×

अब मंदी की मार

लेकिन सरकार भी तब तक दुधारी तलवार पर चलने का जो खाम मोल नहीं लेगी जब तक कि जनता उसे यह भरोसा न दिलाये कि वह अभी हमकदम रहेगी। सुख दुख सहेगी। उसको सरकार से बस उम्मीद रखनी चाहिए कि सरकार की नीति और नियत ठीक हो। नतीजों को अंतरराष्ट्रीय हालात भी कम प्रभावित नहीं करेंगे।

राम केवी
Published on: 12 May 2020 12:07 PM IST
अब मंदी की मार
X

योगेश मिश्र

कोरोना का भय, इस भय के चलते दिनचर्या बदलने का अल्टीमेटम, कोरोना की मार से परेशान श्रमिकों के अपने-अपने घर की ओर पैदल, ट्रक और साइकिल से कूच करने के हृदय विदारक दृश्यों के बाद अब आप सबको कोराना के साथ जीने तथा आर्थिक मंदी के बीच रहने के लिए खुद को तैयार करना होगा, क्योंकि भारत में हर चार में एक आदमी अब हमेशा के लिए बेरोज़गार रहेगा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, तीन मई को समाप्त हुए सप्ताह में देश में बेरोजगारी दर बढ़कर 27.11 प्रतिशत पर पहुंच गई है। तक़रीबन 11.40 करोड़ लोगों की नौकरी गई है। यह लॉकडाउन के बाद की हक़ीक़त है। इससे आँख बंद करने की कोशिश भी कम ख़तरनाक नहीं होगी। हालाँकि इस हक़ीक़त की पड़ताल इससे भी की जा सकती है कि अमेरिका में 6 करोड़ लोगों ने बेरोज़गारी भत्ते के लिए अर्ज़ी लगाई है।

मैन्यूफैक्चरिंग व सर्विस उद्योग की हालत पतली

लॉकडाउन के चलते आईएमएफ, बार्कलेज, स्टैंडर्ड एंड पुअर जैसी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की विकास दर दो प्रतिशत से कम रहने का अनुमान जताया है। जबकि मूडीज के मुताबिक़ विकास दर 0.2 प्रतिशत तक रह सकती है। लॉकडाउन हर माह जीडीपी ग्रोथ में 1.5 से 2 फीसदी की गिरावट करता है। लेकिन सरकार के सामने माँग को बनाये रखने की चुनौती है। इसके लिए रोज़गार के अवसर मुहैया कराने होंगे। जिसकी मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस क्षेत्र में फिलहाल कोई संभावना नहीं है, क्योंकि लॉकडाउन में इन दोनों क्षेत्रों में 80 से 90 फीसदी गतिविधियां बंद-सी हैं। मांग के बिना ये उद्योग शुरू भी नहीं हो पाएंगे।

बेरोजगारी दर शहरों में बढ़ेगी

भारत में स्थिति बिगड़ने का बहुत बड़ा कारण बड़ी संख्या में लोगों का सर्विस सेक्टर से जुड़ा होना है। लॉकडाउन के कारण यह क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। जीडीपी में इस सेक्टर का हिस्सा 60 फीसदी है। 25 फीसदी लेबर फोर्स इसी सेक्टर से जुड़ी है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार बेरोज़गारी दर शहरों में ज़्यादा बढ़ेगी। वह भी दक्षिण के राज्यों में इसके ज़्यादा बढ़ने का आकलन है। पुडुचेरी में 75.80, तमिलनाडु में 49.80, झारखंड में 47.10, बिहार में 46.60, हरियाणा में 43.20, कर्नाटक में 29.80, उत्तर प्रदेश में 21.50 और महाराष्ट्र में यह दर 20.90 प्रतिशत है। देश के पहाड़ी राज्यों में यह दर सबसे कम है।

पहले लॉकडाउन में ही भारी क्षति

कामगारों में 80 फ़ीसदी असंगठित क्षेत्र में हैं। संगठित क्षेत्र के 60 प्रतिशत कामगार एमएसएमई सेक्टर में हैं। लॉकडाउन के चलते इन दोनों सेक्टरों को बड़ा झटका लगा है। देश में 14 करोड़ लोगों की अप्रैल में एक पैसे आमदनी नहीं हुई, जबकि 45 फीसदी परिवारों की आय घटी है।

करीब 6.5 लाख लोगों ने भविष्य निधि खातों से 2,700 करोड़ रुपए निकाले हैं। पहले 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को रोज 32,000 करोड़ रुपये की चपत लगी। देश के 53 उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। सब्जी-फल की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान हुआ है। इवेंट मैनेजमेंट, रेस्टोरेंट, होटल, पर्यटन उद्योग और एयरलाइंस अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र से संभावनाएं, ध्यान देने की जरूरत

केवल कृषि का ही ऐसा क्षेत्र है जिसे कोरोना का क़हर तहस नहस नहीं कर पाया है। खाद्यान्न, फलों, सब्जियों, डेयरी और प्रसंस्कृत खाद्य उद्योगों के ट्रेंड को देखें तो यह जीडीपी के 20 फीसदी को पार कर जाता है। पिछले पांच साल में कृषि और सहयोगी क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 से पांच फीसदी के बीच रही है।

महामारी के बावजूद दो बातें होने वाली हैं। एक तो कृषि और सहयोगी क्षेत्र अर्थव्यवस्था का अकेला ऐसा क्षेत्र होगा जो वृद्धि दर बरकरार रखेगा, बशर्ते सरकार किसानों को उनके उत्पादों की सही कीमत सुनिश्चित कर सके।

दूसरे, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के सिकुड़ने से जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी मौजूदा 14 फीसदी से बढ़ जाएगी और ऐसा कई दशकों में पहली बार होगा। इसलिए जहां संभावनाएं बेहतर हैं, पहले सरकार को उस क्षेत्र पर फोकस करना चाहिए।

संरक्षणवादी होंगी सरकारें

सरकार को कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने के साथ साथ उद्योगों के लिए आर्थिक पैकेज का ऐलान करना ही पड़ेगा। ख़ासतौर से असंठित क्षेत्र के लिए। अब सभी सरकारों को संरक्षणवाद का रास्ता पकड़ना होगा। एशियन ट्रेड सेंटर की निदेशक डेबोरा एल्म्स का नजरिया है कि कोरोना वायरस से हुई आर्थिक क्षति से निपटने में सरकारें अधिक से अधिक संरक्षणवादी हो जाएंगी। ये मेडिकल सप्लाई से लेकर खाद्य पदार्थों तक सबमें नजर आयेगा। सभी देश अपने यहाँ खास उद्योगों के प्रति अलग नजरिया रखेंगें। उनको बचाने में ज्यादा ध्यान देंगें।

खतरे भी कम नहीं

यूके, साउथ कोरिया, ब्राज़ील, तुर्की और भारत समेत दर्जनों देशों ने मेडिकल सप्लाई, दवाओं, और खाद्य पदार्थों तक के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिये। अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद कर दी गईं, सप्लाई चेन छिन्न भिन्न हो गईं। और क्षेत्रीय आर्थिक गतिविधियां ठहर सी गई हैं। लेकिन संरक्षण वाद के ख़तरे कम नहीं हैं।

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना

विश्व व्यापार में 13 से 32 फ़ीसदी तक की गिरावट केवल इस वर्ष दर्ज होगी। अब सरकार के लिए दुधारी तलवार पर चलने जैसा काम अर्थव्यवस्था को उबारना और पटरी पर लाना है। लेकिन सरकार भी तब तक दुधारी तलवार पर चलने का जो खाम मोल नहीं लेगी जब तक कि जनता उसे यह भरोसा न दिलाये कि वह अभी हमकदम रहेगी। सुख दुख सहेगी। उसको सरकार से बस उम्मीद रखनी चाहिए कि सरकार की नीति और नियत ठीक हो। नतीजों को अंतरराष्ट्रीय हालात भी कम प्रभावित नहीं करेंगे।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व न्यूजट्रैक/अपना भारत के संपादक हैं।)

राम केवी

राम केवी

Next Story