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चांद सा हो मुख पृष्ठ, पढ़ने पर करे बाध्य
मानव के मुखड़े की भांति अखबार का प्रथम पृष्ठ उसका परिचायक होता है।
मानव के मुखड़े की भांति अखबार का प्रथम पृष्ठ उसका परिचायक होता है। अत: हम श्रमजीवी पत्रकारों की अनवरत कशमकश रहती है कि दिलचस्प रीति से आकर्षक समाचार द्वारा पाठक के चितवन को खींच लें। पढ़ने पर बाध्य कर दें। अर्थात ऐसा हो फ्रंटपेज। अब इसके लिये जरुरी है कि उस अवसर की खबर भी तो जोरदार हो ! इसी कारण से रिपोर्टर/ सबएडिटर अमूमन नकारात्मकतावाली बात को खोजता है क्योंकि वही खबर बनती है। मगर ऐसा सदैव नहीं होता है।
मसलन आज ही का दिन (20 जुलाई 1969) था जब भूमंडल डुलानेवाली इतनी बड़ी घटना हुयी जो न इसके पहले कभी हुयी थी, न इसके बाद आजतक हुयी है। स्थल था विश्व के बाहर, अंतरिक्ष में। दूर शशिलोक पर अमेरिकी पायलेट नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पैर रखा था।दुनिया से वह जीते जी परलोक में चला गया था। भले ही उसकी इस हरकत के परिणाम से शायर और कवियों में, प्रेमी युगलों में काफी नीरसता व्यापी थी। नैराश्य भी। अप्राप्य अब हासिल हो रहा था। वह रविवार बड़ा यादगार रहा। सर्वोत्तम खबरिया रात थी। वह रिकॉर्ड गत शती में नहीं, अभी तक भी टूटा नहीं। चांद की सतह पर उतरते ही नील ने कहा था : ''यह इंसान का एक छोटा सा कदम है, मगर मानवता के लिये लम्बी छलांग है।''
उस रात हम पत्रकार साथी अहमदाबाद के आश्रम रोड (दूसरे छोर पर बापू का साबरमती आश्रम है) के ''टाइम्स आफ इंडिया'' कार्यालय में इस युगांतकारी घटना की प्रतीक्षा कर रहे थे। रात के लम्हे बीतते जा रहे थे। हम सब टेलिप्रिंटर के पास ही उत्सुकता से खड़े थे। एक फ्लैश आया। राइटर संवाद समिति का था कि ''चांद पर नील उतर गये। टहल रहे है।'' अब हम सारे सबएडिटरों और रिपोर्टरों के सामने प्रश्न था कि प्रथम पृष्ठ की इस खबर को कैसे प्रस्तुत जाये? बाकी दैनिकों से होड़ लगी थी। तब टीवी का प्रचलन ज्यादा था नहीं। वर्णनात्मक रपट तो नासा (अमेरिकी अंतरिक्ष केन्द्र) से छन—छन कर आ रही थी। हम सबका तात्कालिक प्रयास रहा कि अहमदाबाद के निवासी वैज्ञानिकद्वय डा. विक्रम साराभाई और डा. पी.राम पिशारोटी (केरल के) की प्रतिक्रिया ले ली जाये। आर्यभट्ट अंतरिक्ष यान के शिल्पी रहे थे डा. साराभाई। डा. पिशारोटी ने रिमोर्ट सेंसिंग द्वारा मौसम का ज्ञान प्रसारित कर कीर्ति अर्जित की थी।
यहां तक तो सिर्फ हम रिपोर्टर का काम था। आगे का जिम्मा था डेस्क वालों का। प्रश्न था कि नवेली रोमांचक खबर को सजाया—परोसा कैसे जाये? तय था कि आठ कालम की बैनर हैडिंग होगी। रात्रि पाली के चीफ सब एडिटर (शिफ्ट इंचार्ज) थे सीवी रामानुजम। बड़े योग्य थे। बस खामी यही थी कि मदिराप्रेमी थे। अत: वादा हुआ कि प्रथम पृष्ठ पर छपने के लिये भेजने के बाद रामानुजम को उनका मनपंसद पदार्थ भेंट दिया जायेगा। हालांकि गुजरात में आज भी मद्यनिषेध है। चूंकि मैं शराब—कबाब से सख्त परहेजी हूं, तो यह कार्य मुझे ही सौंपा गया। तब मेरी एक शर्त थी कि मेरा चमत्कारिक सुझाव माना जाये। इसे रामानुजम ने स्वीकार भी कर लिया। मेरी सलाह थी कि चांद पर आदमी का पहुंचना इहलोक की सर्वाधिक बड़ी खबर है। अत: इसे ''टाइम्स'' के मास्टहेड (मस्तक—लाइन) के ऊपर छापा जाये। शीर्षक रामानुजम ने दिया —''Man on the Moon''. अपने जीवन में इतना आह्लाद हमे कभी भी नहीं हुआ था। हालांकि कई दशकों से कम्पायमान वाकयों की रिपोर्टिंग कर चुका हूं।
अब लौटें पत्रकारी आचरण पर। यूं गत सदी में अनेकों बड़ी खबरें हुयीं पर इतनी विशाल नहीं। मसलन विशिष्ट जन की मृत्यु की खास खबर हमेशा प्रथम पृष्ठ पर रही। हत्या हुयी तो और बड़े अक्षरों में छपी। बापू की (30 जनवरी 1948), जान कैनेडी (22 नवम्बर 1963), इंदिरा गांधी (30 अक्टूबर 1984), राजीव गांधी (21 मई 1991) इत्यादि। सब के सब बैनर शीर्षक रहे। पिछला विश्वयुद्ध समाप्त हुआ था 2 सितम्बर 1945 को, जब पूरे प्रथम पृष्ठ पर सारे भारतीय दैनिकों ने विस्तार से छापा था। जर्मनी ने 8/9 मई 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया था। उस वक्त के आसपास की घटना है। एडोल्फ हिटलर ने अपने संस्कृतज्ञाता ज्योतिषी से पूछा कि उसकी मृत्यु तिथि क्या होगी? हिचकते हुये ज्योतिषी ने बताया कि हिटलर किसी यहूदी पर्व के दिन मरेगा। उत्सुक हिटलर ने फिर पूछा कि : ''कौन सा पर्व?'' ज्योतिषी ने (जैसै बताते हैं,) कहा कि : ''हर्र हिटलर, जिस दिन आपका निधन होगा, वहीं सबसे बड़ा यहूदी त्यौहार होगा।'' तीस अप्रैल 1945 को हिटलर ने चन्द घंटे पूर्व ही प्रेयसी इवा ब्राउन के साथ विवाह किया था फिर तुरंत आत्महत्या की थी। यह दोनों हादसे यूरोपियन दैनिकों की पेज वन के समाचार रहे थे।
चांद पर आर्मस्ट्रांग की चढ़ाई ने कविता को नये आयाम दिये। चांद जमीन लाने का वादा तब से मुमकिन लगने लगा। चन्द्रलोक में हाउसिंग कालोनी की योजनायें भी विचारार्थ होने लगीं। इस सिलसिले में सोशलिस्ट नेता शायरे इन्कलाब शम्सी मीनाई, बाराबंकी वाले, की पंक्तियों के भाव याद आते हैं कि ''क्या चांद पर भी यही हिन्दू—मुस्लिम मारकाट, यहीं भुखमरी, सरमायेदारी लेकर जाओगे?'' अब इस सवाल का जवाब तो सियासतदां के पास ही होगा। पत्रकार सिर्फ उल्लेख कर सकते है।