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Parliament Session: बना रहे तिल का ताड़

Opinion: संसद में हंगामे और चीन हमले जैसे उठाए गए मुद्दों को लेकर डॉ वेद प्रताप सिंह की पेशकश।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 24 Dec 2022 7:24 AM GMT
Parliament Winter Session
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Parliament Winter Session (photo: social media )

Opinion on Parliament Session: संसद की बहस को देखते हुए ऐसा लगता है कि हमारे विपक्ष के तरकस में तीर हैं ही नहीं। वह सत्तारुढ़ दल पर खाली तरकस घुमाने में जुटा हुआ है। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहले उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर हमला किया और फिर तवांग में हुई मुठभेड़ को लेकर लोकसभा में हंगामा हो गया। इन दोनों मामलों में विपक्ष चाहता तो संसद में गंभीर बहस चलवा सकता था, जिससे देश को लाभ ही होता।

जनता को भी पता चलता कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के समन्वय पर जो बात उपराष्ट्रपति ने कही है, वह कहां तक ठीक है। जगदीप धनखड़ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में वर्तमान 'कॉलोजियम ' पद्धति में सुधार की बात कही थी। उन्होंने न्यायपालिका के अधिकारों की कटौती या उपेक्षा की कोई बात नहीं कही थी। उन्होंने किसी स्वस्थ संसदीय प्रजातंत्र में न्यायपालिका, विधानपालिका और कार्यपालिका के बीच जो आवश्यक संतुलन और सहयोग का तत्व होता है, उसी पर जोर दिया था। इसके अलावा राज्यसभा के सभापति के तौर पर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और मंत्री पीयूष गोयल से कहा था कि वे सदन में एक-दूसरे पर खुले प्रहार करने के बजाय उनके कक्ष में आकर तवांग में हुई मुठभेड़ पर बात करें तो खड़गे ने धनखड़ की इस विनम्र अपील को भी ठुकरा दिया। विपक्ष ने तवांग के मुद्दे पर तो लोकसभा की कार्रवाई ही ठप्प कर दी थी।

कांग्रेस की मांग है कि तवांग मसले पर भारतीय सैनिकों की जो 'पिटाई' हुई है, उस पर खुली बहस हो। हमारे वीर जवानों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल सर्वथा अनुचित है। बिना प्रमाण ऐसे शब्दों का प्रयोग उसके वक्ता की प्रतिष्ठा को ही गिरा देता है। तवांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच जो मामूली मुठभेड़ हुई है, वह क्या इस लायक थी कि उस पर हमारी संसद के कई घंटे बर्बाद किए जाएं? सीमा-क्षेत्रों में ऐसी फौजी झड़पें अक्सर होती ही रहती हैं। ऐसी झड़पें भारत-चीन और भारत-पाक सीमांतों पर ही नहीं होतीं, वे बांग्लादेश, म्यामांर, नेपाल जैसे पड़ौसी देशों के सीमांतों पर हो जाती हैं। उन्हें तिल का ताड़ बनाने की तुक आखिर क्या है? शायद इसीलिए है कि हमारे विपक्ष के पास न तो कोई बड़ी नीति है और न ही कोई नेता!

यदि तवांग की मुठभेड़ गंभीर होती तो भारत और चीन के कोर कमांडर दो दिन पहले चुशूल-मोल्दो सीमांत के शिविर में बैठकर शांतिपूर्वक बात क्यों करते? दोनों पक्षों ने स्वीकार किया कि वे सभी मुद्दों को बातचीत से हल करेंगे। 2020 में हुए गलवान घाटी विवाद पर भी दोनों पक्षों का रवैया ताल-मेल का था। चीन के साथ सीमांत पर यदा-कदा झड़पें होती रहती हैं लेकिन हम यह न भूलें कि उसके साथ भारत का व्यापार भी बढ़ता ही जा रहा है। हमारा विपक्ष क्या चाहता है? हम जबरदस्ती चीन के साथ क्या झगड़ा मोल ले लें? कांग्रेस यह नहीं चाह सकती लेकिन वह मोदी सरकार की किसी भी तरह टांग-खिंचाई जरूर करना चाहती है। इसीलिए वह एक अ-मुद्दे को मुद्दा बनाने पर तुली हुई है।

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Started career with Jagran Prakashan and then joined Hindustan and Rajasthan Patrika Group. During her career in journalism, worked in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi.

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