Harish Mishra: आलोचना का एक पक्ष हुआ शून्य

Harish Mishra: आज मार्क्सवादी आलोचना की एक महत्वपूर्ण शख्सियत का निधन हो गया।नाम है मैनेजर पांडेय।

Harish Mishra
Published on: 6 Nov 2022 5:06 PM GMT
Harish Mishra
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Harish Mishra: आलोचना का एक पक्ष हुआ शून्य

Harish Mishra: आज मार्क्सवादी आलोचना (Marxist criticism) की एक महत्वपूर्ण शख्सियत का निधन हो गया।नाम है मैनेजर पांडेय (manager pandey)। नाम से ही नहीं बल्कि अपने आलोचना कर्म में भी विचार के धरातल पर मैनेज करने में माहिर थे मैनेजर पांडेय; यही एक ऐसा बिंदु है, जो उन्हें अपनी सहचेतना की अग्रज पीढ़ी और समकालीनों से भिन्न करती है।

मार्क्सवादी आलोचना से अत्यंत सतर्कता से प्रतिबद्ध

अपनी समूची रचनायात्रा में मैनेजर पांडेय ने कभी भूल से भी समालोचक की भूमिका नहीं निभाई क्योंकि वे मार्क्सवादी आलोचना से अत्यंत सतर्कता से प्रतिबद्ध थे, यही कारण है कि उन्हें रीतिकाल में भी रासरंग की जगह जनचेतना का उल्लासपूर्ण उभार नज़र आता है; जो साम्राज्य वाद का निषेध कर रहा होता है। भक्ति काल में भजन कीर्तन या काव्यशास्त्रीय नाज़ नखरे की नहीं अपितु उनकी दृष्टि शोषण से मुक्ति की जनाकांक्षा की ओर इंगित करती है।

प्रखर वक्ता भी थे मैनेजर पांडेय

मैनेजर पांडेय प्रखर वक्ता भी थे। मैंने उन्हें कई बार सुना है। नजदीक से देखा है और बात भी की है। बेहिचक मैं कह सकता हूं कि अपने कथन में शब्दों के प्रयोग में वे अत्यंत सतर्क रहते थे और दक्ष भी थे। ऐसा प्रतीत होता था कि वे बोलते वक्त ही भांप लेते थे कि उनके कहे शब्दों के कितने निहितार्थ संभव हो सकते हैं और जैसे ही कोई प्रश्न उठता था वे उसका माकूल जवाब प्रस्तुत कर देते थे क्योंकि वे शब्दों की भाषा और परिभाषा; दोनों ही अभिव्यक्तियों से भलीभांति परिचित थे। हाज़िर जवाबी में उन्हें महारत हासिल थी।"संवाद, परिसंवाद"या "बतकही"में अथवा "मेरे साक्षात्कार"आदि उनके इस कौशल के दस्तावेज है।

मैनेजर पांडेय से पहली भेंट

81-82 की बात है। उन दिनों मैं आकाश वाणी रामपुर में कार्यरत था। मेरी मैनेजर पांडेय से पहली भेंट बरेली में मंगलेश डबराल के घर हुई थी । मंगलेश डबराल ने मेरा परिचय दिया। मंगलेश डबराल और उनकी चर्चा अनौपचारिक होते हुए भी बहुत सारगर्भित और प्रभावशाली थी। इसके बाद कई बार इलाहाबाद में एकेडमी या सम्मेलन में मुलाकात होती रही और हर बार उनमें नयेपन तथा ताजगी की अनुभूति हुई। उन्होंने अनेक महत्व पूर्ण मौलिक ग्रंथों का सृजन किया, संपादन और अनुवाद किया है। हिंदी आलोचना में वे एक शलाका पुरुष हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

Deepak Kumar

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