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Women Nameplate: नेम प्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया

Women Nameplate: घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में थोड़ी सी जगह देने के बारे में सोचने वाले लोग अबतक बहुत कम ही लोग हैं।

RK Sinha
Published on: 14 March 2023 11:59 AM GMT (Updated on: 14 March 2023 12:22 PM GMT)
Women Nameplate: नेम प्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया
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Women Nameplate: पिछली 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिलाओं को घर और घर से बाहर, उनके जायज हक देने को लेकर तमाम वादे किए गए और अनेक बातें भी हुईं। यह तो हर साल ही 8 मार्च को होता है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। यह सब आगे भी होता ही रहेगा। पर अफसोस कि घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में मां, बेटी और बहू के लिए अबतक कोई जगह नहीं है। हालांकि अब घर बनाने के लिए आमतौर पर पति-पत्नी मिलकर ही मेहनत करते हैं और फिर होम लोन भी मिलकर ही लेने लगे हैं। कहने को भले ही कहा जाता रहे कि हर सफल इंसान के पीछे किसी महिला की प्रेरणा होती है।

यह बात अपने आप में सौ फीसद सही भी है। इस बारे में कोई बहस या विवाद नहीं हो सकता। सफल इंसान को जीवन में सफलता दिलाने में मां, बहन, पत्नी वगैरह किसी न किसी मातृशक्ति का रोल रहता है। पर, उन्हें घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में थोड़ी सी जगह देने के बारे में सोचने वाले लोग अबतक बहुत कम ही लोग हैं। एक प्रकार से मान लिय गया है कि नेमप्लेट में तो घर के पुरुष सदस्य का ही नाम होगा।

नेम प्लेट में आधी दुनिया के लिए जगह

कोई माने या ना माने, पर नेम प्लेट में आधी दुनिया के लिए जगह नहीं है। मुझे हाल ही में एक अध्ययन के निष्कर्ष मिले। इसमें घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में आधी दुनिया की स्थिति का गहराई से अध्ययन किया गया था। इस रोचक अध्ययन के दौरान राजधानी दिल्ली के राजौरी गार्डन, विवेक विहार, आई.पी.एक्सटेंशन और न्यू राजेन्द्र नगर के 160 घरों और फ्लैटों के बाहर लगी नेम प्लेट को देखा गया। इस अभियान के दौरान कई चौंकाने वाले, तो कुछ नए तथ्य सामने आए। इन सभी कालोनियों में खाते-पीते और पढ़े-लिखे लोग रहते हैं। इन 160 घरों में सिर्फ 23 घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में महिलाओं के नाम मिले। इनमें भी 11 नेमप्लेट में महिलाओं के नाम घर के पुरुष सदस्यों के नामों के साथ थे। इन्हीं 11 में से पांच महिलाओं के नामों के आगे डॉ. लिखा था। यानी कि वह मेडिकल पेशे से संबंध रखती हैं। हो सकता है कि किसी ने अन्य विषय में पी.एचडी की डिग्री ली हो। तो माना जाए कि जिन लोगों ने अपने घर की महिला सदस्यों के नाम डॉक्टर न होने के बावजूद नेमप्लेट में रखे, वे वास्तव में अलग तरह के लोग हैं।

ये आदरणीय हैं। इसके साथ ही वकालत के पेशे से जुड़ी महिलाओं के नाम भी नेमेप्लेट में जगह पा जाते हैं। आप मुंबई, पटना, रांची, चंडीगढ़ या देश के किसी भी छोटे-बड़े शहर में चले जाइये। वहां के किसी आवासीय इलाके में घूमिए। आपको कमोबेश वही स्थिति मिलेगी जो दिल्ली में है। सब जगह आधी दुनिया अन्याय का शिकार हो रही है। उन्हें घर के भीतर न्याय मिलने का फिलहाल तो इंतजार है। मालूम नहीं कि उन्हें कब उनका जायज हक मिलेगा। यह सोचने वाला मसला है। मैंने हिंदी की दो प्रख्यात लेखिकाओं के घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में भी उनका नाम नहीं देखा। वहां पर उनके क्रमश: कारोबारी तथा सरकारी अफसर पतियों के नाम ही नेमप्लेट पर चमक रहे थे। यह भी विडंबना ही है कि ये दोनों महिलाएं आधी दुनिया के पक्ष में निरंतर लिखती रही हैं।

जो समाज नारी को देवी के रूप में पूज्यनीय मानता है वहां पर औऱतों को उनके अपने घरों की नेम प्लेट तक से दूर रखा जाता है। यह एक शर्मनाक स्थिति है। अगर बात घर से बाहर की हो तो भी महिलाओं की मेरिट की अनदेखी होना सामान्य सी बात है। यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब हमारे यहां प्राइवेट कंपनियों के प्रमोटर अपनी पत्नियों, बेटियों, बहुओं वगैरह को ही बोर्ड रूम में रख कर सोचते थे कि उन्होंने बहुत बड़ी क्रांति कर दी है। इतना भर करके उन्हें लगता था कि उन्होंने नारी मुक्ति आंदोलन को गति दे दी। हालांकि अब स्थितियां बहुत सकारात्मक हो चुकी हैं। आधी दुनिया को कॉरपोरेट जगत में हरेक पद मिल रहा है। ये उन पदों पर रहते हुए श्रेष्ठ काम करके दिखा रही हैं। बहरहाल, जैसे –जैसे हमारे यहां महिलाएं आंत्रप्यूनर बनेंगी तो बोर्ड रूम में उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होती रहेगी।

पुत्री को पिता या परिवार की अचल संपत्ति में हक

जैसा कि पहले कह जा चुका है कि महिला दिवस पर आधी दुनिया के हक में तमाम संकल्प लिए जाते हैं। पर अब ये सब रस्म अदायगी ही लगने लगा है। अब भी कितने परिवार या पिता अपनी बेटियों को अपनी चल और अचल संपत्ति में पुत्रों के बराबर का हिस्सा देते है? बुरा न मानें, आपको दस फीसद परिवार भी नहीं मिलेंगे, जहां पर पुत्री को पिता या परिवार की अचल संपत्ति में हक मिला हो। भारतीय कानून पिता की पुश्तैनी संपत्ति में बेटी को भी बराबर हिस्से का अधिकार देता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में बेटी के लिए पिता की संपत्ति में किसी तरह के कानूनी अधिकार की बात नहीं कही गई थी। जबकि संयुक्त हिंदू परिवार होने की स्थि‍ति में बेटी को जीविका की मांग करने का अधिकार दिया गया था। बाद में 9 सितंबर 2005 को इस क़ानून में संशोधन लाकर पिता की संपत्ति में बेटी को भी बेटे के बराबर अधिकार दिया गया। आधी आबादी घर और घर के बाहर कदम-कदम पर अन्याय का शिकार होती रहती हैं । यह सब जानते हैं। अपने हिस्से का आसमान छूने वाली बेटी को अपने ही माता-पिता के घर में सही से न्याय नहीं मिल पाता। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि आज के दौर में कार्यशील महिलाओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है, वे स्वावलंबी हो रही हैं। पर, अभी आधी दुनिया के हक में लंबी लड़ाई लड़नी है। उन्हें उनका हक देना होगा देश और समाज को। वास्तव में वह समाज कितना बर्बर होता है जो लिंग, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव करता है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

RK Sinha

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