत से रिश्तों को काफी तरजीह दे रहा है।
ऐसे में भारत को काफी सूझबूझ व कूटनीतिक कौशल से इजरायल और फिलीस्तीन से रिश्तों को मजबूती देनी होगी।
वैसे इजरायल से भारत के मजबूत होते रिश्तों से सबसे ज्यादा परेशानी पाकिस्तान को हो रही है। यही कारण है कि पाक विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने नेतन्याहू की यात्रा के दौरान ही इजरायल पर हमला बोला और कहा कि इजरायल उस बड़े इलाके पर कब्जे की कोशिश में लगा है, जो मुस्लिमों का है। वैसे ही भारत कश्मीर में मुस्लिमों की जमीन कब्जा कर रहा है। इजरायल से भारत के मजबूत होते रिश्तों से पाक को हो रही परेशानी को आसानी से समझा जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)