TRENDING TAGS :
नई आर्थिक सम्भावनाओं का द्वार खोलती गौशाला
कृष्ण गोपाल ‘व्यास’
मध्य प्रदेश में हर पंचायत में गौशाला खोलने का प्रशासनिक निर्णय लिया गया है। इस निर्णय के कारण प्रदेश में 22824 गौशालाएं खुलेंगी। उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही फैसला किया गया है। इस तरह का कदम नई सम्भावनाओं का द्वार खोल सकता है। आवश्यकता सही रोडमैप बनाने और उस पर अमल करने की होगी। मौजूदा हालात बताते हैं कि इस काम के लिये बजट समस्या बन सकता है। पंचायतों को अतिरिक्त बजट चाहिए होगा। गायों की देखभाल के लिए अमला चाहिए। गायों के इलाज के लिए पशु चिकित्सक और दवाओं के लिए धन चाहिए। यह सब मिलना भी चाहिए लेकिन क्या यह कदम कुछ उजली आर्थिक सम्भावनाओं तथा स्वावलम्बन का द्वार खोलता है?
माना जा सकता है कि हर पंचायत, गौशाला खोलने के लिये स्थान का आसानी से इन्तजाम कर लेंगी। लेकिन गोचर खत्म होने के कारण गायों को चराना तथा उन्हें पूरे साल चारा उपलब्ध कराना, बड़ी समस्या हो सकता है। सुझाव है कि जंगलों में पैदा होने वाली घास, पंचायतों को उपलब्ध कराई जाए। कुछ योगदान नहरों के आसपास पैदा होने वाली घास से भी हो सकता है। इस व्यवस्था से गौशाला की घास की अच्छी-खासी आवश्यकता पूरी हो सकती है। इसके अलावा पराली और भूसा का विकल्प है जो देशी खाद के बदले में अपनाया जा सकता है। घास खरीदने से पंचायतों को निजात दिलाने के लिये घास की व्यवस्था विभागों द्वारा निशुल्क की जा सकती है।
इसे लागू करने से समय तथा धन की बचत होगी। पंचायतों को केवल भण्डारण और घास की सुरक्षा का इन्तजाम करना होगा। गौशाला में दूध के उत्पादन से कुछ आय प्राप्त की जा सकती है। इसके लिये प्रदेश के दुग्ध संघ से आवश्यक अनुबन्ध किया जा सकता है। यह प्रशासनिक निर्णय है। इसे लागू करने में कठिनाई का प्रश्न नहीं उठता। इस कदम से दूध के उत्पादन में कुछ वृद्धि होगी। गोबर गैस मिलेगी अलग से। उसका उपयोग बदलाव ला सकता है।
गाय के गोबर से देशी खाद और गोमूत्र से कीटनाशक दवाओं को बनाया जा सकता है। इस काम को करने के लिये पंचायत ग्राम स्तर पर इच्छुक युवकों से अनुबन्ध कर सकती है। यदि ऐसा किया जाता है तो गाँवों के युवाओं की ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। इन्फ्रास्टक्चर उपलब्ध होने के बाद ग्रामीण युवा देशी खाद और देशी कीटनाशक दवाओं का उत्पादन कर सकेंगे और उनके माध्यम से किसानों को देशी खाद और दवा उपलब्ध कराई जा सकती है। बिक्री से प्राप्त राशि का आधा हिस्सा पंचायत की आय होगी। इस आय से गायों की दवा तथा देखभाल इत्यादि सम्भव है।
यदि लघु तथा सीमान्त किसान देशी खाद और दवा का नगद भुगतान नहीं कर पाता तो पंचायत की सहमति से वह उसका भुगतान फसल आने के वक्त भी कर सकता है। पंचायतों द्वारा लघु तथा सीमान्त किसानों को अनाज के रूप में भी भुगतान करने की सुविधा दे सकती है। यह अन्न बैंक होगा। यह सुविधा उपलब्ध कराने से रासायनिक खाद तथा महंगे कीटनाशकों पर होने वाले व्यय में कमी आएगी। किसान का खर्च कम होगा। खेती की लागत घटेगी। खाद तथा दवा सुविधाजनक तरीके से मिल सकेगी। हानिकारक रसायनों के उपयोग से होने वाले खतरों से बचा जा सकेगा। यह कदम किसान की बचत को बढ़ाएगा। बाजार में भटकने से बचेगा। पानी और धरती के प्रदूषण को बढऩे से रोकेगा।