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Pakistan Crisis: अराजकता की तरफ पाकिस्तान
Pakistan Crisis: अवाम को अपने मौजूदा कर्णधारों पर कोई यकीन नहीं हो पा रहा है। यह सबको पता है कि इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को सेना के जनरलों द्वारा जोड़-तोड़ करके हटवाया गया था।
Pakistan Crisis: इमरान खान पर जानलेवा हमले के बाद पाकिस्तान में अराजकता और अव्यवस्था के और व्यापक स्तर पर फैलने की आशंका है। इमरान पर हुये हमले से पहले ही जनता सड़कों पर आ गई थी। अवाम को अपने मौजूदा कर्णधारों पर कोई यकीन नहीं हो पा रहा है। यह सबको पता है कि इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार को सेना के जनरलों द्वारा जोड़-तोड़ करके हटवाया गया था।
इसके बावजूद इमरान खान की तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) की पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रदेश में सरकारें हैं। यानी इमरान खान की हैसियत कोई छोटी नहीं है। उनकी राजनीति ईमानदारी पर भी कोई शक नहीं कर सकता। इस मोर्चे पर उनका अभी तक का जीवन बेदाग सा ही रहा है।
पाकिस्तान में इमरान खान के सामने नवाज शरीफ, उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ तथा आसिफ अली जरदारी हैं। इन सब पर अरबों रुपये के घोटाले के आरोप हैं। ये सब हजारों करोड़ की चल और अचल संपत्ति के मालिक भी हैं। शरीफ बंधु जनता को झूठे सब्जबाग दिखा कर ही अब तक चुनाव जीतते रहे हैं। ये घनघोर रूप से पतित और भ्रष्ट राजनीतिज्ञ हैं। नवाज शऱीफ ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कभी भी कोई सघन प्रयास नहीं किए।
उनके समय में पाकिस्तान में मुद्रास्फीति से अवाम का बुरा हाल था और देश में कहीं से कोई विदेशी निवेश नहीं आ रहा था। अब उनके अनुज शाहबाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं। वे करप्शन के आरोपों में आकंठ डूबे हुये हैं। जरदारी साहब तो उनसे भी महान हैं। उनके करप्शन के मामलों की गिनती करना तक एक कठिन काम है। यह वास्तव में पाकिस्तानी जनता के साथ अन्याय ही हो रहा है।
शाहबाज शरीफ की इमेज मुहाजिर विरोधी भी रही है। यानि वे मुहाजिरों यानि भारत से जाकर पाकिस्तान में जा बसे मुसलमानों के खिलाफ हैंI उन्होंने एक बार मुहाजिरों पर एक सभा में तंज करते हुए कहा था कि वे (जो उत्तर प्रदेश-बिहार से 1947 में पाकिस्तान चले गए थे) पान खाने वाले कराची की तरह लाहौर को भी खूबसूरत बना देंगे। पान खाने वालों से उनका इशारा मुहाजिरों से ही था।
शाहबाज शरीफ पर यह भी आरोप हैं कि उन्होंने हाल ही में बाढ़ से बर्बाद पाकिस्तानियों के लिये कुछ नहीं किया। पाकिस्तान में बाढ़ से 1000 से अधिक लोग मारे गये थे और लाखों बेघर हो गये थे। बाढ़ के चलते भारी संख्या में घर उजड़ गए, खेत तबाह हो गए और पेट्रोल पंप डूब गए। बाढ़ ने सबसे ज्यादा तबाही पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मचाई।
देश का एक तिहाई हिस्सा बाढ़ में डूबा। बाढ़ ने पाकिस्तान में अनाज से लेकर पीने का पानी तक छीन लिया। सिंध और पंजाब में कपास की खेती बर्बाद हो गई। कपास की करीब 10 लाख एकड़ की फसल तबाह हुई। इसके अलावा, 6 लाख एकड़ में लगा हुआ धान, एक लाख एकड़ में लगा खजूर और करीब 7 लाख एकड़ में लगा गन्ना भी तबाह हुआ।
दरअसल पाकिस्तान में सरकारों का जनता के दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं रहा। उनका सारा फोकस रक्षा बजट में बढ़ोतरी करना रहता है। उन्हें देश में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की रत्तीभर भी चिंता नहीं है। वहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर नाम की तो कोई चीज ही नहीं है। शिक्षा और सेहत पर भी खर्च को लेकर किसी तरह की गंभीरता नजर नहीं आती।
उन्हें तो अपना रक्षा बजट ही बढ़ाना और उसमें कमीशन खाना होता है। इसका एक उदाहरण ले लीजिए। पाकिस्तान ने चालू वित्त वर्ष का रक्षा बजट पिछले वर्ष के मुकाबले 11 प्रतिशत से बढ़ाकर 1523 अरब रुपये कर दिया है। सीधी सी बात है कि पाकिस्तान सुधरने वाला मुल्क नहीं है। उसकी बुनियाद में ही नफरत है।
वहां पर बाढ़ से तबाही आए या फिर कोई अन्य कारण रहे, पाकिस्तान का पागलपन जारी रहता है। पिछले 75 सालों में भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन गया और पाकिस्तान कटोरा लेकर दुनिया के सामने खड़ा है। विकास से कोसों दूर बसती है पाकिस्तान की दुनिया। वहां न टुरिस्ट आते हैं और न ही विदेशी पूंजी निवेश। हां, पाकिस्तान ने अपने को आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में जरूर स्थापित कर लिया है।
इस बीच, इमरान खान पर हमले पर हैरान होने की कोई जरूरत नहीं है। पाकिस्तान में पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की 16 अक्तूबर, 1951 को रावलपिंडी में उस वक्त हत्या कर दी गई थी जब वे एक सभा को संबोधित करने ही वाले थे। उन्होंने मंच पर आकर बोलना शुरू ही किया था कि उनके भाषण को सुनने आया एक शख्स अपनी जगह से उठा और उसने लियाकत अली खान को गोली मार दी।
यह घटना रावलपिंडी के कंपनी बाग में हुई थी। उसे भी वहां ही सुरक्षा कर्मियों ने मार डाला। इसलिए कत्ल की गुत्थी कभी सुलझी ही नहीं। लियाकत अली खान के कत्ल के बाद बेनज़ीर भुट्टो की हत्या रावलपिंडी में 27 दिसंबर, 2007 को हुई। बेनजीर भुट्टो पर हमला करने वाले आत्मघाती हमलावर की पहचान सईद बिलाल के रूप में हुई थी। उस केस का सच भी कभी सामने नहीं आया। हां, आरोप लगे थे तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ बेनजीर भुट्टो को मरवाना चाहते थे।
पाकिस्तान के 75 सालों के इतिहास में पहली बार खुफिया एजेंसी आईएसआई के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिला है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ हत्या के प्रयास के कुछ घंटों बाद खैबर पख्तूनख्वा के पेशावर में कोर कमांडर हाउस के सामने लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों ने इमरान पर हमले के पीछे आईएसआई चीफ मेजर जनरल फैसल का हाथ होने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की ओर से इसे लेकर एक वीडियो शेयर किया गया है। इमरान की पार्टी के नेता कह रहे हैं- 'जब नॉन-पॉलिटिकल लोग राजनीतिक प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और जनता यह देखे कि इमरान खान को धमकी देने वालों के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया जा रहा है, ऐसे में अविश्वास का माहौल पैदा होता है। इमरान खान के करीबी असद उमर ने कहा है कि उनका मानना है कि हमले में तीन लोग शहबाज शरीफ, राणा सनाउल्लाह और मेजर जनरल फैसल शामिल हैं। उन्हें पहले भी इस बात की जानकारी मिली थी, जिसके आधार पर वो यह कह रहे हैं।"
एक बात साफ है कि इमरान खान शांत बैठने वाले शख्स तो नहीं हैं। वे लड़ाकू स्वभाव के मनुष्य हैं। वे अस्पताल से बाहर आने के बाद फिर से सड़कों पर उतरेंगे। वे देश में तुरंत संसद के चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं।
उन्हें देश की जनता का साथ भी मिल रहा है। जब तक वहां पर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार सत्ता पर काबिज नहीं होती तब तक तो वहां पर अव्यवस्था बनी ही रहने वाली है। यह गंभीर स्थिति है। भारत को इस पर पैनी नजर रखनी होगी। विश्व बिरादरी को भी पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए कोशिशें तो करनी ही चाहिये।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)