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Oxygen: कोरोना काल में बैठे बिठाये ऑक्सीजन का कॉन्फिडेंस लेवल डाउन

Oxygen: भैया जब कह रहे हैं तो मान काहे नहीं लेते। अच्छा आप ही बताओ भला ऑक्सीजन की कहीं कमी है। अरे जईसे कण कण में भगवान हैं वइसे ही ऑक्सीजन भी तो है।

Nitendra Verma
Written By Nitendra VermaPublished By Chitra Singh
Published on: 23 July 2021 7:23 AM GMT
Nitendra Verma
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नितेंन्द्र वर्मा 

Oxygen: भैया जब कह रहे हैं तो मान काहे नहीं लेते। अच्छा आप ही बताओ भला ऑक्सीजन की कहीं कमी है। अरे जईसे कण कण में भगवान हैं वइसे ही ऑक्सीजन भी तो है। मल्लब पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, दाएँ, बाएँ, ऊपर, नीचे सब जगह ऑक्सीजनै ऑक्सीजन तो है। लीजिये जितनी लेनी है । लेकिन लोगों को कउन समझाये ।

अरे पिछले कोरोना के टाइम में एक दिन हम जरा बाहर क्या निकले ऑक्सीजन ने घेर लिया । बोली लेओ । हमने कहा भी कि हमको जरूरत नहीं है । लेकिन गुस्सा गई। अकेला देख के चढ़ बईठी । कैसे जान बचा के भागे हैं हम ही जानते हैं । उस दौरान अस्पताल वाले तो बाहर बोर्ड लगाये थे कि वही मरीज भर्ती हों जो ऑक्सीजन लगवाने को तैयार हों। तमाम अस्पताल तो मरीजों के साथ तीमारदारों को भी ऑक्सीजन चढ़ा दिए ।

लेकिन कुछ लोग विचित्र प्राणी निकले। भरोसा नाम की चीज ही नहीं है। बोले अस्पताल की ऑक्सीजन नहीं लेंगे। फिर रात दिन एक करके लम्बी चौड़ी लाइनों में बाकायदा धक्के खा-खा लोग अपने निजी सिलिंडर का इंतजाम किये। तब कहीं जा के लोग इलाज करवाये ।

लेकिन ये ना समझ लीजियेगा कि कोरोना काल में ऑक्सीजन से कउनो मौत हुई होगी । देखें होंगे, जानते भी होंगे लेकिन कहीं लिखित में हैं? अब हमें मालूम है कि धूप की जवानी बिलबिला रही है । बदन से पसीना पिलपिला रहा है । लेकिन हम कैसे मान लें कि सुबह हो गई। काहे से कि मुर्गा तो बाँग दिया नहीं । अभी कुछ दिन और रुकिए पता चलेगा कि कोरोना से कोई मरा ही नहीं । काहे से आज तक किसी को पता नहीं चला कि ये पैदा कहाँ हुआ । इसके माँ बाप कौन हैं । जिसके बारे में कुछ पता ही नहीं उसका अस्तित्व भला कैसे स्वीकार कर लिया जाये ।

सरकारें तो जनता से चीख चीख के कहती रहीं कि मुफ्त ऑक्सीजन ले जाओ, भर भर के ले जाओ । लेकिन भैया मामला ऐसा है कि जनता अब हो चुकी है आत्मनिर्भर । बोली हम खुद खरीदेंगे और असली कीमत से भी कई गुना ज्यादा कीमत पे खरीदेंगे । अब इसे ब्लैक न समझ लीजियेगा । रंगभेद बहुत गलत बात है ।

बाकी जितनी लिखी है चलेगी उतनी ही। ऑक्सीजन वोक्सीजन सब माया मोह है। ये अंतराष्ट्रीय साजिश है इसे बदनाम करने की। सब मिले हुए हैं। अच्छा हुआ ऐन मौके पे सरकार का सहारा मिल गया वरना बैठे बिठाये ऑक्सीजन का कॉन्फिडेंस लेवल डाउन हुआ जा रहा था ।

इतना समझाये हैं अब तो मान लीजिए कि कहीं कोई कमी थी ही नहीं। अब हम चलते हैं । चिकोटी काटनी थी सो काट लिए । मजा आया हो तो बताइये जरूर । फिर मिलेंगे...

Note- यह एक व्यंग्य आधारित लेख है । इस लेख का मकसद किसी भी रूप में किसी व्यक्ति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय, स्थान या पद की छवि खराब करना नहीं है । न ही इसका कोई राजनीतिक मन्तव्य है।

Chitra Singh

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