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Pakistan Crisis: पाक से क्यों खफा हैं इस्लामिक मुल्क

Pakistan Crisis: अपने को इस्लामिक संसार का नेता कहने वाले पाकिस्तान से इस्लामिक मुल्क ही खफा क्यों है? इस सवाल का सीधा सा उत्तर है कि पाकिस्तान के डीएनए में ही अपने पड़ोसियों के लिए संकट पैदा करना है

RK Sinha
Written By RK Sinha
Published on: 21 March 2024 5:17 PM IST
Afghanistan vs Pakistan
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Afghanistan vs Pakistan 

Pakistan Crisis: बड़ा सवाल यही है अपने को इस्लामिक संसार का नेता कहने वाले पाकिस्तान से इस्लामिक मुल्क ही खफा क्यों है? इस सवाल का सीधा सा उत्तर है कि पाकिस्तान के डीएनए में ही अपने पड़ोसियों के लिए संकट पैदा करना है। उसने भारत के खिलाफ क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाए।पाकिस्तान में आजकल सिर्फ अंदरूनी हालात ही खराब नहीं हैं, उसके सामने कई गंभीर संकट और भी हैं। उसे उसके दो पड़ोसी देश , जो उसकी तरह से ही इस्लामिक देश हैं, उससे सख़्त नाराज हैं। पहले ईरान और अब अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है ऐसे में सवाल है कि क्या दोनों देश युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? पाकिस्तान के हमलों के बाद तालिबान ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता पर किसी भी तरह के उल्लंघन के गंभीर परिणाम होंगे।

इसके साथ ही तालिबान ने पाकिस्तान की नवगठित सरकार से दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को खतरे में डालने के लिए गैर-जिम्मेदाराना कार्यों की अनुमति नहीं देने का भी आग्रह किया।दरअसल पाकिस्तान में हाल के आतंकवादी हमलों को लेकर दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। पाकिस्तान का आरोप है कि हमले अफगानिस्तान की सरजमीं से किए गए थे।जबकि, तालिबान ने पाकिस्तान के इस दावे को गलत बताया है। आपको याद होगा कि बीते जनवरी के महीने में पाकिस्तान के आतंकवादियों के ठिकानों पर ईरान ने हमला बोला था। ईरान ने पिछली 16 जनवरी को पाकिस्तान में आतंकवादी समूह जैश अल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाकर हमले किए थे। ईरान की सरकारी मीडिया के हवाले से कहा गया था कि हमले में मिसाइलों और ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। ईरान ने पाकिस्तान में बलूची आतंकी समूह जैश-अल-अदल के दो ठिकानों को मिसाइलों से निशाना बनाया था। ईरान ने आठ साल पहले सन 2016 में भी पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर मोर्टार दागे थे।


इसलिए कहा जा सकता है कि ईरान पहले भी पाकिस्तान को निशाना बना चुका है।पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की सीमा है। उधर, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच करीब 2400 किमी॰ लम्बी अन्तराष्ट्रीय सीमा है। इसका नाम डूरण्ड रेखा है। दरअसल पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंध तब से लगातार खराब होने लगे जब पाकिस्तान ने पिछले साल अपने देश से अवैध अफगानों को निकालने का सिलसिला शुरू किया। पाकिस्तान से रोज सैकड़ों अफगान अपने देश वापस लौट रहे हैं। पाकिस्तान की इस कार्रवाई पर हजारों अफगानिस्तानियों का कहना है कि वे गुजरे कई दशकों से पाकिस्तान में हैं। वे पाकिस्तान के नागरिकता भी ग्रहण कर चुके हैं। इसके बावजूद उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है।


यहां पर बड़ा सवाल यही है अपने को इस्लामिक संसार का नेता कहने वाले पाकिस्तान से इस्लामिक मुल्क ही खफा क्यों है? इस सवाल का सीधा सा उत्तर है कि पाकिस्तान के डीएनए में ही अपने पड़ोसियों के लिए संकट पैदा करना है। उसने भारत के खिलाफ क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाए। पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ 1948, 1965, 1971 में युद्ध छेड़े और बुरी तरह से मार भी खाई। जंग के मैदान में धूल में मिलने के बाद पाकिस्तान ने 1999 में करगिल में घुसपैठ की। तब भी उसका बहुत बुरा हश्र हुआ। पाकिस्तान के साथ दिक्कत य़ही है कि वह बुरी तरह पिटने के बाद भी सबक नहीं लेता। उसे बार-बार पिटने की आदत सी हो गई है। फिलहाल वह ईरान और अफगानिस्तान से पिटने के लिये तैयार है। अब पाकिस्तान के बांगलादेश से संबंधों की भी जरा बात कर लीजिए। 1971 तक बांग्लादेश हिस्सा था, पाकिस्तान का। अब दोनों जानी दुश्मन हैं। दोनों एक-दूसरे को फूटी नजर भी नहीं देख पाते। क्यों? बांग्लादेश ने 1971 के नरसंहार के गुनाहगार और जमात-ए-इस्लामी के नेता कासिम अली को फांसी पर लटकाया तो पाकिस्तान को तकलीफ होने लगी। बांग्लादेश ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह पाकिस्तान की ओर से उसके आतंरिक मसलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। दोनों मुल्कों के संबंधों में तल्खी को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को खंगाल लेना सही रहेगा।


शेरे-ए-बंगाल कहे जाने वाले मुस्लिम लीग के मशहूर नेता ए.के.फजल-उर- हक ने ही 23 मार्च,1940 को लाहौर के मिन्टो पार्क (अब जिन्ना पार्क) में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में पृथक राष्ट्र पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा था। उस तारीखी सम्मेलन में संयुक्त बंगाल के नुमाइंदों की बड़ी भागेदारी थी। वे सब भारत के मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र की मांग कर रहे थे। सात साल के बाद 1947 में पाकिस्तान बना। फिर करीब 25 बरसों के बाद खंड-खंड हो गया। ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में दुनिया के मानचित्र पर सामने आता है। यानी पाकिस्तान से एक और मुल्क निकला। जो दोनों मुल्क कभी एक ही मुल्क के हिस्सा थे, अब एक-दूसरे की जान के प्यासे हो गए हैं। 1971 में जिस नृंशसता से पाकिस्तानी फौजों ने ईस्ट पाकिस्तान के लाखों लोगों का कत्लेआम किया था, उसको लेकर ही दोनों मुल्क लगातार आमने-सामने रहते हैं।

मैं स्वयं इस नरसंहार का प्रत्यक्षदर्शी हूँ। मैं उस समय युद्ध संवाददाता के रूप में लगभग डेढ़ वर्ष भारतीय सेना के साथ बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में रहा था।बांग्लादेश में उस कत्लेआम के गुनाहगारों को लगातार साक्ष्य के आधार पर न्यायालय से दंड मिलता रहा है। यह बात पाकिस्तान को गले नहीं उतरती। पाकिस्तानी सीरियलों और नाटकों में बांग्लादेशियों को बेहद हिकारत से दिखाया जाता है। उन्हें दोयम दर्जें का इंसान बताया जाता है। अब समझ लें कि पाकिस्तान समाज कितनी बेशर्मी से बांग्लादेशी मुसलमानों का मजाक बनाता है। वैसे पाकिस्तान अपने को सारी दुनिया के मुसलमानों के पक्ष में खड़ा होने का दावा करता है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भी पाकिस्तान से शिकायत रही है कि वह हर उस मौके पर बांग्लादेश सरकार को कोसता है जब वहां पर 1971 के मुक्ति संग्राम के गुनाहगारों को फांसी दी जाती है। यानी पाकिस्तान से सब नाखुश और नाराज हैं। इस बीच, पाकिस्तान में तो आजकल हाहाकार मच हुआ है। महंगाई के कारण आम पाकिस्तानी दाने-दाने को मोहताज है। रमजान के महीने में लोग भारी कष्ट उठा रहे हैं। बेरोजगारी,अराजकता, कठमुल्लों और मोटी तोंद वाले सेना के अफसरों ने पाकिस्तान को तबाह कर दिया है। ये स्थिति दुखद और दुभार्ग्यपूर्ण है। पर इस स्थिति के लिए पाकिस्तान खुद ही जिम्मेदार है। उसने शिक्षा की बजाय सेना के बजट को बढ़ाया है। इसलिए वह लगातार गर्त में जा रहा है। उससे इस्लामिक देश भी संबंध बनाकर रखने को तैयार नहीं हैं।



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Shalini singh

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