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New Year 2022: जो हो उम्मीदें उसे पूरा करने का साल
New Year 2022: जनता के चेहरों पर खुशी दिखे। खेतों में हरियाली, जवान, किसान, नौजवान सब अपने मन्सूबे पर आसमान बना सकें। मां, बहनें निर्भीक हों और अपने अपने जहां में जी सकें। देश के सभी संस्थान स्वायत्तता पा सकें। भूख, गरीबी, लाचारी में किसी को न जीना पड़े।
New Year 2022: वर्ष 2020 और 2021, ये दोनों ही साल किसी बुरे सपने की तरह रहे। महामारी (Epidemic), बेरोजगारी (Unemployment), महंगाई (Dearness), लाचारी (helplessness), सब कुछ इन दो वर्षों ने दिखा दिया। इतने बुरे वर्ष शायद ही पहले कभी बीते हों। शायद ही किसी पीढ़ी के दौर में गुजरे हों। लेकिन कुछ भी स्थायी नहीं होता। सुख हो या दुख। हर रात के बाद सवेरा होता है। बुरा हुआ है, तो अच्छा भी होना ही है। यह बात अब नए साल 2022 में लागू होने की उम्मीद बंधी है, क्योंकि इन बीते दो बरसों में अगर एक जानलेवा वायरस (corona virus) आया। पसरा। तो ऐतिहासिक तेजी से बनने वाली वैक्सीनें भी आईं। दवाएं भी आईं। भले ही 2021 बीतते बीतते ओमिक्रॉन की दहशत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यही ओमिक्रॉन 2022 में कोरोना के अंत को लायेगा। शायद इसी उम्मीद से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 2022 में इस महामारी का अंत हो जाना चाहिए। ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variants) कोरोना महामारी के खात्मे की शुरुआत है। यहाँ खात्मे से मतलब यह है कि वायरस तो हमारे बीच रहेगा। लेकिन यह सर्दी-जुकाम वाले वायरस जैसा हो जाएगा, जो मामूली अवस्था में पड़ा रहेगा।
महामारी के स्थानिक बीमारी बनने की उम्मीद
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस (WHO Director-General Tedros Adhanom Ghebreyesus) ने उम्मीद जताई है कि महामारी आये दो साल हो गए हैं। अब हम वायरस को अच्छी तरह समझ चुके हैं। हमारे पास इससे लड़ने के सभी टूल्स मौजूद हैं। अमेरिकी वैज्ञानिक अन्थोनी फौची और अरबपति उद्यमी बिल गेट्स का मानना है कि अब कोरोना महामारी एक साधारण बीमारी बनने की तरफ जा रही है। विश्वविख्यात वाइरलोजिस्ट डॉ डेविड हो के मुताबिक़ ओमिक्रॉन वेरिएंट ही महामारी को एंडेमिक यानी स्थानिक बीमारी बना देगा। कई बार तेजी से भड़की आग बहुत तेजी से फैलती है, लेकिन जल्द ही अपने आप समाप्त हो जाती है। यही कोरोना के साथ होने वाला है।
गेम चेंजर बनेगी नई वैक्सीन, बस कुछ हफ्तों में आ रही
उम्मीद के मुताबिक़ कोरोना के खात्मे की दिशा में एक नई वैक्सीन बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली है। अब से कुछ ही हफ़्तों बाद यानी जनवरी 2022 में अमेरिका के वैज्ञानिक एक ऐसी वैक्सीन की घोषणा करने वाले हैं, जो न सिर्फ ओमिक्रॉन बल्कि कोरोना के सभी वेरिएंट्स के खिलाफ मजबूत कवच प्रदान करेगी। अब वाल्टर रीड इंस्टिट्यूट की 'स्पाइक फेरिटिन नैनोपार्टिकल वैक्सीन' (Spike Ferritin Nanoparticle Vaccine) या एसपीएफएन तैयार है।
कोरोना के खिलाफ यह वैक्सीन गेमचेंजर साबित होने वाली है। इसके अलावा, फाइजर और मर्क कंपनी की एंटीवायरल दवा को अमेरिका के एफडीए ने 12 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों में इस्तेमाल किये जाने की इमरजेंसी मंजूरी दे दी है। फाइजर की दवा का नाम पैक्स्लोविड है। यह टेबलेट अस्पताल में भर्ती होने की नौबत और मृत्यु के खतरे को 90 फीसदी तक घटा देती है। यह दवा ओमिक्रॉन के खिलाफ भी असरदार है। यह टेबलेट डॉक्टर के पर्चे पर उपलब्ध होगी।
आर्थिक परिदृश्य के बदलने की भी उम्मीद
उम्मीद है कि 2022 में कोरोना के महामारी से स्थानिक बीमारी में तब्दील होने के साथ आर्थिक परिदृश्य भी बदलेगा। भारत की जीडीपी की वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 2022-23 में 8.2 प्रतिशत रहेगी। अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी बैंक ऑफ अमेरिका ने यह अनुमान लगाया है कि अगले वर्ष भारत में चीजें सामान्य होंगी और वृद्धि रफ्तार पकड़ेगी। इसी तरह, फ्रांसीसी ब्रोकरेज फर्म बीएनपी परिबा का मानना है कि बीएसई सेंसेक्स वर्ष 2022 में चढ़ेगा। अगले साल के अंत तक इसके 62,000 अंक तक पहुंचने की उम्मीद है। अमेरिकी इकॉनमी (american economy) और डॉलर भी विश्व आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करता है। ब्लूमबर्ग, बैंक ऑफ अमेरिका तथा अन्य संस्थानों का अनुमान है कि 2022 में अमेरिका की अर्थव्यवस्था और बीते 44 वर्षों में सबसे ज्यादा मजबूत रहेगी। इंटरनेशनल बाजार में क्रूड ऑयल के दाम अब स्थिर हैं। उम्मीद है कि 2022 में यही ट्रेंड बना रहेगा। अमेरिका का ओपेक देशों पर दबाव बना हुआ है।
न्यायपालिका से जनता की हताश आशाओं को जीवन की उम्मीद
आने वाले वर्ष में न्यायपालिका से सबसे बड़ी उम्मीद यही की जानी चाहिए कि वह भारतीय जनता की हताश आशाओं को जीवित रखने के अपने दायित्व का सम्यक निर्वहन करती रहेगी। पिछले कुछ दशकों से न्यायपालिका ने जनता की अनेक हारी हुई उम्मीदों को फिर से जीत दिलाई है। इसलिए एक ऐसे समय में जब राजनीति में नैतिकता की मौजूदगी गहरे संकट में है। हमारे इर्द गिर्द पूंजी के प्रभाव वाली व्यवस्थाएं क्रूरतम रूप में मौजूद हैं, न्यायपालिका का आश्वस्तकारी छतरी के रूप में बना रहना जरूरी है। हां, अगर मी लॉर्ड कोर्ट कचहरी दौड़ने में होने वाले खर्च और गरीब की हैसियत में कोई संतुलन बना सकें तो बेहतर होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि अदालतें न्याय करें, पंचायत नहीं। जैसा कि अयोध्या के रामजन्मभूमि विवाद (Ram Janmabhoomi dispute) में किया, वैसा नहीं। इसी के साथ ज़रूरी है कि ऐसे न्यायमूर्ति न्यायपालिका को मिलें जिन्हें पता हो कि चुनाव कराने व टालने का अधिकार किसके पास है। वे प्रधानमंत्री से चुनाव टलवाने की अपील करते न दिखें।
देश की राजनीति (country politics) और राजनेताओं से उम्मीद
नए साल में देश की राजनीति और राजनेताओं से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह सचमुच जनता के लिए, जनता द्वारा चुनी गई, जनता की सरकार के तौर पर काम करें ना कि जनता द्वारा चुनी गई ऐसी सरकार के तौर पर जिस पर इल्जाम लगे कि वह पार्टी हितों के लिए अधिक प्रतिबद्ध हैं। राजनीतिक दलों से उम्मीद है कि वह इस वर्ष अपने फायदे के लिए समाज को जातियों में और ज्यादा बांटने का काम नहीं करेंगे, जोड़ने का काम करेंगे, ताकि हमारा समाज और मुल्क ज्यादा ताकतवर बन सके। वे अपने नफा नुकसान से ज्यादा जनता के नफा नुकसान के बारे में सोचेंगे और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा सुनिश्चित करेंगे। धनबलियों व बाहुबलियों को पहले तो राजनीतिक दल टिकट न दें। यदि दें तो जनता उन्हें सदन में भेजें ही नहीं। चुवाव सस्ते हों। चुनाव आयोग को अपनी असली ताक़त का अहसास हो सके। एवीएम मैनुपलेट किये जाने के आरोप से मुक्त हो सके। विधानसभा व संसद सिर्फ़ कोरम पूरा करने की जगह न रह जायें। यहाँ पहुँचे हमारे जन प्रतिनिधि पार्टी से ऊपर उठकर देश व समाज की भी सोचें। लोकतंत्र बचेगा या नहीं? इस सवाल का सकारात्मक जवाब आ जाये।
नेता घोषणानाथ बनने से बाहर निकल सकें
सत्तारूढ़ दल अपने चुनावी वायदों को पाँचवें साल में पूरा करने की जगह पहले साल से ही पूरा करने में लग जाये। नेता यह समझना बंद कर दें कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। संतों का सीकरी से काम न पड़े। बल्कि संतों से सीकरी को काम पड़ने लगे। धर्म के प्रतीक सत्ता के सामने नतमस्तक हो रहे हैं। यह बड़बोलापन बढ़ रहा है कि हम अपने भगवान की रक्षा करेंगे, जबकि भगवान का काम हमारी रक्षा करना है। धर्म हमें क्षुद्र पहचानों से ऊपर उठाकर व्यापकता की ओर ले जाता है। शिनाख़्ती पहचान से धर्म मुक्त हो सके। ज्ञान के उत्पादन का उद्देश्य सत्य हो। न कि प्रोपेगेंडा।
नरेंद्र तोमर का बयान कभी सच साबित न हो
कृषि क़ानूनों (agricultural laws) को लेकर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का बयान कभी सच साबित न हो। नेताओं की ज़ुबान पर लगाम रहे ताकि उन्हें बयान पर सफ़ाई न देना पड़े। चुनाव के आखिरी साल व आंखिरी दो पाँच महीनों में जिस तरह चुनी हुई सरकारें सक्रिय होती हैं। उसे देख कर यह उम्मीद की जानी चाहिए कि हर साल चुनाव हों। हमारे पूर्वजों को, जिन्होंने देश के निर्माण में योगदान दिया, जाति के खाँचे में बांध कर देखने से हम सब उबर सकें।
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का चित्र लगाने के आदेश पर सोचें
संविधान में अब आगे और संशोधन न करना पड़े। नेताओं में यह कहने का साहस हो कि संविधान किसने किसने लिखा। संघ सरकार बनाने के स्थान पर व्यक्ति व राष्ट्र के निर्माण पर विचार करे। संघ जाति के आधार पर नहीं, बल्कि अपने स्थापित सिद्धांत और नीति के आधार पर पहले की भाँति ही चले। हर स्वयंसेवक के घर में भारत माता का चित्र ही अभीष्ट था। अब संघ यह विचार करे। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) का चित्र लगाने के आदेश पर सोचें। संघ के दर्शन व दृष्टि के अनुसार जो तय किया था। कृति रूप संघ दर्शन उसके स्वरूप, दर्शन आनुषंगिक संगठनों संगठन मंत्रियों पर नज़र रखें। यदि विचलन हो तो उन्हें वापस संघ में लेने के स्थान पर भाजपा की राजनीति के हवाले कर दें।
युवकों को प्रतीक पुरूष और रोल मॉडल मिल सकें
युवा की स्वाभाविक प्रवृत्ति सत्य व न्याय के साथ खड़े होने की होती है परंतु परिपक्वता के अभाव में असत्य व अन्याय को भी सत्य व न्याय जैसा दिखा दिया जाये तो वह उसके साथ भी खडा हो जाता है। ऐसे लोग जो आभासी सत्य व न्याय की बात करें, आभासी सत्य व न्याय में जी रहे हों, युवाओं को झाँसे में फँसाने की कोशिश करें, सबको समझने की युवकों को दिव्य दृष्टि मिले।
हम सब लोग आने वाली पीढ़ियों को सही इतिहास बता सकें
हम बता सकें कि हिंदू शब्द का पहला प्रयोग ऋग्वेद में मिलता है, न कि सिकंदर के आने के बाद। आरक्षण कुछ इस तरह लागू किया जाये ताकि किसी भी समय सीमा में इसके ख़त्म होने की उम्मीद दिखे। क्रीमीलेयर व वन्स बेनिफीटेड का फ़ार्मूला लागू किया जा सके।
पर्चे आउट होना बंद हों (Stop leaking of examination papers)
किसी भी परीक्षा के नतीजे पर शक की गुंजाइश न रहे। कोई भूखा न सोये। बीमारी के लिए किसी को खेत व ज़ेवर बेचना व गिरवी न रखना पड़े। सब अपने धर्म व उसकी किताबों में लिखी शिक्षाओं का अनुसरण करें। कठमुल्लों व फ़तवों से दूर रहें। हम सब गुस्से से उबलते दिल, छोटे दिमाग और संकीर्ण आत्मा वाले राष्ट्र के तौर पर निर्मित होते जा रहे हैं। नया साल इससे हमें बचाने में कामयाब हो। धर्मनिरपेक्षता व राष्ट्रवाद की स्वहितपोषी परिभाषाएँ न हों कि लोग ग़ैर मौसमी फल व सब्ज़ियाँ खाना ही बंद कर दे। मिलावट पर लगाम लगाने के बारे में हमारी सरकारें गंभीर हों।
संपूर्ण स्वच्छता काग़ज़ों से निकलकर लोगों की आदत का हिस्सा बने। दूसरों के अधिकारों को हड़पने की कोशिश ख़त्म हो। जुगाड़ से पुरस्कार पाने का सिलसिला थमे। जिस तरह पद्म पुरस्कारों में आम लोगों को जगह मिली है। उसी तरह हर पुरस्कार लोगों की पहुँच में आये। पद्म पुरस्कार पाने वालों के लिए एक आदर्श आचार संहिता बन सके। लोग गूगल बाबा व व्हाटसएप विश्वविद्यालय के ज्ञान से खुद को दूर रखने में कामयाब हो सकें। लोगों को अधिकार के साथ अपना कर्तव्य का भी भान रहे।
इलेक्ट्रिक कारों का युग शुरू हो (The era of electric cars begins)
नए साल में सड़कों पर इलेक्ट्रिक कारों की मौजूदगी जम कर दिखे। 2021 में ही बीते वर्ष की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में 234 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। नई कारों की लॉन्चिंग के साथ 2022 में ये इसकी भी तीन गुनी हो जायेगी। पेट्रोल , डीजल की खपत और प्रदूषण, दोनों पर कण्ट्रोल होने की उम्मीद बने। 2022 में 18,637 किलोमीटर एक्सप्रेस-वे और बन जायेंगे। इस साल दुनिया का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे दिल्ली – मुम्बई के बीच बन कर तैयार हो जाएगा। 2022 में कम से कम 12 और एक्सप्रेसवे तैयार हो जाने की उम्मीद है। एक्सप्रेसवे बन जाने से सम्बंधित इलाकों में डेवलपमेंट और तेजी से होने की उम्मीद है। हम सब एक्सप्रेस वे से आगे ग्रीन एक्सप्रेस पर यात्रा कर सकें। 2022 टेलीकम्यूनिकेशन की 5 जी टेक्नोलॉजी लाये। ऑनलाइन कनेक्टिविटी बढ़े। अधिकतर सेवाएँ ऑनलाइन हों। नई सेवाएँ भी हमारे सामने आयें।
इंटरनेट कंटेट क्रिएटरों को वोटिंग राइट मिले (Voting Rights to Internet Content Creators)
इंटरनेट की पहली पीढ़ी थी वेबसाइट और ब्लॉग। दूसरी पीढ़ी यानी वेब 2.0 में आए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म। 2022 में तीसरी पीढ़ी यानी वेब 3.0 को हम सब इंज्वाय कर सकें। ब्लॉक चेन तकनीक पर आधारित इस इंटरनेट में किसी कंपनी का वर्चस्व न हो। आम लोग बड़ी टेक कंपनियों के फैसलों को प्रभावित कर सकें। वेब 3.0 के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें डेटा पर नियंत्रण किसी कारपोरेट या सरकार के बजाय खुद लोगों का होगा। साथ ही, सिंगल एकाउंट के जरिए यूजर इंटरनेट मीडिया, ईमेल, शापिंग साइट आदि को एक्सेस कर पाएंगे। इंटरनेट पर भी कन्टेंट क्रिएट करने वाले लोगों को वोटिंग जैसे अधिकार मिल सकें।
2022 में मेटावर्स (Metaverse in 2022) भी हमारे बीच हो
मेटावर्स एक ऐसी दुनिया में असली और आभासी – दोनों का मेल होगा। 2021 में तो फेसबुक ने अपना नाम बदलकर मेटा रख लिया। फेसबुक का कहना है कि मेटावर्स भविष्य का इंटरनेट होगा। मेटावर्स असली और डिजिटल जगत के बीच की दूरियों को मिटाने की बात करता है। इस तकनीक के तहत मनुष्य डिजिटल जगत में वर्चुअली प्रवेश कर सकेगा। मेटावर्स एक ऐसी दुनिया है जिसमें हम शारीरिक रूप से उपस्थित ना होते हुए भी आग्युमेंट रियलिटी के जरिए उपस्थित रहते हैं। इसमें फोटो से लेकर टेक्स्ट और वीडियो सबकुछ काफी नेचुरल होता है। मेटावर्स पर 2022 में बहुत कुछ देखने को मिल सके।
नॉन फ़ंजिबल टोकन यानी एनएफटी का चलन बढ़े
2021 में क्रिप्टोकरेंसी के साथ साथ नॉन फ़ंजिबल टोकन यानी एनएफटी तेजी से बढ़ा है। 2022 में ब्लाकचेन टेक्नोलॉजी और आगे बढ़े। क्रिप्टो के साथ एनएफटी भी बहुत पापुलर हो। एनएफटी डिजिटल संपत्ति होती है, जिसे ब्लॉकचेन तकनीक के जरिए संभाला जाता है। एनएफटी बड़े ही सुरक्षित तरीके से ब्लॉकचेन पर रिकार्ड हो जाता है, जैसा कि क्रिप्टोकरेंसी के साथ होता है। इसका मतलब है कि अगर कोई पेंटिंग एनएफटी है, तो यह अपने आप में अकेली होगी। इसे कोई कॉपी नहीं कर पाएगा। उसकी दूसरी प्रति बनना मुश्किल होगा। जैसा यूनिक कंटेंट है, वो वैसा ही रहेगा, जिसमें कोई बदलाव नहीं होगा। सो हम आप भी इस कांसेप्ट में शामिल होने के लिए तैयार हो सकें।
2022 में कांटेक्टलेस समाज और भी विस्तार न लें
हालाँकि कोरोना महामारी के कारण लोगों का आपसी संपर्क वैसे भी बहुत कम हो गया है। आने वाले साल में संपर्कविहीन समाज से मुक्ति मिले। अब 'कांटेक्ट' यानी संपर्क की बजाये 'अनटैक्ट' यानी संपर्कविहीनता होगी। अनटैक्ट एक नया शब्द है। इसे आगे बढ़ाया है साउथ कोरिया ने जो एक अनटैक्ट समाज बना रहा है। जिसमें इंसानों का इंसानों से न्यूनतम संपर्क रहेगा। अनटैक्ट का उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना और ब्यूरोक्रेसी को कम करना है। जिसका नतीजा आर्थिक ग्रोथ में नजर आयेगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। जैसे जैसे ऑनलाइन काम बढ़ेगा, वैसे वैसे अनटैक्ट होगा। 5 जी के साथ ये और भी दिखेगा। पर यह नया व संभावित समाज केवल टेक्नोलॉजी तक ही सीमित रहे।
फैसलों में जनता की भागीदारी बढ़े
एक उम्मीद नए साल से यह भी की जानी चाहिए कि फैसलों में जनता की भागीदारी बढ़े। डेवलपमेंट के नाम पर जो कुछ भी किया जाता है या किया गया है, उसमें लोगों की रायशुमारी एकदम नहीं होती है। किसी इलाके, शहर या प्रदेश में लोगों की जिन्दगी आसान बनाने के लिए क्या किया जाये, इसमें लोगों की राय जानी जाए। सब कुछ बड़े दफ्तरों में बैठे बड़े अफसरान ही न तय करें, बल्कि लोगों से भी पूछा जाए, जनमत तैयार हो।
आत्मनिर्भर भारत का नारा न सिर्फ बुलंद हो बल्कि समावेशी बने। कुछ ऐसा हो कि लोगों को, खासकर युवाओं को अपना काम करने की तरफ ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित किया जाए, डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स में युवाओं और स्टार्टअप्स के लिए रिजर्वेशन हो। एक नई इकॉनमी का उदय हो जिसमें ठेकेदारों, कंपनियों और मुट्ठीभर लोगों का वर्चस्व ख़त्म हो।
उम्मीदों का एक अहम सिरा उस अफसरशाही से भी जुड़ा है जो संसद और सुदामा के बीच सेतु का काम करती है। बीते कुछ सालों में इस इस सेतु पर इस बात के ढेरों इल्जाम लगे हैं कि वह अपने दोनों छोर पर ईमानदार नहीं है। नए साल में उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद में पारित कल्याण की सभी योजनाएं सुदामा तक निर्बाध ढंग से इस सेतु के जरिए पहुंच सके।
मीडिया से भी उम्मीदें (expectations from the media)
उम्मीदें उस मीडिया से जो अभी हारी नहीं है पर जिसने हालांकि अपनी विश्वसनीयता पर सबसे ज्यादा आत्मघाती हमले किये हैं। शब्दों की विश्वसनीयता, उसकी सत्ता और महत्ता फिर से स्थापित हो। यह उम्मीद भी जरूरी है और उसका पूरा होना भी उतना ही जरूरी है। मीडिया पर लोगों का विश्वास जमे। वह गोदी मीडिया के अलंकरण को उतार फेंकने में कामयाब हो। वह निष्पक्ष व प्रतिपक्ष दिखे। सोशल मीडिया पर लिखने वालों को राम सद्बुद्धि दे। यह मीडियाकर कॉल हैं क्योंकि इक्कीसवीं सदी में हमने कोई नया अविष्कार नहीं किया। काश! हम मीडियाकर कॉल से उबर कर इंटैलैक्चु्ल पीरियड की ओर जा सकें। लोकतंत्र मजबूत हों। जनता के चेहरों पर खुशी दिखे। खेतों में हरियाली, जवान, किसान, नौजवान सब अपने मन्सूबे पर आसमान बना सकें। मां, बहनें निर्भीक हों और अपने अपने जहां में जी सकें। देश के सभी संस्थान स्वायत्तता पा सकें। भूख, गरीबी, लाचारी में किसी को न जीना पड़े।
'बीते सालों सा दुख न दे।
सबकों पूरे सुख से भर दे।'
(लेखक पत्रकार हैं।)