×

New Criminal Laws : नये भारत में बदलाव के कानून, न्याय की ओर

New Criminal Laws : भारतीय न्याय प्रणाली की कमियां को दूर करते हुए उसे अधिक चुस्त, त्वरित एवं सहज सुलभ बनाना नये भारत की अपेक्षा है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 2 July 2024 4:36 PM IST
New Criminal Laws : नये भारत में बदलाव के कानून, न्याय की ओर
X

New Criminal Laws : भारतीय न्याय प्रणाली की कमियां को दूर करते हुए उसे अधिक चुस्त, त्वरित एवं सहज सुलभ बनाना नये भारत की अपेक्षा है। मतलब यह सुनिश्चित करने से है कि सभी नागरिकों के लिये न्याय सहज सुलभ महसूस हो, कानूनी प्रावधान न्यायसंगत एवं अपराध-नियंत्रण का माध्यम हो, वह आसानी से मिले, जटिल प्रक्रियाओं से मुक्त होकर सस्ता हो। निश्चित रूप से किसी भी कानून का मकसद नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति व अधिकारों की रक्षा करना ही होता है। जिससे किसी सभ्य समाज में न्याय की अवधारणा पुष्ट हो सके। 1 जुलाई, 2024 से भारत आपराधिक न्याय के एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है। न्याय का एक नया सूरज उदित हो रहा है, जब पूरे देश में लागू हुई भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता तथा भारतीय साक्ष्य संहिता को लेकर उम्मीद करनी चाहिए कि यह बदलाव न्याय की कसौटी पर खरा उतरेंगे। इस दृष्टि से यह कानून से जुड़ी अकल्पित उपलब्धियों से भरा-पूरा अवसर भारत न्याय प्रक्रिया को एक नई शक्ति, नई ताजगी और नया परिवेश देने वाला साबित होगा। उल्लेखनीय है कि कानूनी बदलाव से जुड़े ये तीनों विधेयक बीते साल संसद में पारित किये गए थे।

अंग्रेजों के बनाये कानून क्या स्वतंत्र भारत में साढे़ सात दशक बाद भी लागू रहने चाहिए, यह लम्बे समय से विमर्श का विषय बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार द्वारा न्यायिक व्यवस्था को प्रभावी, आधुनिक, तकनीकी बनाने के लिये, अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को बदलने एवं आधुनिक अपेक्षाओं के नये कानून बनाने का साहसिक एवं प्रासंगिक कदम उठाते हुए नए कानून लाने एवं उन्हें लागे करने का बड़ा कदम उठाया है, जो सुखद एवं स्वागतयोग्य है। विपक्षी दलों ने सांस्कृतिक, धार्मिक व भौगोलिक विविधता वाले देश के लिये बनाये गये कानूनों को भले ही व्यापक सार्वजनिक विमर्श के बाद ही लागू किया जाने की अपेक्षा व्यक्त की हो, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि जहां ब्रिटिश काल में बने कानूनों का मकसद दंड देना था, वहीं नये कानूनों का मकसद नागरिकों को न्याय देना है। मौजूदा चुनौतियों व जरूरतों के हिसाब से कानूनों को बनाया गया है।


इन कानूनों को बनाने का मूल उद्देश्य अपराधमुक्त समाज की संरचना करना है। इसीलिये अपराधियों को कड़े दण्ड देने का प्रावधान किया गया है। उल्लेखनीय है कि भारतीय न्याय संहिता में विवाह का प्रलोभन देकर छल के मामले में दस साल की सजा, किसी भी आधार पर मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सजा, लूटपाट व गिरोहबंदी के मामले में तीन साल की सजा का प्रावधान है। आतंकवाद पर नियंत्रण के लिये भी कानून है। किसी अपराध के मामले में तीन दिन में प्राथमिकी दर्ज की जाएगी तथा सुनवाई के बाद 45 दिन में फैसला देने की समय सीमा निर्धारित की गई है। वहीं प्राथमिकी अपराध व अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम के जरिये दर्ज की जाएगी। व्यवस्था की गई है कि लोग थाने जाए बिना भी ऑनलाइन प्राथमिकी दर्ज कर सकें। यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इन कानूनों के माध्यम से देश में पुलिस सुधार को भी बल मिलेगा। पुलिस कानून-कायदे के तहत काम करने को विवश या बाध्य होगी। अंततः अब पुलिस को अनुशासित बनाने के साथ-साथ कारगर बनाने की ओर देश ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं। पुलिस प्रशासन की सफलता इसी में है कि तमाम लोगों को यह महसूस हो कि कानून न्यायपूर्ण ढंग से लागू किया जा रहा है। एक पहलू यह भी है कि पुलिस प्रशासन को कुशल और सक्षम बनाने के लिए संसाधनों की कमी आड़े नहीं आए। जिस स्तर की सेवा की उम्मीद लोग पुलिस से कर रहे हैं, उसके लिए सरकारों को पुलिस पर व्यय बढ़ाना होगा। सक्षम और सहयोगी पुलिस हमारे तेज विकास में कारगर होगी। पुलिस को प्रशिक्षित एवं सक्षम बनाने के तंत्र भी नये तरीके से विकसित करने होंगे। एक तरह से इन कानूनी प्रावधानों को सहज एवं सरल बनाने के प्रयास किये गये हैं।

ध्यान रहे, पिछले कानूनों में यह बड़ी कमी थी कि वे गरीबों को न्याय दिलाने में असमानता के द्योतक थे। उन कानूनों का इस्तेमाल गरीबों के खिलाफ जितनी आसानी से होता था, उससे कहीं ज्यादा कठिनाई से अमीरों के खिलाफ मामले दर्ज होते थे। आरोप सिद्ध होने या सजा के मामले में भी गरीबों को ही ज्यादा भुगतना पड़ता था। औपनिवेशिक युग के निर्मम या गरीब विरोधी कानूनों को समाप्त करने की मांग लंबे समय से हो रही थी। अब इन नये तीन कानूनों ने ब्रिटिश काल के तीन कानूनों की जगह ले ली है, इसका एहसास कराना होगा कि ब्रिटिश हिसाब से बने कानून अब देश में नहीं चल रहे हैं। नए कानूनों में यह ताकत है कि इनसे अपने यहां संपूर्ण न्याय प्रणाली में आम नागरिकों के अनुरूप आधुनिक बदलाव हो सकता है। केंद्र सरकार ने अपना काम कर दिया है और अब राज्यों को अपने स्तर पर इन अच्छे एवं प्रभावी कानूनों को लागू करने की पूरी तैयारी करनी पड़ेगी और देश के ज्यादातर राज्यों में पुलिस जिस तरह से प्रशिक्षित हो रही है, इससे जुड़ी खबरों का सामने आना भी सुखद है। सक्षम और सहयोगी पुलिस नये भारत-सशक्त भारत-विकसित भारत में कारगर होगी।

सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुरूप राजद्रोह कानून को तो हटा दिया गया है लेकिन राष्ट्रीय एकता, अखंडता व संप्रभुता के अतिक्रमण को नये अपराध की श्रेणी में रखा गया है। संगठित अपराधों के लिये तीन साल की सजा का प्रावधान है। इसके साथ ही अपराध की जांच-पड़ताल को आधुनिक तकनीक के जरिये न्यायसंगत बनाने का प्रयास किया गया है। जिसमें फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाना भी अनिवार्य है ताकि अपराधी संदेह का लाभ न उठा सकें। दूसरी ओर सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अपराध नियंत्रण में बढ़ेगा। नये कानून के अनुसार मौत की सजा पाये अपराधी को खुद ही दया याचिका दायर करनी होगी, कोई संगठन या व्यक्ति ऐसा न कर सकेगा। निश्चित ही जहां सरकार वर्तमान संदर्भ के अनुरूप कानूनों का आधुनिकीकरण कर रही है वहीं उसे कानून व्यवस्था को सशक्त बनाने एवं पुलिस-व्यवस्था को सुधारने एवं सक्षम बनाने के लिये साधन-सुविधाओं को सुलभ कराने के लिये तत्पर होना होगा। नये कानून एवं नयी आधुनिक अदालते कल के भारत को और मजबूत करेगी। नये भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने में इनकी सर्वाधिक सार्थक भूमिका होगी। सरकार अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी या स्थानीय भाषाओं में न्याय-प्रक्रिया को संचालित करने के लिये भी प्रतिबद्ध है।


नए कानून से मुकदमे जल्दी निपटेंगे और तारीख पर तारीख के दिन लद जाएंगे। एक जुलाई से लागू हो रहे आपराधिक प्रक्रिया तय करने वाले तीन नये कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एफआइआर से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है। आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए नये कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर एफआइआर दर्ज करने, जांच पूरी करने, अदालत के संज्ञान लेने, दस्तावेज दाखिल करने और ट्रायल पूरा होने के बाद फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय है। साथ ही आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बनाने से मुकदमों के जल्दी निपटारे का रास्ता आसान होगा।

शिकायत, सम्मन और गवाही की प्रक्रिया में इलेक्ट्रानिक माध्यमों के इस्तेमाल से न्याय की रफ्तार तेज होगी। उपर्युक्त सभी बातों को देखते हुए स्पष्ट है कि भारतीय न्याय तंत्र में विभिन्न स्तरों पर सुधार की दरकार को महसूस करते हुए वैसी व्यवस्थाएं की गयी है। लेकिन यह सुधार न सिर्फ न्यायपलिका के बाहर से बल्कि न्यायपालिका के भीतर भी होने चाहिये। ताकि किसी भी प्रकार के नवाचार को लागू करने में न्यायपालिका की स्वायत्तता बाधा न बन सकें। न्यायिक व्यवस्था में न्याय देने में विलंब न्याय के सिद्धांत से विमुखता है, अतः न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिये बल्कि दिखना भी चाहिये। नये कानूनों एवं नयी कानूनी व्यवस्थाओं से ऐसा होता हुआ दिख रहा है जो नये भारत की ओर गति को दर्शा रहा है।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

Next Story