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पोषण वाटिका- बाल कुपोषण से बचाव का एक कारगर उपाय

Nutrition Garden: सरकार लगातार प्रयासरत रही है कि बच्चों के आहार को कम खर्च में कैसे बेहतर और सुपोषित बनाया जाएं ताकि सुपोषण की पहुंच हर घर तक हो जाए।

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Newstrack Network
Published on: 2 Oct 2024 10:30 PM IST
Nutrition Garden ( Pic- Social- Media)
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Nutrition Garden ( Pic- Social- Media)

Nutrition Garden:बाल कुपोषण के निवारण के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। सरकार लगातार प्रयासरत रही है कि बच्चों के आहार को कम खर्च में कैसे बेहतर और सुपोषित बनाया जाएं ताकि सुपोषण की पहुंच हर घर तक हो जाए। पिछले कुछ समय में हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षणों में यह पाया गया कि देश में बच्चों में कुपोषण का मुख्य कारण आहार में विविधता की कमी है। इस प्रकार के कुपोषण से लड़ने के लिये हमें बड़े पैमाने पर मां और शिशु के लिए संतुलित आहार कि व्यवस्था करनी होगी वह भी स्थानीय या गांवों के स्तर पर। भले ही यह काम आसान न लगे, लेकिन इसका एक संभावित समाधान है कि सरकारी सहायता से व्यापक पैमाने पर पोषण वाटिकाएँ को बनाया जाए और उनका रखरखाव किया जाए।


पोषण वाटिका के बन जाने से एक परिवार को पूरे साल पोषक तत्व देने वाली, कुछ न कुछ उपज मिलती रहती है, चाहे वह साग सब्जी हो, फल हो, कन्द या मूल हो, बीज हो या फिर सहजन की पत्तियां ही क्यों न हों। इन पोषण वाटिकाओं से मिलने वाली यह उपज परिवार के आहार में विविधता की वजह से भोजन को सारे जरुरी पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, खनिज तथा अन्य सूक्ष्म तत्वों से भरपूर कर देती है। यह पोषक तत्व शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं। दाल चावल से बच्चों का पेट तो भर जाता है पर बदन नहीं – उसके लिए सूक्ष्म तत्व और आहार की विविधता बेहद आवश्यक है, खास कर समाज के उस बड़े हिस्से के लिए जो शाकाहारी है। मांस मछली या खास कर अंडे खाने वाले बच्चों को ऊपर बताए गए सारे सूक्ष्म तत्व कमोबेश मिल ही जाते हैं लेकिन शाकाहारी बच्चों में इनकी भरपाई आसानी से नहीं हो पाती है। ऐसे परिवारों की संख्या लाखों में है और उनको पोषण वाटिकाएँ बनाने के लिए आर्थिक सहायता, सरकारी कोष को छोड़ और कहीं से मिलना मुश्किल है।


पोषण वाटिका की पहल का सब से बड़ा फायदा छोटे बच्चों को ही मिलेगा। सब को पता है कि सुपोषण की नींव गर्भावस्था में और जीवन के पहले दो सालों में ही पड़ती है। गर्भ में और जन्म के बाद पहले छह महीने में तो माँ का दूध शिशु को सुरक्षा कवच प्रदान करता है लेकिन समस्या अगले अठारह महीनों में आती है जो पूरक आहार के महीने हैं। इन महीनों में शिशु के स्वास्थ्य पर कुपोषण का, दस्त का, सांस में कष्ट और निमोनिया का खतरा काफी बढ़ जाता है। यह अठारह महीने, क्रिकेट की भाषा में कहें तो पॉवर प्ले वाले वह पांच ओवर हैं, जहां रन भी कठिनाई से बनते हैं और विकेट खोने का खतरा भी लगातार बना रहता है। बच्चों में डायरिया और निमोनिया इसके दो मुख्य कारण है जिनसे बचने के लिए पूरक आहार और आहार में विविधता लाना बेहद अहम हो जाता है और इस को ध्यान में रखते हुए पोषण वाटिकाओं की महत्ता और भी बढ़ जाती है।


इसलिए यह ज़रूरी है कि देशभर में आने वाले महीनों में सभी ग्रामीण इलाकों में पोषण वाटिकाओं का बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाए। इस दिशा में ग्रामीण विकास विभाग ने एक बड़ी पहल की है जिसका बाल-कुपोषण से निपटने में महत्वपूर्ण और दूरगामी योगदान हो सकता है। मई 2019 की इस पहल के तहत निजी ज़मीन या सामुदायिक ज़मीन पर पोषण वाटिका के लगाने और रखरखाव पर होने वाले खर्च में मनरेगा (MGNREGA) से सहायता ली जा सकती है। सारे छोटे और सीमांत किसान परिवारों, आंगनवाड़ी केन्द्रों, आश्रम शालाओं को इसका लाभ मिलना चाहिए। इसमें मनरेगा के साथ ही सीएसआर और पंचायतो को मिलने वाली फाइनेंस कमीशन कि राशि का भी विनियोग होना चाहिए। इस निर्णय से पोषण वाटिका के प्रसार में आने वाली आर्थिक बाधा बड़े पैमाने पर दूर हो जाएगी।मनरेगा की सहायता का एक और फायदा होगा कि पोषण वाटिका के निर्माण और रखरखाव के लिए मिलने वाली मजदूरी की राशि महिलाओं को सीधे दी जाए ताकि इस राशि का प्रयोग परिवार के सुपोषण के काम में आए।


इस पहल का लाभ महिलाओं के स्वयं सहायता ग्रुप भी बड़े पैमाने पर उठा सकते हैं। उन्हें अगर सामूहिक आधार पर, उपलब्ध सरकारी जमीन पर पोषण वाटिकाएं के निर्माण करने का अवसर दिया जाए तो यह उनके लिये आय का भी एक जरिया बन सकता है। पोषण वाटिका से होने वाली अतिरिक्त उपज को वह बाजार में भी बेच सकती हैं। यही नहीं, ऐसी वाटिकाओं को बड़ी सहजता के साथ मुर्गी पालन और मछली पालन की छोटी इकाइयों से भी बड़ी आसानी से जोड़ा जा सकता है।एक तरह से हम देखें तो पोषण वाटिकाओं में निवेश एक तीर से तीन शिकार है – पहला, स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार को बढ़ावा देना, दूसरा, अभाव के माहौल में भी खाद्य विविधता सुनिश्चित करना और तीसरा, महिलाओं के लिये गांव में ही आय का एक साधन मुहैया कराना।हम आशा करते है कि देश की सारी पंचायतो में इस पहल का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाएगा ताकि बाल कुपोषण और बाल मृत्यु से बचा जा सके और कम से कम समाज के पास साधनों की कमी का बहाना न हो।

सतीश बी अग्निहोत्री, एमेरिटस फेलो, आय. आय. टी. बंबई



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Shalini Rai

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